हरतालिका तीज: त्याग, प्रेम और अटूट संकल्प का पर्व,आस्था और समर्पण का महापर्व

642

हरतालिका तीज: त्याग, प्रेम और अटूट संकल्प का पर्व,आस्था और समर्पण का महापर्व

– अनिल तंवर की खास रिपोर्ट

हिंदू धर्म में महिलाओं द्वारा मनाया जाने वाला एक अत्यंत पवित्र और श्रद्धा से जुड़ा पर्व है। यह विशेष रूप से सुहागिनों द्वारा अपने सुहाग को अखंड बनाए रखने के लिए और अविवाहित युवतियों द्वारा मनचाहा वर पाने के लिए किया जाता है । भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हस्त नक्षत्र में मनाया जाने वाला यह पर्व, भगवान शिव और माता पार्वती के दिव्य मिलन का प्रतीक है । वर्ष 2025 में हरतालिका तीज का पर्व 26 अगस्त, मंगलवार को मनाया जाएगा । यह दिन भक्ति, प्रेम और समर्पण का प्रतीक है, जो दांपत्य जीवन में सुख और समृद्धि लाने का प्रयास करता है ।

हरतालिका तीज की कथा स्वयं भगवान शिव ने माता पार्वती को उनके पूर्व जन्म का स्मरण कराने के उद्देश्य से सुनाई थी । यह कथा माता पार्वती के उस कठिन तप और दृढ़ संकल्प को दर्शाती है जो उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए किया था।

पौराणिक कथा के अनुसार, माता पार्वती ने अपने पूर्व जन्म में भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए हिमालय पर घोर तपस्या की थी । उन्होंने कई वर्षों तक अन्न-जल का त्याग कर निर्जल व्रत रखा, जिससे उनका शरीर अत्यंत दुर्बल हो गया । उनके पिता, पर्वतराज हिमवान, उनकी इस तपस्या से अत्यंत दुखी थे । इसी दौरान, देवर्षि नारद उनके पास भगवान विष्णु का विवाह प्रस्ताव लेकर आए। नारद जी की बात सुनकर हिमवान अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने अपनी सहमति दे दी ।

जब माता पार्वती को यह ज्ञात हुआ कि उनके पिता उनकी इच्छा के विरुद्ध उनका विवाह भगवान विष्णु से कराना चाहते हैं, तो उनका मन अत्यंत दुखी हो गया । उन्होंने अपनी इस व्यथा को अपनी सखी को बताया। तब उनकी सखी ने उन्हें हरण कर (हरत) एक घने जंगल में ले जाने का निर्णय लिया, ताकि उनके पिता उनकी इच्छा के विरुद्ध विवाह न करा सकें । ‘हरत’ का अर्थ है अपहरण और ‘आलिका’ का अर्थ है सखी, इसलिए इस व्रत का नाम ‘हरतालिका’ पड़ा ।

जंगल में पहुँचकर, माता पार्वती ने एक बार फिर भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या शुरू कर दी। उन्होंने भाद्रपद शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र में रेत से भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा बनाकर उनका पूजन किया । उन्होंने पूरी रात जागरण किया, भजन-कीर्तन किए और शिव-पार्वती विवाह की कथा सुनी । उनकी इस अटूट भक्ति और दृढ़ संकल्प से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया ।

प्रातःकाल होते ही, माता पार्वती ने पूजा की समस्त सामग्री को नदी में प्रवाहित कर दिया और अपनी सखी के साथ व्रत का पारण किया । बाद में, उनके पिता हिमवान भी उन्हें ढूंढते हुए उसी वन में आ पहुँचे। जब उन्होंने पार्वती को देखा, तो उन्हें हृदय से लगा लिया और उनकी इच्छा के विरुद्ध कार्य न करने का वचन दिया। इसके बाद, माता पार्वती का विवाह भगवान शिव के साथ संपन्न हुआ । भगवान शिव ने पार्वती जी से कहा कि जो भी स्त्री इस व्रत को पूर्ण निष्ठा और सच्ची आस्था से करेगी, उसे तुम्हारी तरह अचल सुहाग प्राप्त होगा और मनवांछित फल मिलेगा ।   हरतालिका तीज का व्रत हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है । यह व्रत विवाहित महिलाओं के लिए पति की लंबी आयु, सुख-शांति और समृद्धि के लिए अत्यंत फलदायी माना जाता है । वहीं, अविवाहित कन्याएं मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए इस व्रत को करती हैं । यह व्रत स्त्री के सच्चे प्रेम, त्याग और तप का प्रतीक बनता है ।

इस दिन सुहागिन महिलाएं निर्जला और निराहार व्रत रखकर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-आराधना करती हैं । मान्यता है कि इस व्रत के पुण्य प्रभाव से कुंवारी कन्याओं को सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है और संतान सुख भी मिलता है । यह पर्व विशेष रूप से पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र में मनाया जाता है ।

पूजा विधि: भक्ति और नियमों का संगम

हरतालिका तीज का व्रत अत्यंत कठिन माना जाता है, क्योंकि इसमें पूरे 24 घंटे बिना अन्न-जल (निर्जला) रहना पड़ता है । इस व्रत को करते समय कई नियमों का पालन करना होता है, तभी व्रत और पूजा सफल मानी जाती है ।

व्रत की तैयारी और पूजन सामग्री:

 व्रत से कुछ दिन पहले से ही हल्का और सात्विक भोजन करें, तथा शरीर को स्वस्थ रखें ।

 पूजा के लिए सभी आवश्यक सामग्री जैसे फूल, धूप, दीप, चंदन, अक्षत, फल, मिठाई, बेलपत्र, नारियल, दूर्वा आदि पहले से ही तैयार रखें ।

 माता पार्वती को सोलह श्रृंगार की सामग्री (चुनरी, साड़ी, मेहंदी, काजल, बिंदी आदि) और भगवान शिव को धोती व अंगोछा अर्पित करने के लिए तैयार रखें ।

पूजन विधि:

1. सूर्योदय से पूर्व स्नान और श्रृंगार: व्रतधारी महिलाएं सूर्योदय से पूर्व उठकर पवित्र स्नान करें और साफ-सुथरे वस्त्र धारण कर पूरा श्रृंगार करें । हाथों में मेहंदी रचाना इस दिन की खास पहचान है ।

2. पूजा स्थल की तैयारी: पूजा स्थल को अच्छी तरह साफ करें और केले के पत्तों से मंडप बनाकर उस पर एक चौकी स्थापित करें ।

3. प्रतिमा स्थापना: भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी की मिट्टी की मूर्तियां बनाकर चौकी पर स्थापित करें । विशेष आकार देने की आवश्यकता नहीं है, जैसी भी बन जाए, वैसी मूर्तियां बना सकते हैं, या पिंडी के रूप में भी बना सकते हैं ।

4. अभिषेक और तिलक: सबसे पहले गणेश जी पर जल चढ़ाएं, फिर भगवान शिव और माता पार्वती को गंगाजल से स्नान कराएं । इसके बाद पंचामृत से अभिषेक करें और फिर जल से तीन बार अभिषेक करें । गणेश जी और माता पार्वती को रोली का तिलक लगाएं, लेकिन भगवान शिव को केवल चंदन का तिलक लगाएं ।

5. पुष्प और सामग्री अर्पण: सभी देवताओं को पुष्प, अक्षत, धूप, दीप, बेलपत्र, नारियल, दूर्वा, मिठाई आदि भक्ति भाव से अर्पित करें । माता पार्वती को सुहाग की सारी सामग्री स्पर्श कराएं ।

6. मंत्र जाप: पूजा के दौरान “ॐ नमः शिवाय” और “ॐ पार्वती माते नमः” मंत्र का जाप करें ।

7. कथा श्रवण और आरती: विधिपूर्वक हरतालिका तीज व्रत की कथा सुनें । कथा के बाद भजन-कीर्तन करते हुए तीन बार आरती करें ।

8. रात्रि जागरण: व्रतधारी महिलाएं रात में सोती नहीं हैं, बल्कि पूरी रात जागकर भजन-कीर्तन करती हैं और भगवान शिव के मंत्रों का जाप करती हैं ।

9. व्रत का पारण: अगले दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और भगवान शिव व माता पार्वती को प्रणाम करें । माता पार्वती को सिंदूर चढ़ाने के बाद खीरा या ककड़ी खाकर व्रत खोला जाता है ।

10. दान: प्रातःकाल स्नान करने के पश्चात् श्रद्धा एवं भक्ति पूर्वक किसी सुपात्र सुहागिन महिला को श्रृंगार सामग्री, वस्त्र, खाद्य सामग्री, फल, मिष्ठान्न एवं यथाशक्ति आभूषण का दान करना चाहिए ।

आज के युग में प्रासंगिकता: परंपरा और आधुनिकता का समन्वय

हरतालिका तीज, जो सदियों से भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग रही है, आज के आधुनिक युग में भी अपनी गहरी प्रासंगिकता बनाए हुए है। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि कई सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और सांस्कृतिक मूल्यों का प्रतीक है जो समकालीन जीवन में भी महत्वपूर्ण हैं:

1. त्याग और समर्पण का प्रतीक: यह व्रत महिलाओं के दृढ़ संकल्प, त्याग और समर्पण को दर्शाता है । माता पार्वती की कठोर तपस्या की कथा हमें सिखाती है कि किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अटूट निष्ठा और धैर्य आवश्यक है । आज के प्रतिस्पर्धी युग में, यह गुण न केवल व्यक्तिगत संबंधों में, बल्कि करियर और सामाजिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

2. पारिवारिक मूल्यों का संरक्षण: यह त्योहार दांपत्य जीवन में प्रेम, समझदारी और सामंजस्य को बढ़ावा देता है । यह सामाजिक मेल-जोल और आपसी रिश्तों को मजबूत करने का अवसर भी प्रदान करता है, जहाँ महिलाएं एक साथ आकर खुशियाँ साझा करती हैं, लोकगीत गाती हैं और झूले झूलती हैं । यह संयुक्त परिवार प्रणाली और सामुदायिक भावना को बनाए रखने में सहायक है।

3. मानसिक और शारीरिक संयम: निर्जला व्रत और रात्रि जागरण शारीरिक व मानसिक संयम सिखाता है । यह आत्म-नियंत्रण और इच्छाशक्ति को मजबूत करता है, जो आधुनिक जीवन के तनाव और चुनौतियों का सामना करने के लिए आवश्यक है। मेहंदी का औषधीय गुण क्रोध को नियंत्रित करने में मदद करता है, जो मानसिक शांति बनाए रखने में सहायक है ।

4. सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण: हरतालिका तीज लोकगीतों, पारंपरिक नृत्यों और रीति-रिवाजों के माध्यम से भारतीय संस्कृति और परंपरा को जीवित रखती है । यह नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जुड़ने और अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को समझने का अवसर प्रदान करती है। नेपाल सरकार द्वारा तीज को राष्ट्रीय अवकाश घोषित करना भी इस परंपरा के संरक्षण के महत्व को दर्शाता है ।

5. नारी सशक्तिकरण का अप्रत्यक्ष संदेश: यद्यपि यह व्रत पारंपरिक रूप से पति की लंबी आयु और सुयोग्य वर की कामना से जुड़ा है, यह माता पार्वती के दृढ़ संकल्प और अपनी इच्छा के लिए संघर्ष को उजागर करता है । यह महिलाओं को अपने जीवन के महत्वपूर्ण निर्णयों में दृढ़ रहने और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए तपस्या करने की प्रेरणा देता है। यह एक प्रकार से उनकी आंतरिक शक्ति और सशक्तिकरण को दर्शाता है, जो उन्हें केवल एक गृहिणी के रूप में नहीं, बल्कि एक सशक्त व्यक्ति के रूप में स्थापित करता है।

6. प्रकृति से जुड़ाव: सावन के महीने में जब प्रकृति हरियाली से भर जाती है, तब हरियाली तीज मनाई जाती है । यह त्योहार प्रकृति की सुंदरता, ताजगी और जीवन में हरियाली लाने का प्रतीक माना जाता है । यह हमें पर्यावरण के प्रति संवेदनशील होने और प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करने का संदेश देता है, जो आज के पर्यावरणीय संकट के दौर में अत्यंत प्रासंगिक है।

निष्कर्षतः, हरतालिका तीज केवल एक प्राचीन धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह त्याग, प्रेम, दृढ़ संकल्प, पारिवारिक सद्भाव और सांस्कृतिक संरक्षण का एक जीवंत प्रतीक है। यह आज भी महिलाओं को सशक्त बनाने, संबंधों को मजबूत करने और जीवन में संतुलन बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण प्रेरणा प्रदान करता है। यह हमें याद दिलाता है कि हमारी परंपराएं केवल अतीत की कहानियाँ नहीं हैं, बल्कि वे वर्तमान जीवन को समृद्ध करने और भविष्य के लिए एक मजबूत नींव बनाने में भी सहायक हैं।

लेख 2

हरतालिका तीज: आस्था, प्रेम और नारी-संस्कारों का उत्सव

भारत की सांस्कृतिक परंपराओं में तीज त्यौहार विशेष स्थान रखते हैं। श्रावण और भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष में मनाई जाने वाली हरतालिका तीज केवल धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि स्त्रियों की आस्था, समर्पण और शक्ति का जीवंत प्रतीक है। यह पर्व स्त्रियों की उस अनवरत शक्ति का उत्सव है, जिसमें वे न केवल पारिवारिक सुख-समृद्धि की कामना करती हैं, बल्कि अपने सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल्यों को भी नई पीढ़ी तक पहुंचाती हैं।

हरतालिका तीज की जड़ें पुराणों और शास्त्रों में गहराई से जुड़ी हैं।

 कथा का आरंभ – यह पर्व माता पार्वती और भगवान शिव के दिव्य मिलन से जुड़ा है। मान्यता है कि माता पार्वती ने पार्वत्य प्रदेश (हिमालय) में कठोर तपस्या की थी ताकि उन्हें भगवान शिव ही पति रूप में प्राप्त हों।

 हरतालिका शब्द की व्युत्पत्ति – ‘हरित’ का अर्थ है “हरकर ले जाना” और ‘आलिका’ का अर्थ है “सखी-सहेली”। मान्यता है कि जब माता पार्वती के पिता ने उनका विवाह भगवान विष्णु से करने का निश्चय किया, तब उनकी सहेलियाँ उन्हें वन में ले गईं और वहाँ उन्होंने निराहार, निर्जल रहकर तपस्या की। भगवान शिव उनकी इस निष्ठा और तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार करते हैं।

 इसीलिए इस दिन का नाम हरतालिका तीज पड़ा और यह व्रत सौभाग्य, अटल दांपत्य सुख और समर्पण का प्रतीक बन गया।

हरतालिका तीज का महत्व

1. आध्यात्मिक महत्व – यह व्रत स्त्री की आस्था और शक्ति का प्रतीक है। माता पार्वती की भाँति, स्त्री अपने पति के दीर्घ जीवन और परिवार के कल्याण के लिए तप करती है।

2. सामाजिक महत्व – तीज के अवसर पर महिलाएँ सामूहिक रूप से एकत्र होकर गीत, नृत्य, पूजा करती हैं। यह समाज में आपसी सद्भाव और सांस्कृतिक एकता को मजबूत करता है।

3. नारी-सशक्तिकरण का संदेश – यह पर्व स्त्रियों की उस शक्ति को रेखांकित करता है, जिसके माध्यम से वे कठिन से कठिन तपस्या करके भी अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकती हैं।

4. प्रेम और समर्पण का उत्सव – यह केवल पति-पत्नी का पर्व नहीं, बल्कि जीवन में प्रेम, विश्वास और त्याग की गहराई का भी प्रतीक है।

व्रत एवं पूजन विधि

हरतालिका तीज का व्रत कठोरतम व्रतों में से एक माना जाता है। इसकी पूजन-विधि इस प्रकार है –

1. व्रत आरंभ – महिलाएँ सूर्योदय से पहले स्नान करके पवित्र वस्त्र धारण करती हैं।

2. निर्जल उपवास – यह व्रत निर्जल और निराहार रहता है। महिलाएँ दिन-भर जल तक ग्रहण नहीं करतीं।

3. पूजन सामग्री – कच्ची मिट्टी से भगवान शिव-पार्वती और गणेश जी की प्रतिमा बनाई जाती है। फूल, बेलपत्र, धतूरा, फल-फूल, वस्त्र और श्रृंगार सामग्री अर्पित की जाती है।

4. पूजन विधान – रात्रि जागरण के साथ हरतालिका व्रत की कथा सुनना और भगवान शिव-पार्वती का ध्यान करना अनिवार्य माना गया है।

5. व्रत का समापन – अगले दिन प्रातःकाल व्रत का पारण किया जाता है।

हरतालिका तीज और लोक संस्कृति

भारत के विभिन्न हिस्सों में तीज का स्वरूप अलग-अलग है:

 उत्तर भारत (उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान) – यहाँ महिलाएँ झूले झूलती हैं, मेहंदी रचाती हैं और पारंपरिक लोकगीत गाती हैं।

 मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ – सामूहिक पूजा का विशेष महत्व है।

 नेपाल – यहाँ भी हरतालिका तीज बड़े उल्लास से मनाया जाता है और इसे राष्ट्रीय पर्व का दर्जा प्राप्त है।

आधुनिक युग में प्रासंगिकता

कई लोग मानते हैं कि यह पर्व केवल पुरातन परंपरा है, लेकिन यदि गहराई से देखें तो हरतालिका तीज की प्रासंगिकता आज भी उतनी ही है:

1. मानसिक शक्ति और आत्मसंयम – उपवास और ध्यान से मन को संयमित करने की परंपरा आज की भाग-दौड़ भरी ज़िंदगी में मानसिक स्वास्थ्य को संतुलित करने का एक साधन बन सकती है।

2. परिवार और संबंधों का महत्व – आधुनिकता के बीच यह पर्व हमें पारिवारिक बंधनों की गहराई और रिश्तों में समर्पण का मूल्य सिखाता है।

3. सामाजिक जुड़ाव – जब महिलाएँ सामूहिक रूप से पूजा करती हैं, तो वह केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि समुदाय में सहयोग और बहनापे की भावना को भी मजबूत करता है।

4. नारी शक्ति का आदर्श – आज के युग में जब स्त्रियाँ हर क्षेत्र में अपनी क्षमता दिखा रही हैं, यह पर्व उनके भीतर की आध्यात्मिक शक्ति और सहनशीलता का प्रतीक है।

5. पर्यावरण और प्रकृति से जुड़ाव – झूले, वृक्ष, हरियाली और सामूहिक आयोजन हमें प्रकृति के प्रति संवेदनशील बनाते हैं।

हरतालिका तीज केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि स्त्रियों की आस्था, प्रेम, त्याग और अडिग संकल्प शक्ति का उत्सव है। इसकी कथा हमें यह सिखाती है कि यदि मन में दृढ़ निश्चय हो तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं। आधुनिक युग में भी यह पर्व हमें संबंधों का महत्व, संयम का मूल्य और नारी-शक्ति का आदर्श याद दिलाता है।

इस 26 अगस्त, भाद्रपद शुक्ल तृतीया को जब महिलाएँ व्रत करेंगी और भगवान शिव-पार्वती का स्मरण करेंगी, तो वह केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं होगा, बल्कि एक जीवन-दर्शन होगा –

“प्रेम, आस्था और त्याग ही जीवन को सार्थक बनाते हैं।”