राज-काज: अपने खराब कर रहे छवि, संगठन का चाबुक बेअसर….

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राज-काज: अपने खराब कर रहे छवि, संगठन का चाबुक बेअसर….

Bjp

– प्रदेश में विपक्ष से ज्यादा भाजपा और सरकार की छवि पार्टी के अपने विधायक ही खराब करने पर आमादा हैं। इससे अनुशासित पार्टी का दावा करने वाली भाजपा की छवि तार-तार है। पार्टी में अनुशासन तोड़ने वालों पर संगठन का चाबुक बेअसर साबित हो रहा है। नतीजा, विधायक बेलगाम हैं और संगठन-सरकार की छीछालेदर हो रही है। ऐसे कुछ विधायकों के बयानों की बानगी देखिए। शिवपुरी में प्रीतम लोधी ने एक मंत्री पर निशाना साधा और प्रशासन पर कई गंभीर आरोप जड़ दिए। भाजपा ने तलब किया तो कह दिया कि मुझे गुलामी पसंद नहीं, ज्यादा दबाव बनाया तो नरेंद्र मोदी से मिलूंगा। मऊगंज के विधायक प्रदीप पटेल ने गंभीर आरोप लगा दिया कि शराब ठेकेदारों के सामने पूरी सरकार दंडवत है। कालापीपल के विधायक घनश्याम चंद्रवंशी ने काम को लेकर सवाल करने पर एक नागरिक को पुलिस से पकड़वा कर जेल की हवा खिला दी। चिंतामणि मालवीय को विधानसभा में सिंहस्थ से जुड़ी जमीन का मामला उठाने पर नोटिस दे दिया। उन्होंने कहा कि उन्होंने कुछ गलत नहीं किया। ये तो कुछ बानगी हैं। इनके अलावा महापौर और छोटे नेता तक ऐसे बयान दे रहे है जिससे भाजपा और उसकी सरकार की छवि प्रभावित हो रही है। विडंबना यह है कि प्रदेश अध्यक्ष, संगठन महामंत्री की नसीहत का इन बयानवीरों पर कोई असर नहीं पड़ रहा है।

*0 भाजपा-कांग्रेस में नहीं दिखाई देता कोई दूसरा ‘सलूजा’….!*

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– किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता नरेंद्र सलूजा इतनी जल्दी दुनिया को अलविदा कह सकते हैं। पर ऐसा हो गया। उनके अचानक जाने से सिर्फ सलूजा परिवार पर ही दु:ख का पहाड़ नहीं टूटा, उन्हें जानने वाला हर सख्श सदमे में है। सलूजा कांग्रेस में रहे हों या भाजपा में, उन्होंने हर जगह अपने काम की अमिट छाप छोड़ी। कांग्रेस में थे तो भाजपा और सरकार परेशान परेशान थे, भाजपा में आए तो कांग्रेस की नाक में दम कर रखा था। कांग्रेस में वे कमलनाथ के मीडिया समन्वयक थे। उनके ट्वीट में इतना पैना-तीखापन होता था कि एक बार तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को कहना पड़ा था कि कॉश भाजपा के पास भी एक सलूजा होता। उन्होंने कहा था कि सलूजा की तरह काम करो भाई। शिवराज कहते थे कि देखना सलूजा का ट्वीट न आ जाए। बाद में शिवराज ने ही सलूजा को भाजपा में ज्वाइन कराया। यहां आकर वे कांग्रेस नेताओं की नाक में दम किए थे। उनका हमला बहुत तीखा होता था। यह बात कुछ लोगों को चुभ सकती है लेकिन वे ऐसा कर गए कि दोनाें तरफ सलूजा जैसा कोई दिखाई नहीं पड़ता। सलूजा बेहतरीन इंसान, यारों के यार और हंसते-हंसते सभी की मदद के लिए आतुर रहने वालों में से थे। उनकी भरपाई मुश्किल है। मीडिया जगत भी उनको कभी नहीं भुला पाएगा।

*0 निर्मला जी, दलबदल का यह राजनीतिक पाखंड क्यों….?*

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– प्रदेश की बीना विधानसभा सीट की महिला विधायक निर्मला सप्रे राजनीति में नया ही ‘चरित्र’ गढ़ रही हैं। वे दल-बदल कर सार्वजनिक तौर पर भाजपा में चली गई हैं लेकिन कहलाती कांग्रेस की ही विधायक हैं। वजह है उप चुनाव में हार का डर। देवी जी, यदि आपको इतना ही भय था और विधायकी से चिपके ही रहना चाहती थीं तो दल बदलने की नौटंकी ही क्यों की? आप खुद तमाशा बन कर रह गईं और भाजपा काे भी तमाशेबाज पार्टी बना कर रख दिया। पहले अपने बयानों के कारण तमाशा बनाया, भाजपा को दिखावटी सफाई देना पड़ी। प्रदेश भाजपा मुख्यालय में बैठक में हिस्सा लेने पहुंच गईं, मीडिया ने घेरा तो भाग खड़ी हुईं। हद तब हो गई जब भाजपा की बीना मंडल कार्यकारिणी में उनका नाम आ गया। कांग्रेस ने यह सूची जारी कर विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर से मांग कर डाली की अब निर्मला का भाजपा में जाना सिद्ध हो गया, उनकी सदस्यता समाप्त करिए। भाजपा को फिर कहना पड़ा कि पहले वाली सूची सही नहीं थी, अब जो सूची जारी हुई है, वह सही है। इसमें निर्मला सप्रे का नाम नहीं है। सच हर कोई जानता है लेकिन बचाव में झूठ बोला जा रहा है। विधायक रामनिवास रावत और कमलेश शाह भी कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में आए थे लेकिन उन्होंने इस्तीफा देकर उप चुनाव लड़ा, निर्मला की तरह राजनीतिक पाखंड का परिचय नहीं दिया।

*0 दिग्विजय जी, नाराज होने, नसीहत देने का वक्त गया….!*

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– कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह अब भी राज्यसभा सदस्य हैं और पार्टी नेतृत्व ने उन्हें अन्य जवाबदारी भी सौंप रखी हैं। बावजूद इसके पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच अब उनकी वैसी धमक नहीं, जैसी कभी रहा करती थी। पार्टी कार्यक्रमों में कई बार वे कार्यकर्ताओं काे डांटने लगते हैं। नारे लगाने से राेकने लगते हैं। सार्वजनिक तौर पर अन्य हिदायतें देते दिखाई पड़ जाते हैं। ग्वालियर में हुई संविधान बचाओं रैली को ही ले लीजिए, मंच में ज्यादा लोगों के चढ़ने और अफरा-तफरी मचने पर वे नाराज हो गए। उन्होंने घोषणा कर डाली कि अब वे कभी पार्टी कार्यक्रम में मंच पर नहीं बैठेंगे। उन्होंने बोलने के लिए बुलाया जाएगा तो मंच में जाएंगे और अपनी बात कह कर वापस आ जाएंगे। दिग्विजय को स्वीकार कर लेना चाहिए की अब उनकी नसीहत का असर पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं पर नहीं पड़ता। उनके आस-पास सिर्फ वे ही चक्कर लगाते हैं, जिन्हें चुनाव के टिकट या पद की जरूरत होती है। अन्य कार्यकर्ता और नेता उनकी कद्र नहीं करते। वे दिग्विजय को प्रदेश में कांग्रेस की दुर्दशा के लिए जवाबदार मानते हैं। लोकसभा के दो चुनाव हारने के कारण भी उनकी साख गिरी है। इसलिए अब उन्हें नाराज होना और घोषणाएं करना बंद कर देना चाहिए। शांत और शालीन रहकर ही कार्यक्रमों में हिस्सा लेना चाहिए।

*0 ‘जीतू-उमंग’ फेर रहे राहुल गांधी की उम्मीदों पर पानी….*

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– कांग्रेस नेता राहुल गांधी का प्रयोग मप्र में असफल होता दिख रहा है। उन्होंने इस उम्मीद से जीतू पटवारी और उमंग सिंघार की नई युवा जोड़ी को प्रदेश अध्यक्ष और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की जवाबदारी सौंपी थी कि इनके कारण प्रदेश का युवा वर्ग पार्टी के साथ जुड़ेगा। दोनों राहुल गांधी कैम्प से भी हैं। पर अब तक के कार्यकाल को देख कर राहुल की उम्मीद पर पानी फिरता नजर आ रहा है। प्रमुख मुद्दों पर इनके विचार मिलते ही नहीं। पुलिस महानिदेशक कैलाश मकवाना के एक आदेश को ही लीजिए, जिसमें पुलिस को सांसदों-विधायकों को सैल्यूट मारने के निर्देश दिए गए हैं। जीतू ने इसका विरोध करते हुए कहा कि इससे पुलिस का मनोबल गिरेगा। कई सांसदों-विधायकों पर गंभीर आपरािधक प्रकरण हैं। पटवारी का कहना था कि यह आदेश वापस लिया जाना चाहिए। इसके लिए उन्होंने मकवाना को पत्र भी लिखा है। दूसरी तरफ उमंग सिंघार सैल्यूट के समर्थन में खड़े हो गए। उन्होंने कहा कि यह सांसदों-विधायकों के सम्मान, अभिवादन से जुड़ा मामला है। वे बोले कई अधिकारियों पर भी प्रकरण रहते हैं लेकिन वे काम करते हैं और पुलिस उन्हें सैल्यूट मारती है। इस तरह सैल्यूट को लेकर दोनों आपस में भिड़े हुए हैं। इससे यह भी पता चलता है कि दोनों में आपसी संवाद नहीं है वर्ना बात कर आपसी सहमति बना लेते।

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