Hariyali Amavasya:  हरियाली अमावस्या के बाद से सावन माह के तीज त्यौहार प्रारम्भ

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हरियाली अमावस्या:-

Hariyali Amavasya:  हरियाली अमावस्या के बाद से सावन माह के तीज त्यौहार प्रारम्भ

सावन का महीना शिव को समर्पित ।चारों ओर कांवड़ यात्रियों के द्वारा बम-बम भोले की गूंज तरंगित हो रही । इस माह की कृष्ण पक्ष की ही अमावस्या को विशेष रूप से चारों ओर हरियाली अमावस्या का नाम दिया गया । अमावस्या पितरों को समर्पित और जब वह विशेष रूप से श्रावण माह की तो प्रात:किसी पवित्र नदी सरोवर या घर में ही गंगाजल से स्नान कर शिव जी के पूजन के साथ ही पितरों को भी श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है । विशेष रूप से आज खीर पूड़ी का भोग लगा कर उन्हें तृप्त किया जाता है । इस समय नवविवाहित सभी बेटियां ससुराल से मायके आकर अपनी सहेलियों से मिलती है बाग बगीचों में पेड़ों की डाल पर झूला डाल दिये जाते हैं । शिवपार्वती के पूजन के बादसभी महिलायें हरी चूनर हरी चूड़ियों पहनकर बागों में अपनी सखियों के साथ झूला झूलन जाती हैं ।सखियों की आपसी चुहलबाजी और सभी से मिलने का अपना अनोखा सख अवर्णनीय होता है ।
झूला झूल कर पैंगें लेती गीत के स्रव हवा में गूंजकर प्रकृति को भी आनंदित करदेते ।चारों बिखरी हरियाली ‌तरह तरह के खिल रहे फूल और उनसे श्रृंगार करती नारी का रूप प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर नारी को भी सृजन की प्रेरणादेकर पल्वन का आशीर्वाद देती है ।
जिनकी बेटियां ससुराल से मायके किसी कारण वश नही आ पाती थी तब उनकी मातायें घर के आँगन में ही दीवाल पर उनकी अनुकृति बना उन्हें
उनको हल्दी चावल कुंकुम से टीका लगाने के बाद खीर-पूड़ी का भोग लगाकर खिलातीं थी । यह हमारी वह भारतीय प्राचीन संस्कृति है जो बतलाती है कि बेटी भले ही ससुराल में रहे लेकिन वह मायके में भी न होकर भी उसका अस्तित्व है.
हरियाली अमावस्या के बाद से सावन माह के तीज त्यौहार प्रारम्भ होजाते है । द्वितीया तिथि सिंधौरा दोज , तृतीया तिथि हरियाली तीज ,पंचमी को नाग पंचमी ,सप्तमी को खेतों से मिट्टी लाकर उसमें अनाज के दाने बोकर परीक्षण किया जाता कि फसल कैसी होगी ।श्रावण माह की पूर्णिमा को वह कजरियाँ सबको प्रसाद के रूप में बहिन बेटी घर घर जाकर बांटती थी । यह सभी से मिलने का आपसी सहयोग का एक रूप था जो कृषक प्रधान देश की परम्पराओं से जुड़ कर आज भी गांव में इन्हें देखा जा सकता है। इसीलिए सावन माहकेशुक्ल पक्ष क अपना विशेष महत्व है ।जो हरियाली अमावस्या के दिन से ही प्रारंभ हो जाता है ।

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ऊषा सक्सेना-मुंबई

Broom : लक्ष्मी का प्रतीक है झाडूृ 

प्रतिष्ठाआयोजन : पंडित दीनानाथ व्यास स्मृति प्रतिष्ठा समिति भोपाल का अभिनव आयोजन “कथा-विश्लेष्ण “