गणेश जी: स्वरूप में छिपा दिव्य जीवन-दर्शन और गणेश स्तोत्र

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गणेश जी : स्वरूप में छिपा दिव्य जीवन-दर्शन और गणेश स्तोत्र

डॉ. तेज प्रकाश व्यास

“वक्रतुंड महाकाय, सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव, सर्वकार्येषु सर्वदा॥”

श्री गणेश जी का स्वरूप केवल विघ्ननाशक ही नहीं, बल्कि जीवन-दर्शन, विज्ञान और अध्यात्म का अद्वितीय ग्रंथ है। उनके प्रत्येक अंग में जीवन जीने का रहस्य और आत्मविकास की प्रेरणा निहित है।

गणेश स्वरूप से जीवनोपयोगी शिक्षाएँ (श्लोक व भावार्थ सहित)

1. विशाल मस्तक : ज्ञान और दूरदर्शिता “ज्ञानं परमं बलं”
बड़ा मस्तक सिखाता है कि गहन चिंतन और विवेक से ही जीवन में सही निर्णय लिए जा सकते हैं।

2. बड़े कान:धैर्यपूर्वक श्रवण
“श्रवणं सर्वविद्यानां मूलं”
बड़े कान बताते हैं कि अधिक सुनना और धैर्य से समझना ही सच्चे ज्ञान की पहली सीढ़ी है।

3. छोटी आँखें : एकाग्रता और ध्यान
“ध्यानं निर्वाणमार्गः”
छोटी आँखें हमें एकाग्रता का महत्व सिखाती हैं—एकाग्र मन से ही हर कार्य सिद्ध होता है।

4. बड़ी सूंड : लचीलापन और शक्ति
“यस्य स्मरणमात्रेण जन्मसंसारबन्धनात्। विमुच्यते नमस्तस्मै गणाधिपतये नमः॥”
सूंड शक्ति और लचीलापन का अद्भुत संगम है। यह हमें परिस्थिति अनुसार ढलने और निर्णय लेने की प्रेरणा देती है।

5. विशाल पेट : सहनशीलता और उदारता
“क्षमा वीरस्य भूषणम्”
विशाल पेट जीवन के सुख-दुःख और कटुता को पचाने का प्रतीक है। यह क्षमा और सहनशीलता का अद्भुत संदेश देता है।

6. एकदंत :अपूर्णता की स्वीकृति
“एकदन्तं महाकायं तप्तकाञ्चनसन्निभम्। लम्बोदरं विशालाक्षं वन्देऽहं गणनायकम्॥”
एकदंत हमें बताता है कि अपूर्णता को स्वीकार करके भी जीवन में महान लक्ष्य प्राप्त किए जा सकते हैं।

7. वाहन – चूहा :इच्छाओं पर नियंत्रण
“गजाननं भूतगणादि सेवितं, कपित्थ जम्बूफलचारुभक्षणम्। उमासुतं शोकविनाशकारणं, नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम्॥”
चूहा छोटी इच्छाओं और अहंकार का प्रतीक है। गणेश जी का उस पर बैठना दर्शाता है कि इच्छाओं को नियंत्रित करना ही सच्ची शक्ति है।

8. चार भुजाएँ :पुरुषार्थ का संतुलन
“सिद्धिविनायकं देवं सर्वकार्यसिद्धये। स्मर्तव्यं सदातं हि विश्वविघ्नविनाशनम्॥”
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष — चारों की साधना ही जीवन को पूर्ण बनाती है।

9. प्रसन्न मुखमंडल : सकारात्मकता

“स्मितं सर्वेषां मनोहरम्”
मुस्कुराता चेहरा हमें सिखाता है कि कठिनाइयों में भी प्रसन्न और सकारात्मक रहना चाहिए।

*10. Modak : परिश्रम का मीठा फल“

मूषकवाहन मोदकहस्त, चामरकर्ण विलम्बितसूत्र। वामनरूप महेश्वरपुत्र, विघ्नविनायक पाद नमस्ते॥”
मोदक बताता है कि कठोर परिश्रम के बाद ही जीवन में मीठे फल प्राप्त होते हैं।

काव्यमय सार

“ज्ञान से जीवन सजाओ, धैर्य से मन को साधो,
इच्छाओं को वश में करके, सच्चा सुख उपजाओ।
गणपति के स्वरूप में छिपा है, जीवन का विज्ञान,
सहनशीलता, सकारात्मकता और अनंत ज्ञान॥”

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निष्कर्ष

श्री गणेश जी का स्वरूप हमें केवल धार्मिक पूजन का महत्व नहीं बताता, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति, मानसिक शांति और जीवन-प्रबंधन का अद्वितीय संदेश भी देता है। यदि हम इन प्रतीकों को व्यवहार में उतारें तो जीवन सार्थक, संतुलित और दिव्य बन सकता है।

संदर्भ (References):
1. अथर्ववेद – गणपति स्तोत्र
2. गणेश उपनिषद
3. वाल्मीकि रामायण एवं गणेश पुराण
4. पं. श्रीराम शर्मा आचार्य – श्री गणेश तत्वदर्शन
5. आधुनिक मनोविज्ञान एवं जीवन प्रबंधन सिद्धांत

1.श्री संकष्टनाशन स्तोत्रम् का महत्व

कहा जाता है, जो भी श्रद्धा से इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसके जीवन की मुश्किलें खुद-ब-खुद दूर होने लगती हैं। गणेश जी उसके सारे विघ्न हर लेते हैं और मन में अटूट भरोसा व शांति भर देते हैं। चाहे काम में अड़चनें हों या मन में डर, इस स्तोत्र का जप सुख-समृद्धि और सफलता की राह आसान कर देता है।

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संकट नाशन गणेश स्तोत्र के नियम

संकट नाशन गणेश स्तोत्र के नियम बहुत कठिन नहीं हैं। यदि संकट नाशन गणेश स्तोत्र का पाठ पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ करें तो इसका फल शुभ होता है। संकट नाशन गणेश स्तोत्र का पाठ आप किसी भी दिन से शुरू कर सकते हैं, लेकिन यदि इसे शुक्ल पक्ष के बुधवार से शुरू करें तो यह और भी शुभ माना जाता है। पाठ की शुरुआत वाले दिन प्रातःकाल जल्दी उठें। इसके बाद स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें और भगवान गणेश की प्रतिमा या चित्र को स्थापित कर दें। फिर धूप, दीप, फल-फूल, मिठाई आदि अप्रित करें. संकट नाशन स्तोत्र का पाठ करना शुरू करें। पाठ के बाद भगवान से संकटों से मुक्ति के लिए प्रार्थना करें। पूरे नियम, भक्ति और निष्ठा के साथ इस स्तोत्र का पाठ करने से जीवन में आ रही परेशानियां दूर हो जाती हैं।

संकट नाशन गणेश स्तोत्र पढ़ने के फायदे

संकटों से मुक्ति: संकट नाशन गणेश स्स्तोत्र जीवन में आने वाले सभी प्रकार के कष्टों, बाधाओं और परेशानियों को दूर करता है।

मानसिक शांति: इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से तनाव, चिंता और भय दूर होते हैं।

स्वास्थ्य में सुधार: स्तोत्र मानसिक और शारीरिक रूप से व्यक्ति मजबूत और स्वस्थ महसूस करता है।

धन-समृद्धि का आगमन: संकट नाशन गणेश स्तोत्र पढ़ने से घर में लक्ष्मी का वास होता है और आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।

विद्यार्थियों को विशेष लाभ: अघर विध्यार्थी इस स्तोत्र को नियमिक पढ़ते हैं को उनकी बुद्धि और एकाग्रता बढ़ती है, जिससे पढ़ाई में उन्हें सफलता मिलती है।

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संतान प्राप्ति में सहायक: संतान की इच्छा रखने वाले दंपतियों को इसका विशेष लाभ मिलता है।

नकारात्मक ऊर्जा का नाशः यह स्तोत्र बुरी शक्तियों और बुरी नजर से रक्षा करता है।

घर में सुख-शांति: संकट नाशन गणेश स्तोत्र का रोजाना पाठ करने से परिवारिक जीवन में सौहार्द और शांति बनी रहती है।

श्री संकटनाशन गणेश स्तोत्र एवं उसके अर्थ

श्री गणेशाय नमः॥
अर्थ: श्री गणेश को मेरा प्रणाम है।

नारद उवाच, प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्। भक्तावासं स्मरेन्नित्यमायुःकामार्थसिद्धये॥
अर्थ: नारद जी कहते हैं- पहले मस्तक झुकाकर गौरीपुत्र विनायका देव को प्रणाम करके प्रतिदिन आयु, अभीष्ट मनोरथ और धन आदि प्रयोजनों की सिद्धि के लिए भक्त के हृदय में वास करने वाले गणेश जी का स्मरण करें ।

प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम्। तृतीयं कृष्णपिङ्गाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम्॥ लम्बोदरं पञ्चमं च षष्ठं विकटमेव च। सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्णं तथाष्टमम्॥ नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम्। एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम्॥
अर्थ: जिनका पहला नाम ‘वक्रतुण्ड’ है, दूसरा ‘एकदन्त’ है, तीसरा ‘कृष्णपिङ्गाक्षं’ है, चौथा ‘गजवक्त्र’ है, पाँचवाँ ‘लम्बोदर’, छठा ‘विकट’, सातवाँ ‘विघ्नराजेन्द्रं’, आठवाँ ‘धूम्रवर्ण’, नौवां ‘भालचंद्र’, दसवाँ ‘विनायक’, ग्यारहवाँ ‘गणपति’, और बारहवाँ नाम ‘गजानन’ है।

द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः। न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो॥
अर्थ: जो मनुष्य सुबह, दोपहर और शाम-तीनों समय प्रतिदिन इन बारह नामों का पाठ करता है, उसे संकट का भय नहीं होता। यह नाम-स्मरण उसके लिए सभी सिद्धियों का उत्तम साधक है।

विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्। पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम्॥
अर्थ: इन नामों के जप से विद्यार्थी को विद्या, धन की कामना रखने वालों को धन, पुत्र की कामना रखने वालों को पुत्र और मोक्ष की कामना रखने वालो को मोक्ष में गति प्राप्त हो जाती है।

जपेद्गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासैः फलं लभेत्। संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशयः॥
अर्थ: इस गणपति स्तोत्र का नित्य जप करें। इसके नित्य पठन से जपकर्ता को छह महीने में अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। एक वर्ष तक जप करने से मनुष्य सिद्धि को प्राप्त कर लेता है, इसमें संशय नहीं है।

अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा यः समर्पयेत्। तस्य विद्या भवेत् सर्वा गणेशस्य प्रसादतः॥
अर्थ: जो इस स्तोत्र को भोजपत्र पर लिखकर आठ ब्राह्मणों को दान करता है, गणेश जी की कृपा से उसे सम्पूर्ण विद्या की प्राप्ति होती है।

॥ इति श्री नारदपुराणं संकटनाशनं महागणपति स्तोत्रम् संपूर्णम्॥
संकटनाशन स्तोत्र में गणेश जी के 12 नामों का उल्लेख मिलता है। इस स्तोत्र का जो भी विधिपूर्वक पाठ करता है, उसकी हर इच्छा पूरी होती है। यह संकट को हरने वाला स्तोत्र है। इस स्तोत्र को विघ्ननाशक गणेश स्तोत्र भी कहते हैं।

संकटनाशन स्तोत्र संसार में सर्वप्रथम पूजनीय भगवान श्री गणेश को समर्पित सबसे प्रभावशाली नारद जी द्वारा कथन किया हुआ स्तोत्र है। इसे सबसे पहले श्री नारद जी ने सुनाया है।

 

Part 2
श्री संकष्टनाशन स्तोत्रम्

श्री संकष्टनाशन स्तोत्र क्या है?: जानें इस चमत्कारी स्तोत्र के बारे में. श्री संकष्टनाशन स्तोत्रम् भगवान गणेश को समर्पित वो प्यारा स्तोत्र है, जो हमारे जीवन की मुश्किलों और बाधाओं को दूर करने में मदद करता है। “संकष्ट” मतलब कष्ट और “नाशन” यानी उसे खत्म करने वाला। इस स्तोत्र में गणेश जी की उन दिव्य खूबियों का वर्णन है, जिनसे वे अपने भक्तों के दुख हर लेते हैं। इसे रोज पढ़ने से मन को शांति, घर में सुख-समृद्धि और हर काम में सफलता मिलती है। खासकर संकष्टी चतुर्थी पर इसका पाठ बहुत शुभ माना जाता है।

1.श्री संकष्टनाशन स्तोत्रम् का महत्व

कहा जाता है, जो भी श्रद्धा से इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसके जीवन की मुश्किलें खुद-ब-खुद दूर होने लगती हैं। गणेश जी उसके सारे विघ्न हर लेते हैं और मन में अटूट भरोसा व शांति भर देते हैं। चाहे काम में अड़चनें हों या मन में डर, इस स्तोत्र का जप सुख-समृद्धि और सफलता की राह आसान कर देता है।

संकट नाशन गणेश स्तोत्र के नियम

संकट नाशन गणेश स्तोत्र के नियम बहुत कठिन नहीं हैं। यदि संकट नाशन गणेश स्तोत्र का पाठ पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ करें तो इसका फल शुभ होता है। संकट नाशन गणेश स्तोत्र का पाठ आप किसी भी दिन से शुरू कर सकते हैं, लेकिन यदि इसे शुक्ल पक्ष के बुधवार से शुरू करें तो यह और भी शुभ माना जाता है। पाठ की शुरुआत वाले दिन प्रातःकाल जल्दी उठें। इसके बाद स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें और भगवान गणेश की प्रतिमा या चित्र को स्थापित कर दें। फिर धूप, दीप, फल-फूल, मिठाई आदि अप्रित करें. संकट नाशन स्तोत्र का पाठ करना शुरू करें। पाठ के बाद भगवान से संकटों से मुक्ति के लिए प्रार्थना करें। पूरे नियम, भक्ति और निष्ठा के साथ इस स्तोत्र का पाठ करने से जीवन में आ रही परेशानियां दूर हो जाती हैं।

संकट नाशन गणेश स्तोत्र पढ़ने के फायदे

संकटों से मुक्ति: संकट नाशन गणेश स्स्तोत्र जीवन में आने वाले सभी प्रकार के कष्टों, बाधाओं और परेशानियों को दूर करता है।

मानसिक शांति: इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से तनाव, चिंता और भय दूर होते हैं।

स्वास्थ्य में सुधार: स्तोत्र मानसिक और शारीरिक रूप से व्यक्ति मजबूत और स्वस्थ महसूस करता है।

धन-समृद्धि का आगमन: संकट नाशन गणेश स्तोत्र पढ़ने से घर में लक्ष्मी का वास होता है और आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।

विद्यार्थियों को विशेष लाभ: अघर विध्यार्थी इस स्तोत्र को नियमिक पढ़ते हैं को उनकी बुद्धि और एकाग्रता बढ़ती है, जिससे पढ़ाई में उन्हें सफलता मिलती है।

संतान प्राप्ति में सहायक: संतान की इच्छा रखने वाले दंपतियों को इसका विशेष लाभ मिलता है।

नकारात्मक ऊर्जा का नाशः यह स्तोत्र बुरी शक्तियों और बुरी नजर से रक्षा करता है।

घर में सुख-शांति: संकट नाशन गणेश स्तोत्र का रोजाना पाठ करने से परिवारिक जीवन में सौहार्द और शांति बनी रहती है।

श्री संकटनाशन गणेश स्तोत्र एवं उसके अर्थ

श्री गणेशाय नमः॥
अर्थ: श्री गणेश को मेरा प्रणाम है।

नारद उवाच, प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्। भक्तावासं स्मरेन्नित्यमायुःकामार्थसिद्धये॥
अर्थ: नारद जी कहते हैं- पहले मस्तक झुकाकर गौरीपुत्र विनायका देव को प्रणाम करके प्रतिदिन आयु, अभीष्ट मनोरथ और धन आदि प्रयोजनों की सिद्धि के लिए भक्त के हृदय में वास करने वाले गणेश जी का स्मरण करें ।

प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम्। तृतीयं कृष्णपिङ्गाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम्॥ लम्बोदरं पञ्चमं च षष्ठं विकटमेव च। सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्णं तथाष्टमम्॥ नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम्। एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम्॥
अर्थ: जिनका पहला नाम ‘वक्रतुण्ड’ है, दूसरा ‘एकदन्त’ है, तीसरा ‘कृष्णपिङ्गाक्षं’ है, चौथा ‘गजवक्त्र’ है, पाँचवाँ ‘लम्बोदर’, छठा ‘विकट’, सातवाँ ‘विघ्नराजेन्द्रं’, आठवाँ ‘धूम्रवर्ण’, नौवां ‘भालचंद्र’, दसवाँ ‘विनायक’, ग्यारहवाँ ‘गणपति’, और बारहवाँ नाम ‘गजानन’ है।

द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः। न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो॥
अर्थ: जो मनुष्य सुबह, दोपहर और शाम-तीनों समय प्रतिदिन इन बारह नामों का पाठ करता है, उसे संकट का भय नहीं होता। यह नाम-स्मरण उसके लिए सभी सिद्धियों का उत्तम साधक है।

विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्। पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम्॥
अर्थ: इन नामों के जप से विद्यार्थी को विद्या, धन की कामना रखने वालों को धन, पुत्र की कामना रखने वालों को पुत्र और मोक्ष की कामना रखने वालो को मोक्ष में गति प्राप्त हो जाती है।

जपेद्गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासैः फलं लभेत्। संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशयः॥
अर्थ: इस गणपति स्तोत्र का नित्य जप करें। इसके नित्य पठन से जपकर्ता को छह महीने में अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। एक वर्ष तक जप करने से मनुष्य सिद्धि को प्राप्त कर लेता है, इसमें संशय नहीं है।

अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा यः समर्पयेत्। तस्य विद्या भवेत् सर्वा गणेशस्य प्रसादतः॥
अर्थ: जो इस स्तोत्र को भोजपत्र पर लिखकर आठ ब्राह्मणों को दान करता है, गणेश जी की कृपा से उसे सम्पूर्ण विद्या की प्राप्ति होती है।

॥ इति श्री नारदपुराणं संकटनाशनं महागणपति स्तोत्रम् संपूर्णम्॥
संकटनाशन स्तोत्र में गणेश जी के 12 नामों का उल्लेख मिलता है। इस स्तोत्र का जो भी विधिपूर्वक पाठ करता है, उसकी हर इच्छा पूरी होती है। यह संकट को हरने वाला स्तोत्र है। इस स्तोत्र को विघ्ननाशक गणेश स्तोत्र भी कहते हैं।

संकटनाशन स्तोत्र संसार में सर्वप्रथम पूजनीय भगवान श्री गणेश को समर्पित सबसे प्रभावशाली नारद जी द्वारा कथन किया हुआ स्तोत्र है। इसे सबसे पहले श्री नारद जी ने सुनाया है।