नगर निगम चुनाव (municipal elections) के पहले चरण में विंध्य ( Vindhya Region) की तीन सीटों में से दो, सिंगरौली (Singrauli) और सतना (Satna) के महापौर (Mayor) का फैसला हो गया है।
इस क्षेत्र की राजनीति के इपीसेंटर कहे जाने वाले रीवा (Rewa) नगर निगम के चुनाव का परिणाम 20 जुलाई को निकलेगा।
इन दोनों परिणामों के बारे में प्रथमदृष्टया कहें तो सतना में बीजेपी को योगेश ताम्रकार (Yogesh Tamrakar) की जीत के लिए कांग्रेस (Congress) के बागी बसपा उम्मीदवार सईद अहमद (Sayeed Ahmed) का अभिनंदन करना चाहिए।
सिंगरौली में बीजेपी संगठन की स्वेच्छाचारिता और सत्ता के दंभ ने ‘आम आदमी पार्टी’ के लिए आगे बढ़कर पथ प्रशस्त किया है।
यहां से रानी अग्रवाल 9 हजार से ज्यादा के सम्मानजनक अंतर से जीतीं हैं। इस तरह मध्यप्रदेश की मुख्यधारा की राजनीति में ‘आप’ के लिए दरवाजा खुले हैं।
◆संघ के गढ़ सतना के संकेतों को
ऐसे समझिए
मतगणना के अंतिम परिणाम में बीजेपी के योगेश ताम्रकार को 62975 मत, कांग्रेस के सिद्धार्थ कुशवाहा को 38228 मत और बसपा के सईद अहमद को 26094 मत मिले हैं।
यानी कि बीजेपी यहां 24747 मतों से जीती है। यह संख्या जितनी बड़ी है, उतनी उत्साह जनक नहीं है। वजह कांग्रेस के 38228 में कांग्रेस के बागी और बसपा प्रत्याशी सईद के वोट 26094 जोड़ दिए जाएं तो यह संख्या पहुंचती है 64322। यानी कि बीजेपी को मिले वोट से पौने 2 हजार ज्यादा हैं।
यद्यपि यह भी कहना सही नहीं होगा कि सईद अहमद न लड़ते तो ये पूरे वोट कांग्रेस को मिल ही जाते। लेकिन जीतने के लिए बीजेपी के दांतों पसीना आता और जीत का फासला बमुश्किल हजार-बारह सौ में सिमट जाता। बीजेपी को इस जीत के संकेत समझने होंगे
इस दृष्टि से देखें तो सतना में बीजेपी को इस जीत के लिए कांग्रेस के बागी सईद अहमद का अभिनंदन करना चाहिए। महापौर के पिछले चुनाव में बीजेपी यहां से 28000 मतों से जीती थी। जबकि कांग्रेस से उसका सीधा मुकाबला था।
2018 के विधानसभा चुनाव में सतना जिले की 7 सीटों में कांग्रेस को 2 मिली थीं। फिर रैंगांव उपचुनाव में एक और जुड़ गई।
संकेत यह कि यहां बीजेपी की साइज घट रही है और कांग्रेस नाले से निकलकर नदी तक पहुंचने की ओर अग्रसर है।
कुलमिलाकर इस जीत पर बीजेपी को फूलकर कुप्पा होने की जगह इसके संकेतों को समझने की जरूरत होगी।
◆सिंगरौली को सिंगुर बना देने का खामियाजा तो भुगतना ही होगा..
अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने मध्यप्रदेश की राजनीति में जिस सिंगरौली से दस्तक दी है, उसके जियोपॉलिटिकल महत्व पर अभी शायद किसी की नजर नहीं है।
सिंगरौली मध्यप्रदेश का वह भू-भाग है, जहां से उत्तरप्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ की सीमा लगती हैं। कोयला और बिजली के इस क्षेत्र की आबादी में यूपी, बिहार, बंगाल, उड़ीसा के लोग भी हैं, जो वोट देते हैं।
‘आप’ का यहां से इसलिए भी जीतना उल्लेखनीय हो जाता है।
इस चुनाव का परिणाम कहता है कि यहां अब बीजेपी का वह बुखार उतरने लगा है, जो 2008 में जिला बनाने के साथ ही जनजन में चढ़ गया था।
सिंगरौली को जिला बनाना शिवराज सिंह चौहान का बतौर मुख्यमंत्री एक मास्टर स्ट्रोक था। तब से अब तक हुए विधानसभा- लोकसभा चुनावों में यहां की जनता झोलीफाड़ समर्थन देती आई है।
सिंगरौली को जिला बनाते समय शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि वो इसे सिंगापुर बना देंगे। यथार्थ में हुआ उल्टा सिंगरौली सिंगुर बन गया। वहीं सिंगुर (लुटा-पिटा और पूँजीपतियों द्वारा शोषित) जिसने ममता बनर्जी को राजनीतिक प्राणवायु दिया।
इन 14 वर्षों में सीधी से सिंगरौली की एक अदद सड़क तक चलने लायक नहीं बना पाए और इस बीच सिंगरौली.. अंबानी, अड़ानी, रुइया, बिरला और भी कई छोटे मझोले उद्योगपतियों का भू-वन हड़प साम्राज्य स्थापित हो गया।
◆आप ने पूरे शोध अध्ययन के साथ सिंगरौली को अपना ठिकाना बनाया..
बीजेपी के संगठन की स्वेच्छाचारिता और सत्ता के दंभ ने राजनीति के नए विकल्प के लिए जगह दी। वर्षों तक कांग्रेस से और अब बीजेपी से छले जाने के बाद ‘आम आदमी पार्टी’ ने पूरे शोध अध्ययन के साथ सिंगरौली को अपना ठिकाना बनाया है।
इस नगर निगम चुनाव में 9 हजार से अधिक मतों से विजयी हुईं रानी अग्रवाल की जीत के मायने वैसे नहीं जैसे कि अन्य महापौरों के हैं। यहां की जनता ने कांग्रेस और भाजपा को लगभग बराबरी से तौलकर भी यह संदेश दिया है अब यहाँ की राजनीति में ये दोनों दल एक ही थैली के चट्टे-बट्टे।