Ground Report of Jabalpur Loksabha Constituency: भाजपा के आशीष लैंड लार्ड, कांग्रेस के दिनेश मांग रहे ‘एक नोट-एक वोट’
दिनेश निगम ‘त्यागी’ की ग्राउंड रिपोर्ट
महाकौशल अंचल की जबलपुर लोकसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी आशीष दुबे और कांग्रेस के दिनेश यादव के बीच कई समानताएं हैं। दोनों बेदाग छवि और मिलनसार प्रवृत्ति के हैं। दोनों ने एलएलबी कर रखी है। आशीष लैंड लार्ड हैं और दिनेश के पास भी पैसे की कई नहीं है। फर्क यह है कि आशीष राम और मोदी लहर के साथ मैदान में हैं जबकि दिनेश ने बड़ी तादाद में डिब्बे बनवाए हैं। वे और उनके समर्थक ये डिब्बे लेकर निकलते हैं और लोगों से ‘एक नोट-एक वोट’ की मांग करते हैं।
राजनीतिक सच यह है कि जबलपुर में वर्ष 1996 से लगातार भाजपा का कब्जा है। चुनाव दर चुनाव उसकी जीत का अंतर बढ़ा है। मौजूदा माहौल देखकर यह परंपरा आगे भी कायम रहने की संभावना जताई जा रही है।
एक अदद जीत को तरस रही कांग्रेस
– जबलपुर लोकसभा सीट में भाजपा-कांग्रेस के बीच मुकाबला तो है लेकिन पलड़ा भाजपा का भारी है। ऐसा पहली बार नहीं है, भाजपा यहां लगातार जीत भी दर्ज करती आ रही है। 1991 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के श्रवण पटेल पहली बार मामूली अंतर 6 हजार 722 वोटों के अंतर से भाजपा के बापूराव परांजपे को हरा कर चुनाव जीते थे। इसके बाद से सीट पर भाजपा का कब्जा है और कांग्रेस एक अदद जीत के लिए तरस रही है। 1996 और 1998 के दो चुनाव बापूराव परांजपे ने जीते और 1999 में जयश्री बनर्जी ने जीत दर्ज की। इसके बाद 2004, 2009, 2014 और 2019 में भाजपा की ओर से लगातार राकेश सिंह ने कमल खिलाया। राकेश सिंह ने पिछला चुनाव साढ़े 4 लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से जीता। मौजूदा माहौल देखकर कहा जा रहा है कि जीत का यह आंकड़ा और बढ़ने वाला है।
जबलपुर में फेल हो जाते हैं सामाजिक समीकरण
– लगातार चार जीत दर्ज करने वाले राकेश सिंह इस बार जबलपुर से मैदान में नहीं हैं। पार्टी नेतृत्व के निर्देश पर वे विधानसभा का चुनाव लड़े थे और इस समय राज्य सरकार में पीडब्ल्यूडी मंत्री हैं। उनके स्थान पर भाजपा ने बिल्कुल नए चेहरे आशीष दुबे को प्रत्याशी बनाया है। वे तीन बार से विधानसभा का टिकट मांग रहे थे लेकिन मिला नहीं। उन्होंने ज्यादा संगठन में काम किया है और अब लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। अपनी छवि के कारण आशीष भाजपा की पसंद बने हैं। वे कभी विवादों में नहीं रहे। उनकी बेदाग और निर्विवाद छवि है। आशीष की पारिवारिक पृष्ठभूमि भाजपाई है। उनकी गिनती जबलपुर के लैंड लार्ड के तौर पर होती है। कांग्रेस के दिनेश यादव भी पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। वे प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री हैं। इससे पहले वे पार्षद और नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष रहे हैं। कांग्रेस की ओर से वे महापौर का चुनाव भी लड़ चुके हैं। उनकी छवि भी अच्छी है लेकिन वे भाजपा के आशीष से काफी पिछड़ते दिखाई पड़ रहे हैं। जबलपुर में भाजपा जैसी जीत दर्ज करती है, उसे देखकर स्पष्ट है कि यहां जातीय और सामाजिक गणित फेल हो जाते हैं। बावजूद इसके कांग्रेस को जातीय आधार पर ही वोट मिलने की संभावना है।
भाजपा द्वारा कराए गए काम बने चुनाव का मुद्दा
– जबलपुर प्रदेश का महानगर है, इसलिए यहां राष्ट्रीय और प्रादेशिक मुद्दो का खासा असर है। इसके साथ यहां सरकार द्वारा कराए गए काम भी मुद्दा बने हुए हैं। गांव-गांव तक सड़कों की कनेक्टिविटी अच्छी हुई है। सड़कों का जाल बिछा है। 4-5 फ्लाई ओवर बन कर तैयार हुए हैं। एक बड़ा फ्लाई ओवर बन रहा है। अन्य क्षेत्रों में भी केंद्र और राज्य सरकार ने काफी काम किए है। भाजपा मोदी और राम लहर के साथ इन कामों को मुद्दा बना रही है। भाजपा के आशीष पारिवारिक संबंधों का हवाला देकर भी समर्थन मांग रहे हैं। कांग्रेस अपनी 19 माह की सरकार के कार्यों को गिना रही है। बताया जा रहा है कि कांग्रेस किस तरह सभी किसानों का कर्ज माफ करने जा रही थी लेकिन भाजपा ने इसे रोक दिया। केंद्र एवं राज्य सरकार की महंगाई और रोजगार को लेकर नाकामिया भी बताई जा रही है। कांग्रेस के 5 न्याय और 24 गारंटियों का प्रचार प्रसार किया जा रहा है। कांग्रेस के दिनेश को यादव समाज से भी काफी उम्मीद है।
विधानसभा में भाजपा को हासिल है बड़ी बढ़त
– प्रदेश की कई अन्य सीटों की तरह जबलपुर में भी भाजपा को विधानसभा में बड़ी बढ़त हासिल है। लोकसभा क्षेत्र की 8 में से 7 विधानसभा सीटों पर भाजपा का कब्जा है जबकि कांग्रेस के पास सिर्फ एक सीट है। 4 माह पहले हुए चुनाव में भाजपा ने पाटन, बरगी, जबलपुर उत्तर, जबलपुर कैंट, जबलपुर पश्चिम, पनागर और सिहोरा विधानसभा क्षेत्रों में बड़े अंतर से जीत दर्ज की है जबकि कांग्रेस सिर्फ जबलपुर पूर्व सीट ही जीत सकी है। जबलपुर पूर्व में कांग्रेस के लखन घनघोरिया 27 हजार 741 वोटों के अंतर से जीते हैं जबकि सातों सीटों में भाजपा की जीत का अंतर 2 लाख 36 हजार 359 वोट है। साफ है कि भाजपा को विधानसभा चुनाव से ही 2 लाख से ज्यादा वोटों की बढ़त हासिल है। कांग्रेस के लिए इस अंतर को पाटना बड़ी चुनौती है।
तब भी 2019 में रिकार्ड मतों से जीत गई थी भाजपा
– जबलपुर लोकसभा सीट का भाैगोलिक एरिया बाहर नहीं गया। इसके तहत आने वाली सभी 8 विधानसभा सीटें जबलपुर जिले की ही हैं। जातीय आधार पर जरूर हर विधानसभा सीट की अलग-अलग स्थिति है। किसी सीट में दलित और आदिवासी ज्यादा हैं तो किसी में पिछड़े और ब्राह्मण। कुल मिलाकर दबदबा भाजपा का ही है। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया था। तब भाजपा और कांग्रेस को बराबर 4-4 सीटें मिली थीं। बावजूद इसके 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा के राकेश सिंह 4 लाख 54 हजार 744 वोटों के बड़े अंतर से जीते थे। अब तो विधानसभा में भी भाजपा का पलड़ा भारी है। माहौल भी भाजपा का है। ऐसे में यदि भाजपा के जीत का अंतर और बढ़ने की संभावना व्यक्त की जा रही है तो गलत नहीं है। वैसे भी जबलपुर में भाजपा की जीत का अंतर हर चुनाव में बढ़ता ही गया है।
क्षेत्र में ब्राह्मण, दलित, पिछड़े वर्ग का दबदबा
– जबलपुर लोकसभा सीट में आमतौर पर जातीय आधार पर मतदान नहीं होता। सामाजिक समीकरण फेल होने की वजह से यहां हार-जीत का अंतर ज्यादा होता है। लोकसभा क्षेत्र में ब्राह्मण, पिछड़ा वर्ग और दलित वर्ग के मतदाताओं का दबदबा है। ब्राह्मण एकमुश्त भाजपा के खाते में जा सकते हैं जबकि पिछड़े वर्ग का एक हिस्सा कांग्रेस को मिल सकता है। भाजपा प्रत्याशी ब्राह्मण और कांग्रेस प्रत्याशी पिछड़े वर्ग से हैं। क्षेत्र में मुस्लिम और आदिवासी वर्ग के मतदाताओं की तादाद भी काफी है। इनमें मुस्लिमों का अधिकांश वोट कांग्रेस के पक्ष में जा सकता है जबकि दलित और आदिवासी मतों में बंटवारा होगा। हालांकि इनका ज्यादा हिस्सा भी भाजपा के पक्ष में ज्यादा जाने की संभावना है। क्षेत्र के वैश्य, क्षत्रिय एवं अन्य जातियों में भाजपा का दबदबा देखने को मिल रहा है।