
हरदा बंद: मौन आक्रोश का विस्फोट, प्रशासन के खिलाफ जनता का विद्रोह
– रामविलास कैरवार
हरदा। हरदा में शनिवार को करणी सेना-राजपूत समाज के आह्वान पर हुए बंद को असाधारण समर्थन देकर जिले के भीतर पल रहे आक्रोश का खुला प्रदर्शन कर दिया। पूरे जिले की जनता को जैसे पिछले 6 दिन से अपनी पीड़ा कहने और विरोध दर्ज कराने का मौका चाहिए था, आज मंच मिलते ही हर समाज, हर वर्ग सड़कों पर उतर आया।
खास बात यह रही कि विरोध किसी एक समाज या संगठन तक सीमित नहीं रहा, बल्कि लाठीचार्ज की घटना के खिलाफ छोटे-बड़े हर समुदाय ने एकजुट होकर आवाज उठाई। लोगों ने पूरी ताकत से यह साबित कर दिया कि सामान्य नागरिकों पर बर्बरता, घरों व दुकानों में तोड़फोड़, निर्दोषों का उत्पीड़न कोई भी माफ किए जाने योग्य भूल नहीं।

लाठीचार्ज की 13 जुलाई की घटना अब महज कानून-व्यवस्था का प्रश्न नहीं, बल्कि हरदा के जनमानस की अंतरात्मा पर लगा जख्म है। बाजार, गलियां, मोहल्ले तक गूंजता आक्रोश प्रशासन की जड़ें हिला गया। अब बंद के बहाने हर व्यक्ति- चाहे वह बोल सके या मौन रहे, अपनी पीड़ा स्पष्ट रूप से राजनीति और शासन तंत्र के विरुद्ध दर्ज करा रहा है।

जनता का मत है कि शासन का मूल कर्त्तव्य दया, सहयोग और संवेदनशीलता है, न कि डर और अत्याचार। निर्दोषों पर हिंसा, घरों-दुकानों पर धावा, झूठी सत्ता का यह चेहरा हर आम नागरिक के मन में डर और नफरत के बीज बो गया है। अब जनसमुदाय सिर्फ एक समाज के लिए नहीं, बल्कि सामूहिक रूप से बर्बरता, अन्याय व अधिकारियों/सरकार की जवाबदेही के खिलाफ खड़ा है।
लोगों की सहज और सीधी मांग है- हर घर, हर मोहल्ले में वैसा शासक चाहिए जो दयालु, सहयोगी, विनम्र व जनता की आवाज सुनकर शासन करे। शासन अगर अत्याचार, क्रूरता या तानाशाही पर उतारू होगा, तो इतिहास गवाह है- ऐसी शक्ति जल्द जनता का विश्वास और सत्ता खो देती है। अंग्रेज और मुगलों ने सिखाया, जो शासन डर, द्वेष और छल से चलता है वह कभी स्थायी नहीं रहता।

इस दौर का सबसे खौफनाक सच यह है कि भीड़ भले शांत है, लेकिन हर दिल सवालों और जख्मों से भरा है। आज हरदा का हर नागरिक शासन की छवि को अपने अंतर्मन के आईने में रख रहा है, जो चेहरे जनता के साथ नहीं, वे अब कभी मिट नहीं सकते। हरदा जिले के जनमानस ने ठान लिया है कि अत्याचार के जिम्मेदार लोगों को वे दोबारा ताकत नहीं देंगे चाहे वे अधिकारी हों या जनप्रतिनिधि। और अगर कोई प्रशासन, सत्ता या विभाग यह सोचता है कि मामला महज एक समाज या संगठन तक सिमटा है तो यह उसकी सबसे बड़ी भूल होगी।
अब जरूरत है न्यायिक जांच सुनिश्चित हो, भविष्य में जवाबदेही तय हो और जिले का भयमुक्त, शांतिप्रिय वातावरण लौटे। सतर्क संकेत है—हरदा की शांत भीड़ कभी भी उग्र असहमति में बदल सकती है, अगर उसके घावों पर मरहम नहीं रखा गया।
*मुख्य बातें:*
– 13 जुलाई की लाठीचार्ज में निर्दोषों, दुकानों और निजी संपत्ति पर बर्बरता।
– हर वर्ग, हर समाज सड़कों पर उतरा- अत्याचार के विरोध में पूर्ण एकजुटता।
– जनता ने प्रशासन की क्रूरता को लोकतांत्रिक प्रणाली पर धब्बा बताया।
– भविष्य के लिए स्पष्ट संदेश: शांत चेहरों में छुपा मौन आक्रोश किसी भी बदलाव का संकेतक है।





