बांग्लादेश में नरसंहार
वहां छा गया है
कट्टर धर्मांधता का क्रूर अंधकार
मांद से निकल आए हैं हिंसक जानवर
करने अहिंसक जीवों का निर्मम शिकार
खुल गए हैं भेड़ियों के जबड़े
गिद्धों चमगादड़ों के चोंच और पंजे
चिथड़े चिथड़े कर दी गई है मासूम चिड़ियायें
नोच कर खाने लगे हैं जंगली कुत्ते
अपना जीवित शिकार।
प्रार्थना का सर तन से जुदा कर
घोंप दी गई भरोसे के सीने में तलवार
संबंधों की चिता बनाकर लगा दी गई आग।
झूम रहे हैं रक्त पिपासु
सुनकर गर्भिणी की करुण चीत्कार
नन्हे शिशुओं का आर्तनाद
निरीहों का हाहाकार
लगते थे जो अपने
बन गए दैत्य और पिशाच।
वैसे
शाकाहारी भी होते बलवान
पर बने रहते दयावान
फेरते रहते विश्व बंधुत्व की माला
बांटते रहते करुणा, प्रेम, क्षमा का ज्ञान
सीखे नहीं इतिहास से
न बिना शस्त्र बचते हैं शास्त्र
न बिना पुरुषार्थ बचते हैं धन, धर्म, प्राण
जो लड़ते नहीं भागते
बचाने नहीं आता उन्हें भगवान।
समय की सुनो
जागो, उठो, एक हो जाओ
दैत्यों को दिव्यता दिखाओ
पशुओं पर पाशुपत चलाओ।
साहस दिखाओ
जीतने के लिए ही नहीं
जीवित रहने के लिए भी
या लड़ते हुए
वीरगति पा सकने के लिए भी।
— महेश श्रीवास्तव