वह अपने स्वरूप में आज भी आनंद बिखेर रहे हैं…

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वह अपने स्वरूप में आज भी आनंद बिखेर रहे हैं…

जब कोई दिव्य आत्मा इस नश्वर संसार में देह को त्याग कर सूक्ष्म रूप में रमती है,‌ तब उससे जुड़े धार्मिक स्थान तीर्थ बनकर आनंद बिखेरते हैं। काया में रहते वह खुद तीर्थ बनकर आनंद का परमस्रोत रहते हैं। हम ऐसी ही दिव्य और ईश्वरीय‌, पवित्र और अनंत, अलौकिक और आध्यात्मिक आत्मा की बात कर रहे हैं, जिन्होंने दैहिक स्वरूप में भी आनंद की बरसात की और देहातीत होने के बाद भी जिनका स्वरूप आज भी झोतेश्वर धाम के कण-कण में व्याप्त हो असीम आशीर्वाद, प्रेम और आनंद से हर श्रद्धालु को सराबोर कर रहा है। बात बस इतनी सी है कि आपके पात्र की कितनी क्षमता है और उसमें कितना आशीर्वाद, प्रेम और आनंद समा सकता है। उत्तर भारत में भगवती राजराजेश्वरी देवी के ऐसे शक्तिस्वरूपा मनभावन दर्शन की किसी ने कल्पना नहीं की होगी, जिनकी स्थापना झोतेश्वर में दो-दो सनातनी मठों के प्रमुख स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी ने की है। अब वह देह में नहीं हैं, पर जब वह झोतेश्वर में रहे, तब मां भगवती के दर्शन कर ही दिन की शुरुआत हुई। और अब जब देह से परे हैं, उनकी समाधि भी मां भगवती के मंदिर के करीब ही स्थित है।
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यह मेरा व्यक्तिगत मत और अनुभूति है, कि जो भी एक बार झोतेश्वर पहुंच जाए…वह हमेशा-हमेशा के लिए यहीं का हो जाए। ऐसा लगे कि जैसे आने में कुछ देर हो गई। बारह वर्ष तक स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की कठोर तप की स्थली रही वह शिला जो गजमुखी है, जिसे विचारशिला कहते हैं…का दर्शन चमत्कारिक अनुभूति का स्रोत है। घने सागौन के वृक्षों की पहाड़ी जिसे हर पल नमन कर रही है, वह है स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का निवास स्थान ‘मणिद्वीप’…जो भक्तों को आज भी आवाज देकर बुलाता है कि स्वामी जी के दर्शन और आशीर्वाद लेकर ही जाओ, जैसा कि पहले भी होता रहा है। मुझे बातों-बातों में संत अचलानंद जी ने बताया कि जिस तरह देश की राजधानी दिल्ली है, उसी तरह ज्योतिष्पीठ और द्वारिका शारदा पीठ की राजधानी झोतेश्वर थी। यह बात मन को छू गई। दो-दो पीठों के अधीश्वर ने न केवल एक और सिद्धपीठ बना दी, बल्कि वह स्थान निर्मित कर दिया…जहां उनका स्वरूप हमेशा आनंद की अनुभूति कराएगा।
स्वामी जी की अभिन्न शिष्या मंजुला राव से साक्षात्कार ने तो शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती जी को मानो साक्षात ही प्रकट कर दिया हो। इतना प्रेम, आस्था, श्रद्धा और समर्पण जो मन को प्रफुल्लित और सकारात्मक भावों से पल्लवित कर दे। जिनके मन का भाव यही है कि इस धरा पर ऐसा कोई जीव न बचे जो स्वामी जी की अनुभूति से अछूता रह पाए। कहते हैं कि हर इंसान किसी न किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए आया है और जाने-अनजाने प्रकृति उस उद्देश्य पूर्ति की दिशा में सहायक बन कब मंजिल पर पहुंचाने का माध्यम बन जाती है, खुद इंसान भी उससे अनजान रहता है। बच्चे की भूख की अनुभूति कर बड़ों का भी पेट भर दे, यह गुरु की कृपा और मातृशक्ति का आशीर्वाद ही तो है।
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11 सितंबर 2022 को भी हमने स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी के देहातीत होने पर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किए थे। यह शब्दों की माला थी कि धर्म के पर्याय, क्रांतिकारी संत, आध्यात्म के पुरोधा, सनातनी परंपरा के दो-दो मठों द्वारिका और ज्योतिर्मठ पीठ के अधीश्वर, ज्ञान के सागर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के दर्शन कर यही अनुभूति होती थी कि दुनिया में अगर पूर्णता है तो स्वरूपानंद सरस्वती जी की छत्र-छाया में ही है। ऐसा लगता नहीं था कि वह शतायु से पहले दुनिया से विदा लेंगे। पर सितंबर 11-22 का दिन इस महान आत्मा के विदा होने का साक्षी बन गया। दो-दो पीठों के अधीश्वर महान संत ने अंतिम सांस ली तो खुद स्थापित किए गए झोतेश्वर आश्रम में रहकर। यह स्थान उन्हें सर्वाधिक प्रिय था। और देह त्यागना या देह में प्रकट भाव में रहना जैसे विषय उन्हें न तो सताते थे और न ही लुभाते थे। जो बात दिल में आई, वह जुबां पर आ गई। विवाद कितने हों या समर्थन मिले या विरोध हो, जैसे शब्दों से वह परे थे। मध्यप्रदेश में जन्मे और मध्यप्रदेश से विदा हुए। यह मध्यप्रदेश की पावन धरा का सौभाग्य है। हम सबका अहोभाग्य है। जस की तस धर दीन्हीं चदरिया…की तरह स्वामी स्वरूपानंद जी का जीवन हमें प्रेरणा देता रहेगा। उनकी वाणी का प्रसाद जिसने ग्रहण किया, वह तृप्त हुए बिना नहीं रहा। यह अनुभूति की जा सकती है कि ऐसी महान आत्मा कभी विदा नहीं होती और उनका प्रेम, स्नेह और आशीर्वाद सुगंध बनकर हवा में रहकर सांसों के जरिए शरीरों की ऊर्जा का अक्षय स्रोत बना रहता है। आंखें नम हैं इस महान आत्मा के अनंत में विलीन होने पर।
आखिर भौतिक देह से मुक्त होने के चार माह आठ दिन बाद 20 जनवरी 2023 को हमें अनंत श्री विभूषित स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी की तपोभूमि और सबसे प्रिय भूमि के साथ समाधि स्थली के दर्शन का अवसर मिला। 2 सितंबर 1924 को जन्मे और 11 सितंबर 2022 को अंतिम सांस लेकर विदा हुए स्वामी स्वरूपानंद जी का जीवन दो अंक में समाहित रहा तो उन्हें 9 अंक सर्वाधिक प्रिय था और 99 की उम्र में ही वह इस नश्वर दुनिया से विदा हो गए। पर झोतेश्वर में आज भी उनके स्वरूप की अनुभूति का आनंद समाया हुआ है। यहां वह अपने स्वरूप में आज भी आनंद बिखेर रहे हैं……।