लोगों को चिंता, डर,अवसाद के चलते जान देने से बचाओ सरकार, ताकि जागरूक हों लोग जिंदगी जी सकें निडर होकर …

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कोरोना की तीसरी लहर के डर यानि ओमिक्रॉन के संभावित कहर से डरकर छतरपुर के एक कपड़ा कारोबारी ने जहर खाकर खुदकुशी करने का प्रयास किया है। ओमिक्रॉन की आशंका से पहले कारोबारी कोरोना की पहली और दूसरी लहर के कारण जर्जर हो चुकी घरेलू आर्थिक स्थिति के चलते तंगहाली से गुजर रहा था।
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दो साल पहले शादी हुई थी और एक बच्ची भी है, जिनके भविष्य को लेकर कारोबारी की चिंता का सागर उसके सिर के ऊपर तक बहने लगा था। और यह चिंता चिता से भयावह हो गई और कारोबारी जहर पीकर मौत को गले लगाने पर मजबूर हो गया। कुछ इसी तरह की खबरें और भी हैं। यह स्थितियां कोरोना की भयावह स्थितियों, पहली और दूसरी लहर में कोरोना का शिकार होने के चलते हुई मौतों और लॉकडाउन के चलते बदतर आर्थिक स्थितियों से जूझने के लिए मजबूर हुए कारोबारियों, मजदूरों और सभी वर्ग के लोगों की मानसिक दशा की कमजोरी का परिणाम हैं।
ऐसे समय में जहां सरकार जनवरी में कोरोना की तीसरी लहर के पीक पर होने की आशंका में बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्थाओं में जुटी है, तो सरकार को अब ऐसे काउंसलर्स, मनोचिकित्सक की मदद लेकर खुदकुशी जैसे विचारों से आत्मसात होने की कगार तक अवसाद में पहुंच चुके लोगों के इलाज की व्यवस्था करने की भी जरूरत है। वरना आज छतरपुर के कारोबारी ने गलत कदम उठाया है तो कल दूसरे लोग भी इसी तरह के मानसिक अवसाद के चलते इस तरह के कदम उठा सकते हैं।
कोरोना की दो लहरों का कहर और आर्थिक दुर्दशा से जूझ रहे लोग पहले तनाव और फिर अवसाद में पहुंच चुके हैं, ऐसे में जरूरी है ऐसे लोगों को जागरूक करने की। ताकि वह आत्महत्या जैसा कदम उठाने से पहले अपनी बीमारी को जान सकें या अपने करीबी के व्यवहार में परिवर्तन देखकर उसके आसपास के लोग अवसाद के शिकार ऐसे व्यक्ति को मनोचिकित्सक के पास लेकर जाएं और उसका इलाज करा सकें। और व्यक्ति खुदकुशी का विचार त्याग कर यह सोचने में सक्षम हो सके कि मनुष्य के रूप में जब तक सांस चले तब तक निडर होकर वह अपना कर्म करता रहे।
लोगों को चिंता, डर,अवसाद के चलते जान देने से बचाओ सरकार, ताकि जागरूक हों लोग जिंदगी जी सकें निडर होकर ...
हमने बात की राजधानी की प्रसिद्ध मनोचिकित्सक डॉ. रूमा भट्टाचार्य से और जानने की कोशिश की, कि इस तरह की घटनाओं की वजह क्या है और समाधान किस तरह संभव है। डॉ. भट्टाचार्य के मुताबिक लोगों ने कोरोना की दो लहर में अपने परिवार के सदस्यों को खोया है। लोगों का कारोबार चौपट हुआ है।
खुद के परिजनों या करीबी लोगों का जाना लोगों में तनाव की बड़ी वजह रहा है। कई लोग उस बुरे दौर की यादों में डूबकर नकारात्मक सोच और अवसाद का शिकार हैं। भविष्य को लेकर चिंता और आर्थिक तंगी भी अवसाद की वजह है। और सबसे बड़ी वजह यह है कि लोगों को पता नहीं चल पाता कि वह अवसाद का शिकार हो चुके हैं और यह भी बीमारी है जिसका इलाज संभव है। मामला गंभीर हो जाता है और लोगों की जीने की इच्छा खत्म हो जाती है।
इंडियन साइकेट्रिक सोसायटी की इलेक्टेड डायरेक्ट काउंसिल मेंबर भट्टाचार्य का कहना है कि वह स्कूल मेंटल हेल्थ, यूथ मेंटल हेल्थ, वुमन मेंटल हेल्थ और पब्लिक एजुकेशन एंड अवेयरनेस कमेटी की नेशनल हेड हैं। और वह राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास कर रही हैं कि लोगों में जागरूकता आए।
जीवन में जब चुनौतियां आती हैं तो कुछ लोग मस्तिष्क के ओपन मैकेनिज्म के चलते इनका सामना करने में सक्षम होते हैं तो कुछ लोग इनका सामना नहीं कर पाते। ऐसा नहीं है कि चुनौतियों का सामना न कर पाने वाले लोगों की विल पावर कम है।
बल्कि ऐसा उनके मस्तिष्क के रासायनिक असंतुलन की वजह से होता है। इसे पोस्ट ट्रॉमेटिक साइकेट्रिक डिसऑर्डर कहें, या स्लीप डिसआर्डर, एंग्जाइटी डिसऑर्डर या फोबिया… लेकिन यदि किसी तरह का व्यवहार परिवर्तन यानि नकारात्मकता, ज्यादा सोचना, कम बोलना या चिडचिड़ापन वगैरह तो परिजनों, करीबियों को ऐसे व्यक्ति को डॉक्टर तक पहुंचाना चाहिए ताकि उसका इलाज हो सके। सामान्य तौर पर व्यक्ति बीमारी के चलते मरता है लेकिन अवसाद में पहुंचा व्यक्ति खुद ही अपनी जान लेने पर आमादा हो जाता है, जिसे समय रहते ध्यान दिया जाए तो बचाया जा सकता है।
डॉ. भट्टाचार्य का कहना है कि जिस तरह सरकार कोरोना के इलाज के लिए व्यवस्था कर रही है, उसी तरह सरकार को अवसाद में पहुंचे लोगों के इलाज के लिए पॉलिसी लानी चाहिए। जिससे लोगों को अवसाद के प्रति जागरूक किया जा सके और खास तौर पर 18-40 वर्ष के युवाओं को खुदकुशी कर मौत को गले लगाने से बचाया जा सके। यह चिंता की बात है कि दुनिया में दूसरी बीमारियों से ज्यादा हर 40 सेकंड में एक व्यक्ति अवसाद के चलते मौत को गले लगा रहा है तो भारत में हर 38 सेकंड में।
यह दुर्भाग्यजनक स्थिति है कि मानसिक बीमारियों के इलाज की समुचित व्यवस्था का देश-प्रदेश सभी जगह अभाव है। जब कोई सुशांत सिंह राजपूत या हाईप्रोफाइल व्यक्ति आत्महत्या करता है तो चर्चा का बाजार गर्म होता है कि मानसिक अवसाद से बाहर लाने के लिए बहुत कुछ करना बाकी है, पर समय जाते चर्चा भी पंख लगाकर उड़ जाती है।
तो सरकार कोरोना काल में तीसरी लहर से इलाज की चाक-चौबंद व्यवस्थाएं करने के लिए आपका शुक्रिया। लेकिन तनाव में गले-गले तक डूब चुकी युवा, प्रौढ़ और बुजुर्ग आबादी को अवसाद से बाहर लाने की व्यवस्था भी कीजिए सरकार। कोरोना की तीसरी लहर की तुलना में बहुत कम बजट में लोगों को अवसाद से बाहर निकालकर मौत से बचाया जा सकता है। जागरूकता की भी व्यवस्था हो और इलाज की भी, ताकि लोग कोरोना की तीसरी लहर के डर से जहर पीकर या दूसरे तरीकों से खुद और परिवार को आत्महत्या कर मौत का शिकार न हो सकें। मनुष्य होने के नाते इतनी हिम्मत रख सकें कि अंतिम सांस तक अपना कर्म करेंगे, स्थितियां चाहे अनुकूल हों या प्रतिकूल।