गांधी जयंती पर विशेष
Gandhi’s Dandi March: नमक सत्याग्रह उनके अहिंसक विरोध के सिद्धांतों पर आधारित है!
मधूलिका श्रीवास्तव
आज महात्मा गांधी की जयंती के अवसर पर उन्हें प्रणाम करती हूँ ।आज उनके जीवन के अभूतपूर्व प्रसंग और भारत की आज़ादी के लिए उठाए गये कदम को आपके समक्ष प्रस्तुत कर रही हूँ ।
इनसान महान पैदा नहीं होता है, उसके विचार उसे महान बनाते हैं ।विचार और काम की शुद्धता और सरलता ही महान लोगों को आम लोगों से अलग करती है ।वे वही काम करते हैं, जो दूसरे करते हैं, लेकिन उनका मकसद समाज में बदलाव लाना होता है । महात्मा गांधी उन्हीं में से एक हैं,जिनकी अप्रत्यक्ष उपस्थिति उनकी मृत्यु के 77 वर्ष बाद भी पूरे देश में देखी जा सकती है उन्होंने स्वाधीन भारत की कल्पना की और उसके लिए कठिन संघर्ष किया ।वे सत्याग्रह के द्वारा अत्याचार के प्रति कार्य करने वाले पहले नेता थे जिन्होंने अहिंसा की ज्योत जलाई ।
नमक सत्याग्रह भी उनके अहिंसक विरोध के सिद्धांतों पर आधारित था, जिसे सत्याग्रह कहा जाता है ।
महात्मा गांधी ने नमक कानून का विरोध करते हुए दांडी तक 240 मील लंबी यात्रा की, जो सविनय अवज्ञा आंदोलन का एक प्रमुख हिस्सा बन गई । दांडी यात्रा या नमक सत्याग्रह, महात्मा गांधी के नेतृत्व में औपनिवेशिक भारत में अहिंसक सविनय अवज्ञा का एक अभिनव कार्य था। चौबीस दिवसीय यात्रा 12 मार्च 1930 से 6 अप्रैल 1930 तक ब्रिटिश नमक एकाधिकार के खिलाफ अभियान के रूप में चली। यह यात्रा ब्रिटिश सरकार के खिलाफ कर प्रतिरोध और अहिंसक विरोध में की गई प्रत्यक्ष कार्रवाई थी ।
गाँधीजी ने आंदोलन प्रारंभ करने के पूर्व 2 मार्च 1930 को वायसरॉय इरविन को एक चिट्ठी लिखी। उस चिट्ठी में कई अन्य मांगों के साथ नमक कर को समाप्त करने की मांग भी रखी गई थी। इस प्रसिद्ध पत्र में गांधी जी ने इरविन को ‘प्रिय मित्र’ संबोधित किया था। उन्होंने उस समय भारतीयों की दयनीय स्थिति को दर्शाया और यह भी बताया कि इसके लिए अंग्रेज़ कैसे ज़िम्मेदार थे।उन्होंने लिखा कि वे भारत पर केवल ब्रिटिश शासन को अभिशाप मानते हैं, ब्रिटिश लोगों को नहीं।
उन्होंने किसी भी अंग्रेज के खिलाफ हिंसा का प्रयोग न करने का इरादा जताया। उन्होंने कहा कि वे किसी को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे, लेकिन 11 मार्च को वे और उनके साथी नमक कानून तोड़ेंगे। इसी पत्र में वे आगे लिखते हैं कि
‘इस पत्र का हेतु कोई धमकी देना नहीं है। यह तो सत्याग्रही का साधारण और परम कर्तव्य मात्र है।“
महात्मा गाँधी को पूरा विश्वास था कि संपूर्ण देश को एक करने में नमक एक शक्तिशाली हथियार बन सकता है । भारत में नमक बनाने की परम्परा प्राचीन काल से रही है। परम्परागत ढंग से नमक बनाने का काम किसानों द्वारा किया जाता रहा है, जिसे नमक किसान भी कहा जाता था। बिहार और कई अन्य प्रान्तों में यह कार्य ख़ास जाति के हवाले था।
उस समय नमक पर कर उसके मूल्य से चौदह गुना अधिक था। जिससे सबसे गरीब भारतीय बहुत प्रभावित हुए थे। नमक मार्च भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ गांधी के संघर्ष में सबसे सफल अभियानों में से एक था। गाँधी जी के साथ देने के लिये फैक्ट्री के मजदूर हड़ताल पर चले गए। छात्रों ने भी सरकारी शिक्षण संस्थानों में जाने से इनकार कर दिया। यहां तक कि वकीलों ने भी ब्रिटिश अदालतों में जाने से इनकार कर दिया।
महात्मा गांधी ने देश के आम नागरिकों को एक मंच पर लाकर अंग्रेजी सत्ता के सामने नई चुनौती खड़ी कर दी थी।कानून भंग करने के बाद सत्याग्रहियों ने अंग्रेजों की लाठियां खाई थीं लेकिन पीछे नहीं मुड़े थे. इस आंदोलन में कई नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया ।इनमें सी. राजगोपालचारी, पंडित नेहरू जैसे आंदोलनकारी शामिल थे। इन सब राजनेताओं की गिरफ्तारी से पूरे देश में बड़े पैमाने पर असंतोष की लहरें फैल गईं। फलस्वरूप देश के अन्य भागों में भी समानांतर नमक मार्च मनाया गया। देश के विभिन्न भागों में हजारों लोगों ने नमक कानून को तोड़ा। लोगों ने सरकारी नमक कारखानों के सामने धरना प्रदर्शन किया। विदेशी कपड़ों का बहिष्कार किया गया। किसानों ने लगान देने से मना कर दिया। आदिवासियों ने जंगल संबंधी कानूनों का उल्लंघन किया।
इस ऐतिहासिक सत्याग्रह में गांधी जी समेत 78 लोगों के द्वारा अहमदाबाद साबरमती आश्रम से समुद्र तटीय गांव दांडी तक पैदल यात्रा की ।इस 240 किमी. लंबी यात्रा में लोग जुड़ते चले गए। दांड़ी पहुंचने तक इस अहिंसक नमक सत्याग्रह में 50 हजार से ज्यादा लोग जुड़ चुके थे।
दांडी मार्च के दौरान 60,000 भारतीयों के साथ गांधीजी को भी गिरफ्तार कर लिया गया था।
दांडी मार्च ने गांधी जी को कानून की नज़र में अपराधी बना दिया।किंतु सच कुछ और ही था , इस आन्दोलन के माध्यम से महात्मा गाँधी ने एक बार फिर दुनिया को सत्य और अहिंसा की ताकत का परिचय कराया। वो हर काम को बड़ी ही शांति और सादगी से करना पसंद करते थे ।
आंदोलन पूरे एक साल तक चला ।5 मार्च, 1931 को गाँधी – इर्विन समझौता हुआ, जिसके फलस्वरूप सविनय अवज्ञा आंदोलन वापस ले लिया गया। इसी आन्दोलन से सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत हुई थी । इस आंदोलन ने संपूर्ण देश में अंग्रेजों के खिलाफ व्यापक जन संघर्ष को जन्म दिया था. गांधीजी के साथ सरोजनी नायडू ने भी नमक सत्याग्रह का नेतृत्व किया ।
भारत की आजादी में दांडी मार्च या नमक आंदोलन की खास अहमियत रही है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में दांडी मार्च सबसे प्रभावशाली प्रतीकात्मक आन्दोलन रहा है।
मधूलिका श्रीवास्तव
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