गुजरात और हिमाचल – दिशा संकेतक होंगे ? 

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गुजरात और हिमाचल – दिशा संकेतक होंगे ? 

मध्यप्रदेश , राजस्थान , महाराष्ट्र , जैसे बड़े राज्यों के विधानसभा चुनावों के पहले होने जारहे चुनाव आगामी नेतृत्व के लिए दिशा संकेतक होंगे ?

इन्हीं अटकलों के बीच गुजरात और हिमाचल में प्रमुख राजनीतिक दलों द्वारा सबकुछ दांव पर लगाकर सत्ता प्राप्त करने का लक्ष्य होगया है ।

निर्वाचन घोषणा के बाद तेज़ हुई गतिविधियों से गुजरातऔर हिमाचल के सियासीसमीकरण चर्चा मेंआगये हैं

 

1995 से गुजरात में काबिज भाजपा कायम रहेगी या नहीं, हिमाचल में तो जनता सरकार बदलती रहती है |

गुजरात एक बड़ा सवाल है ? रिकार्ड देखें तो पिछले कुछ चुनावों में 100 से ज्यादा सीटें उसके खाते में रही हैं, परन्तु 2017 का चुनाव अपवाद था, जिसमें वह सीटों का सैकड़ा पूरा करने में चूक गई,इसी कारण यह सवाल खड़ा है | जहाँ तो मोर्चेबंदी का सवाल है, ‘कांग्रेस’ और ‘आप” को चुनौती मानकर भाजपा ने इस बार गुजरात चुनाव में अपने पैतृक सन्गठन की ढाल में जमावट की है |

 

2017 में सीटें कम मिली थीं लेकिन वोट प्रतिशत के लिहाज से पूर्व की तरह कांग्रेस और भाजपा में बड़ा फासला था |

यूँ तो कांग्रेस यहां सफल प्रतिद्वंद्वी रही है, क्योंकि किसी तीसरे मजबूत दल का यहां अभाव था | मगर इस बार उसकी राह कुछ ज्यादा कठिन जान पड़ती है, क्योंकि आम आदमी पार्टी ने यहां सफल दस्तक दी है। इससे यहां का चुनावी समीकरण बदलता दिख रहा है। आप नेता अरविंद केजरीवाल कई महीनों से यहां प्रचार कर रहे हैं, जिसका असर भी दिखने लगा है। आप ने यहाँ एक पहचान बनाई है। इसी चिंता ने स्वयंसेवकों को जागृत कर दिया है |

 

पिछले उप-चुनाव भी त्रिकोणीय संघर्ष के संकेत दे रहे हैं। मगर इस संघर्ष में एक तरफ भाजपा है, तो दूसरी तरफ आप और कांग्रेस। मौजूदा स्थिति यही बताती है कि यहां भाजपा व दूसरी पार्टियों के बीच ठीक-ठाक फासला है। यहां के मतदाता भाजपा, विशेषकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से प्रभावित हैं। इसीलिए नजर इस बात पर होगी कि गुजरात चुनावों में दूसरे और तीसरे पायदान पर कौन सी पार्टी कब्जा करती है?

याद कीजिये,स्थानीय निकाय के चुनावों में, खासकर सूरत के इलाकों में आम आदमी पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया है, जिससे उसे नई ऊर्जा मिली है, मगर यह जोश जीत में कितना बदल पाएगा, नहीं कहा जा सकता।

वैसे कांग्रेस के लिए प्रत्यक्ष तौर पर तो दोतरफा जंग है। एक तरफ उसे भाजपा से लड़ना है, तो दूसरी तरफ, आप से मिल रही चुनौतियों से पार पाना होगा। बावजूद इसके उसकी चाल सुस्त दिखती है। भाजपा और आप जहां पुरजोर तरीके से अपनी उपस्थिति दर्ज कर रही हैं |

यूँ तो अमित शाह व अरविंद केजरीवाल जैसे नेता लगातार सक्रिय हैं, वहीं मतदाता कांग्रेस के पास कोई ढंग का नेतृत्व न होने की बात कह रहे हैं। कभी कांग्रेस यहां मजबूत दल हुआ करती थी, लेकिन अब वह काफी कमजोर लग रही है। घर-घर जाकर अभियान चलाने का दावा कांग्रेस जरूर कर रही है, लेकिन इसका असर कम ही दिख रहा है। एक बात यह भी है कि आप जितना ऊपर उठेगी, कांग्रेस उतना नीचे की तरफ जाएगी। दिल्ली और पंजाब में आप ने कांग्रेस का आधार ही अपनी ओर खिसकाकर ही सरकार बनाई है, और गुजरात भी इसका अपवाद नहीं दिख रहा।

 

चुनाव परिणाम बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि पार्टियां किस तरह रणनीति बना रही है और उम्मीदवारों को सेलेक्ट किया है।

चर्चा है कि जो पार्टी 1995 से सत्ता में है, उसके खिलाफ अंदरूनी लहर है, लेकिन यह काफी ज्यादा इसलिए नहीं दिख रही, क्योंकि भाजपा ने इसकी काट ढूंढ़ ली है।

पूर्व मुख्यमंत्री , उपमुख्यमंत्री समेत 42 वर्तमान विधायकों को टिकट नहीं दिये वहीं असन्तोष के सुरों को पार्टी से निष्कासित भी किया है ।

उसने करीब एक साल पहले यहां का पूरा मंत्रिमंडल बदल दिया था। यहां तक कि नए मुख्यमंत्री की भी ताजपोशी की गई । भाजपा ने मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद तीन मुख्यमंत्री गुजरात में बदल दिये ।

यह सब इसलिए किया गया, जिससे राज्य सरकार के खिलाफ यदि लोगों में कोई असंतोष है, तो उसको दबाया जा सके। साफ- सफाई और सुलह के रास्ते खोजने में भाजपा के पैतृक सन्गठन की महारत है|

आप को मिल रहे प्रतिसाद से चौकन्ना भाजपा कैडर आरएसएस से जुड़कर गांव गांव घर घर दस्तक दे रहा है ।

 

विशेष कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का फ़ोकस अपने पैतृक राज्य गुजरात में तीन दशकों की सत्ता पुनः प्राप्त करना है ।

2017 में ही पहली बार विधायक आंकड़े शतक नहीं लगा पाये ।

182 में मात्र 99 पर अटकी भाजपा इस बार सबकुछ कर सत्तारूढ़ होना चाहती है ।

कांग्रेस के संगठन चुनाव अधिकारी वरिष्ठ नेता मधुसूदन मिस्त्री का बयान प्रधानमंत्री मोदी ने लपक लिया और

” ओकात ” का वार जनसभाओं में कर दिया । बात तीन शब्दों की पर घाव गहरा कर रही है , वैसे भी गुजरात मोदी का गृहराज्य है ।

डिजिटल ज़माने की तस्वीर भी देखने मे आई है जब भाजपा ने प्रचार के लिए रोबोट उतार दिया ।

मोरबी हादसा जरूर फ़ांस है पर सीमित क्षेत्र में असर डाल सकता है ।

पीड़ितों और प्रभावितों से मिलने स्वयं प्रधानमंत्री मोदी हॉस्पिटल चले गए और कड़ी जांच की बात रखी ।

द्वारका , खंभात , सूरत ,अहमदाबाद सौराष्ट्र नड़ियाद खेड़ा जामनगर आनंद गांधीनगर दाहोद गोधरा मेहसाणा आदि स्थानों पर भाजपा आप और कांग्रेस जोर लगा रहे हैं ।

 

गुजरात के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश के चुनावों पर भी स्वाभाविक नजर है। दोनों राज्यों में मतगणना 8 दिसंबर को होगी।

बर्फबारी और शीत लहर के चलते हिमाचल प्रदेश में चुनावी सरगर्मी तेज़ है । मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर , केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर सहित बड़े नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर है । वैसे हर चुनाव में सरकार बदलती रही है। आम आदमी पार्टी ने यहां पर भी अपनी दावेदारी जताने की कोशिश की है, लेकिन पिछले छह माह की सियासी गतिविधियों से यही जान पड़ता है कि वह हिमाचल में शायद ही कोई खास टक्कर दे सके।

कुल मिलाकर, हिमाचल में कांग्रेस और भाजपा ही आमने-सामने होंगी। इसीलिए हर चुनाव में सरकार बदलने की संभावना के आधार पर कहा जा सकता है कि इस बार सत्तारूढ़ भाजपा को कांग्रेस से कड़ी टक्कर मिल रही है। एक साल पहले हुए विधानसभा उप-चुनावों के नतीजे भी बताते हैं और लोकसभा उप-चुनाव के परिणाम भी, जिनमें कांग्रेस का ग्राफ भाजपा से काफी ऊपर रहा था। भाजपा के दोनों राज्यों में अपने पैतृक सन्गठन का भरोसा है |

कोरोना संक्रमण काल के बाद पहली बार विधानसभा चुनाव होरहे हैं ।

अवश्य ही एक सर्वे के मुताबिक बिजली , खनन , निर्माण और मेनिफेक्चरिंग क्षेत्रों में गुजरात में लगभग 4 फीसद गिरावट दर्ज़ हुई है ।

सेवाक्षेत्र मेंभी ढाईफीसद ऋणात्मकहै

महंगाई और बेरोजगारी भी बड़ा मुद्दा है पर यह पोलराइजेशन व मोदी प्रभाव को काट सकता है ?