
Gandhi Jayanti: मेरा गाँव और गांधी
हमारी काॅलोनी में बहुत छोटे-छोटे बच्चे वैन से स्कूल जाते हैं। स्कूल से लौटकर बच्चे वैन से उतरे। वे बड़े रंग-बिरंगे परिधान में उछलते कूदते उतर रहे थे। मैंने पूछा, ‘‘अरे! आज स्कूल यूनिफ़ार्म नहीं पहनी?’’ उन बच्चों में से एक ने कहा, ‘‘अरे दादी, देखा नहीं, मैं ‘एप्पल’ बना हूँ।’’ खुशी से दूसरे ने कहा, ‘‘और मैं आरेंज बना हूँ ना, दादी।’’ तब तक तीसरा दौड़कर मेरे पास आकर बोला, ‘‘देखो, मैं मैंगो बना हूँ।’’ मैंने पूछा, ‘‘बच्चो, आज स्कूल में क्या था?’’ बच्चों ने बताया, ‘‘कल इनडिपेंडेंस डे है ना, तो आज फैं़सी ड्रेस काम्पिटिशन था।’’ मैंने पूछा, ‘‘क्या होता है, ‘इनडिपेंडेंस डे’?’’ बच्चों ने एक साथ कहा, ‘‘वो तो टीचर को मालूम है दादी।’’ ‘‘किसी को गांधीजी नहीं बनाया?’’, मैंने पूछा। उनमें से कोई भी मेरी बात नहीं समझ पाया। मैं सोचने लगी, ‘‘पर्यावरण के प्रति इतने जागृत और स्वतंत्रता दिवस के प्रति इतने उदासीन क्येां?’’ तभी सभी बच्चे अपनी-अपनी ममाओं के साथ घर की ओर दौड़ पड़े।
मैं सोचती रह गई, क्या इनकी ममा लोगों को स्वतंत्रता दिवस का अर्थ नहीं मालूम? हाँ, शायद, उनके तक आते आते स्वतंत्रता दिवस का अर्थ धूमिल हो चुका होगा। मैं सोच रही थी, इतने सुन्दर बच्चे हैं, गर इन्हें गांधीजी बनाकर स्कूल भेजते तो कितने प्यारे लगते; किन्तु मेरे प्रश्न का उत्तर भी मैंने ही दे लिया-‘गांधीजी बहुत दूर हो गये क्या? जितना ज़रूरी है पर्यावरण, उतनी ही ज़रूरी है स्वतंत्रता दिवस के साथ गांधीजी की याद भी’!
मुझे लगा, क्या जब हम स्कूल में पढ़ते थे, तब हमारे स्कूल में कोई ऐसी गतिविधियाँ, ऐसे क्रियाकलाप नहीं होते थे? हाँ, याद है, होते थे। हमारे गुरुजीजन स्वतंत्रता दिवस पर स्कूली बच्चों की प्रभात फेरी निकालते थे और प्रमुख क्रान्तिकारियों की छवियों को बच्चों में उतारते थेे। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और राष्ट्रीय नेताओं के संबंध में बच्चों को बताते थे। देश के लिए किए गए उनके त्याग और बलिदान की झाँकियाँ भी निकालते थे।
प्रभात फेरी में नारे लगाते थे- ‘हमारी स्वतंत्रता अमर रहे,’ ‘गांधीजी अमर रहें’, आदि आदि। प्रभात फेरी के बाद स्कूल में पहुँचकर सांस्कृतिक कार्यक्रम होते थे। गांधीजी का वेश धारण किया छात्र मंच पर खड़ा होकर अभिनय के साथ यह गीत गाता था –
माँ खादी की चादर दे दे
मैं गांधी बन जाऊँगा,
सब मित्रों के बीच बैठकर
रघुपति राघव गाऊँगा
घड़ी कमर में लटकाऊँगा
सैर सबेरे कर आऊँगा
माँ मुझे रुई की पोनी दे दे
तकली खूब चलाऊँगा
स्कूलों में इसी प्रकार के गांधीजी के जीवन पर आधारित बहुत से गीत और अभिनय होते थे। वह समय था, जब आज़ादी मिले चार-छह साल ही हुए थे। आज़ादी को प्राप्त करने के लिए गांधीजी के बलिदान को ग्रामीण लोग भी भलीभाँति जानते थे, समझते थे। हमारे लोक जीवन में गांधीजी की गौरव गाथा और गीत ऐसे प्रचलित थे, कि सबके मुँह से ‘गांधी बाबा की जय’ के नारे स्वतः ही फूट पड़ते थे।
उन दिनों गांधीजी से संबंधित गीत और लोक गीत बहुत प्रचलित थे। उनमें एक प्रमुख गीत था –
दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल
आंधी में भी जलती रही गांधी तेरी मशाल
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल
रघुपति राघव राजा राम
यह गीत गाँवों में स्कूलों के अतिरिक्त स्वतंत्रता दिवस समारोहों में चावड़ी-चैपालों पर भी लोकगीतों की भाँति गाया जाता था। इसका अंतिम बंद सबकी आँखों को बहा जाता था। गीत का अंतिम बन्द –
जग में कोई जिया तो बापू तू ही जिया
तूने वतन की राह पर सब कुछ लुटा दिया
माँगा न कोईं तख्त, न ताज ही लिया
अमृत दिया सभी को मगर खुद ज़हर पिया
जिस दिन तेरी चिता जली, रोया था महाकाल
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल
स्कूल में बच्चों के अलावा, गाँव के लोग भी अपनी-अपनी बोलियों में स्वतंत्रता प्राप्ति में गांधीजी के योगदान और बलिदान की बातें बड़े आदर और श्रद्धा के साथ करते थे। उन दिनों रेडियो, टीवी जैसे उपकरण गाँवों में नहीं थे। लोग स्वतः ही एक दूसरे से सुनकर गीत भी गाते थे और चर्चाएँ भी करते थे। हमारे स्कूल में गांधीजी के अनेक बड़े-बड़े चित्र लगे थे। साथ ही गाँव के कई घरों में भी श्री राम और श्री कृष्ण के फ़ोटो के साथ ही गांधीजी के भी फ़ोटो लगे रहते थे। संध्या समय भगवान् की आरती के साथ ही लोग गांधी बाबा की आरती भी करते थे। आरती के बाद जयकारे लगाते थे – ‘भोले बब्बा की जय’, ‘भगवान् राम की जय’, ‘भगवान् कृष्ण की जय’, ‘गांधी बब्बा की जय’। हमारे घर की बैठक में भी गांधीजी के बड़े-बड़े चित्र लगे थे। एक आड़ी फ़ोटो में सूत कातते गांधीजी और बा थे। एक अन्य बड़ा फ़ोटो था, जिसमें बापू के साथ सरदार पटेल चर्चा कर रहे थे। एक और लम्बा फोटो था जिसमें गांधीजी जवाहरलालजी के साथ वार्ता कर रहे थे।
हमारे गाँव में कई ऐसे घर थे, जहाँ पर लोगों ने गांधीजी के फ़ोटो को दरवाजे़ पर सबसे आगे टाँग रखा था। गांधीजी के प्रति ग्रामीणजन का आदर करने का यह उत्कृष्ट भाव था। हमारे गाँव में हर गुरुवार को महिलाएँ एकत्रित होकर राम-कीर्तन और भक्ति-गीत-भजन करती थीं। कीर्तन की अवधि में वे एक भजन हनुमानजी का ज़रूर गाती थीं और साथ ही एक दो गीत गांधीजी की महिमा के भी ज़रूर गाती थीं। गांधीजी की स्तुति जैसे उन्होंने निमाड़ी में भजन बना लिये थे। जिन भजनों में श्रीराम और श्रीकृष्ण के साथ ही गांधीजी का जीवन परिचय भी मिलता है। अब वह परम्परा समाप्त हो गई।
एक निमाड़ी गांधी-भजन –
गांधीजी जग मंऽ प्रकट भया,
इनी भारतऽ भूमि तारणऽ रवऽ।
सिरी राम का साथऽ मंऽ लछमण था
अरु कृष्ण का साथऽ मंऽ अर्जुन था,
गांधीजी का साथ जवाहर, पटेल था,
इनी भारतऽ भूमि तारणऽ खऽ।
सिरी राम का हाथ मंऽ धनुष थो
अरु कृष्ण का हाथऽ मंऽ चक्र थो
गांधी का हाथऽ मंऽ चरखो थो,
इनी भारतऽ भूमि तारणऽ खऽ।
सिरी रामऽ का कापड़ा रेसमऽ का
अरु कृष्ण का कापड़ा जरी का
गांधी की लंगोटी खादी की
इनी भारतऽ भूमि तारण खऽ।
सिरी रामऽ की राणी सीता थी
अरु कृष्ण की पटराणी रुखमणी थी
गांधी की पतनी कस्तूरबा थी
इनी भारतऽ भूमि तारणऽ खऽ।
सिरी रामऽ नंऽ रावणऽ मार्यो थो,
अरु कृष्ण नंऽ कंस पछाड़्यो थो
गांधी नंऽ अंग्रेज भगाड़़्या था
इनी भारत भूमि तारणऽ खऽ।
भावार्थ: भारत भूमि का उद्धार करने के लिए गांधीजी इस जगत में प्रकट हुए। श्रीराम के साथ में लक्ष्मण थे और श्रीकृष्ण के साथ में अर्जुन थे। गांधीजी के साथ में जवाहरलाल और पटेल थे। भारत भूमि का उद्धार करने के लिए। श्री राम के कपड़े रेशम के थे और श्री कृष्ण के वस्त्र जरी गोटे के थे। गांधीजी की धोती लंगोटी खादी की थीं। इस भारत भूमि का उद्धार करने के लिए। श्री राम की रानी सीता थी और श्री कृष्ण की पटराणी रुखमणी थीं, गांधीजी की पत्नी कस्तूरबा थीं भारत भूमि का उद्धार करने के लिए। श्री राम ने रावण को मारा था और श्री कृष्ण ने कंस को पछाड़ा था, गांधीजी ने अंग्रेजों को भारत से खदेड़ा था। भारत भूमि का उद्धार करने के लिए।

निमाड़ी लोक में गांधीजी के प्रति अगाध श्रद्धा थी। वे राम और कृष्ण के अवतार पुरुषों के साथ ही गांधीजी को भी अवतार पुरुष मानते थे। उन्हें राम और कृष्ण जैसा ही पूज्य मानते थे। पुरुष वर्ग भी झाँझ मिरथंग पर गांधीजी के यश के गीत गाते थे। एक गीत –
गांधी नी कवोऽ रेऽ ऐखऽ आँधी कवोऽ
गोरा नऽ की बरबादी कवोऽ
गोरा नऽ नऽ घणा जुलुम कर्याऽ
लोगऽ नऽ नऽ दुःख दरदऽ सह्या
गांधी नऽ जीवऽ सबको हळको कर्यो
भारत माता खऽ छुट्टो कर्यो
तेका लेणऽ एखऽ देवता कवोऽ
गाँधी नी कवोऽ खऽ आंधी कवोऽ
भावार्थ: इस महापुरुष को गांधी मत कहो, उसको तो आँधी कहो। गोरे लोगों की, अंग्रेज लोगों की बरबादी कहो। गोरे लोगों ने भारतीय लोगों पर बहुत जु़ल्म किए। भारतवासी उन जुल्मों को सहते रहे; उन दुःखों को सहते रहे; किन्तु गांधीजी ने सबका दुःख दर्द दूर कर दिया। अपना सम्पूर्ण जीवन देश को समर्पित कर दिया। यही कारण है, कि लोग गांधीजी को देवता तुल्य समझते हैं, उनकी पूजा आरती करते हैं।
गांधीजी का विचार था स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश को स्वावलम्बी बनाने का। इसी विषयक हमारी शालायें बुनियादी शिक्षा का पूरी आस्था के साथ पालन कर रही थीं। जिस शिक्षा को आज के युग में कौशल का नाम दिया गया हैं, वही शिक्षा हमने अपनी शाला में ग्रहण की थी। हम अपनी शाला में कढ़ाई, बुनाई, सिलाई के साथ-साथ, कपड़े और मिट्टी के खिलौने, पलाश के पत्तों से दोना-पत्तल और खजूर की पत्तियों से झाड़ू-चटाई, पंखा व टोकनी बनाना सीखते थे। हमने सन से रेशे निकालकर उनसे रस्सी बनाना, उस सन के महीन रेशों से ताना-बाना बुनकर आसन और पट्टी बनाना भी सीखा था। स्कूल में बच्चों द्वारा जिन वस्तुओं का निर्माण किया जाता था, उनकी प्रदर्शनी गाँव में ही लगाई जाती थी। गाँव के गणमान्य लोगों सहित एक बड़ी संख्या में अन्य लोग भी इसे देखने आते थे। वे बच्चों द्वारा निर्मित वस्तुओं की खूब प्रशंसा भी करते थे।
हमारे बड़े गुरुजी इन वस्तुओं की बिक्री की व्यवस्था भी करते थे। वस्तुओं की बिक्री से आई हुई राशि शाला को ही दी जाती थी, ताकि उससे और कच्चा माल ख़रीदा जा सके। शेष राशि छात्र कल्याण में लगा दी जाती थी। लेकिन हम धीरे-धीरे गांधीजी के ‘करके सीखो, करके कमाओ’ वाली शिक्षा को भूलते गए। अगर गांधीजी द्वारा निर्देशित इस बुनियादी शिक्षा को हमारी शिक्षा में व्यवहार रूप में लागू करते, तो आज चीन जैसे ही हमारी भी आर्थिक स्थिति मज़बूत होती। गांधीजी की कुटीर उद्योग नीति को यदि हमने अपनाया होता, तो हमारे देश की बनी वस्तुओं का भी एक बड़ा विश्व बाज़ार होता और लोग हमारा आदर करते।
स्कूल समय से हटकर हमारे गुरुजी हमको सूत कातना सिखाते थे। छोटी कक्षा में, चैथी तक, तो तकली से सूत कातना सिखाते थे। यह काम अनिवार्य था। फिर बड़ी कक्षा में पाँचवीं से आठवीं तक के बच्चों से चरखे पर सूत कातने का अभ्यास कराया जाता था। हम लोग बड़ी कुशलता से कपास से बिनौले निकालते थे और धुनैया से धुनकर रुई को मुलायम कर लेते थे। फिर लोहे के बेलना से लकड़ी के पटे पर रुई की पूनी बनाते थे। पूनी जितनी गसी हुई होती थी, सूत का तार उतना ही बारीक निकलता था।
सूत कातकर हम लकड़ी के लपेटा-पटिये पर तकवे का सूत लपेट कर तार की लच्छी बनाते थे। पहली लट्टी स्कूल में लगी गांधीजी के फ़ोटो पर माला रूप में पहनाते थे। सूत की अगली लट्टियों को गुरुजी की कटोरी नुमा छोटी तराजू में तोलते थे। जिसकी लट्टी का वजन कम होता था, गुरुजी उसे शाबासी देते थे, प्रोत्साहित करते थे। जिस लट्टी का जितना बारीक सूत होता था, उसका उतना ही वजन कम होता था। सूत के तारों की एक निश्चित संख्या लपेटे पर लपेटी जाती थी। ऐसी चालाकी नहीं कर सकते थे, कि कम वजन की लट्टी के लिए तार कम लपेटे जाते थे। गुरुजी हर लट्टी के तार गिनते थे। सूत के साथ कर्म और ईमानदारी का पाठ भी स्कूल में बालकों को सिखाया जाता था। हमारे इस सूत की लट्टियों को इकट्ठा करके गुरुजी महीने में एक बार खण्डवा के खादी भण्डार में दे आते थे। तकली-चरखे के साथ ही सूत कातते समय हम बच्चों की दो पंक्तियाँ आमने सामने बनाई जाती थीं। बीच में दो छोरों पर दो गुरुजी बैठकर गीत गाना भी सिखाते थे। इन गीतों में तकली-चरखे का जीवन उपयोगी महत्त्व बताया जाता था। एक तकली गीत –
तकली चलाने वाले, तकली चलाते रहना
तकली चलाते चलाते, हिम्मत न हार जाना
तकली हाथों की रेखा,
तकली तकदीर का लेखा
तकली ने जीवन देखा
तकली चलाते रहना…।
तकली है पेट पालन वारी
तकली है तन ढाकन हारी
तकली विपदा हटाये सारी
तकली चलाते रहना…।
तकली के बाबा गांधी
तकली ने जीवन जीने की दी आँधी
तकली ने छुड़ाई फंादी
तकली चलाते रहना…।
भारत की आज़ादी के बाद लोगों में एक नई चेतना जाग उठी। गांधीजी के दर्शन और विचारों तथा उनके आदर्शों व समर्पण को लोगों ने अपने जीवन का मूलमंत्र बना लिया था। वे गाँव व ग्रामीण जीवन को हृदय से प्यार करते हैं। इसी भाव से उनकी आस्था उभलाती रहती थी। शालेय छात्र और ग्रामीणजन स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, गांधी जयंती और गांधीजी के निर्वाण दिवस के अवसर पर संध्या समय तकली या चरखा चलाते हुए हम ग्रामीणजन गांधीजी के प्रिय भजन गाते थे। गांधीजी के प्रिय भजन –
वैष्णव जन ते तेणे कहिए
जो पीर पराई जाणे रे
पर दुख्खे उपकार करे तोये
मन अभिमान नऽ आणे रे
और दूसरा भजन-
रघुपति राघव राजा राम
सबको सन्मति दे भगवान्
ईश्वर अल्लाह तेरे नाम
सबको सन्मति दे भगवान्
ग्रामीण लोग मात्र इन भजनों को गाते ही नहीं थे अपितु, वे उन्हें गुनते भी थे, आत्ससात् भी करते थे। इन भजनों के बोलों का आशय क्या था? गांधीजी क्यों पसंद करते थे?, वे अपनी सहज बुद्धि से कहते थे, गांधीजी किसी को दुःखी नहीं देख सकते थे। वे कहते थे, गांधीजी ने अपनी ही नहीं, सबकी सन्मति की ईश्वर से याचना की है। वे कहते थे, ‘‘हे ईश्वर सबको उत्तम मति प्रदान कर। जो व्यक्ति दूसरों के दुःख में दुःखी है। वही व्यक्ति उत्तम इंसान कहलाने के लायक है।’’ स्वयं गांधीजी की उत्तम प्रकृति के कारण ही लोगों के मन में उनके प्रति बड़ी आस्था थी। उनका प्रभाव जनता पर इतना गहरा पड़ा, कि लोग खादी ही पहनते थे और स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करते थे। वह समय था, जब बिना गांधी दर्शन के, बिना गांधी विचार के, किसी भी क्षेत्र में चलना, बिना गांधी के स्वतंत्रता प्राप्ति की बात करना, न्याय संगत नहीं लगती थी। तब गांधी दर्शन और विचारों के माध्यम से वे लोगों के मध्य सदैव उपस्थित रहते थे। आज हमारे मध्य से गांधी दर्शन और गांधी विचार लुप्त होते जा रहे हैं। हम और हमारी पीढ़ी के लोगों को गांधी आज भी बहुत याद आते हैं।
देश की इस नन्ही पौध और युवा पीढ़ी को भी हमें गांधी दर्शन के प्रति जागरूक करना है। परमात्मा से प्रार्थना है कि वह इस पीढ़ी को ऐसी सन्मति दे कि वह पर्यावरण के साथ ही गांधी और हमारी स्वतंत्रता को भी याद रखे। गांधी दर्शन का सदा सर्वाधिक सामयिक महत्त्व है। आज गांधी सर्वाधिक प्रासंगिक हैं, आवश्यक हैं, अनिवार्य हैं।

डाॅ. सुमन चौरे
भोपाल – 462039
मो.: 09424440377, 09819549984





