मोदी-3 में सरकार और विपक्ष 

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मोदी-3 में सरकार और विपक्ष 

भारत में लोक सभा का चुनाव विश्व में प्रजातंत्र का सबसे बड़ा महापर्व बन चुका है।अरस्तू के दर्शन के अनुरूप यहाँ गाँव की चौपाल से देश की राजधानी तक राजनीति हावी रहती है। लोक सभा में चुनाव परिणाम आने के बाद सभी वर्गों के लोग बहुत वाचाल हो उठे हैं। टीवी और सोशल मीडिया के कारण अधिकांश लोग भारत के सभी राज्यों की राजनीति से भलीभाँति परिचित हो चुके हैं। विभिन्न क्षेत्रों तथा पूरे देश के समग्र परिणामों की व्याख्या लोग तथा राजनीतिक विश्लेषक अपनी-अपनी तरह से कर रहे हैं।

प्रथम तथ्य यह है कि बीजेपी अपने बूते पर बहुमत से 32 सीटें पीछे रह गई है, जबकि पिछले दो आम चुनावों में उसे स्पष्ट बहुमत प्राप्त हुआ था।दूसरा तथ्य यह है कि एनडीए को बहुमत प्राप्त हो गया है जो चुनाव पूर्व का गठबंधन है। इस बहुमत के आधार पर नरेंद्र मोदी पुनः तीसरी बार प्रधानमंत्री बन गये हैं। तीसरा महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि 234 सीटें लेकर इंडिया गठबंधन तथा कांग्रेस एक शक्तिशाली विपक्ष के रूप में एक दशक के बाद उभर कर आये हैं।

बीजेपी को पूर्ण बहुमत न मिलने से अनेक प्रश्न उपस्थित हुए हैं। पिछले एक दशक में रोज़गार उपलब्ध कराने की मोदी की घोषणा पूरी नहीं हुई है। ग्रामीण तथा शहर के शिक्षित और और अशिक्षित युवा रोज़गार के लिए भटक रहे हैं। यद्यपि भारत ने आर्थिक प्रगति का विश्व में कीर्तिमान बनाया है, परंतु यह प्रगति अधिक रोज़गार उत्पन्न नहीं कर सकी है। किसानों की बढ़ती अपेक्षाएं भी पूरी नहीं हुई हैं। मोदी की 400 पार की गर्वोक्ति को विपक्ष ने संविधान बदल कर अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग के आरक्षण को समाप्त करने का उत्तर प्रदेश में सफल प्रोपेगंडा किया। यद्यपि बीजेपी को पूर्वी और दक्षिणी क्षेत्रों में कुछ सफलता मिली है , परन्तु उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, हरियाणा और बंगाल के उसके ख़राब प्रदर्शन ने उसे बहुमत से दूर कर दिया।

परिणामों के तुरंत बाद विपक्षी दलों और कुछ टिप्पणीकारों ने मोदी-3 की सरकार को एक कमज़ोर सरकार बताते हुए इस गठबंधन की सरकार को कभी भी गिर जाने वाली सरकार बताया है। उनकी यह घोषणा सही प्रतीत नहीं होती है। चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार में से कोई अकेले मोदी को धमका नहीं सकता है। दोनों मिलकर भी मोदी सरकार को गिराने में शायद ही सफल हों सकें। राजनीति की सामान्य समझ यह बताती है कि ये दोनों नेता अपनी राजनैतिक संध्या में मोदी सरकार से अधिक लाभ सम्भावित इंडिया सरकार में नहीं प्राप्त कर सकते हैं। प्रारंभ में उनकी बहुप्रचारित अतिरंजित माँगे पूरी न होने पर भी उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।

मोदी अपनी पुरानी कोर कैबिनेट के साथ कमोबेश पुराने तरीक़े से ही कार्य करते रहेंगे। मोदी सरकार अपना पाँच वर्ष का कार्यकाल पूरा करेगी और यह कार्यकाल तभी कम हो सकता है जब मोदी स्वयं मध्यावधि चुनाव की घोषणा कर दें। 241 सीटें लेकर बीजेपी एनडीए गठबंधन में मज़बूत स्थिति में है , तथा उसकी स्थिति पूर्व के गठबंधनों के समान के कमज़ोर नहीं है। मोदी यथावत एक सर्वोच्च राष्ट्रीय नेता के रूप में बने रहेंगे। मोदी की अंतरराष्ट्रीय छवि पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि यह छवि उभरते भारत की शक्ति और स्वीकार्यता पर आधारित है, जिसे मोदी ने दमदार तरीक़े से अंतरराष्ट्रीय पटल पर प्रस्तुत किया है।

फिर भी सब कुछ पूर्व के समान नहीं है।मोदी की संसद की राह कांटों से भरी होगी। वहाँ मोदी पूर्व के समान अपनी दीप्ति नहीं बिखेर सकेंगे। मनपसंद विधेयक पास कराना उनके लिए टेढ़ी खीर होगी। बिना संसदीय समिति की छानबीन के किसी विधेयक का पारित होना संभव नहीं है। सरकार के मुखिया के नाते मोदी कोई एकतरफ़ा चौंकाने वाली घोषणाएँ नहीं कर सकेंगे। संसद, सरकार और पार्टी में आम सहमति का महत्व बढ़ेगा। राहुल गांधी ने चुनाव परिणाम आते ही स्टॉक एक्सचेंज के सामान्य उतार चढ़ाव को एक स्कैम बता कर अपनी मंशा घोषित कर दी है। विपक्ष दिन प्रतिदिन की घटनाओं पर सरकार को घेरेगा। प्रजातंत्र की मंशा भी यही है। फिर भी विपक्ष को मोदी से घृणा के स्थान पर मुद्दों के आधार पर विरोध करना चाहिए, अन्यथा मतदाताओं का उससे मोहभंग भी हो सकता है।

अपनी स्वतंत्रता के 77 वर्ष में भारतीय प्रजातंत्र की जड़ें मज़बूत और परिपक्व हुई हैं। लोक सभा के प्रत्येक आम चुनाव ने इस देश को नया ऐतिहासिक मोड़ दिया है, और 2024 भी इसका अपवाद नहीं होगा।