राज-काज:सबसे चर्चित मुद्दा बना गया मंत्री का सदन में रोना….

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राज-काज:सबसे चर्चित मुद्दा बना गया मंत्री का सदन में रोना….

– विधानसभा के बजट सत्र का सबसे चर्चित मुद्दा बन गया सदन के अंदर सरकार के मंत्री नरेंद्र शिवाजी पटेल का फफक-फफक कर रोना। वे कांग्रेस विधायक अभय मिश्रा के एक सवाल का जवाब दे रहे थे। मिश्रा ने कहा था कि सेमरिया विधानसभा से उनका चुनाव लड़ना अपराध हो गया है। थाना चोरहटा में उनके और बेटे विभूति नारायण मिश्रा के खिलाफ अपराध दर्ज किया गया है। मिश्रा ने कहा कि मैं आपके चरणों में गिरने के लिए तैयार हूं, लेकिन परिवार को न्याय प्रदान दीजिए। जवाब में मंत्री पटेल ने कहा कि मैं आपकी पीड़ा से इत्तफाक रखता हूं। बेटे के खिलाफ प्रकरण दर्ज होता है तो क्या बीतती है, समझ सकता हूं। मैं अन्याय नहीं होने हूंगा, कहते हुए मंत्री पटेल रो पड़े। बता दें कि भोपाल में मंत्री रहते उनके बेटे के खिलाफ प्रकरण दर्ज हो गया था। पुलिस पर आरोप था कि उसने उनके बेटे के साथ थाने के अंदर मारपीट की है। मंत्री पटेल को बेटे को छुड़ाने के लिए थाने जाना पड़ा था। बाद में पता चला था कि उनके बेटे के खिलाफ फर्जी प्रकरण दर्ज किया गया था। संभवत: उसे याद कर मंत्री पटेल रो पड़े और अभय मिश्रा के मामले में संबंधित टीआई को निलंबित कर जांच की घोषणा की। मंत्री के रोने से साफ है कि तब उनके बेटे के साथ अन्याय हुआ था और सरकार ने उनका साथ नहीं दिया था। पटेल नए और साफ-सुथरे नेता और मंत्री हैं। सरकार को ऐसे नेताओं के साथ खड़ा होना चाहिए था।

 राजनीति में संवेदनशीलता मरी नहीं, अभी जिंदा….

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– लोगों में धारणा बनती जा रही है कि अधिकांश राजनेता संवेदनहीन होते जा रहे हैं। कुछ मसलों पर वे संवेदनशीलता का परिचय देते दिखाई पड़ते हैं तो उसके पीछे भी उनका राजनीतिक उद्देश्य छिपा होता है। पर यह पूरी तरह सच नहीं है। मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने इंदौर में जो उदाहरण प्रस्तुत किया, उससेे पता चलता है कि संवेदनशीलता अभी मरी नहीं, जिंदा है । रंगपंचमी के अवसर पर वे ‘गेर’ में शामिल होने के उद्देश्य से इंदौर गए थे। अचानक एक हादसा हुआ। ‘गेर’ के दौरान ही ट्रैक्टर की चपेट में आने से एक व्यक्ति की मौत हो गई। डॉ यादव ने निर्णय लिया कि अब वे ‘गेर’ में शामिल नहीं होंगे। इसके साथ उन्होंने पीड़ित परिवार को 4 लाख रुपए सहायता की घोषणा भी की। उन्होंने कहा कि एक परिवार भारी पीड़ा में है। ऐसे हालात में मैं ‘गेर’ में कैसे शामिल हो सकता हूं? ऐसा उन्होंने तब किया जब ‘गेर’ में लगभग 5 लाख लोग शामिल थे। कार्यक्रम की ख्याति इतनी कि यूनेस्कों की टीम इस बात का आकलन करने इंदौर आई थी कि क्या रंगपंचमी की यह ‘गेर’ वर्ल्ड रिकार्ड की हकदार है? किसी नेता के लिए ऐसी भीड़ क्या मायने रखती है, बताने की जरूरत नहीं है। डॉ यादव तो मुख्यमंत्री ठहरे, फिर भी उन्होंने वहां जाने की बजाय दुखी परिवार के साथ खड़े होने का निर्णय लिया। इसके लिए उनकी जितनी तारीफ की जाए, कम है।

  सरकार को घेरा, भागने का भी नहीं दिया मौका ….

Assembly Committees

– विपक्ष की इस बात में दम है कि विधानसभा का बजट सत्र पहले की तुलना में कम अवधि का रहा। पहले यह सत्र महीनों चलता था। कुछ सालों से धारणा बन रही है कि सरकार सत्रों को छोटा कराती जा रही है। ऐसे में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार की रणनीति की तारीफ करना होगी, जिनके नेतृत्व में कांग्रेस विधायकों ने सदन के अंदर सरकार को घेरा और भागने का अवसर भी नहीं दिया। पिछला सत्र पांच दिन का था और पूरा चला था। इस बार बजट सत्र में 9 बैठकें थीं, सभी में सदन की कार्रवाई चली। पहले होता यह था कि किसी भी मुद्दे पर कांग्रेस हंगामा करती थी। गर्भग्रह में नारेबाजी करते हुए धरना देती थी। सरकार मौके की तलाश में रहती और हंगामे के बीच कार्यसूची पूरी करा कर सदन की कार्रवाई अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करा देती। एक दिन आरोप-प्रत्यारोप लगते और मामला खत्म। कांग्रेस विधायक दल ने अपनी रणनीति बदली। उसने अलग-अलग दिन विभिन्न ज्वलंत मुद्दों को लेकर विधानसभा परिसर में अनोखे प्रदर्शन किए। सदन के अंदर मुद्दों को जोर-शोर से उठकार सरकार को घेरा और हंगामा करते हुए वाकआउट कर बाहर आ गए। बाहर आकर नारेबाजी करते हुए मीडिया से बात की। नतीजा, कांग्रेस ने हर मुद्दा उठा लिया। हर रोज पर्याप्त कवरेज भी पाया। सरकार चाह कर भी विपक्ष को यह लाभ लेने से नहीं रोक पाई।

  दिन में लड़ते, रात में गलबहियां डाले आए नजर….

अपरिमित क्षमताओं के धनी नरेंन्द्र सिंह तोमर

– मौजूदा राजनीति के दौर में जब नेता एक दूसरे को राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी के स्थान पर दुश्मन की तरह देखते हैं, ऐसे में प्रदेश की राजधानी भोपाल में लंबे समय बाद राजनीतिक सौहार्द देखने को मिला। यह अवसर उपलब्ध कराया विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने। पहले स्पीकर तोमर के सामने दिन में विधानसभा के अंदर परिवहन घोटाले को लेकर सत्तापक्ष और विपक्ष एक दूसरे के खिलाफ हमलावर थे। घोटाले की जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में सीबीआई से कराने की मांग पर सरकार सहमत नहीं हुई तो नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार के नेतृत्व में कांग्रेस विधायकों ने पहले गर्भग्रह में जाकर हंगामा किया, नारेबाजी की। इसके बाद वाकआउट कर विधानसभा परिसर में अनोखा प्रदर्शन किया। एक विधायक कुंभकर्ण बन कर आए थे। कांग्रेस विधायक बीन बजाकर उन्हें जगाने का प्रयास कर रहे थे। कांग्रेस का कहना था कि प्रदेश की सरकार कुंभकर्ण की तरह गहरी निद्रा में सोई हुई है। दूसरी तरफ विधानसभा की कार्रवाई खत्म होने के बाद नजारा बिल्कुल अलग था। सभी मंत्री और विधायक तोमर के आमंत्रण पर विधानसभा के मानसरोवर सभागार पहुंचे। यहां फाग उत्सव का आयोजन था। खास बात यह थी कि यहां संगीत की धुन में मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के साथ हाथ पकड़ कर नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार नाच रहे थे। कॉश, ऐसा राजनीतिक सौहार्द हमेशा बरकरार रहे।

 

 अपनों के कारण ही कटघरे में रही प्रदेश सरकार….!

Selection of New BJP President

– विधानसभा के बजट सत्र के दौरान इस बार कई अचंभित करने वाले नजारे देखने को मिले। इनमें महत्वपूर्ण रहा, भाजपा के विधायकों द्वारा अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा करना। अपनी सरकार को असहज करने वालों में पहला नाम है वरिष्ठ विधायक अजय विश्नोई का। उन्होंने धान खरीदी में गड़बड़ी को लेकर सदन के अंदर अपनी सरकार को घेरा। दूसरे वरिष्ठ विधायक गोपाल भार्गव ने उनकी बात का समर्थन किया हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि सरकार गड़बड़ी को ठीक करेगी। भाजपा के एक अन्य विधायक नरेंद्र सिंह कुशवाह की क्षेत्र में कॉलेज खोलने को लेकर शिक्षा मंत्री से खासी नोकझोक हुई। नरेंद्र सिंह ने कहा कि मुख्यमंत्री की घोषणा के बावजूद काॅलेज नहीं खुल रहा है। मंत्री ने जमीन उपलब्ध न होने की बात कही तो नरेंद्र सिंह ने कहा कि पहले तो वहां सरकारी जमीन है, लेकिन नहीं होगी तो कालेज के लिए मैं जमीन दान करने के लिए तैयार हूं। बस आप घोषणा करिए की कालेज कब तक बन कर तैयार हो जाएगा। नरेंद्र ने कहा कि क्षेत्र के बच्चों को काॅलेज की पढ़ाई के लिए दूर जाना पड़ता है। तीसरे, विधायक चिंतामणि मालवीय ने सिंहस्थ के लिए किसानों की जमीन हमेशा के लिए अधिग्रहीत करने का मुद्दा उठाया। कांग्रेस ने भी उनका साथ दिया। विषय किसानों की समस्या से जुड़ा था लेकिन भाजपा ने उन्हें नोटिस जारी कर जवाब तलब कर लिया। हालांकि नोटिस में विधानसभा में उठे मुद्दे का उल्लेख नहीं किया गया। एक अन्य विधायक और सरकार में मंत्री एंदल सिंह कंसाना ने रेत माफिया को लेकर विवादित बयान दे दिया। उन्होंने कहा कि चंबल अंचल में रेत माफिाय नहीं, पेट माफिया है। जिसे पेट पालने के लिए मजबूरी में हमले करना पड़ता है।

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