जेवलिन थ्रो में नीरज को गोल्ड मेडल या भाला फेंक में भारत को सोना…

482

जेवलिन थ्रो में नीरज को गोल्ड मेडल या भाला फेंक में भारत को सोना…

विश्व चैंपियनशिप में ‘भाला फेंक’ में स्वर्ण पदक जीतकर नीरज चोपड़ा ने भारत के 140 करोड़ से ज्यादा नागरिकों को गर्व से भर दिया है। आजाद भारत में भाला फेंक में विश्व चैंपियनशिप में पहली बार भारत की झोली में सोना आया है। दरअसल अंग्रेजी शब्दों के अतिक्रमण ने हिंदी शब्दों को चलन से बाहर ही कर दिया है। आज जब ‘भाला फेंक’ में नीरज ने देश को विश्व में शीर्ष स्थान पर काबिज किया है, तब सभी जगह अंग्रेजी शब्द ‘जेवलिन थ्रो’ ही राज कर रहा है। जबकि ‘भाला’ मूल रूप से दुनिया को भारत की ही देन है।

नीरज चोपड़ा भारत के ‘जेवलिन थ्रो’ यानि कि ‘भाला फेंक’ खिलाड़ी हैं। जिन्होंने हाल ही में नया इतिहास रच दिया है। नीरज चोपड़ा ने वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप 2023 में गोल्ड मेडल जीत कर देश का नाम रोशन किया है। उन्होंने 88.17 मीटर का थ्रो करते हुए भारत को विश्व चैंपियनशिप इतिहास का पहला गोल्ड दिलाया है। इससे पहले उन्होंने सिल्वर मेडल और अंजू बॉबी जॉर्ज ने ब्रॉन्ज मेडल जीता था। ओलिंपिक गोल्ड, डायमंड लीग में गोल्ड और अब वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप 2023 में गोल्ड जीतकर नीरज ने भारत के हर क्षेत्र में बढ़ते वर्चस्व से कदमताल किया है। संकेत यही मिल रहे हैं कि आजादी के अमृतकाल में अब भारत विश्व में पहले स्थान पर काबिज होकर खुद को विश्वगुरू साबित करके अपना गौरव हासिल करेगा। टोक्यो ओलंपिक में नीरज ने 2020 में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए बेहतरीन भाला फेंकते हुए फाइनल में अपने पहले ही प्रयास में 87.58 मीटर की दूरी फेंक कर एक रिकॉर्ड सेट कर लिया था जिसे कोई भी पार नहीं कर सका।

भाला फेंक एथलीट नीरज चोपड़ा का जन्म 24 दिसंबर 1997 को भारत देश के हरियाणा राज्य के पानीपत शहर में हुआ था। नीरज चोपड़ा के पिता का नाम सतीश कुमार है और इनकी माता का नाम सरोज देवी है। नीरज चोपड़ा की दो बहनें भी हैं। भाला फेंक एथलीट नीरज चोपड़ा के पिता हरियाणा राज्य के पानीपत जिले के एक छोटे से गांव खंडरा के किसान हैं।  नीरज चोपड़ा कुल 5 भाई बहन हैं। भाला फेंक खिलाड़ी नीरज चोपड़ा ने सिर्फ 11 साल की उम्र में ही भाला फेंकना प्रारंभ कर दिया था। ग्रामीण परिवेश से उपलब्धि के शीर्ष पर पहुंचकर नीरज ने साबित किया है कि मन में यदि कोई ठान ले तो मंजिल पर पहुंचने से कोई नहीं रोक सकता।

हाल ही में शतरंज विश्व कप 2023 के फाइनल मुकाबले में प्रज्ञानानंद दुनिया के नंबर-1 खिलाड़ी मैग्नस कार्लसन से भले ही हार गए हों, लेकिन उन्होंने यह अहसास करा दिया है कि पहले स्थान से अब वह दूर नहीं है। भारत का नाम एक बार फिर शतरंज में शीर्ष पर होगा। पांच बार के वर्ल्ड चैंपियन मैग्नस कार्लसन को भी पता चल चुका है कि उनकी बादशाहत को कड़ी टक्कर देने वाला बहुत पीछे नहीं है। यही वजह है कि शतरंज चैंपियनशिप के टाईब्रेकर फाइनल से पहले उन्होंने कहा था, “प्रज्ञानानंद ने कई दमदार खिलाड़ियों के सामने टाईब्रेकर मुक़ाबले खेले हैं। मुझे मालूम है कि वह काफी मजबूत है। अगर मुझमें कुछ ऊर्जा बची रही और मेरे लिए अच्छा दिन रहा तो मेरे जीतने के चांसेज होंगे।”

तो भारत अमृतकाल में विकसित राष्ट्र बनकर हर खेल में शीर्ष पर पहुंचे। विज्ञान के क्षेत्र में अपना सिक्का जमाए। चांद, सूरज, मंगल सभी ग्रह पर भारत का तिरंगा और अशोक चिन्ह अपनी उपस्थिति दर्ज कराए। आर्थिक क्षेत्र में भारत विश्व में शीर्ष पर काबिज हो। सैन्य क्षेत्र में भारत सबसे मजबूत बने। और हिंदी भाषा दुनिया में भारत की पहचान बने। ताकि ‘भाला’ या ‘शतरंज’ जैसे शब्द नई पीढ़ी में ‘जेवलिन थ्रो’ और ‘चेस’ द्वारा काबिज न हो सकें। यह विडंबना ही है कि सूचना के हिंदी स्रोतों में भी ‘भाला फेंक’ शब्द गायब है और नीरज चोपड़ा भी ‘जेवलिन थ्रोअर’ शब्द से जाने जा रहे हैं। विचारणीय यही है कि ‘जेवलिन थ्रो’ में नीरज को गोल्ड मेडल या ‘भाला फेंक’ में नीरज ने सोना भारत को दिलाकर हम सभी को गौरवान्वित किया है…।