Guna : काले हिरण के शिकारियों के पुलिस पर दो दिन पहले हुए हमले में तीन पुलिसकर्मियों के मारे जाने के बाद पुलिस ने करीब 7 लोगों को नामजद आरोपी बनाया है। इनमें से चार आरोपियों को पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराया। पुलिस की इस कार्रवाई को लेकर गुना के एक वकील कृष्ण कुमार रघुवंशी ने गुना के सीजेएम कोर्ट में रविवार को एक याचिका दायर की। उन्होंने अपनी याचिका में मांग की है कि इस घटना की सीबीआई जांच कराई जाए! क्योंकि, रसूखदार लोगों को बचाने के उद्देश्य से पुलिस ने फर्जी एनकाउंटर किया है। .
आरोन क्षेत्र में काले हिरण के मारे जाने की घटना के बाद पुलिस ने तीन शिकारियों (इस घटना के बाद एक और) का जो एनकाउंटर किया गया है, वह पूरी तरह फर्जी है। याचिका में कहा गया है कि शक के आधार पर अन्य लोगों को गिरफ्तार न करते हुए रसूखदार लोगों को बचाने के उद्देश्य और साक्ष्य मिटाने के लिए पुलिस ने यह फर्जी एनकाउंटर कर 3 लोगों की हत्या की है। इस संबंध में समाचार पत्रों में घटना के तत्काल बाद एनकाउंटर से पहले यह खबर छापी गई थी, कि पुलिस शक के दायरे में लोगों को एनकाउंटर करने की तैयारी कर रही है।
याचिका में वकील कृष्ण कुमार रघुवंशी ने ग्वालियर के एक अखबार का भी इस बारे में उल्लेख किया है। याचिका में कहा गया है कि किसी गिरफ्तारी को डायरेक्ट एनकाउंटर बताकर 3 लोगों की हत्या की गई। जबकि विधि उल्लेखित करती है कि किसी भी घटना में अगर कोई शामिल है, तो उसे गिरफ्तार कर 24 घंटे के अंदर संबंधित मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाए। परंतु, ऐसा प्रतीत होता है कि पुलिस द्वारा रसूखदार लोगों से मिलकर और उन्हें बचाने के उद्देश्य से संदेही लोगों को गिरफ्तार न करते हुए एनकाउंटर किया गया। क्योंकि, उन्हें आशंका थी कि कहीं व्यक्ति गिरफ्तार होने के बाद अपने पक्ष में यह तथ्य कि घटना के समय वह स्थल पर मौजूद ही नहीं था या किसी और व्यक्ति द्वारा उक्त घटना में शामिल होने और इसकी सहायता करने के तथ्य को जाहिर न कर दे। इसलिए साक्ष्य मिटाने के उद्देश्य एनकाउंटर का नाम देकर हत्या की गई, जिसकी निष्पक्ष जांच होना आवश्यक है।
जब किसी का एनकाउंटर होता है, तो उसके संबंध में एक न्याय दृष्टांत में 23 सितंबर 2014 को भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश आरएम लोढ़ा और जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन की बेंच ने एक जजमेंट में एनकाउंटर अधिकृत किया और एनकाउंटर की जांच के आदेश दिए थे। उस दृष्टांत के मुताबिक जब किसी भी कोई किसी तरह की आपराधिक गतिविधि की सूचना मिलती है, तो वह या तो लिखित में या विशेषकर केस डायरी की शक्ल में हो या फिर इलेक्ट्रॉनिक माध्यम के जरिए हो। अगर आपराधिक गतिविधि की सूचना मिलती है या पुलिस की तरफ से किसी तरह गोलीबारी की जानकारी मिलती है और इससे किसी की मृत्यु की सूचना आए तो इस पर तुरंत प्रभाव से धारा 151 के तहत कोर्ट में एफआईआर दर्ज करनी चाहिए। इसमें किसी भी तरह की देरी नहीं होनी चाहिए।
इस पूरे घटनाक्रम की एक जांच सीआईडी से या दूसरे पुलिस स्टेशन की टीम से करवानी जरूरी है, जिसकी निगरानी एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी करें, जो उस वरिष्ठ पुलिस अधिकारी जो उस एनकाउंटर में शामिल है से एक रैंक ऊपर होना चाहिए। धारा 176 के अंतर्गत पुलिस फायरिंग में हुई हर एक मौत की मजिस्ट्रेट जांच होनी चाहिए और उसकी एक प्रति न्यायिक मजिस्ट्रेट के पास भी भेजना जरूरी है। जब तक स्वतंत्र जांच में किसी तरह का शक पैदा नहीं हो जाता, तब तक एनएचआरसी (National Human Rights Commission) को जांच में शामिल करना जरूरी नहीं है। हालांकि, घटना की पूरी जानकारी बिना देरी किए एनएचआरसी (National Human Rights Commission) या राज्य के मानव अधिकार आयोग भेजना जरूरी है।
लगातार सोशल मीडिया पर मारे गए लोगों के राजनेताओं के साथ फोटो प्रकाशित हो रहे हैं। इसलिए साक्ष्य मिटाने के लिए और रसूखदारों को बचाने के लिए हत्या को एनकाउंटर का नाम दिया गया है। इस संबंध में लगातार पुलिस द्वारा प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत को स्वीकार करते हुए 1919 के रोलिक एक्ट को याद दिला रहा है जिसमें न दलील, न अपील, न वकील बल्कि पुलिस सर्वोपरि है। यह अपने आप में भारतीय न्याय व्यवस्था को पुलिस के द्वारा अतिक्रमण करने जैसा है। इसलिए इस विषय पर न्यायिक जांच होना आवश्यक है। क्योंकि, उक्त प्रकरण न्यायालय के क्षेत्राधिकार में आता है और न्यायालय स्थिति को स्पष्ट करने के लिए एवं निदान के लिए जो भी संभव करने के लिए स्वतंत्र है एवं अधिकृत है।