

Greenery on Stone : सदियों से जहाँ कोई पेड़ नहीं था,पानी नहीं था,आज वहां 40,000 पेड़ पौधों का जंगल बना दिया !
‘केसर पर्वत’ पर उगने लगी केसर
सेवा निवृत्त प्राचार्य का पाषाण पर हरियाली का पराक्रम
इंदौर से महेश बंसल की विशेष रिपोर्ट
कभी-कभी जो सोचते है वह हो नहीं पाता , जो हो जाता है वह कल्पना से परे अचम्भित करने वाला , असीम सुख देने वाला रचनाकर्म बन जाता है । इस हेतु ईश्वर को अगण्य धन्यवाद देने का मन भी हो जाता है , क्योंकि इस दुष्कर कार्य हेतु ईश्वर ने उसका चयन किया है । 25 एकड़ के क्षेत्र में फैली कंकड़ , पत्थर , मुरम की एक पहाड़ी है जिसे महाविद्यालयीन शिक्षा के लिए विश्वविद्यालय बनाने हेतु सेवा निवृत्त प्राचार्य ने खरीदा था । विश्वविद्यालय बनाने का सपना मूर्त रूप तो नहीं ले सका , लेकिन आज पाषाण की यह पहाड़ी हरियाली से आच्छादित हो गई ।
पाषाण पर पराक्रम कर देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर से 28 किलोमीटर व महू के निकट पुराने आगरा बाम्बे रोड पर “केसर पर्वत” का करिश्मा करने वाले डाँ. शंकरलाल गर्ग का बाटनी कभी विषय नहीं रहा । केमिस्ट्री के छात्र व प्राध्यापक रहे , लेकिन इस पर्वत व प्रो. गर्ग के बीच ऐसी केमिस्ट्री बनी कि केवल पर्वत को हरा-भरा ही नहीं बनाया अपितु जहाँ 45 डिग्री का टेम्प्रेचर हो जाता हैं , उस जगह ठंडे प्रदेशों में उगने वाले पौधों को भी लगाने में सफलता प्राप्त की है । काश्मीर की केसर इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है । केसर ही नहीं अपितु देश में उगने वाला प्रत्येक फल का पौधा यहां पर लगा है । अनेकों पौधों में फल भी आ रहे हैं । इस सफलता का श्रेय प्रो. गर्ग दैवीय शक्ति को देते है , उनका कहना है कि प्रारंभ में पौधे लगाने पर मिली सफलता के कारण उत्साह बढ़ता गया और नये नये पौधे लगाने की स्व-प्रेरणा मिलती रही ।
महू-मानपुर रोड पर 25 एकड़ की बंजर पहाड़ी ‘केशर पर्वत’ को हरियाली से साराबोर करने वाले पूर्व प्राचार्य डॉ. एस एल गर्ग को जैव विविधता बोर्ड ने पुरुस्कृत किया है। प्रति वर्ष दिए जाने वाले राज्य स्तर वार्षिक जैव विविधिता पुरस्कार 2021 के लिए डॉ. गर्ग का चयन व्यक्तिगत (अशासकीय) श्रेणी में द्वितीय पुरुस्कार के लिए हुआ है। पुरस्कार स्वरूप उन्हें 2 लाख रुपए, प्रशस्ति पत्र और ट्रॉफी प्रदान की जाएगी। गौरतलब है कि इस पुरुस्कार के लिए डॉ गर्ग का चयन ‘केशर पर्वत’ पर 30 हजार पौधे रोपने और विभिन्न चुनौतियों के बावजूद बंजर जमीन को सघन वन बनाने में योगदान देने के लिए किया गया है । प्रो. गर्ग का लक्ष्य अगले वर्ष तक 50 हजार पौधे रोपने का है, जिस पर कार्य सतत चल रहा है।
विध्न विनाशक भगवान गणेश जी की प्रतिमा के ऊपर विधारा लता से शेड बनाया है , साथ ही आसपास गणपति जी को प्रिय सुगंधित केवडा़ , सफेद आंकडा़, रूद्राक्ष के पौधे लगा रखे है । सम्मुख में एक एकड़ में बनाया गया तालाब है । पर्वत में प्रवेश करते ही बुद्ध प्रतिमा आकर्षित करती है । लेमन ग्रास की चारदिवारी के ऊपर करेले की बेल चढा़ रखी हैं । कहते है करेले की बेल के नीचे मेडीटेशन करने से डायबिटीज के रोगी लाभान्वित होते हैं । जैतून , शीशम, बांस , देवदार , चीढ़, चंदन , ड्रेगान फ्रूट जैसे अनेक किस्म के पौधे प्रथक-प्रथक समूह में लगाए है । 3 साल पूर्व 60 फीट गहरा कुंआ खुदवाया था , उसमें पानी नहीं निकला । लेकिन पौधे बडे़ होने लगे , जडे़ं फैलने लगी तो गत वर्ष कुंऐ में पानी भी आ गया
।
पत्थर की पहाड़ी पर पौधे उगने के चमत्कार के विषय में गर्ग बताते है कि पहाडी़ पर कहीं भी पानी नहीं था , नीचे खेती करने वाले किसान से पानी खरीदना पढ़ता है । खेत से पहाड़ तक पाईप लाईन डालकर टंकी में पानी संग्रह करते है । टंकी से प्रत्येक पौधे में ड्रिप एरीगेशन द्वारा पानी मिलता है । पौधों के आसपास रेगजीन की त्रिपाल पट्टी बिछा रखी है जिसके कारण खरपतवार नहीं होती , पौधे तक आने जाने का रास्ता हो जाता है एवं पानी, धूप केवल पौधों को ही मिलती है ।
मिलेट्री हैड क्वाटर होने से टैंकों का अभ्यास महू में ही होता है । अभ्यास स्थल पहाड़ी से लगा होने से अनेकों बार उस अद्भुत दृश्य के साक्षी होने का अवसर भी मिला है ।
केसर पर्वत से रूबरू होने हेतु जब में गया था .. तब मेरे घर के फूलों के कुछ बीज भी गर्ग साहब को दिए थे । 7 दिन बाद ही बीज से बने नन्हें से Black-eyed Susan White के पौधे में फूल भी खिल गया । वास्तव में यह पहाड़ी उर्जा से ओतप्रोत है ।
प्रो. गर्ग कहते है कि 2007 में यह पहाड़ी खरीद ली गई थी। 2015 में सेवानिवृत्ति के बाद शैक्षणिक कैंपस बनवायेंगे ऐसी तब इच्छा थी, 2015 तक यह पहाड़ी जिस स्थिति में खरीदी थी वैसी ही रही । दिसंबर 2015 में सेवा निवृत होने पर सोचा गया कि यहाँ स्कूल या कॉलेज या प्राईवेट यूनिवर्सिटी प्रारंभ की जावे । कुछ बात जमी नहीं । जून 2016 के पश्चात यह निश्चय किया गया कि यहां पेड़ पौधे लगवाए जावें तथा पानी स्टोरेज के लिए कुछ कार्य किया जावे । पेड़ – पौधे लगाना भी दुष्कर कार्य था क्योंकि सब दूर पत्थर ही पत्थर थे । गेती फावड़ा से 1 फीट जमीन से ज्यादा खुदाई ही नहीं होती थी क्योंकि पत्थर आ जाता था । सदियों से वहां कोई पेड़ नहीं था , पानी नहीं था ।
600 फीट बोरिंग भी तीन – तीन करवाएं किंतु पानी नहीं मिला । कुछ पेड़ लगवाए और टैंकर से पानी पिलाया किंतु टैंकर भी पहाड़ी तक चढ नहीं पाता था । अनेक बार तो ऐसा मन भी बना लिया था कि पहाड़ी बेच दी जावे । इसी उहापोह में 2016 वर्ष समाप्त हो गया । जो पौधे 2016 वर्ष के अंतिम चरण में लगाये थे , वे पनपने लगे और उससे आंतरिक प्रेरणा , बल और विश्वास मिला कि इन पत्थरों पर पानी की कमी होते हुए भी प्रभु इच्छा से पेड़ बड़े होने लगे हैं । अतः सघन वृक्षारोपण किया जावे । शिखर पर टंकी लगाई तथा ड्रिप इरीगेशन के द्वारा बूंद – बूंद पानी दिया जाने लगा । प्रथम चरण में 2500 पौधे लगाये थे और फिर पेड लगाने में वृद्धि होती गई । वर्ष 2017 में तालाब भी खोदा किंतु पानी उसमें नहीं ठहरा प्लास्टिक से कवर करने के पैसे नहीं थे , किन्तु वृक्षारोपण चलता रहा । दिसंबर पांच अक्टूबर 2016 से मिले 2021 तक लगभग साढे चार वर्ष में 30,000 पौधे लगा दिये थे। सभी चल रहे हैं । कुछ छोटे हैं , कुछ बड़े हैं । 40,000 पौधों में से 15000 पौधे करीबन आठ से दस फीट उंचाई के हो गये हैं । पानी प्रतिदिन खरीदकर पिलाते हैं । जैसे – जैसे पौधे लगते गये , पनपते गये , बड़े होते गये तो मन में यह फैसला कर लिया कि इस बंजर पथरीली पहाड़ी को घना जंगल बनाना है और 2021 तक वहां 5000 सागवान , 1000 शीशम , 1500 नीम , 1000 पीपल , 500 बरगद , 500 आम 500 जाम , 200 सीताफल , 500 आंवला 500 खमार , 200 पपीता 100 ओलिव ( जैतून ) , 50 सेंवफल 50 फालसा 50 शहतूत , 50 कटहल 50 बिल्व , 50 मैदा , 1000 ड्रेगन , 5000 बांस आदि पनप रहे हैं । इनके अतिरिक्त गुलमोहर , अमलताश , कचनार , पारसपीपल , बादाम , नींबू कबीट , पलाश करोंदा मीठा नीम , चंदन केला , दहीमन , पुत्राजीवा आदि भी लगाये हैं । औषधीय पौधे भी लगाये है । 40,000 पौधों की गिनती में सब्जियां तथा फूल वाले पौधे जैसे गुलाब , मोगरा , चमेली , गेंदा आदि शामिल नहीं हैं । अंजीर , खिरणी , महुआ , संभालू , पारिजात , सीता अशोक , खजूर , चंपा , अशोक सूर्जना फली , चंदन , इमली के पौधे भी लगाये है । लोग , इलायची , तेजपान , काजू , स्ट्रॉबेरी भी पनप रहे हैं । हिंदू धर्म में नक्षत्रों का व राशियों का भी बड़ा महत्व है तथा नक्षत्र वाटिका भी बनाई गई है जिसमें बरगद , पीपल , बांस , नीम , रुद्राक्ष , जामुन , बिल्व , अर्जुन , गूलर , पलाश , नागकेशर , समृद्ध शमी , आदि भी लगाए हैं ।
हमें पूर्ण विश्वास है कि एक – दो वर्ष बाद हमें पानी खरीदना नहीं पड़ेगा । इतने पेड़ों से स्वयं की आवश्यकता पूर्ण हो जावेगी । ऐसा कहते हैं कि प्रकृति बांझ नही होती और यह दृश्य साकार हमारी 25 एकड़ पहाड़ी पर देखा जा सकता है । सिर्फ चार – पांच वर्ष में ही इसका रूप बदल गया । आसपास के जो लोग हमें पढ़े लिखे मूर्ख कहते थे , उनकी धारणा बदल रही है । जंगल में पर्यटन करने वालों के लिए सशुल्क कुछ आरामदायक कमरे भी बना दिए है। जिससे रात में रूकने में सहुलियत रहे।
व्यावसायिक खेती तो बहुत लोग कर रहे हैं । समतल जमीन पर जंगल भी लगाये जा रहे हैं किंतु जिस पहाड़ी पर एक भी पेड़ नहीं था , उसे हरा-भरा करना , पत्थरों पर पेड़ लगाना तथा विगत सात वर्षों से पानी खरीदकर पेड़ों को पिलाना एक दुष्कर कार्य है । डाँ गर्ग के परीश्रम व पराक्रम से यह बंजर पथरीली पहाड़ी एक सघन जंगल में परिवर्तित होती जा रही है ।
महेश बंसल, इंदौर