Ganesh Temple of Indore : इंदौर में गणेश भक्तों की आस्था के कई ठिकाने

खजराना गणेश सबसे पावन, स्वस्तिक और मनौती का धागा बांधने का रिवाज

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Indore : गणेश उत्सव के इन दस दिनों में शहर के गणेश मंदिरों में भी भारी भीड़ होगी। शहर के खजराना गणेश मंदिर के चमत्कार की कहानी दूर दूर तक फैली है। भक्तों की आस्था का ये वो पावन स्थान है। संतान की कामना, धन की ख्वाहिश, नौकरी की जरूरत से लेकर विद्या और बुद्धि तक का वरदान भक्तों को इस मंदिर में आकर मिलता है। इस चमत्कारी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इस मंदिर में स्वयंभू गणपति अपने भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते हैं।

मान्यता है कि मनौती के लिए भक्तों को यहां आकर उल्टा स्वास्तिक बनाना होता है। खजराना मंदिर में भगवान गणेश जी के मंदिर के पीछे दीवार यानी गणेशजी की पीठ पर लोग उल्टा स्वस्तिक चिह्न बनाते हैं और मन्नत पूरी होने के बाद दोबारा आकर सीधा स्वास्तिक बनाते हैं। कहते हैं ये चलन यहां पर कई सालों से चला आ रहा है। माना जाता है कि इस मंदिर में उल्टा स्वस्तिक बनाने से हर मुराद पूरी हो जाती है। एक अन्य मान्यता है कि मंदिर की तीन परिक्रमा लगाते हुए धागा बांधने से भी इच्छापूर्ति होती है।

गणपति जी का यह मंदिर देश के सबसे धनी गणेश मंदिरों में से एक माना जाता है। श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूरी होने के बाद यहां आकर दिल खोलकर चढ़ावा चढ़ाते हैं। यूं तो रोजाना पूरे विधि विधान से इस मंदिर में पूजा की जाती है मगर बुधवार के दिन गणपतिजी को विशेष तौर पर लड्डूओं का प्रसाद चढ़ाया जाता है। इस दिन यहां विशेष पूजा और आरती आयोजित की जाती है।

पोटली वाले गणेशजी
जूनी इंदौर में शनि मंदिर के पास लगभग 750 साल पहले राजस्थान से आए गड़रियों ने सिद्दी विनायक गणेश की स्थापना की थी। ऐसा कहा जाता है कि ये भगवान गणेश की एकमात्र ऐसी प्रतिमा है जिसमें वे अपने हाथ में एक पोटली लिए हुए हैं। मंदिर की एक और विशेषता यह है कि यहां पर जिन लोगों की शादी रुकी होती है, उन्हें पूजन के लिए गणेशजी को चढ़ाई हुई हल्दी की गांठ दी जाती है। ऐसी मान्यता है कि यहां पर भगवान गणेश पोटली के साथ विराजमान हैं । इसलिए ऐसी प्रतिमा की पूजा करने से संपन्नता आती है। इंदौर के पुराणिक परिवार कई पीढ़ियों से गणेश मंदिर की सेवा करते आ रहे हैं। कुछ सालों पहले यहां पर सवा लाख हल्दी की गांठों की विशेष पूजन की गई थी। इन्ही गांठों को भक्तों की मन्नत पूरी करने के लिए दिया जाता है।

हल्दी की गांठों से मन्नत
जिन युवक और युवतियों की शादी में कोई बाधा आ रही हो या हो नहीं रही हो तो ऐसे लोगों को मंदिर से प्राण प्रतिष्ठित हल्दी की गांठ दी जाती हैं। ये भक्त गांठ भक्त अपने घर में रखकर इनकी पूजा अर्चना करते हैं। इससे उनकी सारी मनोकामना पूरी होती हैं। जिनकी शादी रुकी हुई हो उनकी शादी भी हो जाती है। जिन लोगों के विवाह में या अन्य किसी कार्य में बाधा होती है। उन्हें गुरुवार के दिन यहां से सिद्ध की हुई हल्दी की गांठ दी जाती हैं। इस गांठ को पीले कपड़े में लपेटकर पूजा करने से बाधाएं दूर होती हैं और अविवाहितों का शीघ्र विवाह हो जाता है।

बड़ा गणपतिजी का श्रृंगार
शहर के प्राचीन मंदिर बड़ा गणपति के बारे में। इस मंदिर का इतिहास एक स्वप्न से जुड़ा है। मंदिर की आधारशिला के पीछे गणेशजी के अनन्य भक्त स्व. पं. नारायण दाधीच के द्वारा देखा गया एक स्वप्न है। भगवान गणेश ने नारायण को ऐसी ही मूर्ति के रूप में दर्शन दिए थे। इसके बाद गणेश के इस भक्त ने अपने सपने की गणेश प्रतिमा को साकार रूप देने की ठानी। इस घटना के बाद ही इस भव्य मंदिर का निर्माण किया जा सका है। मंदिर का निर्माण कार्य सन 1901 में पं नारायण दाधीच द्वारा पूरा किया गया था। भगवान गणेश यहां पर 25 फीट ऊंची प्रतिमा के रूप में दर्शन देते हैं। इस प्रतिमा के निर्माण में चूना, गुढ़, रेत, मैथीदाना, मिट्टी, सोना, चांदी, लोहा, अष्टधातु, नवरत्न का उपयोग किया गया है। साथ ही इस प्रतिमा के निर्माण में सभी तीर्थ नदियों के जल का उपयोग किया गया है। मूर्ति 4 फीट ऊंचे चबूतरे पर विराजमान है। मूर्ति के निर्माण में करीब 3 साल लगे थे।

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साल में चार बार चोला
बड़े गणपतिजी के श्रृंगार में करीब 8 दिन का समय लगता है। साल में चार बार यह चोला चढ़ाया जाता है। जिसमें भाद्रपद सुदी चतुर्थी, कार्तिक बदी चतुर्थी, माघ बदी चतुर्थी और बैसाख बदी चतुर्थी पर चोला और सुंदर वस्त्रों से श्रृंगार किया जाता है। इसमें करीब सवा मन घी और सिंदूर का उपयोग किया जाता है। वर्तमान में मंदिर के रख रखाव की जिम्मेदारी नारायण दाधीच की तीसरी पीढ़ी देख रही है।

भक्तों की भीड़
पूरे शहर के लोग इस अलौकिक प्रतिमा के दर्शन करने यूं तो साल भर ही जाते हैं। लेकिन गणेश उत्सव के समय यह संख्या हजारों में पहुंच जाती हैं। भक्तों के कल्याण के लिए मंदिर में बालाजी का मंदिर भी बना है। सभी इनके दर्शन करके भी अपनी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।

मोबाइल पर भी भक्त
गणेशोत्सव की शुरुआत होने के बाद से जूनी इंदौर क्षेत्र के प्राचीन चिंतामण गणेश मंदिर में घंटे-घडिय़ालों से ज्यादा एक विशेष मोबाइल फोन की रिंगटोन लगातार बजती सुनाई देती है। यह फोन गणपति का है जिस पर वह अपने दूरदराज के भक्तों की मनोकामनाएं सुनते हैं। यह परंपरा शुरू कैसे हुई इसकी कहानी भी दिलचस्प है। मंदिर के पुजारी ने बताया कि चिंतामण गणेश को फोन करने की अनूठी परंपरा तब शुरू हुई, जब इंदौर से ताल्लुक रखने वाला एक भक्त जर्मनी में बस गया। यह भक्त हजारों मील के फासले से भगवान को नियमित तौर पर चिट्ठियां लिखा करता था। एक बार उसने मंदिर के पुजारी के मोबाइल नम्बर पर कॉल किया और कहा कि अब वह फोन के जरिए चिंतामण गणेश तक अपना संदेश पहुंचाना चाहता है। तभी यहां पर दूर-दराज में रहने वाले भक्तों के मोबाइल पर कॉल आने लगे और मंदिर के पुजारी कॉल आते ही गणेश प्रतिमा के कान पर लगा देते हैं और भक्त अपनी मनोकामना भगवान को बता देते हैं।

अब ज्यादा चिट्ठियां नहीं आती
भक्त वर्ष 2005 से मोबाइल फोन का सहारा ले रहे हैं. पहले चिंतामण गणेश को उनके भक्त चिट्ठियां लिखा करते थे! लेकिन, संचार के इस हाइटेक युग में अब ऐसी चिट्ठियों की संख्या नहीं के बराबर रह गई है।

शादी कराने की दुआ
उन्होंने बताया कि इस बार गणेश उत्सव में ऐसे भक्तों की तादाद अपेक्षाकृत ज्यादा है, जो चिंतामण गणेश के मोबाइल नम्बर पर कॉल कर अच्छी नौकरी दिलाने और अपनी या अपने सगे-संबंधी की शादी कराने की दुआ मांग रहे हैं।