
“वो 7 दिन” की मासूमियत से राजा रघुवंशी केस की क्रूरता तक: समाज, सिनेमा और बदलती सोच
– राजेश जयंत की खास रिपोर्ट
*वो 7 दिन* (1983) एक ऐसी फिल्म है, जिसमें माया नाम की लड़की अपने प्रेमी प्रेम से बिछड़ जाती है और परिवार के दबाव में डॉ. आनंद से शादी कर लेती है। शादी के बाद, माया के जीवन में उसका पुराना प्रेमी लौट आता है, जिससे डॉ. आनंद को सच्चाई का पता चलता है। डॉ. आनंद अपनी पत्नी की खुशी के लिए त्याग करने को तैयार हो जाते हैं और माया को उसके प्रेमी से मिलाने की कोशिश करते हैं, लेकिन माया अपने संस्कार, परिवार और शादी के बंधन को सबसे ऊपर रखती है और अपने पति को ही चुनती है। इस कहानी में त्याग, प्रेम, रिश्तों की मर्यादा और भारतीय संस्कृति की गहराई को खूबसूरती से दिखाया गया है।

*वो 7 दिन* जैसी फिल्मों में रिश्तों की मासूमियत, त्याग और परिवार की मर्यादा को सबसे ऊपर रखा गया। माया और डॉ. आनंद के किरदारों ने दिखाया कि सच्चा प्रेम सिर्फ पाने में नहीं, बल्कि त्याग और रिश्तों की मर्यादा निभाने में है। उस दौर के सिनेमा ने समाज को परिवार, संस्कार और आपसी समझ की अहमियत सिखाई। सिनेमा समाज का आईना है, लेकिन कई बार यह समाज को दिशा भी देता है-यही वजह है कि फिल्मों में दिखाए गए रिश्तों और मूल्यों का असर असल जिंदगी पर गहरा पड़ता है।

समय के साथ सिनेमा और समाज दोनों में बदलाव आए। आज की फिल्मों और सीरियल्स में अफेयर, बार-बार की शादियां, धोखा और स्वार्थ आम हो गए हैं। आधुनिकता और वेस्टर्न कल्चर के असर से रिश्तों में संवेदनशीलता और स्थिरता कम होती जा रही है, जिससे विवाहेत्तर संबंध, तलाक, हिंसा, महिला सशक्तिकरण और LGBTQ+ जैसे मुद्दे आम हो गए हैं। हालांकि, इन विषयों के आने से समाज में जागरूकता बढ़ी है, लेकिन दूसरी तरफ रिश्तों की स्थिरता और गहराई कम होती जा रही है।

राजा रघुवंशी मर्डर केस इसका ताजा और दुखद उदाहरण है। सोनम ने परिवार की मर्जी के खिलाफ शादी की, रिश्तों में लगातार झगड़े होते रहे और आखिर में उसने अपने प्रेमी के साथ मिलकर पति की हत्या करवा दी। यह घटना बताती है कि जब परिवार, संस्कार और संवाद कमजोर होते हैं, तो रिश्तों में भरोसा और मर्यादा टूट जाती है और अपराध का रास्ता खुल जाता है। आज के टीवी सीरियल्स और फिल्मों में दिखाए गए अस्थिर रिश्ते, अफेयर और धोखा युवाओं के मन में गलत आदर्श बना रहे हैं, जिससे वे असल जिंदगी में भी रिश्तों को हल्के में लेने लगे हैं।

पहले की फिल्मों जैसे *हम आपके हैं कौन*, *हम साथ साथ हैं*, *बागबान* और *विवाह* में परिवार, त्याग और संस्कृति को सबसे ऊपर दिखाया गया। इन फिल्मों में दिखाया गया कि परिवार की एकता, बड़ों का सम्मान और आपसी समझ ही समाज की असली ताकत है। वहीं, *पिकू*, *दंगल*, *पैडमैन* जैसी नई फिल्मों में आधुनिक सोच के साथ परिवार और समाज में सकारात्मक बदलाव का संदेश भी मिलता है। साथ ही, ‘चक दे इंडिया’, ‘क्वीन’ और ‘थप्पड़’ जैसी फिल्मों ने महिलाओं की स्वतंत्रता, आत्मसम्मान और सामाजिक बदलाव को भी मजबूती से दिखाया है। ये फिल्में बताती हैं कि आधुनिकता और परंपरा साथ चल सकते हैं, बस संतुलन जरूरी है।
*समाज के लिए संदेश*
अगर हम चाहते हैं कि रिश्तों की पवित्रता, परिवार की एकता और संस्कार फिर से मजबूत हों, तो हमें-
1. परिवार में खुली बातचीत और संस्कारों की शिक्षा को बढ़ावा देना होगा।
2. बच्चों के साथ समय बिताना और उन्हें भारतीय संस्कृति से जोड़ना होगा।
3. मीडिया और फिल्मों का चयन सोच-समझकर करना होगा।
4. सामुदायिक गतिविधियों और त्योहारों में भाग लेना होगा।
5. बड़ों के अनुभवों से सीखकर बच्चों को भी जोड़ना होगा।
6. बच्चों को डिजिटल मीडिया के प्रभाव से बचाने के लिए परिवार में स्वस्थ संवाद और मार्गदर्शन जरूरी है।

आज की दौड़-भाग और मटेरियलिज़्म के बीच अगर हम परिवार, संस्कृति और रिश्तों को फिर से अहमियत देंगे, तो समाज में सकारात्मक बदलाव आ सकता है और सोनम जैसे केस दोहराए नहीं जाएंगे। परिवार और संस्कार ही समाज की असली ताकत हैं- इन्हें बचाना हम सबकी जिम्मेदारी है।





