राज-काज:यह भाजपा के साथ पींगे बढ़ाने का नतीजा तो नहीं….!
– अंतत: बीरबल की खिचड़ी की तरह हाईकमान की हाड़ी में चढ़ी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी की कार्यकारिणी पक गई। उनकी नियुक्ति के पूरे 10 माह बाद उसका स्वाद मिला लेकिन कसैला हो गया। खास यह है कि टीम में दिग्विजय के बेटे जयवर्धन, अरुण यादव के भाई सचिन, कांतिलाल भूरिया के बेटे विक्रांत को जगह मिली है। ये सभी विधायक हैं। इनके अलावा कुणाल चौधरी, विपिन वानखेड़े जैसे कई युवाओं को चुनाव हारने के बावजूद मौका मिला है। किसी को जगह नहीं मिली तो वे हैं वरिष्ठ नेता कमलनाथ के बेटे नुकलनाथ। इसे लेकर कांग्रेस में एक वर्ग नाराज है तो भाजपा मजे ले रही है। जीतू को सफाई देना पड़ रही है, जो किसी के गले नहीं उतर रही। पार्टी का एक वर्ग कह रहा है कि इसकी वजह यह तो नहीं कि लोकसभा चुनाव से पहले कमलनाथ और उनके बेटे भाजपा के साथ दोस्ती की पींगे बढ़ा रहे थे, इसलिए वे पार्टी का भरोसा खो बैठे। दूसरा, यह भी कहा जा रहा है कि कमलनाथ अपने कार्यकाल में जीतू को तवज्जो नहीं देते थे, उन्होंने इसका बदला ले लिया। इधर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा ने तंज कसा कि ‘कमलनाथ का क्या हुआ? उनके बेटे का क्या हुआ? छिंदवाड़ा की जनता ने तो नकार दिया था, अब कांग्रेस ने भी नकार दिया।’ जीतू का जवाब आया, ‘नकुल जी पॉलिटिकल अफेयर्स कमेटी में हैं।’
*0 कांग्रेस छोड़ गलती तो नहीं कर बैठे पचौरी जी….!*
– भाजपा में जाकर वरिष्ठ नेता सुरेश पचौरी ‘घर के रहे न घाट के।’ कांग्रेस में थे तो हर स्तर पर सम्मान था, जबकि भाजपा में जाने के बाद आए दिन अपमान के घूंट पीना पड़ रहे हैं। पहले कुछ कार्यक्रमों के वीडियो वायरल हुए, जिनमें भाजपा के कार्यक्रम में मंच पर ही नेता उन्हें पीछे धकेलते दिखाई पड़ रहे थे, लेकिन कोई हस्तक्षेप नहीं कर रहा था। अब बुदनी और विजयपुर उप चुनाव के लिए भाजपा स्टार प्रचारकों की सूची जारी हुई तो उसमें भी उन्हें स्थान नहीं मिला। कांग्रेस में कुछ न रहते हुए भी सूची में वरिष्ठता क्रम में प्रमुखता से स्थान पाते थे, जबिक अब नाम ही नदारद। यह स्थिति तब है जब उनके प्रभाव वाले मध्य भारत की बुदनी विधानसभा सीट के लिए उप चुनाव हो रहा है। बुदनी से सटी भोजपुर सीट से पचौरी दो चुनाव लड़ चुके हैं। स्टार प्रचारकों की सूची में नाम न देखकर पचौरी को धक्का लगा होगा, पर कहावत है कि ‘अब पछताए होत का जब चिड़िया चुग गई खेत।’ कांग्रेस में पचौरी को गांधी परिवार का वरदहस्त प्राप्त था। वे केंद्रीय मंत्री के साथ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहे हैं और राज्यसभा में रहने का रिकार्ड बनाया है। लोकसभा और विधानसभा के चुनाव में वे अपने समर्थकों को टिकट दिलाते रहे हैं, जबकि भाजपा में जाने के बाद स्टार प्रचारकों की सूची तक में नाम नहीं। उनके समर्थक ही कह रहे हैं, पचौरी जी कांग्रेस छोड़ कर गलती कर बैठे!
*0 क्या बुदनी में अमर्यादित थी कार्तिकेय की भाषा….?*
– बीते दो दशक से प्रदेश की राजनीति में केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान से दाे-दो हाथ करते रहे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह इस बार उनके बेटे कार्तिकेय सिंह से उलझ गए। वजह बना कार्तिकेय के भाषण का एक वायरल वीडियो। इसमें बुदनी से भाजपा प्रत्याशी के समर्थन में सभा को संबोधित करते हुए वे कहते दिखाई पड़ रहे हैं कि ‘यदि यहां से कांग्रेस का प्रत्याशी जीता तो विकास के नाम पर किसी गांव में एक ईट भी नहीं लगेगी।’ उन्होंने सरपंच से कहा कि ‘ हम अपने पैरों पर क्यों कुल्हाड़ी मारें? अगर, कांग्रेस का विधायक जीत गया, तो हम किस मुंह से हमारे मुख्यमंत्री या केंद्रीय कृषि मंत्री से काम करवाने जाएंगे?’ लोकतंत्र में उनका यह बयान सही नहीं ठहराया जा सकता, संभवत: इसीलिए दिग्विजय ने कार्तिकेय को नसीहत दे डाली। उन्होंने सलाह दी कि ‘ चुनावी मंच से मर्यादित भाषा का उपयोग करें और अपने पिता से सीख लें, जो लोकतंत्र की मर्यादा का पालन करते आए हैं।’ कार्तिकेय ने इस नसीहत का भी जवाब दिया और कहा कि आप मेरे चाचा हैं लेकिन आपके 10 साल के कार्यकाल में ऐसा कुछ नहीं हुआ जिससे कुछ सीखा जा सके। सवाल है कि चुनाव में जब नेता अपने बयानों में मर्यादा की सारी सीमाएं लांघते हैं, ऐसे में क्या कार्तिकेय की भाषा अमर्यादित थी। कार्तिकेय ने किसी के लिए अपशब्द नहीं कह तो उन्हें मर्यादा का पाठ क्यों?
*0 भाजपा की राह में रोड़ा बन खड़े हो गए राजेंद्र….!*
– बुदनी केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान का गृह क्षेत्र है और गढ़ भी। लंबे समय बाद यहां से वे मैदान में नहीं हैं। उप चुनाव में भाजपा ने पूर्व सांसद रमाकांत भार्गव को मौका दिया है। इसके साथ भाजपा के अंदर असंतोष फूट पड़ा। पार्टी की राह में रोड़ा बन गए हैं पूर्व विधायक राजेंद्र सिंह राजपूत। उनकी नाराजगी बेवजह नहीं है। 2005 में जब शिवराज मुख्यमंत्री बने थे, तब राजेंद्र ही बुदनी से विधायक थे। उन्होंने इस्तीफा देकर सीट खाली की थी। 2006 का उप चुनाव जीत कर शिवराज विधानसभा पहुंचे थे। अब शिवराज ने इस्तीफा दिया तो पहला हक राजेंद्र सिंह का ही बनता है। नाराजगी इस बात की है कि शिवराज ने उनका समर्थन नहीं किया। रमाकांत का दावा अपनी जगह है, क्याेंकि उनका टिकट काट कर शिवराज को विदिशा लोकसभा सीट से टिकट दिया गया। लेकिन, रमाकांत बुदनी क्षेत्र से नहीं है। लिहाजा, राजेंद्र ने विरोध का झंडा उठा लिया है। पहले वे शिवराज द्वारा बुलाई बैठक में नहीं गए। फिर भैरूंदा में समर्थकों की बैठक बुलाई। विधानसभा प्रभारी पूर्व मंत्री रामपाल सिंह विरोध के कारण यहां पूरा भाषण नहीं दे पाए। समर्थकों ने टिकट बदलने की मांग की। चर्चा चली की बुदनी से भाजपा टिकट बदल सकती है, लेकिन भाजपा में इस तरह टिकट नहीं बदले जाते। साफ है, यदि भाजपा राजेंद्र को नहीं मना पाई तो वे मुसीबत बन सकते हैं।
*0 महिला विधायक, जो पार्टी का नाम बताने से डरती हैं….*
– प्रदेश में एक महिला विधायक ने खुद को ऐसी स्थिति में ला खड़ा किया है कि उन्हें अपने दल का नाम बताने में भी डर लगता है। ये हैं बीना विधानसभा क्षेत्र की निर्मला सप्रे। वे कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंची हैं, लेेिकन लोकसभा चुनाव के दौरान पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हो गईं। मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने उन्हें बाकायदा भाजपा का गमछा डाल कर पार्टी में शामिल किया था। कांग्रेस ने विधानसभा में उनकी सदस्यता समाप्त करने के लिए नोटिस दिया। विधानसभा सचिवालय द्वारा उनसे स्थिति स्पष्ट करने को कहा तो उन्होंने जवाब दिया कि वे कांग्रेस में ही हैं। उन्होंने दल बदल नहीं किया है। अचानक शनिवार को वे भाजपा के प्रदेश कार्यालय में संगठन पर्व पर आयोजित कार्यशाला में हिस्सा लेने पहुंच गईं। मीडिया उनकी ओर लपका और सवाल किया कि आप किस दल में हैं? निर्मला से जवाब देते नहीं बना। उन्होंने कहा कि अभी वे जल्दी में हैं बाद में बताएंगी और कार्यशाला को बीच में छोड़कर चली गईं। साफ है कि वे तय नहीं कर पा रहीं कि क्या करें? भाजपा में रहती हैं तो उप चुनाव लड़ना पड़ेगा, जहां हार का डर है और कांग्रेस अब उन पर भरोसा करने तैयार नहीं। नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार का कहना है कि निर्मला के लिए कांग्रेस के दरवाजे बंद हैं। हम उनकी सदस्यता समाप्त कराने कोर्ट जा रहे हैं।
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