वे इशारा करके बोले ‘ये रही भगवान की चांदी!’
– आनंद शर्मा
पिछले सप्ताह अखबारों और सोशल मीडिया पर ये खबर ख़ूब छपी कि मशहूर उद्योगपति अंबानी ने सोमनाथ मंदिर में में दर्शन कर डेढ़ करोड़ रुपयों का दान दिया, हालांकि इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार अंबानी जी की संपत्ति आज की स्थिति में 83.6 अरब रुपए है, तो उसके मायने में ये राशि पासंग भी नहीं है। मेरे मत में तो दान ऐसा देना चाहिए कि इस हाथ का दिया दूसरे हाथ को भी पता न लगे।
बड़ी पुरानी कहानी है। अब्दुल रहीम खानखाना का दरबार लगा था और वे अपने सामने रखी अशर्फियों के ढेर से अपने सामने कतार में लगे लोगों को मुट्ठी भर भरकर अशर्फियाँ दान में दे रहे थे। दरबार में उपस्थित कवि गंग ने देखा कि एक व्यक्ति दान लेने के बाद फिर जाकर क़तार में लग गया और जब दोबारा उसका नम्बर आया तो रहीम में फिर अशर्फियों से भरी मुट्ठी उसकी झोली में छोड़ दी। महाकवि गंग ने ध्यान से देखा तो पाया की जब रहीम दान देने के लिए हाथ बढ़ाते हैं तो आँखें नीची कर लेते हैं, यानी ये देखते ही नहीं कि किसे दे रहे हैं। महाकवि समझ गये कि इसी गफलत का फायदा उठाकर ये बंदा दोबारा क़तार में लग कर दान ले गया है। ऐसा फिर न हो, सो सचेत करने के लिहाज़ से महाकवि ने रहीम से कहा
सीखी कहाँ नवाब जू, ऐसी देनी देन।
ज्यों ज्यों कर ऊँचे चढ़े, त्यों त्यों नीचे नैन॥
यानी ऐसे दान देना कहाँ से सीखा की जैसे जैसे दान की मात्रा बढ़ती हैं आपकी आँखें नीची होती जाती हैं और आप देखते भी नहीं हो कि किसे दे रहे हो। इस अतिशय विनम्रता के क्या मानी हैं।
जवाब में रहीम ने कहा
देनहार कोउ और है, देत रहत दिन रैन।
लोग भरम मोपे करें, ताते नीचे नैन॥
अर्थात देने वाला तो कोई और है यानी वो ईश्वर ही दाता है। वही देता है और उसके दिए को मैं लोगों को देता हूँ तो लोग समझते हैं कि मैं दे रहा हूँ! जबकि, दे तो वो परवरदिगार रहा है, इसलिए मारे शर्म के मैं अपनी आँखें नीचे कर लेता हूँ। कितना सुंदर भाव है।
एक और प्रसंग याद आ गया। महाकाल मंदिर में चाँदी का रुद्र यंत्र बन रहा था जिसके लिए लगभग अस्सी किलो चाँदी की आवश्यकता थी। दान में मंदिर के पास पचपन किलो चाँदी आ चुकी थी पर 25 अभी भी बाक़ी था। महाशिवरात्रि पर मानसिंहका जी पधारे, थे तो मूलतः राजस्थान के पर मक्सी में उनकी फैक्ट्री हुआ करती थी। मैंने उनसे निवेदन किया कि अपनी दान की मात्रा बढ़ा दो 25 किलो चांदी और दे दो। मानसिंहका जी ने पहले तो मना किया, पर जब भस्म आरती के बाद गर्भगृह से बाहर आये तो बोले आप दूसरों की चाँदी वापस कर दो, मैं पच्चीस नहीं बल्कि पूरी चाँदी अपनी और से कर देता हूँ। मैंने एक क्षण सोचा और फिर कहा कि दान में तो सबका अंश एक बराबर ही होता है, जिससे मैं इस काम के लिए चाँदी ले चुका हूँ उन्हें तो वापस नहीं कर पाऊँगा।
मानसिंहका जी की शर्त मान नहीं सकता था तो बात आई गई हो गई और पूर्ति हुई तब जब श्री महाकालेश्वर मंदिर में प्रसिद्ध संत स्वामी श्री विश्वात्मा नंद जी महाराज महामंडलेश्वर विरक्त मंडल पधारे। स्वामी जी महाकालेश्वर मंदिर के पीछे स्थित मंदिर की धर्मशाला में रुके थे। सुबह-सुबह मैं उज्जैन के कलेक्टर विनोद सेमवाल साहब के साथ धर्मशाला पहुँचा और हम दोनों जाकर स्वामी जी के पास बैठ गये। स्वामीजी ने मुझसे पूछा बताइए क्या चाहते हैं। मैंने उन्हें रूद्र मंत्र और मेहराब में लगने वाले चांदी के मंत्रों के बारे में संक्षिप्त में बताया और निवेदन किया कि मुझे 25 किलो चाँदी कम पड़ रही है, मैं आपसे यह चाँदी चाहता हूँ!
सुनकर वे हँसने लगे और बोले साधु के पास कहाँ सोना-चाँदी है? मैंने कहा कि जैसा आप उचित समझें, मेरे जो मन में आया वो निवेदन मैं कर चुका हूँ। दूसरे दिन सोमवार की सुबह उठकर मैं ऑफिस जाने के लिए तैयार ही हो रहा था कि मंदिर के मैनेजर विश्वकर्मा का फोन आया कि कोई साधु महाराज गर्भगृह में आ बैठे हैं और भगवान के आसपास ढेर चाँदी लगा कर दूध पर दूध चढ़ाए जा रहे हैं, कह रहे है कि तुम्हारे साहब को बुला दो। मंदिर जाकर देखा तो गर्भगृह में भगवान महाकालेश्वर के ज्योतिर्लिंग के समीप चाँदी की सिल्लियां सजी हैं और स्वामी विश्वात्मा नंद जी हाथ जोड़कर प्रार्थना कर रहे हैं। हमारी निगाहें मिली तो मुझे देखकर वे मुस्कुराए और इशारा करके बोले ‘ये रही भगवान की चाँदी।’