योग-प्राणायाम और गुरुमंत्र से पाएं चित्त की शांति: मुनि श्री सद्भाव सागर जी!

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योग-प्राणायाम और गुरुमंत्र से पाएं चित्त की शांति: मुनि श्री सद्भाव सागर जी!

Ratlam : दिगंबर जैन मुनि श्री सद्भाव सागर जी मसा. ने शहर की सर्किल जेल में मंगलवार को कैदियों से मुलाकात कर उन्हें आत्मिक शांति और मानसिक स्थिरता का संदेश दिया। कार्यक्रम के दौरान जेल अधीक्षक भदौरिया ने मुनिश्री का पाद-प्रक्षालन कर सम्मान किया।

मुनिश्री ने अपने प्रवचन में कहा कि- मनुष्य की श्वास ही उसके जीवन की शक्ति है। जब हम अपनी श्वास को नाभि से जोड़कर नियंत्रित करते हैं, तो मन की अशांति स्वतः समाप्त हो जाती है। विश्वास रखिए, यह साधना किसी भी दवा से अधिक प्रभावशाली है। उन्होंने बंदियों को सरल प्राणायाम विधि सिखाते हुए बताया- चार सेकंड में श्वास लें, दो सेकंड रुकें, फिर चार सेकंड में छोड़ें। यह प्रक्रिया केवल नौ बार करें। इससे चित्त की नकारात्मकता दूर होगी और मन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होगा।

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मुनिश्री ने आगे कहा कि प्रतिदिन केवल 10 मिनट योग और गुरु मंत्र जाप करने से मन की आजादी और सुख की अनुभूति होती है। उन्होंने कहा कि- जिसका कोई गुरु नहीं है, वह ‘ॐ नमः’ मंत्र का जाप करते हुए योग करे। यह साधना जीवन में प्रसन्नता और स्थिरता लाती है।”

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उन्होंने कैदियों को यह भी प्रेरित किया कि वे किसी का उपहास न करें, सदा प्रसन्न रहें और परमात्मा से सबके मंगल की कामना करें। प्रवचन के अंत में मुनि श्री सद्भाव सागर जी मसा. ने प्रतिक्रमण विधान का आयोजन किया तथा कैदियों को प्रतिक्रमण पुस्तिकाएं वितरित की। कार्यक्रम में जेल प्रशासन के अधिकारी, श्री चंद्रप्रभ दिगंबर जैन श्रावक संघ, श्री विमल सन्मति युवा मंच एवं सकल दिगंबर जैन समाज के पदाधिकारी सदस्य एवं कैदी बड़ी संख्या में उपस्थित रहें!