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Guillain Barre Syndrome : पुणे और आसपास क्यों फैल रही ये खतरनाक बीमारी, पानी से इसका क्या कनेक्शन!
Pune : पुणे का स्वास्थ्य विभाग गुलियन बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) के बढ़ते मरीजों की वजह से अलर्ट पर है। सौ से अधिक लोग इसकी चपेट में है और 17 वेंटिलेटर पर हैं। एक मरीज की मौत हो गई। दरअसल, यह कोई संक्रामक बीमारी नहीं, बल्कि एक ऑटो इम्यून डिजीज है जो लाखों में किसी एक मरीज को होती है। लेकिन, पुणे में लगातार बढ़ते मामलों से विशेषज्ञ भी हैरान है। कहा गया कि संदिग्ध जीबीएस मरीज की मौत सोलापुर में हुई। बीमारी के लक्षणों वाले 19 लोग 9 साल से कम उम्र के हैं। जबकि, 50-80 साल की उम्र के 23 मामले अब तक सामने आए।
There has been a recent surge in people suffering from Guillain Barre Syndrome (GBS) in Pune, a serious neurological illness.
What is this illness?
Symptoms of GBS
Acute onset, rapidly progressing weakness of legs and arms; tingling and pain in limbs
Breathing difficulty,… pic.twitter.com/sc2DRKFsRu— Dr Sudhir Kumar MD DM (@hyderabaddoctor) January 22, 2025
डॉक्टरों के मुताबिक, जीबीएस एक ऑटोइम्यून बीमारी है, जिसमें शरीर की इम्यूनिटी गलती से शरीर की सेल्स पर ही हमला करती है। इससे मरीज को कई तरह की गंभीर समस्याएं होने लगती है। पुणे में जिस तेजी से मामले बढ़ रहे हैं, उससे एक्सपर्ट्स आशंकित हैं कि मरीजों की संख्या बढ़ने का कारण कुछ और भी हो सकता है। गुलियन बैरे सिंड्रोम के होने का कारण इम्यून सिस्टम का शरीर की नवर्स पर हमला करना माना जाता है। लेकिन, इसके कुछ और फैक्टर भी हैं जो इस बीमारी का कारण बन सकते हैं।
इस बीमारी का पानी से क्या कनेक्शन
महामारी विशेषज्ञ डॉ जुगल किशोर बताते हैं कि पुणे नगर पालिका ने संक्रमित मरीजों के सैंपल लिए हैं। मरीजों के सैंपल में अस्पतालों के लैब की जांच में कैम्पिलोबैक्टर जेजुनी बैक्टीरिया का पता चला है। कैम्पिलोबैक्टर जेजुनी बैक्टीरिया पानी में भी पाया जाता है। अगर कोई व्यक्ति इस बैक्टीरिया वाले पानी को पी लेता है, तो यह बैक्टीरिया उसके शरीर में चला जाता है। यह बैक्टीरिया उल्टी दस्त जैसे लक्षण पैदा करता है। कुछ मामलों में डायरिया का भी कारण बनता है। चूंकि पुणे में संक्रमित मरीजों में यह पाया गया, ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि बैक्टीरिया जीबीएस का कारण हो सकता है।
जब कोई व्यक्ति पेट की बीमारी से संक्रमित होता है, तो उसमें जीबीएस होने की आशंका बढ़ जाती है। यही कारण है कि पुणे में पानी के सैंपल लिए जा रहे हैं। हालांकि, संक्रमित मरीजों के सैंपल एनआईवी भी पाए गए हैं। वहां की जांच में ही साफ हो पाएगा कि कहीं ये बीमारी पानी के कारण तो नहीं फैल रही।
पहला जीबीएस मामला होने का संदेह
स्वास्थ्य विभाग को 9 जनवरी को पुणे के अस्पताल में भर्ती एक मरीज पर इस क्लस्टर के अंदर पहला जीबीएस मामला होने का संदेह है। परीक्षणों से 9अस्पताल में भर्ती मरीजों से लिए गए कुछ नमूनों में कैम्पिलोबैक्टर जेजुनी बैक्टीरिया का पता चला है। इससे पहले शनिवार को प्रशासन द्वारा जारी किए गए परीक्षण के नतीजों से पता चला था कि पुणे में पानी के मुख्य सोत्र खडकवासला बांध के पास एक कुएं में बैक्टीरिया ई कोली का हाई-लेवल है। लेकिन, अधिकारियों ने कहा कि यह स्पष्ट नहीं है कि कुएं का उपयोग किया जा रहा था या नहीं। लोगों को सलाह दी गई है कि वे पानी को उबाल लें और खाने से पहले उसे गर्म कर लें।
क्यों और कब होती है जीबीएस बीमारी
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने कहा कि रविवार तक 25,578 घरों का सर्वे किया जा चुका है। हमारा मकसद ज्यादा से ज्यादा बीमार लोगों को ढूंढना और जीबीएस मामलों में वृद्धि के लिए ट्रिगर का पता लगाना है। बताया गया कि जीबीएस का इलाज काफी महंगा है। हर इंजेक्शन की कीमत 20 हजार रुपए है। जीबीएस तब होता है जब शरीर का इम्यूनिटी सिस्टम सहित बैक्टीरिया वायरल संक्रमण पर प्रतिक्रिया देते वक्त दिमाग के संकेतों को ले जाने वाली नसों पर हमला करती है।
6 महीने में लगते हैं स्वस्थ होने में
डॉक्टरों ने कहा कि 80% प्रभावित रोगी अस्पताल से छुट्टी मिलने के 6 महीने के भीतर बिना सहायता के चलने की क्षमता हासिल कर लेते हैं। लेकिन, कुछ को अपने अंगों का पूरा उपयोग करने में एक साल या उससे अधिक समय लग सकता है। जीबीएस उपचार भी बहुत महंगा है। मरीजों को आमतौर पर इम्युनोग्लोबुलिन (आईवीआईजी) इंजेक्शन के एक कोर्स की आवश्यकता होती है। सरकार भी इस मामले में गंभीरता बरत रही है।