गांधी जयंती पर विशेष
Gandhi in Cinema : सिनेमा में भी छायी रहीं गांधी की आंधी
अशोक जोशी
यू तो महात्मा गांधी ने आज के ही दिन जन्म लिया था, लेकिन बड़े पर्दे पर कई बार बापू का जन्म हुआ है। ऐसा माना जाता है कि गांधीजी ने अपने जीवन में सिर्फ दो ही फिल्में देखी थी लेकिन वह उन भारतीय स्वतंत्रता सेनानी में से एक थे जिनपर शायद सबसे अधिक फिल्में बनीं और इतना ही नहीं इस शख्सियत ने हॉलिवुड को भी अपनी ओर खींचा। गांधीजी ने जो दो फिल्में देखीं उनमें माइकल कर्टिज निर्देशित ’मिशन टु मॉस्को’ और विजय भट्ट निर्देशित ’राम राज्य’ थीं। पहली फिल्म उन्होंने अपनी एक सहायिका मीराबेन के अनुरोध पर देखी, जबकि दूसरी फिल्म आर्ट डायरेक्टर कनु देसाई के आग्रह पर। उनके निधन के बाद रिचर्ड एटनबरो से लेकर राजकुमार हिरानी जैसे मेकर्स ने अपनी कलात्मक सोच के जरिए गांधीजी के किरदार साथ अपनी फिल्मों में तरह तरह के प्रयोग किए। पुराने जमाने के गांधीवाद से लेकर नए जमाने की गांधीगीरी तक दर्शकों ने देखी है।
इन फिल्मो के माध्यम से कभी परदे पर बापू को लेकर औपचारिकता निभा दी गई तो कभी फिलर के रूप में बापू का इस्तेमाल किया गया । ले देकर एकाध फिल्म ऐसी हैं जिसमें गांधी के गौरव को बढाया गया है। गांधी पर बनी अब तक की सबसे सफल फिल्म ऑस्कर विजेता ’गांधी’ (1982) में बेन किंग्सले ने उनकी भूमिका निभाई। सर रिचर्ड एटनबरो द्वारा निर्देशित इस फिल्म ने दर्शकों के दिलों-दिमागमें अपनी गहरी छाप छोड़ी।
इससे पहले 1963 में ’नाइन ऑवर्स टू रामा’ का निर्माण हुआ ।अंग्रेजी में बनी मार्क रॉबिंसन की यह फिल्म गांधीजी के हत्याकाण्ड के षडयंत्र पर प्रकाश डालती है। फिल्म गांधी की हत्या से पहले नाथूराम गोडसे की जिंदगी के नौ घंटों के बारे में है। जर्मन अभिनेता होर्स्ट बुचहोल्ज ने फिल्म में गोडसे का किरदार निभाया था। लेकिन यह फिल्म ज्यादा प्रभाव नहीं छोड पायी क्योंकि इसका विषय ही सही नहीं था।
’हे राम’ (2000) में नसीरुद्दीन शाह : कमल हासन अभिनीत यह फिल्म भारत के विभाजन और नाथूराम गोडसे द्वारा गांधी की हत्या के ईद-गिर्द घूमती है। मजेदार बात तो यह है कि एटनबरो की फिल्म में गांधी के किरदार के लिए नसीरुद्द्ीन शाह ने ऑडिशन दिया था, हालांकि आखिरकार यह रोल किंग्सले की झोली में आ गिरी। ’हे राम’ में नसीरुद्दीन के गांधी रूप को वह सराहना नहीं मिली जो किंग्सले के प्रयास को मिली, लेकिन उन्हें उनके अभिनय और गुजराती लफ्जों को सही ढंग से बोलने के लिए और भी प्रशंसा मिली।
बेन किंगस्ले की गांधी के बाद 1993 में प्रदर्शित सरदार में में अन्नू कपूर ने महात्मा गांधी का किरदार निभाया था। लेकिन सरदार पूरी तरह से लौह पुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल की जिंदगी पर बनी केतन मेहता की इस फिल्म इस महान नेता की भूमिका को बड़े पर्दे पर अदा करने के बाद अन्नू कपूर गांधी की डांडी यात्रा पर बनी डॉक्यूड्रामा ’खार’ में भी उसी रूप में दिखे।
1196 में निर्मित ’द मेकिंग ऑफ महात्मा गांधी’ में रजत कपूर को गांधी का चरित्र पर्दे पर उतारने का मौका मिला । श्याम बेनेगल द्वारा निर्देशित इस फिल्म में अभिनेता रजत कपूर ने गांधी की छबि को जोरदार तरीके से पेश किया । इस फिल्म के लिए उन्हें बेस्ट ऐक्टर का सिल्वर लोटस अवॉर्ड भी मिला था। फिल्म में मोहनदास करमचंद गांधी के महात्मा बनने तक के सफर को दिखाया गया है। ब्रिटेन और साउथ अफ्रीका में बुरे बर्ताव झेलने से लेकर भारत वापस आकर अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोलने की जीवन यात्रा को फिल्म में दिखाया गया है।
2000 में बनी ’डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर’ भले ही महात्मा गांधी के किरदार पर नहीं बनी थी, लेकिन बी.आर. अंबेडकर पर बनी इस फिल्म में मोहन गोखले ने अपने अभिनय से पर्दे पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। इसी साल ही गांधी और उनके विचारों पर बनी फिल्मों के बीच कमल हासन की ’हे राम’ साल आई। फिल्म में नसीरुद्दीन शाह ने गांधीजी का किरदार निभाया था। कमल हासन ने इसकी कहानी लिखी ही नहीं बल्कि इसे प्रड्यूस और डायरेक्ट भी किया है। इसमें विभाजन के बाद देश में फैली अशांति और गांधीजी की हत्या के बीच की कहानी दिखाई गई है। इस फिल्म को भी उस साल भारत की तरफ से ऑस्कर के लिए भेजा गया था। कमल और नसीर के अलावा फिल्म में शाहरुख खान, अतुल कुलकर्णी, रानी मुखर्जी, गिरीश कर्नाड, ओमपुरी जैसे बेहतरीन कलाकार नजर आए थे।
इसके सात साल बाद 2007 में एक बार फिर सिनेमा के पर्दे पर बापू अवतरित हुए । गांधी माय फादर में दर्शन जरीवाला ने उनके किरदार को बेहतर तरीके से पेश किया ।समीक्षकों द्वारा प्रशंसित इस फिल्म में लोगों ने दर्शन जरीवाला के अभिनय की जमकर सराहना की और उन्हें उनके इस बेहतरीन प्रयास के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला।
साल 2005 में आई फिल्म ’मैंने गांधी को नहीं मारा’, जिसमें अनुपम खेर, उर्मिला मातोंडकर, रजत कपूर, बोमन ईरानी, वहीदा रहमान, प्रेम चोपड़ा जैसे कलाकार नजर आए। फिल्म में अनुपम खेर ने उत्म चौधरी का किरदार निभाया है, जो यह कुबूल कर लेता है कि उसने ही गांधी की हत्या की। इसके बाद उनकी बेटी का किरदार निभा रहीं उर्मिता मातोंडकर (त्रिशा) यह पता लगाने की कोशिश करती है कि क्या सच में उसके पिता ने उनकी हत्या की है या कुछ और बात है।
महात्मा गांधी को राजकुमार हिरानी ने 2006 में अपनी फिल्म ’लगे रहो मुन्नाभाई’ में दिलचस्प अंदाज में पेश किया । इस फिल्म में दिलीप प्रभावलकर बापू बने थे। संजय दत्त अभिनीत यह फिल्म न केवल गांधी जी के ऊपर बनी थी, बल्कि इसमें उनकी शिक्षाओं पर भी प्रकाश डाला गया था। इस कॉमेडी-ड्रामा में दिखाया गया है कि आज के जमाने में भी गांधी प्रासंगिक क्यों हैं। इस ब्लॉकबस्टर फिल्म में बेहतरीन अभिनय के लिए दिलीप को सर्वश्रेष्ठ सहयोगी अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला।यूनाइटेड स्टेट नेशन में दिखाई जाने वाली यह पहली हिंदी फिल्म है। फिल्म ने न केवल संजय दत्त को करियर की बेहतरीन फिल्म दी, बल्कि आज के दौर में गांधीगीरी को भी लोकप्रिय बना दिया।
बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं कि बड़े पर्दे को सुरेंद्र राजन ने ही महात्मा गांधी के किरदार को सबसे अधिक बार निभाया है। भले ही वह बॉलीवुड का एक जाना-माना चेहरा नहीं हैं, लेकिन इन फिल्मों में महात्मा गांधी के रूप में उनके किरदार ने अपना लोहा मनवाया है। उन्हें ’द लेजेंड ऑफ भगत सिंह’ (2002), ’वीर सावरकर’ (2001), ’बोस : द फॉरगोटेन हीरो’ (2004) में गांधी बनने का अवसर मिला । इस लिहाज से वह बडे पर्दे के बापू कहलाने के हकदार बने।
हिन्दी ही नहीं देश की अन्य भाषाओं में बनी फिल्मों में भी महात्मा गांधी के चरित्र को पर्दे पर पेश किया गया है। 2009 में बनी तेलुगू फिल्म महात्मा ’एक उपद्रवी के बारे में है, जिसकी जिंदगी उस वक्त बदल जाती है, जब उसे अचानक गांधीवाद का पता चलता है। श्रीकांत ने फिल्म में बापू का किरदार निभाया था।
गांधी पर हॉलिवुड की भी एक फिल्म’गांधीः द कॉन्सपिरेसी’ बनी थी । अल्जीरियन डायरेक्टर करीम ट्राडिया निर्देशित इस फिल्म में हॉलिवुड कलाकारों के साथ ही ओमपुरी, रजित कपूर, गोविंद नामदेव, राजपाल यादव और अवतार गिल जैसे बॉलिवुड के कई कलाकारों ने अहम किरदार निभाए। यह फिल्म भारत के विभाजन के बाद से गांधीजी की हत्या तक के घटनाक्रम पर आधारित है। फिल्म में गांधी का किरदार ऐक्टर, प्रड्यूसर और राइटर जिसस सान्स ने निभाया था।
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