
(विशेष रूप से उज्जैन, वर्ष-2025)
बैकुंठ चतुर्दशी अत्यंत शुभ और दुर्लभ: यह पर्व उस दिव्य क्षण का प्रतीक है जब भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों की संयुक्त पूजा होती है
हरि‑हर मिलन उत्सव 4 नवंबर को मनाया जाएगा।स्कंद पुराण और पद्म पुराण में उल्लेख मिलता है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने काशी (वाराणसी) में आकर भगवान शिव को शालिग्राम अर्पित किया था। भगवान शिव ने प्रसन्न होकर विष्णु को सुदर्शन चक्र का वरदान दिया और कहा, “जो भक्त इस दिन मेरा और विष्णु का संयुक्त पूजन करेगा, वह बैकुंठ लोक की प्राप्ति करेगा।”
इसलिए इस दिन की पूजा शैव और वैष्णव दोनों के लिए अत्यंत फलदायी मानी जाती है। यह दिन पापों से मुक्ति, अकाल मृत्यु से रक्षा और आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक है।-सम्पादक मीडियावाला

Harihar Milan 2025: वैकुण्ठ चतुर्दशी कल, इस दिन हरि-हर मिलन- शिव-हरि एकत्व का दिव्य पर्व
डॉ. तेज प्रकाश व्यास
जब हर और हरि का तेज एक-सूत्र में समाहित होता है,
जब शिव की समाधि और विष्णु का माधुर्य परस्पर आलिंगन करते हैं—
तब प्रकट होता है — हरि-हर मिलन,
एक ऐसा क्षण, जहाँ धर्म केवल पूजा नहीं, एकत्व का उत्सव बन जाता है।
यह पर्व हमें बताता है —
“ईश्वर अनेक रूपों में हों सकते हैं, पर सत्य एक ही है।
भक्त-हृदय में समरसता जागे — यही दिव्य उद्देश्य है।”
पावन तिथि एवं दिव्यता का क्षण
मध्यप्रदेश के उज्जैन में सोमवार को हरिहर मिलन होगा. मतलब शिव जी भगवान विष्णु को सृष्टि का भार सौंपकर तपस्या करने कैलाश पर्वत जाएंगे. इस मिलन को देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग महाकाल से गोपाल मंदिर तक की सवारी में शामिल होंगे और जमकर आतिशबाजी भी होगी. इसको देखते हुए पुलिस ओर प्रशासन ने पुख्ता इंतजाम करने शुरू कर दिए.
परंपरानुसार सोमवार को बैकुंठ चतुर्दशी होने से रात 11 बजे श्री महाकालेश्वर मंदिर के सभा मंडप में पूजन के बाद बाबा महाकाल की सवारी निकलेगी. इसमें रजत पालकी में विराजित बाबा की सवारी द्वारकाधीश गोपाल मंदिर पहुंचेगी. तत्पश्चात गोपाल मंदिर में विधिविधान से पूजा होगी और रात 12 बजे हर (शिवजी) श्री हरि (भगवान विष्णु) को सृष्टि का भार सौंपकर कैलाश पर्वत पर चले जाएंगे.
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि का प्रारंभ 3 नवंबर को रात 9 बजकर 35 मिनट पर शुरू हो रही है। वहीं इस तिथि का समापन 4 नवंबर को शाम 6 बजकर 6 मिनट पर हो रहा है। ऐसे में हरि‑हर मिलन उत्सव 3 नवंबर को मनाया जाएगा।इस रात्रि में महाकाल का राजकीय श्रृंगार होता है, और दीप-दीप्त उज्जैन विश्वदर्शी बन जाता है।
आध्यात्मिक रहस्य और पौराणिक संकेत
* यहाँ हर म्हणजे भगवान महाकाल,
* और हरि मतलब जगत-पालक विष्णु।
चातुर्मास में श्रीहरि क्षीरसागर में योग-निद्रा में रहते हैं।
इस अंतराल में सृष्टि-नियमों की धुरा शिव संभालते हैं।
जब श्रीहरि पुनः जाग्रत होते हैं, तब महाकाल स्वयं जाकर
सृष्टिचक्र पुनः विष्णु को सौंपते हैं।
यही क्षण — कर्तव्य-हस्तांतर का दिव्य योग — हरि-हर मिलन है।
इस दिन एक असाधारण परम्परा निभाई जाती है —
तुलसी हर को, और बेलपत्र हरि को अर्पित किए जाते हैं।
जैसे मानो प्रकृति भी कह रही हो —
“विभाजन नहीं, संगम ही धर्म है।”
उज्जैन की अलौकिक रात्रि
महाकाल की नगरी में यह पर्व मात्र परंपरा नहीं — जीवन का अनुभव है।
रात्रि घिरते ही —
महाकाल की शाही सवारी मंदिर से प्रस्थान करती है।
घंटों-शंखों की गुंज, फूलों की वर्षा, दीपों की शृंखला, रुद्र-स्तोत्र और विष्णु-सहस्रनाम की ध्वनि…
सवारी गुदरी चौराहा, पटनी बाज़ार मार्ग से गोपाल मंदिर पहुँचती है।
वहाँ मध्यरात्रि में दो देव-मंदिरों का मिलन और भक्त-भावों का समर्पण होता है।
क्षण ऐसा — जैसे
धरा शांत, आकाश प्रफुल्ल, और समय स्वयं प्रणाम कर रहा हो।
संस्कृत श्लोक
ॐ हरिहरह शरणं प्रपद्ये ।
शिवाय विष्णवे नमो नमः ॥
ॐ नमो भगवते हरिशिवाय ।
संगमे योगे विश्वोत्पतये ॥
देवं वासुदेवं हरिम् च हरम् च ।
अभिवन्दे महामूर्तिम् त्रिलोकहिताय ॥
पुण्य-कर्म और साधना का सर्वोत्तम अवसर
इस रात और प्रातः ब्रह्ममुहूर्त में —पवित्र नदी में स्नान
हर-हरि मंत्र-जपरात्रि-जागरण,दीपदान ,तुलसी-बिल्व-वंदना
बहुत शुभ माने गये हैं।
बाबा महाकाल पहुंचे श्री विष्णु जी को सृष्टि का भार सोपने
भक्तों का विश्वास है —
“इस दिन साधना का फल अनेक गुना बढ़ जाता है।”
क्योंकि शक्ति और शांति एक साथ अवतरित होती हैं।
आध्यात्मिक संदेश
यह उत्सव कहता है —
सृष्टि-संचालन हो या जीवन-संचालन,
रचनात्मकता और संयम दोनों अनिवार्य हैं।
हमारे भीतर भी
एक-पक्ष में शिव का साहस, त्याग, तप, संहार-बल हो,
तो दूसरे-पक्ष में विष्णु-सा धैर्य, करुणा, पालन और सौम्यता।
यही संतुलन — जीवन का कल्याण है।
शिव-विष्णु संयुक्त स्तोत्र
हे परमेश्वर —
तुम ही हो सृजन के आधार,
तुम ही हो पालन के स्वरूप,
तुम ही हो संहार के अचल रूप।
आज इस पावन दिन —
हर उपासन में हरि-हर का मिलन हो,
हृदय में समरसता की ज्योति जगे।
तुलसी तव चरणकमल को अर्पयामि,
बेलपत्र विष्णुलोक हेतु समर्पयामि।
हे महाकाल, हे गोपाल —
हम पर अपना अनुग्रह बनाये रखो।
ॐ हरिहराय नमः॥
प्रेरक हरि-हर मिलन
हरि-हर मिलन केवल उत्सव नहीं,
यह संदेश है —
“जहाँ भिन्नता है, वहाँ सेतु बनाओ।
जहाँ अहं है, वहाँ समर्पण जगाओ।
जहाँ द्वेष है, वहाँ शिव-विष्णु बन जाओ।”
जिस दिन हम भीतर शिव-विष्णु को एक कर लेंगे,
वही दिन — आत्म-वैकुंठ का उदय होगा।
तुलसी विवाह : आत्मा और परमात्मा के दिव्य मिलन का वैदिक उत्सव





