Ganeshotsav 2025 : इस सिद्धस्थल का नाम ऊंकाला गणपति जी क्यों रखा गया, जानिए इनके इतिहास के बारे में!

कसेरा समाज की 367 वर्ष प्राचीन धरोहर, इसी सिद्ध स्थल क्षेत्र में मैढ़ क्षत्रिय मारवाड़ी स्वर्णकार समाज की मां महिषासुर मर्दिनी माता का सैकड़ों वर्ष प्राचीन मंदिर भी हैं विद्यमान!

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Ganeshotsav 2025 : इस सिद्धस्थल का नाम ऊंकाला गणपति जी क्यों रखा गया, जानिए इनके इतिहास के बारे में!

Ratlam : शहर के पूर्वी छोर स्थित कसारा समाज का देश का ऐतिहासिक वैभवशाली मंदिर जिसके इतिहास की बात करें तो लगभग 367 वर्ष प्राचीन होने की बात समाज के लोग कहते हैं। इस मंदिर में बिराजते हैं बुद्धि, विवेक, धन-धान्य और रिद्धि-सिद्धि के कारक उंकाला गणपति जी जिनके बारे में कोई भी बात करना सूरज को दीपक दिखाने जैसा होगा। जिनके दर्शन मात्र से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। यह देश के वैभवशाली मंदिरों में से 1 है। इस मंदिर का निर्माण 367 वर्ष पहले कसेरा समाज ने करवाया था।तत्कालीन राजा रतन सिंह जी ने जब होलकर सेना से युद्ध जीता था।

तब महाराजा रतन सिंह जी ने कसेरा समाज के 1 हजार परिवारों को राजस्थान के जोधपुर शहर से रतलाम लाकर बसाया था। उसी समय समाजजनों ने मंदिर बनाने का प्रस्ताव रखा था तब रतन सिंह जी ने ढाई बीघा भूमि कसेरा समाज को दी थी। महाराजा द्वारा दी गई इसी भूमि पर भगवान गणेश का मंदिर बना और 11 फीट की खड़ी मूर्ति स्थापित की गई। 10 दिवसीय गणेश उत्सव के दौरान ऊंकाला गणपति जी का श्रंगार (चोला) चढ़ाने का विशेष महत्व हैं, जिसके लिए 1 साल पहले से एडवांस बुकिंग हो जाया करती हैं और उसी क्रम में चोला चढ़ाने का मौका मिलता हैं। बाकी दिनों में भी चोला चढ़ाने के लिए एडवांस बुकिंग ही करवानी पड़ती हैं, जिसमें देश भर के विभिन्न क्षेत्रों से भक्त आकर शामिल होते हैं और सोने-चांदी के वर्क वाले वस्त्र या श्रृंगार का चोला चढ़ाने के बाद मन्नतें मांगते हैं। जिस स्थान पर भगवान श्री गणेश जी विराजमान हैं वहां के जल कुंड की बात करें तो पुराने जमाने में शहर के लोगों को पेयजल लेने के लिए यहां आना पड़ता था जो शहर से तकरीबन 1 से 2 किमी दूर स्थित हैं। इसी क्षेत्र परिसर में मैढ़ क्षत्रिय मारवाड़ी स्वर्णकार समाज की मां महिषासुर मर्दिनी माताजी का 300 वर्ष से अधिक प्राचीन मंदिर विद्यमान हैं!

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*स्पीड पोस्ट से प्रेषित करते हैं शादी और मांगलिक कार्यों की पत्रिकाएं!* 

इस मंदिर की विशेषता हैं जो अपने आप में बिलकुल पृथक हैं। इस मंदिर में सैकड़ों पत्र-पत्रिकाएं और विवाह की पत्रिकाएं स्पीड पोस्ट से आती हैं। ये पत्र-पत्रिकाएं देश के कोने-कोने से आते हैं, इसमें भगवान श्री गणेश जी के भक्त अपनी समस्याएं लिखकर भेजते हैं और उन्हें आशातीत परिणाम भी प्राप्त होते हैं। यही वजह हैं कि यहां भक्तों का जमावड़ा लगा रहता हैं। बताया जाता हैं कि मंदिर के पुजारी प्राप्त इन पत्र-पत्रिकाओं को पढ़कर भगवान श्री ऊंकाला गणपति जी को सुनाते हैं, जिसके बाद लोगों की समस्याएं और परेशानियां दूर हो जाती हैं। यह मंदिर रतलाम शहर के माणकचौक, चांदनी चौक से लगभग 2 किसी दूर स्थित हैं। जहां से इंदौर, भोपाल, उज्जैन, देवास तथा जावरा, मंदसौर, नीमच, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा तथा अजमेर-जयपुर से सीधे रेल व सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ हैं जहां यात्रियों को आवागमन सुलभ हो जाता हैं।

*ब्रह्म मुद्रा में हैं भगवान श्री गणेश की प्रतिमा!* 

श्री राम-जानकी मंदिर कसारा ऊंकाला कसारा समाज ट्रस्ट के सदस्य बताते हैं कि खडे गणपति जी वैभवशाली प्रतिमा हैं जो दुर्लभ हैं। ब्रम्ह मुद्रा में स्थापित यह प्रतिमा मुद्रा तपस्वी की है, जिसका अपना विशेष वैभव है। ऐसी मान्यता हैं कि भगवान गणपति अपने भक्तों के कल्याण के लिए हमेशा खड़े रहते हैं और जो भी इनके पास मन्नतें लेकर जाता हैं उनमें से अधिकांश भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

*ऐसे पड़ा ऊंकाला गणपति जी नाम!* 

बताया जाता है कि यहां पहले शंकरजी का मंदिर बना और इसके बाद पानी के लिए बावड़ी का निर्माण किया गया। बावड़ी के लिए जब कुंड बना तो तेजी से बुलबुले के साथ मीठा पानी निकलने लगा और निरंतर निकलता रहा और शहर से महिलाएं सिर पर गगरी रखकर 1-2 किमी दूर से पानी भरकर लें जाया करती थी। इसके बाद राम-जानकी मंदिर और गणपति मंदिर बने तो ऊंकाला गणपति जी नाम दे दिया गया। अब इसी नाम से लोगों की आस्था जुड़ गई है, जिसकी ख्याति देशभर में शुमार हैं!