Green Election : मुंबई के दो विधानसभा क्षेत्रों में ग्रीन इलेक्शन कराने में जुटे डॉ हीरा लाल!
चुनाव आयोग ने मुंबई के दो विधानसभा क्षेत्रों अणुशक्ति नगर और चेंबूर को चुनाव के लिए चुना!
मुंबई से वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक नवीन कुमार की रिपोर्ट
Mumbai : दुनिया के किसी भी देश में कोई भी चुनाव हो, उससे पर्यावरण को नुकसान होता ही है। 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव को लेकर एक अध्ययन किया गया था और उसमें चौंकाने वाली बात सामने आई थी। चुनाव प्रचार के लिए उम्मीदवारों ने जो हवाई यात्राएं की थी वो एक साल के लिए 500 अमेरिकियों के पर्यावरण बोझ के बराबर था। पर्यावरण को हुआ यह नुकसान सुर्खियों में था। इसी तरह से भारत में भी पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है। क्योंकि, उम्मीदवार हेलीकाप्टर और गाड़ियों पर तूफानी दौरे करते हैं।
सड़कों पर फ्लेक्स, कटआउट, होर्डिंग्स और प्लास्टिक की प्रचार सामग्री से पर्यावरण को सुरक्षित रखना मुश्किल हो रहा है। इसलिए भारत का निर्वाचन आयोग ग्रीन इलेक्शन पर जोर दे रहा है। महाराष्ट्र में इस समय विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं। आयोग ने ग्रीन इलेक्शन के लिए मुंबई के दो विधानसभाओं अणुशक्ति नगर और चेंबूर को चुना है। ये दोनों विधानसभा चुनाव क्षेत्र अल्पसंख्यक बहुल है और इसमें से चेंबूर का नाम पहले से ही सबसे ज्यादा प्रदूषित औद्योगिक समूहों में शामिल है।
क्योंकि, राष्ट्रीय रसायन एवं उर्वरक (आरसीएफ) परिसर से अमोनिया और नाइट्रस ऑक्साइड का अनियंत्रित रिसाव होता है। डंपिंग ग्राउंड देवनार भी यहां पर है। अणुशक्ति नगर खूबसूरत पहाड़ियों से घिरा जरूर है। लेकिन भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र, भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम, निर्माण सेवा और संपदा प्रबंधन निदेशालय, परमाणु ऊर्जा शिक्षा सोसायटी का आवासीय टाउनशिप इसी इलाके में है।
अणुशक्ति नगर और चेंबूर में ग्रीन इलेक्शन के लिए यूपी कैडर के आईएएस अफसर डॉ. हीरा लाल पर्यवेक्षक के तौर पर काम कर रहे हैं। डॉ. लाल का कहना है कि उन्होंने सबसे पहले पंजाब के 6 आनंदपुर साहिब लोकसभा चुनाव क्षेत्र के रोपर में ग्रीन इलेक्शन का प्रयोग किया था। इसमें उन्हें काफी सफलता मिली थी और मतदान का प्रतिशत भी बढ़ा था। अब अणुशक्ति नगर और चेंबूर में उसी प्रयोग को दोहराया जा रहा है।
डॉ लाल अपना अनुभव साझा करते हुए ग्रीन इलेक्शन के बारे में बताते हैं कि चुनाव की तैयारी से लेकर चुनाव कराने तक और राजनीतिक पार्टियों के प्रचार के दौरान कुछ इस तरह की गतिविधियां होती हैं जिससे कार्बन डायआक्साइड पैदा होता है जो वातावरण को खराब करता है। इसलिए हमें कुछ ऐसा करना चाहिए कि इलेक्शन की वजह से कार्बन पैदा न हो। इसमें हमलोग प्लास्टिक का प्रयोग न करें। मतदान के नाम पर हर व्यक्ति या हर वोटर एक पौधा लगाए। मुंबई जैसे शहर में जगह की कमी है। ऐसे में लोग अपने घर में गमले में पौधा लगाएं। गमले के ये पौधे चुनाव की वजह से जो कार्बन पैदा होगा उसे कम करेंगे। हमारा मकसद यही है कि चुनाव की वजह से जो कार्बन पैदा हो उसको किसी तरह से खत्म करना है।
डॉ लाल बताते हैं कि चुनाव आयोग इलेक्शन इको फ्रेंडली करना चाहता है। इको फ्रेंडली शब्द थोड़ा कठिन है। इसको लोग कम समझते हैं। इसी का नाम हमलोगों ने ग्रीन इलेक्शन रख दिया है। यह मेरी कल्पना नहीं है, चुनाव आयोग की है। इस बारे में आयोग की तरफ से 2024 और उससे पहले के चुनावों के दौरान भी गाइड लाइन जारी हुई है। ईवीएम मशीन या इसके कवर से भी पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है? इस सवाल पर डॉ लाल कहते हैं कि ग्रीन इलेक्शन से ईवीएम मशीन का कोई लेना देना नहीं है। जो मेरी समझ है कि ईवीएम से कार्बन उत्सर्जन का कोई लगाव या पोट्रेट नहीं है।
उन्होंने कहा कि मैं यह नहीं कहता कि नहीं होगा लेकिन जो मेरी समझ है ईवीएम से इसका कोई संबंध नहीं है। जहां तक इसके कवर की बात है तो इसका कवर सॉलिड है। वो सिंगल यूज के लिए नहीं है। बाद में जब वो टूट जाता है तो बड़े साइंटिफिक तरीके से इसका रीसाइकिल किया जाता है। ग्रीन गैस रीसाइकिल इस तरीके से किया जाता है कि ग्रीन गैस नहीं होता है। डॉ. लाल ग्रीन इलेक्शन को लेकर काफी सकारात्मक सोच रखते हैं। उनका कहना है कि ग्रीन इलेक्शन का मुद्दा अभी नया है। लोगों को अभी इसके बारे में पता नहीं है। इसलिए हम सबसे पहले लोगों के माइंड सेट को चेंज करने का कमा कर रहे हैं। जैसे मैं रोपर में था तो वहां गर्मी बहुत थी। 50 हजार पौधे लगा दिए गए। बाद में जब बरसात हुई तो पौधे बड़े हुए।
यह माइंड सेट दिख रहा है। लोग अच्छी तरह से इसे स्वीकार कर रहे हैं। इससे मजबूती से जुड़ रहे हैं। कितने पौधे लगे इस पर अभी ध्यान नहीं दे रहे हैं। माइंड सेट चेंज होगा तो अच्छा काम होगा। अगर पौधे नहीं भी लगे तो लोगों के दिमाग में यह आइडिया तो घुसा न। बीज तो पड़ी न। कोई जरूरी नहीं है कि बीज डाला तो तुरंत पौधा बन जाए। कभी-कभी वही बीज दो-दो साल बाद पौधा बनता है। उनका कहना है कि ग्रीन इलेक्शन हर पांच साल में होने वाले लोकसभा या विधानसभा चुनाव के दौरान ही नहीं होता है बल्कि देश में हमेशा कोई न कोई चुनाव होता रहता है। इसलिए हर एक्शन और एक्टिविटी में हमलोग ग्रीन इलेक्शन को डाल रहे हैं।
डॉ लाल चौंकाने वाली बात बताते हैं कि ग्रीन इलेक्शन के लिए किसी तरह के फंड की जरूरत नहीं है। क्योंकि, हमें मैटेरियल के लिए पैसा मिलता है। हमें मैटेरियल और प्लास्टिक बदलना है। दूसरी बात यह कि हम लोगों में पौधा लगाने की भावना पैदा कर रहे हैं। वो बहुत उत्साहित होकर कहते हैं कि जिस हिसाब से हमलोग यहां काम कर रहे हैं उससे 50 फीसद लोगों तक हमारा यह आयडिया पहुंचेगा। इसमें से कुछ लोग इम्प्लिमेंट करेंगे, कुछ लोगों के दिमाग में यह बात रहेगी और बाद में उसका असर दिखेगा। पिछले लोकसभा चुनाव में हर विधानसभा क्षेत्र में दो से पांच फीसद तक वोट बढ़ा है। यह प्रयोग के तौर पर चल रहा है।
मुंबई में पहला प्रयोग है। इसलिए यहां इसकी गति थोड़ी धीमी है। लेकिन, हमारा प्रयास जारी है। हमलोग इसको नीचे से जोड़कर ऊपर ले जाने का काम कर रहे हैं। बस्ती जिले के किसान परिवार से आने वाले डॉ. लाल ने बांदा जिले में कलेक्टर के रूप में काफी सकारात्मक काम किया है। इस समय वो सुशासन में संचार का रोल विषय पर डी. लिट कर रहे हैं। सरल, ऊर्जावान, नवाचारी, और दृढ़ निश्चयी डॉ लाल अपने ड्रीम प्रोजेक्ट मॉडल गांव जो गांधीजी के ग्राम स्वराज्य पर आधारित है के माध्यम से अपनी टीम के साथ देश के सभी गांवों को आर्थिक रूप से शक्तिशाली बनाने की दिशा में भी काम कर रहे हैं।