राज- काज:अब मुख्यमंत्री से लकीर बड़ी खींचने की उम्मीद….

राज- काज:अब मुख्यमंत्री से लकीर बड़ी खींचने की उम्मीद….

– डॉ मोहन यादव मुख्यमंत्री बनने के तत्काल बाद कुछ अलग करते दिखाई पड़े थे। बड़े अपराधों पर कलेक्टर और एसपी के खिलाफ कार्रवाई शुरू हुई थी। अफसर आम आदमी से बदतमीजी से बात करते दिखाई पड़े तो उन्हें नाप दिया गया था। मांस, मछली की बिक्री और धार्मिक स्थलों में ध्वनि विस्तारक यंत्रों सहित कुछ अन्य मामलों में वे उप्र के योगी आदित्यनाथ के रास्ते चलते दिखाई पड़े थे। इस बीच लोकसभा चुनाव आ गए। डॉ यादव को प्रदेश के साथ दूसरे राज्यों में प्रचार के लिए जाना पड़ा। लोकसभा चुनाव निबट गए और अब काम की बारी है। शिवराज सिंह चौहान प्रदेश के लोकप्रिय मुख्यमंत्री रहे हैं, लेकिन भाजपा को सभी 29 सीटें पहली बार डॉ मोहन यादव के नेतृत्व में मिली हैं। लोगों को उम्मीद है कि वे काम के मसले पर भी अपनी लंबी लकीर खींचेंगे। इसके लिए सख्त होना पड़ेगा। सिर्फ कहने से काम नहीं चलेगा कि खनन माफिया के खिलाफ अभियान चलेगा, यह होता लोगों को महसूस होना चाहिए। सरकार अपराधियों, भ्रष्टाचारियों के मामले में जीराे टॉलरेंस की नीति पर चलेगी। यह भी कहने से काम नहीं चलेगा, लोगों को ऐसी कार्रवाई दिखनी चाहिए। शिक्षा माफिया के खिलाफ कार्रवाई सिर्फ एक जिले जबलपुर में नहीं, पूरे प्रदेश में होती दिखनी चाहिए। मुख्यमंत्री डॉ यादव यदि ऐसा कर पाए तभी उनकी लकीर लंबी दिखाई पड़ेगी।

Shiva

*_0 शिवराज फिर ताकतवर, ज्योतिरादित्य को पीछे छोड़ा…._* 

– विधानसभा चुनाव के बाद शिवराज सिंह चौहान को राजनीित से किनारे लगाने की चर्चा ने जोर पकड़ लिया था। डॉ मोहन यादव द्वारा मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद शिवराज के कुछ बयान भाजपा नेतृत्व से पंगा लेने वाले दिख रहे थे। इस बीच शिवराज को दिल्ली बुलाया गया और उन्हें दक्षिण के राज्यों में काम की जवाबदारी सौंेप दी गई। कहा गया कि शिवराज को ठीक उसी तरह मप्र से बाहर भेजा जा रहा है, जिस तरह कभी पूर्व मुख्यमंत्री साध्वी उमा भारती को भेजा गया था। शिवराज के लोकसभा टिकट पर भी खतरा बताया जा रहा था लेकिन शिवराज को लोकसभा का टिकट मिला। वे रिकार्ड वोटों के अंतर से चुनाव जीते और केंद्र में ताकतवर मंत्री भी बन गए। शिवराज को कृषि एवं किसान कल्याण तथा ग्रामीण विकास जैसे दो-दो महत्वपूर्ण और बड़े विभाग दिए गए। शिवराज के विभागों का बजट लगभग उतना ही है, जितना बजट मप्र का है। साफ है शिवराज मुख्यमंत्री भले नहीं हैं लेकिन वे देश के ताकतवर मंत्री हैं। केंद्र में ताकत के लिहाज से शिवराज ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी पीछे छोड़ दिया है। सिंधिया के पास एक ही विभाग है, वह भी अपेक्षाकृत कमजोर। शिवराज को 6 वें नंबर पर शपथ दिलाई गई। अर्थात वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के टॉप 5 मंत्रियों में शामिल हैं। प्रदेश का कोई केंद्रीय मंत्री उनकी बराबरी पर नहीं।

19 12 2021 sharma vd

*0 वीडी को नहीं मिला ‘क्लीन स्वीप’ करने का ईनाम….* 

– पहले विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिली बंपर जीत में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा की मुख्य भूमिका थी। लोकसभा चुनाव में पार्टी ने प्रदेश की सभी 29 सीटें जीत कर क्लीन स्वीप किया तो इसमें भी मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के साथ वीडी की अथक मेहनत शामिल है। वीडी ने 2019 का लोकसभा चुनाव लगभग 5 लाख वोटों के अंतर से जीता था और 2024 के चुनाव में उन्होंने लगभग साढ़े 5 लाख वोटों के अंतर से जीत दर्ज की। हालांकि इस बार उनके सामने इंडिया गठबंधन का कोई प्रत्याशी नहीं था। नतीजा आने के बाद से ही उम्मीद की जा रही थी कि वीडी को केंद्रीय मंत्रिमंडल में लेकर प्रदेश मे ‘क्लीन स्वीप’ करने का ईनाम जरूर दिया जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। प्रदेश से 6 सांसदों को केंद्रीय मंत्री बनाया गया लेकिन वीडी को छोड़ दिया गया, जबकि इनमें से एक भी सामान्य वर्ग से नहीं है। राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की तरह वीडी का भी प्रदेश अध्यक्ष का कार्यकाल पूरा हो चुका है। नड्डा के स्थान पर दूसरा भाजपा अध्यक्ष बनने के बाद प्रदेश भाजपा का भी नया अध्यक्ष बनना तय है। नड्डा को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया जा चुका है। वीडी इंजतार करते रह गए। अब वीडी को क्या जवाबदारी मिलेगी, इसे लेकर अटकलों का बाजार गर्म है, इस पर सबकी नजर भी है।

congress 6502 1024x683 1

*0 पदाधिकारियों के साथ यह व्यवहार कितना जायज….?* 

– लोकसभा चुनाव में सभी सीटें हार जाने के बाद कांग्रेस में उथल-पुथल जैसी स्थिति है। कई नेता जीतू पटवारी को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने की मांग कर चुके हैं। हालात को सामान्य करने की बजाय पटवारी खुद असंतोष को हवा देने का कारण बन रहे हैं। प्रदेश मुख्यालय का कायाकल्प करना गलत नहीं है, लेकिन इसकी आड़ में पार्टी के उन पदाधिकारियों की सीट छुड़ाना जो बुरे समय में भी पार्टी का काम करते रहे हैं, ठीक कैसे हो सकता है। कायाकल्प की आड़ में पदाधिकािरयों की कुर्सियां हटाने की बजाय जीतू पटवारी को सीधा संदेश देना चाहिए की अब आप पदाधिकारी नहीं, इसलिए कार्यालय न आएं। दूसरा तरीका यह कि जल्दी अपनी टीम घोषित कर दें। जो पदाधिकारी नहीं बनेगा, अपने आप कार्यालय आना बंद कर देगा। ऐसा करने की बजाय पहले कुछ पदाधिकारियों की नेम प्लेट हटाई गईं। वरिष्ठ विधायक राजेंद्र कुमार सिंह अपने कक्ष आए, नेम प्लेट नहीं देखी तो कक्ष के बाहर से ही लौट गए। अब उनका कक्ष कोषाध्यक्ष अशोक सिंह को आवंटित कर दिया गया। जेपी धनोपिया की नेम प्लेट भी हटा दी गई। उनके कक्ष का सामान हटा दिया गया। इसी तरह कुछ अन्य पदाधिकारियों के कक्षों में फेरबदल किया गया। सवाल यह है कि पदााधिकारियों को अपमानित कर इस तरह घर का दरवाजा दिखाना कितना जायज है?

*0 इनके लिए जीवन-मरण का प्रश्न बना अमरवाड़ा….* 

– लोकसभा चुनाव के बाद छिंदवाड़ा जिले की अमरवाड़ा विधानसीट के लिए हो रहा उप चुनाव भाजपा और कांग्रेस खासकर कमलनाथ के लिए जीवन-मरण का प्रश्न बन गया है। कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए कमलेश शाह को पार्टी ने अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया है। कांग्रेस में जिला पंचायत सदस्य चंपालाल कुर्चे और नवीन मरकाम सबसे प्रबल दावेदार बन कर उभरे हैं। कमलनाथ जिसे चाहेंगे, उसे ही पार्टी का टिकट मिलेगा। दरअसल, राजनीति में कई बार जीत से ज्यादा परिणाम से निकले राजनीतिक संदेश का महत्व होता है। बरसों की मेहनत के बाद भाजपा ने लोकसभा चुनाव में कमलनाथ के अभेद्यगढ़ छिंदवाड़ा को भेदा है। भविष्य में छिंदवाड़ा फिर कमलनाथ की पकड़ में न जाए, इसके लिए भाजपा को अमरवाड़ा विधानसभा का उपचुनाव जीतना जरूरी है। इसके उलट कांग्रेस अमरवाड़ा विधानसभा का उपचुनाव जीतकर यह सिद्ध करना चाहती है की अमरवाड़ा और छिंदवाड़ा पर आज भी कमलनाथ और कांग्रेस की पकड़ मजबूत है। लोकसभा चुनाव में हार कमलेश शाह और कुछ नेताओं के चुनाव के वक्त धोखा देने के कारण हुई है। शायद इसी तरह के संदेश देने के लिए दोनों ही दलों ने अभी से अमरवाड़ा विधानसभा सीट को जीवन मरण का चुनाव बना दिया है।