समय का खेल… लोकतंत्र के दो पहिए बने मोदी-राहुल…

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समय का खेल… लोकतंत्र के दो पहिए बने मोदी-राहुल…

आखिरकार भारत को कांग्रेस मुक्त करने की मुहिम में लगे नरेंद्र मोदी को दस साल बाद सदन को मिले नेता प्रतिपक्ष के रूप में नेहरू-गांधी परिवार के चिराग राहुल गांधी के साथ कदमताल करना ही पड़ेगा। अब यह तय हो गया है कि भारत के लोकतंत्र को कांग्रेस मुक्त राजनीति स्वीकार नहीं है। भारत की संस्कृति ही ऐसी है, जिसने न तो किसी विचारधारा को नकारा है और न ही किसी संगठन को। फिर कांग्रेस तो वह राजनैतिक संगठन है, जिसने भारत की आजादी में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के नेतृत्व में सर्वस्व न्यौछावर किया है। राजीव गांधी की हत्या के बाद जिस गांधी-नेहरू परिवार ने राजनीति को छोड़ने का मन बना लिया था, वही परिवार अब एक बार फिर भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। पति की हत्या होने के पश्चात कांग्रेस के वरिष्ट नेताओं ने सोनिया से पूछे बिना उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बनाये जाने की घोषणा कर दी थी परंतु सोनिया ने इसे स्वीकार नहीं किया था। और राजनीति और राजनीतिज्ञों के प्रति अपनी घृणा और अविश्वास को इन शब्दों में व्यक्त किया कि, “मैं अपने बच्चों को भीख मांगते देख लूँगी, परंतु मैं राजनीति में कदम नहीं रखूँगी।” काफ़ी समय तक राजनीति में कदम न रख कर उन्होंने अपने बेटे और बेटी का पालन-पोषण करने पर अपना ध्यान केंद्रित किया था। उधर पीवी नरसिंहाराव के प्रधानमंत्रित्व काल के पश्चात् कांग्रेस 1996 का आम चुनाव भी हार गई थी। इसके बाद कांग्रेस के नेताओं ने फिर से नेहरु-गांधी परिवार के किसी सदस्य की आवश्यकता अनुभव की। उनके दबाव में सोनिया गांधी ने 1997 में कोलकाता के प्लेनरी सेशन में कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण की और उसके 62 दिनों के अंदर 1998 में वह कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गयीं। उन्होंने सरकार बनाने की असफल कोशिश भी की। राजनीति में कदम रखने के बाद उनका विदेश में जन्म हुए होने का मुद्दा उठाया गया। उनकी कमज़ोर हिन्दी को भी मुद्दा बनाया गया। उन पर परिवारवाद का भी आरोप लगा लेकिन कांग्रेसियों ने उनका साथ नहीं छोड़ा और इन मुद्दों को नकारते रहे। इसके बाद सोनिया गांधी अक्टूबर 1999 में बेल्लारी, कर्नाटक से और साथ ही अपने दिवंगत पति के निर्वाचन क्षेत्र अमेठी, उत्तर प्रदेश से लोकसभा के लिए चुनाव लड़ीं और करीब तीन लाख वोटों की विशाल बढ़त से विजयी हुईं। इसके बाद 1999 में 13वीं लोक सभा में वह विपक्ष की नेता चुनी गईं। वह 22 मई 2004 तक नेता प्रतिपक्ष रहीं थीं। और उसके बाद दस साल तक यूपीए सरकार में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह थे, तो महत्वपूर्ण भूमिका सोनिया गांधी की ही थी।

खैर राजीव गांधी, सोनिया गांधी के बाद अब राहुल गांधी लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी संभालेंगे। हाल ही में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने स्वस्थ लोकतंत्र के लिए प्रतिपक्ष की भूमिका का महत्व बताया था। तो मोदी को काफी कुछ नसीहत भी दी थी। उनकी चिंता अब खत्म हो गई है और 10 साल बाद लोकसभा को विपक्ष का नेता मिल गया है। राहुल गांधी लोकसभा में विपक्ष के नेता का पद संभालेंगे। इन दस साल के पहले भी लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद खाली रह चुका है। 1980, 1989 के समय ये पद खाली रहा है। नियमों के मुताबिक नेता प्रतिपक्ष बनने के लिए किसी भी विपक्षी पार्टी के पास लोकसभा की कुल संख्या का 10 फीसदी यानी 54 सांसद होना जरूरी है। लेकिन 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में किसी भी विपक्षी पार्टी के पास 54 सांसद नहीं थे। आखिरी बार दिवंगत बीजेपी नेता सुषमा स्वराज 2009 से 2014 तक लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष थीं। लेकिन इस बार कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन के तहत चुनाव लड़कर 99 सीटें जीती हैं और राहुल को नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी मिली है। हो सकता है कि नेता प्रतिपक्ष पद राहुल के लिए लकी साबित हो और सत्ता का द्वार भी उनके लिए खुल जाए।

54 वर्षीय राहुल राजीव गांधी (जन्म 19 जून 1970) ने लोकसभा में अमेठी, उत्तर प्रदेश और वायनाड, केरल के निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व किया। वह 16 दिसंबर 2017 से 3 जुलाई 2019 तक पार्टी के अध्यक्ष भी रहे हैं। राहुल को 2009 के आम चुनावों में कांग्रेस को मिली बड़ी राजनैतिक जीत का श्रेय दिया गया है। 2024 में 18वें आम चुनावों में, राहुल गांधी ने कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व किया और कांग्रेस को 99 सीटें हासिल करने में मदद कीं और पार्टी को 10 वर्षों में पहली बार आधिकारिक विपक्ष का दर्जा मिला। कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन ने भी उम्मीदों से बेहतर प्रदर्शन करते हुए 234 सीटें हासिल कीं। राहुल 2004 में चुनावी राजनीति में आए और तब से कोई भी पद लेने से बचते रहे थे। यहाँ तक कि पार्टी प्रमुख के पद से भी इस्तीफ़ा दे दिया था। पर अब राहुल ने नेता प्रतिपक्ष का पद ले लिया है और लोकसभा में अपनी बात भी रखी। उन्होंने ओम बिरला के फिर से लोकसभा स्पीकर बनने पर बधाई देते हुए कहा, ”ज़ाहिर है कि सरकार के पास राजनीतिक शक्ति है लेकिन विपक्ष भी भारत के लोगों की आवाज का प्रतिनिधित्व कर रहा है। इस बार विपक्ष भारत के लोगों की आवाज का प्रतिनिधित्व ज्यादा दमदार तरीके से कर रहा है।” “विपक्ष आपको संसद चलाने में मदद करेगा। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि सहयोग भरोसे के साथ होना चाहिए। विपक्ष की आवाज संसद में सुनाई दे यह बहुत ज़रूरी है। हमें पूरी उम्मीद है कि विपक्ष की आवाज संसद में दबाई नहीं जाएगी। सवाल यह नहीं है कि संसद कितनी शांति से चल रही है। सवाल यह है कि भारत के लोगों की आवाज उठाने के लिए कितनी अनुमति मिलती है। आप विपक्ष की आवाज दबाकर संसद शांति से चला सकते हैं लेकिन यह आइडिया अलोकतांत्रिक है। स्पीकर की यह जिम्मेदारी होती है कि संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करे।”

तो अब प्रतिपक्ष का पद राहुल गांधी की जिम्मेदारी लेने वाली छवि को उजागर करेगा। नेता प्रतिपक्ष पूरे विपक्ष का नेतृत्व करता है। कई जरूरी नियुक्तियों में पीएम के साथ बैठता है। चुनाव कैंपेन में पीएम मोदी और राहुल गांधी एक-दूसरे पर तीखी बयानबाजी करते हैं। ऐसे में पीएम मोदी और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी अब सदन में तीखी बयानबाजी से बच पाएं, यह उम्मीद बेमानी है। पर यह समय का खेल अवश्य है कि लोकतांत्रिक गाड़ी के दो पहियों के रूप में मोदी-राहुल की इस जोड़ी पर अब देश-दुनिया की निगाहें रहेंगीं…और सदन में शह-मात का खेल दिखता रहेगा…।