

Fraud: कई सरकारी संपत्ति IG पंजीयन के आदेश से पूर्व बेची,जांच के बाद आएगी सामने हकीकत
रामानंद तिवारी की विशेष रिपोर्ट
भोपाल। मध्यप्रदेश में हाल ही में सरकारी संपत्तियों में हुए फर्जीवाड़े का मामला सुर्खियों में आने के बाद से प्रशासनिक गलियारे में हडकंप की स्थिति बनी हुई है। आखिरकार कितने करोड़ों का नुकसान हुआ, जब इस मामले की तहकीकात, में जानने का प्रयास किया तो पता लगा कि आदेश तो अफसरों ने जारी किए लेकिन आदेश के पूर्व एवं बाद की स्थिति की जांच होगी,तब ही स्थिति स्पष्ट हो सकेगी। क्यों कि ज्यादातार मामलों में आईजी पंजीयन के आदेश जारी होने से पूर्व ही रजिस्ट्री हो चुकी थी। ऐसी स्थिति में जांच के बाद ही यह क्लियर होगा कि सरकार को कितने राजस्व की हानि हुई।
”आदेश के बाद वाली रजिस्ट्री में मिला स्टे”
सूत्रों के अनुसार कई मामलों में बेच-खरीदी आईजी पंजीयन के 9 जनवरी 2024 के आदेश जारी होने से पूर्व ही हो चुकी थी। आदेश जारी होने के बाद महज एक रजिस्ट्री होने की प्रक्रिया में आई थी,लेकिन खरीददार न्यायालय से स्टे ले आया। वह अब तक न्यायालय में पेडिंग है। दरअसल, जो मामला न्यायालय में लंबित है वह कटनी जिले का है,उक्त मामले में कलेक्टर दर 35 करोड़ थी,जमींन की बिक्री किए जाने की प्रक्रिया पूर्ण की गई। क्यों कि पार्टी 17 करोड़ पर स्टाम्प ड्यूटी देने के लिए तैयार थी, लेकिन आईजी पंजीयन के निर्देश के बाद खरीददार का दांव उल्टा पड़ गया। क्यों कि उसे पंजीयन के आदेश के हिसाब से 35 करोड़ पर स्टाम्प ड्यूटी अदा करनी पड़ती। इसलिए उक्त पार्टी न्यायालय की शरण में पहुंच गई।
“अफसरों की रस्साकशी का नतीजा“
शासन और प्रशासन में पदस्थ अफसरों की आपसी रस्साकशी किसी से छिपी नहीं है। पूर्व में भी शह-मात के चलते कई अफसरों को मुंह की खानी पड़ी है। अफसर आपस में किसी प्रकार के आरोप-प्रत्यारोप लगाने में पीछे नहीं हटते। इस मामलें में हालांकि दोनो अफसरों ने अपने-अपने दायित्वों का निर्वहन बखूबी किया। लेकिन मामला जिस तरह से सुर्खियों में आया उससे ऐसा लगता है कि यह शिगूफा कहीं ना कहीं अफसरों की आपसी खींचतान से जुड़ा हुआ नजर आता हैं।
गौरतलब है कि राज्य सरकार ने 4 वर्ष पूर्व पारदर्शिता को ध्यान में रखते हुए मप्र लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग बनाया। इस प्रबंधन के माध्यम से प्रदेश भर में पड़ी सरकारी खाली जमीनों और बिल्डिंगो को नीलामी के माध्यम से बेचा जाना सुनिश्चित किया गया। परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग द्वारा सरकारी संपत्ति सरकार की मंशानुसार ही विक्रय किए जाने की कार्यवाही की जाती है।
इनका कहना है
रजिस्ट्री मामले के जानकार एडवोकेट अजय सिंह ने बताया कि यदि आप 439 करोड़ पर 5 प्रतिशत ड्यूटी जोड़ भी लो तब भी उक्त राशि तकरीबन 21 से 22 करोड़ के भीतर ही आएगी। ऐसी स्थिति में आवश्यक बिंदुओं की जांच किए बिना नहीं कहा जा सकता कि कुल कितना राजस्व सरकार को कम मिला होगा।