राज-काज: लीजिए, दिग्विजय के रास्ते चल पड़ी भाजपा सरकार….

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राज-काज: लीजिए, दिग्विजय के रास्ते चल पड़ी भाजपा सरकार….

* दिनेश निगम ‘त्यागी’

*लीजिए, दिग्विजय के रास्ते चल पड़ी भाजपा सरकार….*

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– कमलनाथ के कुछ माह के शासन को छोड़ दें तो भाजपा को प्रदेश की सत्ता में आए 22 साल से ज्यादा का समय हो चुका है। फिर भी भाजपा नेता पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और उनके कार्यकाल को पानी पी-पी कर कोसते हैं। पर दिग्विजय सिंह के कुछ काम ऐसे भी हैं, जिन्हें भाजपा सरकार लागू कर रही है। नगर पालिका और नगर परिषद अध्यक्षों का जनता से सीधे चुनाव, ऐसा ही एक मामला है। विधानसभा के शीतकालीन सत्र में एक संशोधन विधेयक के जरिए डॉ मोहन यादव की सरकार ने इस व्यवस्था को लागू कर दिया है। यह सबसे पहले दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में लागू की गई थी। इस व्यवस्था को अब तक तीन बार बदला जा चुका है। फिलहाल अध्यक्षों का चुनाव चुने हुए पार्षद कर रहे थे। इससे अध्यक्षों के खिलाफ चाहे जब अविश्वास प्रस्ताव की तलवार लटक रही थी। पार्षद नाराज होकर लामबंद हुए, नतीजे में अध्यक्षों की कुर्सी खतरे में। अध्यक्षों को स्थायित्व प्रदान करने के उद्देश्य से अंतत: मोहन सरकार ने अध्यक्षों का चुनाव सीधे जनता द्वारा करने की व्यवस्था लागू कर दी। संशोधन में री-काल का प्रावधान भी रखा गया है। इसके तहत जनता 3 साल बाद अध्यक्ष को वापस बुला सकती है। खास बात यह रही कि पूरे सत्र के दौरान एक दूसरे के खिलाफ तलवारें भांजने वाले पक्ष-विपक्ष के सदस्यों ने इस संशोधन विधेयक को सर्वसम्मति से पारित किया।

* विधानसभा सत्र को लेकर भी गंभीर होने की जरूरत….!*

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– इसे स्पीकर नरेंद्र सिंह ताेमर का प्रयास कहें या सत्तापक्ष और विपक्ष के बची बनी कोई अंडरस्टैंडिंग, विधानसभा के सत्र ढर्रे पर आते दिख रहे हैं। लंबे समय बाद विधानसभा के सत्र जितने दिन के लिए बुलाए जा रहे हैं, पूरे दिन चल रहे हैं। इसे प्रदेश में लोकतंत्र की मजबूती की दिशा में शुभ संकेत माना जा सकता है। नरेंद्र सिंह तोमर वरिष्ठ हैं और सदन के अध्यक्ष भी, उन्हें विपक्ष की इस मांग पर भी गंभीरता से विचार करना चाहिए। यह है सत्रों की अवधि का बढ़ाया जाना। सिर्फ सरकार काम निबटाने के लिए सत्र नहीं बुलाए जाना चाहिए, कोशिश यह भी होना चाहिए की जनता से जुड़े ज्यादा से ज्यादा ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा हो सके। इसके लिए सत्रों की अवधि का बढ़ना जरूरी है। पांच दिन का सत्र और उसमें भी चार बैठकें, मजाक जैसा लगता है। पहले ही दिन सदन के अंदर विपक्ष ने जब यह मुद्दा उठाया और हंगामे के हालात बने तब स्पीकर तोमर के साथ संसदीय कार्यमंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि आज कार्यमंत्रणा समिति की बैठक होना है, वहां इस पर विचार करेंगे। इस आश्वासन के बाद विपक्ष शांत हो गया था। उम्मीद थी कार्यमंत्रणा समिति की बैठक के बाद कोई नतीजा निकलेगा लेकिन कुछ भी सामने नहीं आया। स्पीकर तोमर को अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर कोशिश करना चाहिए कि भविष्य में कोई भी सत्र इतना छोटा न हो।

*सदन में अपनों के कारण असहज हुई भाजपा सरकार….*

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– प्रदेश विधानसभा के शीतकालीन सत्र को इस मायने में सफल कहा जा सकता है कि इसके लिए जितनी बैठकें निर्धारित थीं, सभी हुईं। विपक्ष ने हर रोज अलग और अनोखे प्रदर्शन कर विभिन्न ज्वलंत मुद्दों की ओर लोगों को ध्यान खींचा। जितना समय था, उसके अनुसार सदन के अंदर बहस और चर्चा हुई। दूसरी तरफ सत्तापक्ष ने अनुपूरक बजट, कुछ विधेयकों के साथ जरूरी सरकारी काम-काज निबटाए। चौकाने वाली बात यह रही कि सत्तापक्ष के विधायकों ने ही सदन के अंदर अपनी सरकार को घेरा। प्रदेश सरकार के वरिष्ठ मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने भी सत्तापक्ष के अन्य सदस्यों का समर्थन करते हुए प्रदेश की कानून व्यवस्था पर सवाल उठाए और यहां तक कह दिया कि खंडवा जिला सिमी आतंकवादियों को गढ़ बन चुका है। सवाल यह है कि प्रदेश में भाजपा की ही सरकार है तो वह कर क्या कर रही है? दो मंत्रियों ने तो यहां के लिए एसएएफ की दो बटालियन की जरूरत बता दी। इसी प्रकार कटनी जिले की एक घटना को लेकर जिले में भाजपा के तीन और जबलपुर के एक विधायक ने सरकार को घेरा। इसमें मुख्यमंत्री को हस्तक्षेप कर निर्देश देना पड़ा। इस तरह इस बार विधानसभा सही मायने में लोकतंत्र का मंदिर साबित हुई। जबकि पहले सत्र चाहे जितने दिन का हो, सिर्फ हंगामें की भेंट चढ़ता था और कभी पूरी बैठकें नहीं होती थीं।

*उमा के कार्यकाल में भी हो चुका हेमंत का यह प्रयोग….*

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– भाजपा कार्यकर्ताओं की सरकार के मंत्रियों के साथ बढ़ रही दूरी को ध्यान में रख कर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल ने एक राजनीतिक प्रयोग शुरू किया है। इसके तहत अब मंत्री भाजपा कार्यालय में आकर बैठने लगे हैं और कार्यकर्ताओं की समस्याएं सुन कर उनका समाधान कर रहे हैं। इसे संगठन और सरकार में समन्वय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। योजना लागू करने की वजह पार्टी कार्यकर्ताओं की ओर से लगातार मिल रही शिकायतें हैं। उनका कहना था कि हम चक्कर लगा-लगा कर परेशान हैं लेकिन मंत्री मिलते ही नहीं। सरकार और संगठन के समन्वय के लिए बनी छोटी टोली में भी इस पर चर्चा हुई। इसके बाद मंत्रियों को भाजपा कार्यालय में आकर बैठने का निर्णय लिया गया। पहले सप्ताह ही जो मंत्री कार्यालय गए, उन्होंने कार्यकर्ताओं के आवेदन लेकर मौके पर ही उनके समाधान के निर्देश दिए और शेष पर जल्द कार्यवाई का आश्वासन दिया। संगठन यह कोशिश भी कर रहा है कि संबंधित कार्यकर्ता को जानकारी मिले की उसके आवेदन पर क्या कार्रवाई हुई? बड़ा सवाल यह है कि क्या व्यवस्था आगे भी कायम रह सकेगी? इससे पहले उमा भारती के कार्यकाल में यह व्यवस्था लागू की गई थी लेकिन ज्यादा समय तक चल नहीं सकी थी। कप्तान सिंह सोलंकी जैसे संगठन महामंत्री भी इसे कायम नहीं रख पाए थे।

* महाबली माननीय से हो पाएगी 443 करोड़ की वसूली….!*

– एक तो माननीय अर्थात विधानसभा सदस्य और दूसरा, प्रदेश के बड़े धनपति, अर्थात ‘करेला ऊपर से नीम चढ़ा’। ऐसे महाबली से प्रदेश सरकार 443 करोड़ की वसूली कर पाएगी, यह बड़ा सवाल है। हम बात कर रहे हैं विधायक संजय पाठक की। प्रदेश में कमलनाथ के बाद पाठक दूसरे ऐसे नेता हैं जिनके पास अपना खुद का हेलीकाप्टर है। खनिज विभाग द्वारा गठित जांच दल ने पाया है कि पाठक से जुड़ी तीन खनन कंपनियों ने जबलपुर जिले में अवैध एवं अतिरिक्त रेत उत्खनन किया है। इन कंपनियों पर खनिज रॉयल्टी, जीएसटी और अन्य मद का 443 करोड़ से ज्यादा बकाया वसूला जाना है। विधानसभा के शीतकालीन सत्र में उठने से यह मामला फिर सुर्खियों में आ गया। कांग्रेस विधायक डॉ हीरालाल अलावा के प्रश्न के उत्तर में विभाग ने बताया कि पाठक से जुड़ी तीन कंपनियों ने स्वीकृत सीमा से अधिक रेत का उत्खनन किया। सरकार ने भी जांच रिपोर्ट को स्वीकार करने की बात कही है। यह भी बताया गया कि 10 नवंबर 2025 को जबलपुर कलेक्टर ने आदेश जारी कर इन कंपनियों को 15 दिनों के अंदर पूरी राशि जमा करने का निर्देश दिया है। राशि जमा नहीं करने पर सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी गई है। सरकार इस महाबली माननीय से 443 करोड़ से ज्यादा की भारी भरकम राशि वसूल कर पाएगी, लोगों को इसमें संदेह हैं।

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