राज-काज: ‘दूध में शक्कर की तरह’ नहीं मिल पाए सिंधिया….!

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राज-काज: ‘दूध में शक्कर की तरह’ नहीं मिल पाए सिंधिया….!

– मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव द्वारा मंत्रियों को जिलों का प्रभार आवंटित करने के बाद केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया सबसे ताकतवर बनकर उभरे हैं। इसके साथ यह भी साबित हुआ है कि कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आने के लगभग 4 साल बाद भी सिंधिया को अपने समर्थकों पर ही ज्यादा भरोसा है, भाजपा के अन्य नेताओं पर नहीं। वे ‘दूध में शक्कर की तरह’ अब भी भाजपा में नहीं मिल पाए। सिंधिया के ताकतवर होने का प्रमाण यह है कि जिस ग्वालियर शहर में उनका महल है, वहां के प्रभारी मंत्री उनके कट्टर समर्थक तुलसी सिलावट बनाए गए हैं। जिस संसदीय क्षेत्र का वे प्रतिनिधित्व करते हैं, वहां गोविंद सिंह राजपूत को गुना और प्रद्युम्न सिंह तोमर को शिवपुरी का प्रभारी बनाया गया है। ये दोनों मंत्री भी सिंधिया के कट्टर समर्थक हैं। दतिया और अशोकनगर का प्रभार देने में भी सिंधिया की पसंद का ख्याल रखा गया है। साफ है कि मंत्रियों को प्रभार दिए जाने में जितनी सिंधिया की चली, उतनी भाजपा के किसी दूसरे क्षत्रप की नहीं। प्रभार आवंटन से यह भी साफ हो गया कि सिंधिया अब तक भाजपा पर पूरा भरोसा नहीं कर पाए। खबर है कि समर्थक मंत्रियों को प्रभार दिलाने के लिए सिंधिया मुख्यमंत्री डॉ यादव से मिलने सीएम हाउस गए थे। पहले की तरह उनकी अधिकांश शर्तें मानी गईं, लेकिन उन्होंने भरोसा अपनों पर ही किया।

 *0 कतई नहीं रही होगी प्रधानमंत्री मोदी की यह मंशा….* 

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– देश के लोगों में राष्ट्र प्रेम की भावना का संचार हो। आजादी की सालगिरह पर जश्न हो। प्रभात फेरियां, तिरंगा यात्राएं निकलें। आजादी के तराने सुनाई पड़े और राष्ट्रीयता से सराबोर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन हो। शहरों, नगरों की प्रमुख इमारतों को आकर्षक ढंग से सजाया-संवारा जाए। यह होना चाहिए और इसे देखकर समाज के हर वर्ग में उमंग, उत्साह दिखाई पड़ता है। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर ‘हर घर तिरंगा अभियान’ स्वागत योग्य कार्यक्रम है। पर विडंबना यह है कि भाजपा में यह अभियान राजनेताओं के बीच शक्ति प्रदर्शन का जरिया बन कर रह गया। देश की आजादी के बाद देश की स्वतंत्रता और देश भक्ति से जुड़े जितने भी आयोजन होते थे, सभी में समाज के हर वर्ग की भागीदारी दिखाई पड़ती थी। इस बार भी कार्यक्रम खूब हुए लेकिन इसमें हिस्सा लेते भाजपा नेता और कार्यकर्ता ही ज्यादा दिखाई पड़े। कार्यक्रमों को सर्वदलीय आम लोगों का नहीं बनाया जा सका। चुनाव में टिकट के दावेदार जैसा शक्ति प्रदर्शन कर ताकत दिखाते हैं, वैसा ही तिरंगा यात्राओं में देखने को मिला। राष्ट्र भक्ति की भावना जागृत करने से ज्यादा इस बात पर ध्यान दिया गया कि उनकी यात्रा में कितने वाहन, लोग और तिरंगे शामिल हैं। मुझे लगता है प्रधानमंत्री मोदी की ऐसी मंशा कतई नहीं थी। इसका स्वरूप बिगाड़ दिया गया।

 *0 बंग्लादेश विवाद पर शब्दों की मर्यादा लांघ रहे नेता….* 

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– तख्ता पलट पड़ोसी देश बंग्लादेश में हुआ है और नेताओं ने जंग का मैदान देश के साथ मप्र को बना रखा है। विवाद में शब्दों की मर्यादा लांघी जा रही है। शुरुआत सज्जन सिंह वर्मा द्वारा यह कहने से हुई थी कि भारत में भी हालात ऐसे बन रहे हैं कि प्रधानमंत्री निवास में लोग घुस जाएंगे। यह बयान गैरजरूरी था। राजनीतिक तौर पर इसकी खूब आलोचना हुई। मामला शांत हुआ तो प्रदेश सरकार के ताकतवर मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने ऐसा कहने वाले नेताओं की तुलना खटमल और मच्छरों से कर डाली। विवाद फिर बढ़ गया। सज्जन वर्मा कहां चुप रहने वाले थे। उन्होंने ‘एक मच्छर … बना देता है’ बोलते हुए तंज कसा कि समझने वाले को इशारा काफी है। सवाल है कि क्या सज्जन और कैलाश जैसे वरिष्ठ नेताओं को ऐसी भाषा और शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिए। ऐसा नहीं है कि भारत में बंग्लादेश जैसे हालात बनने वाले बयान सिर्फ कांग्रेस नेताओं ने दिए। भाजपा के एक विधायक पन्नालाल शाक्य ने भी ऐसा ही कुछ कह डाला। उन्होंने कहा कि अब लोगों में देश भक्ति नहीं रही। कोई अपने घर में भगत सिंह नहीं चाहता, सभी अपने बच्चों को डाक्टर, इंजीनियर बनाना चाहते हैं। उन्होंने भी कह डाला कि भारत में बंग्लादेश जैसे हालात बन सकते हैं। उनके बयान पर भी कांग्रेस के भूपेंद्र गुप्ता ने भाजपा से जवाब मांग लिया है।

 *_0 कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जान फूंक पाएंगे पटवारी….!_* 

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– कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी भंवर जितेंद्र सिंह द्वारा बार-बार घोषित तिथि पर प्रदेश कांग्रेस की कार्यकारिणी का गठन नहीं हो सका, उनकी घोषणाएं खोखली साबित हुईं, बावजूद इसके पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी बिना टीम के कार्यकर्ताओं में जान फूंकने और जोश भरने की ईमानदार कोशिश करते नजर आ रहे हैं। उनकी अगुवाई में प्रदेश भर में आंदोलन की श्रंखला छेड़ दी गई है। खास बात यह है कि पार्टी के लगभग सभी नेता इन आंदोलनों में एकजुट होकर शिरकत करते नजर आ रहे हैं। कार्यकर्ताओं की अच्छी खासी भीड़ जुट रही है। इंदौर, सागर, लहार, दतिया, छतरपुर के साथ उज्जैन में भी कांग्रेस का दमदार प्रदर्शन हुआ। मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के शहर उज्जैन के प्रदर्शन में खासी भीड़ जुटी। प्रदर्शनकारियों को काबू में करने के लिए पुलिस को हर जगह वाटर कैनन का प्रयोग करना पड़ा और कई जगह हल्के लाठी चार्ज की नौबत आई। इंदौर सहित कुछ शहरों के प्रदर्शनों में खुद जीतू पटवारी अन्य कार्यकर्ताओं के साथ घायल हुए। खास यह भी है कि इन प्रदर्शनों में प्रादेशिक-राष्ट्रीय के साथ स्थानीय मुद्दों को भी शामिल किया जा रहा है। पटवारी ने ऐलान किया है कि प्रदर्शनों का यह सिलसिला निरंतर जारी रहेगा। छोटे मुद्दों पर भी बड़ा आंदोलन होगा। इस अभियान से कांग्रेस कितनी ताकत अर्जित करती है, देखने लायक होगा।

 *0 ‘तू डाल डाल, मैं पात पात’ की तर्ज पर टकराहट….* 

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– बुंदेलखंड का ह्रदय स्थल सागर इस समय भाजपा के भूपेंद्र सिंह और गोविंद सिंह राजपूत के बीच टकराव को लेकर सुर्खियों में है। ये दोनों पुराने चुनावी प्रतिद्वंद्वी भी हैं। ताजा विवाद स्वतंत्रता दिवस पर उभरा। दरअसल, सामान्य प्रशासन विभाग ने जनवरी 2024 के एक आदेश में निर्देश दिए थे कि जिला पंचायत अध्यक्ष जिले की अधिक जनसंख्या वाली जनपद पंचायत में झंडा फहराएंगे। इसके तहत सागर जिला पंचायत अध्यक्ष हीरा सिंह राजपूत (गोविंद सिंह राजपूत के भाई) को 15 अगस्त पर खुरई जनपद में ध्वजारोहण करना था। यह भूपेंद्र के विधानसभा क्षेत्र में है। इस बीच खुरई जनपद अध्यक्ष जमना प्रसाद अहिरवार के एक पत्र ने खलबली मचा दी। उन्होंने विधायक और मुख्यमंत्री को पत्र लिख कर शिकायत की कि उन्हें उनके ही जनपद में ध्वजाराेहण से रोका जा रहा है। आनन-फानन सामान्य प्रशासन विभाग ने एक आदेश निकाला और निर्देश दिए कि खुरई जनपद कार्यालय में अध्यक्ष जमना अहिरवार ही ध्वजारोहण करेंगे। नतीजा, जिला पंचायत अध्यक्ष हीरा सिंह ध्वजाराेहण से वंचित हो गए। दूसरा, सुप्रीम कोर्ट द्वारा मान सिंह पटेल मामले में एसआईटी गठित करने के निर्देश पर भी ‘तू डाल-डाल, मैं पात-पात’ की तर्ज पर शह-मात का खेल जारी है। निर्देश को गोविंद अपने लिए क्लीन चिट बता रहे हैं जबकि विरोधी उन्हें घेरने की कोशिश में हैं।

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