Mystery and thrilling storytelling: मुक्ति कामना प्रेत

रहस्य और रोमांचक किस्सागोई –

Mystery and thrilling storytelling:मुक्ति कामना प्रेत

विवाह के बाद पहली बार उस आँगन में पैर रखा तो खुद को आम के वृक्ष के नीचे खड़ा पाया था। थकान के मारे कार में मेरा बुरा हाल था। उमस और गर्मी के मारे उस भारी भरकम लहंगे में जैसे मेरा दम घुट रहा था। जैसे ही अमराई के नीचे पहुंची बूढ़े आम ने आशीष देते हुए हवा का ताजा झोंका दिया, मानो मेरा स्वागत किया हो। मुझे उस आम्र वृक्ष की पॉजिटिव एनर्जी साफ़ समझ आई। दादी को हमेशा फल दार पेड़ों को नमन करते देखा था, सो मेरे भी हाथ पेड़ के विशाल तने को देख कर जुड़े और माथा झुक गया था।बाबा कहूँ मैं आपको मैंने मन ही मन पूछा था और आम की सरसराहट ने जैसे खुश हो कर स्वीकारा था। मैं वहीं रुक गई थी। घर के अन्दर से स्त्रियाँ आरती का थाल लेकर आ गयी थी। इन्होंने धीरे से कहा ये बड़ी ताई हैं, इन्हें प्रणाम करो मैंने झुक कर चरण स्पर्श किये और गीत गाते हुए घर की स्त्रियों ने मेरा गृह प्रवेश करवाया।

Mystery and thrilling storytelling

मुझे याद है उस रात पितृ पूजन में भी आम का जिक्र आया था और रत जगे में भी आम की छाया का कोई गीत था। यह महज संयोग भी हो सकता है पर मुझे लगा इस घर पर आम्रवृक्ष  की छाया आशीष जैसी है। यह आँगन में लगे बुजुर्ग आम के पेड़ से मेरी पहली मुलाक़ात थी। घर में मेरे अलावा कोई स्त्री नहीं थी, बड़ी ताई का परिवार उस बड़े से बंगले के दाएँ भाग में और हमारा परिवार बाएं भाग में रहता था। सासू माँ के जाने के बाद एक साल में स्त्री विहीन घर के जो हाल होते हैं, वही इस घर के भी थे।

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सबसे पहले तो मुझे घर को घर का स्वरुप देना था सो पग फेरे से आने के बाद से ही मैं आँगन को आंगन जैसा और किचन को किचन जैसा बनाने में लग गई। घरेलू हेल्पर की मदद से यहाँ वहां पड़े गमले सब एक जगह लिए, नए  सुन्दर पौधे मंगवाए और गेरू से रंगे पुते गमले उस बड़े बगीचे नुमा आंगन में सज गए। आम के नीचे एक छोटा सा ओटले जैसा बना था,  जिसमें दीपक लगाने का आलिया भी था। उस ओटले को लिपवा कर स्थाई अल्पना बनाने के बाद वहां तुलसी का चौरा भी लग गया और उसी दिन से सांझ को एक दीपक तुलसी में ना रख उस आम के ओटले पर रखने लगी मैं। शाम को जब बाबूजी ने जगमग जगमग होता आँगन देखा तो  खुशी से रो ही दिए। “बहू!आज तुम्हारी सासुजी बहुत खुश होंगी आँगन देख कर, उसके जाने के बाद पहली बार आँगन की  पुरानी रौनक लौट आई है। दिया तो मैं रखता था, उसकी भावना को समझते हुए पर जो कायाकल्प तुमने किया है वो मैं नहीं कर सकता था।” मैंने बाबू जी को अदरक वाली चाय का प्याला पकड़ाया तो उन्होंने सर पर हाथ रख दिया।

‘बाबू जी ! आप मुझे सब बताते जाइए,  माँ जी की परम्पराएं, हम कोशिश करते हैं घर वैसे ही चले जैसे उनके हाथ से चलता था।’

बाबूजी ने जैसे खुश होकर कहा हाँ, बिलकुल मुझे अब भरोसा हो गया है कि जयेश  ने बिलकुल सही लड़की पसंद की है।’ तभी आम के कुछ पत्ते मेरे सर पर झड़े, तो जाने क्यों मुझे लगा आम भी सहमति दे रहा है।

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अगले दिन बाबूजी बाजार से एक छोटा सा मटका ले आये,  “बेटा बैसाख का महीना लग गया है न तो आम के नीचे बाहर की तरफ यह पानी की व्यवस्था सालों से वह करती थी, उसके पहले माँ भी रखती थी। कोई भूला भटका, प्यासा  राहगीर निकले तो ठंडा जल बड़ा पुण्य का काम होता है।देखो यह सब उसी के पुण्यप्रताप है, तुम इस घर को संभालने आ गई।

“जी बाऊजी मैं करती हूँ और आम के नीचे झरता हुए ठन्डे जल का लाल मटका, एक दो ग्लास और गीला टाट सब रामू काका से करवा कर मैं भी खुश थी और बाबूजी भी। शायद सबसे ज्यादा आम का पेड़ खुश हुआ था। उस रात मुझे नींद में लगा जैसे कमरे की खिड़की से एक साया अन्दर आया और मेरे सर पर हाथ फेरता रहा। डर के मारे मेरी घिघ्घी बंद गई, आँख खोलने की हिम्मत नहीं थी और इनको जगाऊं तो कैसे?थोड़ी देर में लगा साया जो खिड़की से आया था वो उसी तरह चला गया। मैंने इनको झिंझोड़ कर उठाया। “मुझे डर लग रहा है आप लाइट लगाओ प्लीज!” ये उठ बैठे।

“क्या हुआ? कोई बुरा सपना देखा क्या? अरे बोलो, क्या हुआ? क्यों डर गई?”

मैंने इन्हें बताया कि “जैसे कोई कमरे में आया था मेरे सर पर हाथ रखा।”

“ओह! सपना था, आते रहते हैं सपने। वो जो भी थे तुम्हें आशीर्वाद देकर चले गए, सर पर हाथ रखा ना उन्होंने।”

“लेकिन क्यों?”

“अब इस क्यों का क्या जवाब दूँ?” चलो सुबह की सैर कर आते हैं, मैं चाय बनाता हूँ, तुम तैयार हो जाओ।

“मैं अभी नहीं जाऊंगी, लोग क्या बोलेंगे और फिर बड़ी ताई जी देखेंगी तो?”

“तो कहेगी देखा चार दिन हुए शादी को और जयेश अनु को लेकर सैर पर जाने लगा है, ना शर्म ना लाज।”ये मुझे हँसाना चाहते थे और मैं उस अनुभूति से अन्दर तक सहमी हुई थी, चेहरे का रंग उड़ा हुआ था। चाय उन्होंने ही बनाई और बाबूजी को भी दे आये।

बात आई गई हो गयी और मैं भी उस घर में रच बस गई। प्रेगनेंसी के समय जब मैं थक कर सो जाती, तो ठीक दवाई लेने के समय पर मुझे फिर किसी अदृश्य शक्ति का अहसास होने लगा। जैसे खिड़की पर लटकती आम की डाली ठीक समय पर खिड़की पर टकराती इस तरह थी जैसे कोई दरवाजा थपका रहा है। यह आहट इतनी स्पष्ट होती कि कोई आया है इस अनुभूति के साथ मेरी नींद खुल जाती और दवाई का डिब्बा एक दम सामने दिखता।

कई बार मुझे लगता दवाई का डिब्बा तो मैंने नीचे वाले कमरे में ही छोड़ दिया था फिर यह यहाँ कैसे आया? मैं दवाई ले लेती तो दरवाजे पर लटकती डाली वहां से हट जाती।

मुझे लगने लगा था जैसे कोई मेरी निगरानी कर रहा है। अंदर ही अन्दर मैं डरने लगी थी, पर मेरी बात को ये हमेशा हंसी में टाल जाते। बेटी हुई तो सब ठीक हो गया।

एक दिन मैंने अपनी डॉक्टर मित्र से इस विषय में चर्चा की। “नीरजा मुझे ऐसा क्यों लगता है जैसे कोई है, कोई कमरे में आता है। ठीक दवा लेने के समय ही नींद खुल जाती थी।”

डॉ. नीरजा ने मुझे समझाया “सपने हमारे अवचेतन मन की इच्छाओं और डर से प्रभावित होते हैं. आसान भाषा में समझे तो रात को सोते समय भी इंसान का दिमाग एक्टिव रहता है, जिसके कारण सपने आते हैं। सपने में एक ही शख्स आता है बार-बार? अगर आपके सपने में कोई बार-बार आ रहा है तो इसके पीछे का कारण यह है कि आप उस व्यक्ति के बारे में ज्यादा सोचते हैं।”

“लेकिन मैं ऐसा कुछ क्यों सोचने लगी, मेरी कोई स्मृति भी इस तरह की नहीं है फिर?” नीरजा की बात मेरे केस में मुझे उचित नहीं लगी.

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“देख अनु यह मेरा विषय तो नहीं है लेकिन मैंने द ओरेकल ऑफ नाइट: द हिस्ट्री ऑफ साइंस ऑफ ड्रीम्स पढ़ी थी इसके लेखक न्यूरोसाइंटिस्ट सिद्धार्थ रिबेइरो कहते हैं कि हर कोई सपना देखता है भले ही उसे याद रहे या ना रहे. लोगों को सपने नींद की रैपिड आई मूवमेंट यानी रेम स्लीप के दौर में आते हैं, यह अवस्था रात के दूसरे हिस्से में आती है। इस दौरान बहुत ज्यादा सपने देखने को मिलते हैं। सपने अचेतन और चेतन मन के बीच सेतु की तरह काम करते हैं। सपनों पर हमारे अवचेतन मन में बैठी इच्छाओं और डर का असर पड़ता है। हो सकता है तेरे मन में कोई इस तरह की बात बैठ गई है।

“नहीं, पर छोड़ो, मुझे तो उस अहसास ने दवाई के लिए रेगुलर रखा।”

फिर नीरजा ने जो कहा वो मुझे सही लगा इस सब से एक बात तो तय है अनु, वो जो भी कोई है न वो तुम्हारे लिए पॉजिटिव एनर्जी है, जो तुम्हारा ध्यान रख रही है। चल छोड़ जो भी हो, तेरे अलार्म का काम किया है आम की डाली ने, वो हंस दी और बात ख़त्म हो गई। फिर सब ठीक चलता रहा।

बेटी बड़ी होने लगी, स्कूल जाने लगी और मैं दूसरे बच्चे की माँ भी बन गई। लेकिन इन सब में मुझे गुड़िया का होम वर्क, उसकी तैयारी सब का समय मुश्किल से मिलता। कई बार होम वर्क नहीं हो पाता। मैं उसका बस्ता नहीं लगा पाती। एक दिन गुड़िया अपनी होम वर्क की कॉपी घर में भी छोड़ कर चली गई थी, मुझे लगा अब आज तो उसे पनिशमेंट मिलेगी। मैंने कॉपी उठाकर टेबल पर रख दी थी कि कोई हो तो भिजवा देती हूँ, लेकिन बंटू को संभालते हुए बिलकुल भूल गई।

शाम को गुड़िया वापस आई तो गले में झूम गई। “थैंक्यू मम्मी, थैंक्यू वेरी मच।”

“आज क्या हुआ, क्यों मम्मी को बटर लग रहा है, क्या चाहिए।”

गुड़िया ने गले में झूलते हुए जो कहा उससे मैं सन्न रह गई।

“मम्मी आज आप मेरा होम वर्क पूरा करके नहीं भेजती तो  मैडम तो बस सारा दिन खड़ा रखती और मुर्गा भी बनाती।”

“लेकिन! तुम अपनी होमवर्क कॉपी घर पर कैसे भूल गई।”

“तभी तो आपने मेरा होमवर्क पूरा कर दिया और कॉपी किसके साथ भिजवाई  मम्मा?”

उसको क्या जवाब देती, मैं तो खुद ही शॉक्ड थी।

“मैंने कब किया?”

“अच्छा! दिखाओ कॉपी।”

गुड़िया की कॉपी मेरे सामने खुली हुई थी और होमवर्क पूरा किया हुआ था।

“अच्छा मम्मा मेरे जैसे अक्षर क्या प्रैक्टिस करके बनाये?अब से सारा होम वर्क आप ही करेंगी।”

गुड़िया को बताने की कोई स्थिति नहीं थी, लेकिन मुझे यह भयाक्रांत करने के लिए बहुत बड़ी  घटना थी।

अब मैं हर वक्त चौकन्नी रहने लगी.. पर फिर कुछ ख़ास नहीं हुआ और जीवन सामान्य चलने लगा।

उन दिनों गुड़िया के पेपर चल रहे थे।

एक दिन सुबह सुबह गुड़िया ने आकर कहा “थेंक्यु माँ, अच्छा हुआ आपने आकर उठा दिया, मैंने सारा रिवीजन कर लिया।”

“मैंने कब?” मैं बोलते बोलते चुप हो गई। ये डर जायेगी तो पेपर बिगाड़ आयेगी।

“मजाक मत करो, आपने ही तो आकर कहा गुड़िया उठो एक बार रिवीजन कर लो—कैसे आप सब ध्यान रखती हैं?”

और फिर एक दिन शाम होते होते तेज आंधी आई, मुसलाधार बारिश हो रही थी।

चारों तरफ अन्धेरा था हम सभी घबराए हुए थे, इतनी आंधी-तूफ़ान, बारिश..

प्रकृति जैसे तांडव कर रही थी और उस रात हमारे आँगन का वह आम बाबा बूढ़ा आम का पेड़ हमारे घर को बचाते हुए बाहर की तरफ कम्पाउंड वाल को तोड़ता हुआ हमेशा के लिए धराशायी हो गया। रात भर हम सब इस क्षति से दुखी सो नहीं पाए.. बाबूजी तो जैसे उसके गिरने को अपने जाने के समय का सूचक मान बैठे। जयेश को उन आमों की चिंता थी जो आज तक बचपन से खाते आये थे।

डर - विकिपीडिया

मेरे लिए तो यह सदमा कई सारे भय का कारण था। यादों  में आँगन में रखे अपने पहले कदम से ही आम को बाबा कह कर प्रणाम करने की शुरुआत थी।

फिर दिया धरने, पानी का घड़ा भरने, चौक मांडने से लेकर खिड़की की दस्तक तक जाने कितने किस्से थे। मुझे यह तो पता चल चुका था कि उसमें कोई रहता है।

कोई भला पखेरू जिसके पंख टूट चुके थे पर प्राण उसी पेड़ में रहते थे। किसी भले संत से मानस की उपस्थिति देता वह पेड़ सुकून से भरपूर फल भी देता था। धीरे-धीरे पेड़ के  विशाल आकार को जो दीवार को तोड़ते हुए बाहर थोड़ा सड़क तक पड़ा था, उसे हटाया जाना चाहिए।

पेड़ गिरने के एक माह बाद तक जस का तस हरा रहा। उसमें फल भी आये, लेकिन उसके कारण आने जाने में अब हमें ही असुविधा थी।

आश्चर्य तब हुआ जब लकड़ी पीठे वाला हमें उसकी लकड़ी के लिए भरपूर पैसे देकर कल से कटवाने का कह कर गया, लेकिन तीन माह बीत गए कोई काटने नहीं आया। दूसरा भी बुलाया गया वह भी लकड़ी का सौदा करके एडवांस दे गया, लेकिन काटने नहीं आया।

बाबूजी ने कहा वो यहाँ से जाना नहीं चाहता, छोड़ दो पेड़ को। मैं नियमानुसार दिया, जल, प्रसाद सब रखती रही। मैंने  पूजा नहीं छोड़ी।

धीरे- धीरे अब अक्षय वृक्ष के पत्ते सूखने लगे थे। वो सिकुड़ रहा था। एक दिन मैंने देखा जहाँ से वह टूटा था वहां से नए अंकुर, नई कोपलें फूटने लगी थीं।

फिर गुलाबी-धानी बसंती  पत्तियों ने झांकना शुरू किया और बूढ़े आम ने शरीर त्यागना।

एक दिन नन्ही सी शाख फूटी उसी दिन वे तंतु टूट कर गिर गए, जहाँ से जुड़े होने से पेड़ अपनी सम्पूर्ण जीजीविषा से ज़िंदा बना हुआ था।

उस दिन मैं खूब रोई थी, मैंने बूढ़े बाबा को खो दिया था.

सारा वर्णन पिताजी को रो रो कर जब बताया तो उन्होंने एक पंडितजी से बात की, कहा एक मुक्ति तर्पण करवा देते हैं अक्षय आम में कोई अक्षय ऊर्जा बसी हुई थी। तर्पण पूजा हुई हम सबने देखा उस दिन एक नाग नागिन का जोड़ा उसी आम की उखड़ी जड़ों के पास से निकला और दरवाजे से बाहर जाकर ओझल हो गया। हम सभी ने नतमस्तक होकर उनकी मुक्ति की कामना की।

उनका आशीर्वाद सदा बना रहा।

कितने अजीब संयोग थे, पुराना वृक्ष तब तक जीवन का संघर्ष करता रहा जब तक उसमें जान थी वह अक्षय बना रहा, क्योंकि वह गया भी तो तब जब उसने अपने वंश की नयी पत्तियां नयी कोपलें देख लीं।

वो जोड़ा जो पितृ माना जाता है, वह मुक्ति के तर्पण के बाद चले गए, मुक्ति के मार्ग पर।

वो कोई भी थे जो एक ऐसी सकारात्मक शक्ति थी जो आशीष और मदद करती रही। जिसके अहसास के बाद भी मैंने पेड़ पूजन जारी रखा। नहीं जानती मैं कौन थी वह पुण्य आत्मा जो मेरे साथ बनी रही।

उनका पूजन अब भी करते हैं और आम अब बढ़ने लगा है। वृक्ष आशीष देते हैं, वे अक्षय होते हैं और पिता सी छाया देते हैं।

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डॉ .स्वाति तिवारी

डॉ. स्वाति तिवारी

जन्म : 17 फरवरी, धार (मध्यप्रदेश)

नई शताब्दी में संवेदना, सोच और शिल्प की बहुआयामिता से उल्लेखनीय रचनात्मक हस्तक्षेप करनेवाली महत्त्वपूर्ण रचनाकार स्वाति तिवारी ने पाठकों व आलोचकों के मध्य पर्याप्त प्रतिष्ठा अर्जित की है। सामाजिक सरोकारों से सक्रिय प्रतिबद्धता, नवीन वैचारिक संरचनाओं के प्रति उत्सुकता और नैतिक निजता की ललक उन्हें विशिष्ट बनाती है।

देश की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में कहानी, लेख, कविता, व्यंग्य, रिपोर्ताज व आलोचना का प्रकाशन। विविध विधाओं की चौदह से अधिक पुस्तकें प्रकाशित। एक कहानीकार के रूप में सकारात्मक रचनाशीलता के अनेक आयामों की पक्षधर। हंस, नया ज्ञानोदय, लमही, पाखी, परिकथा, बिम्ब, वर्तमान साहित्य इत्यादि में प्रकाशित कहानियाँ चर्चित व प्रशंसित।  लोक-संस्कृति एवं लोक-भाषा के सम्वर्धन की दिशा में सतत सक्रिय।

स्वाति तिवारी मानव अधिकारों की सशक्त पैरोकार, कुशल संगठनकर्ता व प्रभावी वक्ता के रूप में सुपरिचित हैं। अनेक पुस्तकों एवं पत्रिकाओं का सम्पादन। फ़िल्म निर्माण व निर्देशन में भी निपुण। ‘इंदौर लेखिका संघ’ का गठन। ‘दिल्ली लेखिका संघ’ की सचिव रहीं। अनेक पुरस्कारों व सम्मानों से विभूषित। विश्व के अनेक देशों की यात्राएँ।

विभिन्न रचनाएँ अंग्रेज़ी सहित कई भाषाओं में अनूदित। अनेक विश्वविद्यालयों में कहानियों पर शोध कार्य ।

सम्प्रति : ‘मीडियावाला डॉट कॉम’ में साहित्य सम्पादक, पत्रकार, पर्यावरणविद एवं पक्षी छायाकार।

ईमेल : [email protected]

मो. : 7974534394