Gun License Revoked : जिला मजिस्ट्रेट ने 1100 से ज्यादा बंदूक लाइसेंस रद्द किए!
Patna : बिहार में सालों से हथियारों का प्रदर्शन करने की प्रथा रही है। सरकार अब यह प्रथा ख़त्म करने की कोशिश में लगी है। राज्य में हथियार लाइसेंस धारकों का एक बड़ा वर्ग अपने हथियारों के लाइसेंस की रिन्यूवल प्रक्रिया और भौतिक सत्यापन का पालन नहीं कर रहा। लेकिन, राज्य के एक आईएएस अधिकारी ने 1123 हथियारों के लाइसेंस एक साथ रद्द करके प्रक्रिया का उल्लंघन करने वालों को कड़ा सबक सिखा दिया।
भोजपुर के जिला मजिस्ट्रेट राज कुमार ने इस महीने की शुरुआत में यह पता लगाने के बाद व्यापक कार्रवाई की, कि दोषी लाइसेंसधारक अपने हथियारों के भौतिक सत्यापन और उनके लाइसेंस की जांच की उपेक्षा कर रहे हैं। लाइसेंस रद्द करने से बंदूकें अवैध हो जाती हैं। ऐसी स्थिति में धारकों को उन्हें स्थानीय पुलिस स्टेशन या शस्त्रागार में जमा करना पड़ता है या कानूनी उलझने झेलना पड़ती है। जिनके लाइसेंस रद्द किए उन बंदूकों में डबल बैरल बंदूकें, सिंगल बैरल ब्रीच लोडर बन्दूक, राइफल और पिस्तौल शामिल हैं।
पिछले साल भोजपुर के जिला मजिस्ट्रेट के रूप में कार्यभार संभालने वाले आईएएस अधिकारी राज कुमार को हथियारों के रिकॉर्ड की नियमित जांच के दौरान उल्लंघन का पता चला। उन्हें यह जानकर आश्चर्य हुआ कि जिले में एक हजार से अधिक बंदूक लाइसेंस धारकों ने हथियार सत्यापन की प्रक्रिया का पालन नहीं कर रहे। उनमें से कई लाइसेंस का रिन्यूअल और भौतिक सत्यापन 2010 से ही नहीं हुआ। तब से, बिहार में उपचुनाव के अलावा तीन विधानसभा और दो लोकसभा चुनाव हुए हैं, जब ये बंदूकें असत्यापित रहीं।
कानून और व्यवस्था बनाए रखने और चुनाव पूर्व और चुनाव के बाद हिंसा की संभावनाओं को कम करने की एक नियमित प्रक्रिया के रूप में, जिला मजिस्ट्रेट हथियार लाइसेंस की समीक्षा करते हैं। नागरिकों के हथियारों और गोलियों को स्थानीय पुलिस स्टेशन में जमा करवाते हैं। चुनाव के बाद इन्हें वापस कर दिया जाता है।
ऐसे कई कारण हो सकते हैं कि लाइसेंस धारक अपने हथियारों का भौतिक सत्यापन नहीं करवा रहे हैं। कई मामलों में तो लाइसेंस धारक की मृत्यु हो चुकी होती है या वह इतना बूढ़ा हो चुका होता है कि वह खुद बंदूकें संभाल नहीं सकता। भोजपुर में रद्द किए गए कुछ बंदूक लाइसेंस 1970 के दशक में जारी किए गए थे। साथ ही, बंदूक का लाइसेंस कानूनी उत्तराधिकारियों को स्वचालित रूप से हस्तांतरित नहीं होता। इसके लिए नए सिरे से पुलिस सत्यापन की आवश्यकता होती है।
कलेक्टर ने अपने आदेश में फायरिंग की निंदनीय प्रथा को भी रेखांकित किया। बिहार में हर जश्न में गोलीबारी की प्रथा है। ऐसी घटनाओं में सिर्फ इसी साल 25 से अधिक लोगों की मौत हो गई। शस्त्र (संशोधन) अधिनियम 2019 में मौजूद स्पष्ट कानूनी स्थिति की पृष्ठभूमि में इस खतरे ने आशंकाएं बढ़ाई है। कानून सार्वजनिक समारोहों, धार्मिक स्थानों, विवाह पार्टियों या अन्य समारोहों में हथियारों का उपयोग करने की प्रथा पर रोक लगाने की कोशिश कर रहा है। क्योंकि ऐसा कोई दोषसिद्धि होने पर दो साल तक की कैद या 1 लाख तक का जुर्माना या दोनों का प्रावधान है।
राज्य में जश्न के दौरान फायरिंग की प्रथा इतनी प्रचलित है कि राज्य सरकार ने पिछले साल पटना उच्च न्यायालय में प्रस्तुत अपने जवाबी हलफनामे में स्वीकार किया था कि कम से कम 25 मामलों में जश्न के दौरान गोलीबारी की गई। इसके परिणामस्वरूप मौत होने या घायल होने के 38 जिलों में 66 मामले सामने आए जिनकी सूची हाईकोर्ट को सौंपी गई थी।