राज-काज: तो बज सकता देश की राजनीति में मप्र का डंका….!

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राज-काज: तो बज सकता देश की राजनीति में मप्र का डंका….!

 

* दिनेश निगम ‘त्यागी’

 तो बज सकता देश की राजनीति में मप्र का डंका….!

– राजनीतिक हलकों में इस समय जो अटकलें चल रही हैं यदि वे सच साबित हो गईं तो देश की राजनीति में मध्य प्रदेश का डंका बज सकता है। यह बताने की जरूरत नहीं है कि देश की राजनीति में इस समय भाजपा का दौर चल रहा है। दो महत्वपूर्ण पद खाली भी हैं। जिन पर नेताओं का चयन भाजपा नेतृत्व को करना है। पहला, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का टल रहा चुनाव कभी भी हो सकता है और दूसरा, जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद से उप राष्ट्रपति का पद खाली है। इसके लिए भी चुनाव की तैयारी आयोग ने शुरू कर दी है। इन दोनों पदों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर जो नाम चल रहे हैं, उनमें दो मप्र के दिग्गज नेताओं के भी हैं। इनमें एक हैं केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान और दूसरे कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत। शिवराज 16 साल से ज्यादा समय तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं। खबर है कि भाजपा अध्यक्ष के लिए उनका नाम गंभीरता से चल रहा है। आरएसएस भी उनके समर्थन में बताया जा रहा है। दूसरे थावरचंद पार्टी का दलित चेहरा हैं और भाजपा की राजनीति में लगातार पॉवर में रहे हैं। गहलाेत का नाम उप राष्ट्रपति पद के लिए चल रहा है। सोचिए, यदि भाजपा अध्यक्ष और उप राष्ट्रपति पद पर इन नेताओं को चुन लिया जाए तो देश की राजनीति में मप्र कहां पहुंच जाएगा? सूत्र बताते हैं, यह असंभव नहीं, संभव हो सकता है।

 तो नए तेवर, कलेवर में दिखाई देगी प्रदेश भाजपा….

Countdown Begins

– प्रदेश भाजपा के नए सरदार हेमंत खंडेलवाल पद संभालने के बाद से ही कुछ नया करते दिखाई पड़ने लगे हैं। उनके प्रयासों की तारीफ होने लगी है। इन पर अमल हो जाए तब ही ये प्रयास सार्थक माने जाएंगे। एक निर्णय में तय किया गया है कि प्रदेश कार्यालय में हर दिन एक मंत्री जरूर बैठेगा। मंत्री न केवल कार्यालय में बैठकर लोगों से मुलाकात करेंगे, बल्कि प्रमुख विषयों पर सरकार का पक्ष भी रखेंगे। इस पहल का उद्देश्य संगठन और सरकार के बीच बेहतर समन्वय और कार्यकर्ताओं की समस्याओं का त्वरित समाधान करना है। एक-दो बार पहले भी ऐसा निर्णय लिया जा चुका है, कुछ दिन मंत्री आए भी लेकिन बाद में व्यवस्था ठप हो गई। एक अन्य निर्णय में खंडेलवाल ने तय किया है कि वे खुद कार्यकर्ताओं से सोमवार और मंगलवार को मिलेंगे तािक नेता-कार्यकर्ता हर रोज प्रदेश कार्यालय का चक्कर न लगाएं। वे कह चुके हैं कि नेता भोपाल में चक्कर लगाने की बजाय क्षेत्र में ज्यादा समय दें। उन्होंने जिला अध्यक्षों से भी कहा है कि वे कार्यालय में सातों दिन न बैठें। जिला कार्यालय पर रहने के लिए दो दिन तय करें और बाकी दिनों में जिले में प्रवास के कार्यक्रम बनाएं। साफ है कि खंडेलवाल के अंदर व्यवस्था में सुधार की ललक है। वे अनुशासन पर भी लगातार जोर दे रहे हैं। उनकी योजना पर अमल हुआ तो प्रदेश भाजपा नए कलेवर और तेवर में दिख सकती है।

 

* सीएम, डिप्टी सीएम से भी बड़े हो गए एमएलए….

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– प्रदेश भाजपा में कुछ नेता अपनी हरकतों से पार्टी की किरकिरी कराने से बाज नहीं आते। इनकी बदौलत ही भाजपा द्वारा पचमढ़ी में आयोजित प्रशिक्षण वर्ग को लेकर कहा जाता है कि यहां नेता कुछ सीखने नहीं, पिकनिक मनाने जाते हैं। ऐसे नेताओं में एक हैं इंदौर से विधायक गोलू शुक्ला। ये खुद को मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव और उप मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला से भी बड़ा समझ बैठे। यह हरकत इन्होंने उज्जैन में भगवान महाकाल के दर पर जाकर की। सावन माह में भीड़ को देखते हुए वीआईपी का गर्भगृह मेें प्रवेश प्रतिबंधित है। पर गोलू शुक्ला अपने बेटे रुद्राक्ष के साथ भस्म आरती के समय बलात महाकाल के गर्भगृह में प्रवेश कर गए। पुजारियों ने बेटे रुद्राक्ष को जाने से रोका तो उनके साथ दुर्व्यवहार किया। भस्म आरती का लाइव प्रसारण भी बंद करा दिया। खास बात यह है कि उसी दिन उप मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला और अगले दिन मुख्यमंत्री डॉ यादव के परिवार के सदस्य भी महाकाल के दर्शन करने गए लेकिन उन्होंने नियमों का पालन करते हुए नंदी हाल से ही दर्शन किए। गोलू शुक्ला यह झूठ भी बोले कि उन्होंने पांच लोगों के गर्भगृह में जाने की परमीशन ली थी, जबकि महाकाल प्रशासन ने स्पष्ट किया कि एक भी व्यक्ति की परमीशन नहीं थी। क्या इस तरह महाकाल प्रसन्न होते हैं और क्या विधायक के खिलाफ कोई कार्रवाई हो पाएगी?

* ज्योतिरादित्य को लेकर नहीं थम रही खींचतान….*

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– कांग्रेस से भाजपा में आए केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को लेकर पार्टी के अंदर खींचतान कम नहीं हो पा रही है। इसका सबसे ज्यादा असर चंबल-ग्वालियर अंचल में देखने को मिल रहा है और बुंदेलखंड सहित उन क्षेत्रों में भी, जहां सिंधिया समर्थक कुछ नेता ताकतवर हैं। चंबल-ग्वालियर अंचल में पहले से स्थापित नेता हैं विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंंह तोमर, दूसरे सिंधिया भाजपा के साथ तालमेल बनाने की कोशिश में हैं। क्षेत्र में विकास के कार्यों को लेकर श्रेय की होड़ लगती है। इसे लेकर सिंधिया की ग्वालियर सांसद भरत सिंह कुशवाह के साथ भी विवाद की खबरें आ चुकी हैं। वजह यह भी है कि सिंधिया और उनके समर्थक हर अवसर पर कहते हैं कि यह काम सिंधिया की बदौलत हुआ। मुरैना के एक कार्यक्रम में नरेंद्र सिंह तोमर द्वारा की गई टिप्पणी को इसी गुटबाजी से जोड़ कर देखा जा रहा है। उन्होंने किसी का नाम लिए बिना कहा कि ‘गांवाें में सड़क, बिजली और नल जल जैसी योजनाएं पहुंच रही हैं, लेकिन यह मेरे या मुरैना सांसद के कारण नहीं आई हैं। यह सभी भाजपा सरकार की नीतियाें और योजनाओं का परिणाम हैं।’ मतलब साफ है कि इनके लिए सिंधिया अथवा मुरैना के सांसद श्रेय लेने के हकदार नहीं हैं। तोमर यहीं नहीं रुके, उन्होंने बिना नाम लिए सिधिंया पर तंज कसा कि ‘कुछ नेता कहते हैं कि मैं लाया, मैं लाया लेकिन उन्हें अपने आप से ही फुर्सत नहीं मिलती।’

 

* लीजिए, मप्र पुलिस में भी हो गई ‘हिंदुत्व’ की एंट्री….*

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– अब तक पुलिस थाना परिसरों में हनुमान जी के मंदिर देखे-सुने थे। प्रदेश के वरिष्ठ आईपीएस एडीजी (प्रशिक्षण) राजाबाबू सिंह इससे चार कदम आगे बढ़ गए। उनके एक फरमान से विवाद बढ़ सकता है। उन्होंने प्रदेश पुलिस में भर्ती नए आरक्षकों को प्रशिक्षण के दौरान रामचरित मानस (रामायण) का पाठ करने को कह दिया। राजाबाबू सिंह के सुझाव का दबी जुबान से पुलिस में ही विराेध होने लगा है। उन्हें सनातनी आईपीएस भी कहा जाने लगा है। यह भी कि पहली बार पुलिस में ‘हिंदुत्व’ की एंट्री कराई जा रही है। पुलिस में हर धर्म, समाज के लोग भर्ती होते हैं। ऐसे में हर काेई रामायण का पाठ कैसे कर सकता? वैसे भी अयोध्या के राम मंदिर और जयश्री राम के नारे को हिंदुत्व से जोड़ कर देखा जाता है। ऐसे में पुलिस को रामचरित मानस का पाठ करने के लिए कहना हिंदुत्व से ही जोड़ कर देखा जाएगा। सिंह ने ट्रेनिंग लेने पहुंचे आरक्षकों से कहा था कि ‘भगवान राम ने 14 साल का वनवास स्वीकार किया था। भगवान जब माता-पिता की आज्ञा मानने के लिए 14 साल वन में रह सकते हैं तो आप अपने ट्रेनिंग के लिए घर-परिवार से दूर नहीं रह सकते। मेरा सुझाव है कि जो नए आरक्षक हैं वे रोज सोने से पहले रामचरितमानस का पाठ करें।’ बकौल सिंह उन्होंने यह बात ट्रांसफर मांगने वाले आरक्षकों के संदर्भ में कही थी।