गपशप: निर्वाचन प्रक्रिया का वो पहला अनुभव और पैचीदा हालात!
– आनंद शर्मा
नौकरी लगने के पहले तक चुनावों से मेरी वक़्फ़ियत महज़ प्रचार में होने शोर शराबे तथा सभाओं में ओजस्वी वक्ताओं के भाषण सुनने तक ही सीमित थी। पर, वास्तव में ये कितना जटिल है और इसे संपन्न करने में कितनी बड़ी फ़ौज लगा करती है, ये मैंने नौकरी में आने के बाद ही जाना। राजनांदगांव ज़िले के अनुविभागों में एसडीएम होने के साथ ही मुझे सहायक निर्वाचन अधिकारी होने का तजुर्बा तो मिला चुका था। पर, जब मैं वहाँ से स्थानांतरित होकर नरसिंहपुर आया तो कलेक्टर श्री एके मण्डलेकर ने उप ज़िला निर्वाचन अधिकारी का दायित्व ही मुझे दे दिया।
उप ज़िला निर्वाचन अधिकारी कलेक्टर की और से चुनाव की हर व्यवस्था देखता है। चाहे उसका संबंध मतदान से हो या मतगणना से। कुल मिलाकर वह आयोग और ज़िले के मध्य एक कड़ी की तरह काम करता है। बहरहाल, मुझे डिप्टी इलेक्शन अफ़सर बना तो दिया गया, पर अपनी आयु और अनुभव के लिहाज़ से मैं छोटा ही था। नौकरी महज़ चार साल की ही हुई थी। चुनाव की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई और ढेर सारी तकनीकी तैयारियों की फ़ेहरिस्त बननी शुरू हुईं। दल गठित हुए, रूट चार्ट बने, ट्रेनिंग हुईं, नामांकन लेने, मतपत्र छपने आदि की प्रक्रिया आरंभ हुईं।
चुनाव का दिन आया और सभी दलों को सुरक्षित अपने बूथ पर पहुँचाया गया। उन दिनों कुछ दल तो ट्रकों और बैलगाड़ियों से अंतिम पड़ाव तक पहुँचते थे, और कुछ के लिए नाव भी लगानी होती थी। बहरहाल मतदान का दिन आ गया। मैं सुबह से अपने दफ़्तर में बैठा था कि 10 बजे के आसपास एक राजनीतिक दल के कुछ सदस्य मेरे कमरे में घुस आए और हंगामा करने लगे कि उनके लोगों को पीठासीन अधिकारी बूथ पर पोलिंग एजेंट के रूप में बैठने नहीं दे रहे हैं। हंगामा इतना ज़बरदस्त था कि पुलिस बुलानी पड़ी।
जब इनसे समझा गया और कुछ ज़ोनल अधिकारियों से बात की गई, तो पता चला कि एक क्षेत्र में मतदान दलों की सामग्री में चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी के नमूना हस्ताक्षर नहीं डाले गए थे, जिससे पीठासीन अधिकारी उनके द्वारा भेजे गये लोगों को पोलिंग एजेंट के रूप में बैठने से मना कर रहे हैं। तुरंत, वायरलेस सेट पर सभी थानों, ज़ोनल अधिकारियों को संदेश भेजे गए और संबंधित दल के प्रत्याशी के एजेंट बूथ पर बैठने लगे। एक जरा सी कमी कैसी परेशानी पैदा कर सकती है, ये पता लग गया था।
चुनाव के बाद मतपेटियों को रखने और मतगणना स्थल के चयन का प्रश्न था। नरसिंहपुर में पहले जिस स्कूल में मत पेटियाँ रखी जाती थीं, वो बहुत छोटा था। मैंने कलेक्टर से कहा कि मतगणना स्थल का बदलाव ज़रूरी है और सभी की सहमति से वेयर हाउसिंग कारपोरेशन के एक गोदाम को चुना गया। मतदान दलों से सामग्री लेकर मतपेटियों वहीं रखी गयीं। अमूमन मतपेटी लेने के एक सप्ताह के बाद ही मतगणना हो जाती है, पर दुर्भाग्य से उसी बीच स्व राजीव गांधी की हत्या का दुःखद समाचार आया और मतगणना का समय आगे बढ़ गया। महीने में हर सप्ताह राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि के साथ गोदाम खोला जाता और मतपेटी सुरक्षित हैं, इसकी पुष्टि की जाती।
हर बार ये सलाह मिलती कि कीड़े मकोड़े इन्हें नुक़सान न पहुँचायें इसकी व्यवस्था करो तो हर बार कीटनाशक दवाएँ डलती। आख़िर में जब मतगणना के लिए उसे खोला गया तो इतनी भयावह गंध उसमें भर गई थी कि मतगणना के पूर्व न जाने कितने जतन करके उसे इस लायक़ बनाया गया कि मतगणना करने वाले दलों के सदस्य और राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों पर कोई संकट न आ पाए। बहरहाल मतगणना शांति से संपन्न हुई और नरसिंहपुर को एक नया मतगणना केंद्र मिल गया।
मध्यप्रदेश में आम चुनावों के लिए आचार संहिता लगने ही वाली है। इन चुनावों में आप ज़्यादा दिलचस्प प्रसंग देखेंगे। इसलिए मैं सोचता हूँ तब तक के लिए गपशप के इस कॉलम को कुछ समय का विराम दे दिया जाए।