सुनी सुनाई: दो पुलिस अफसरों में झगड़ा, एक ने नौकरी छोड़ी!

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सुनी सुनाई: दो पुलिस अफसरों में झगड़ा, एक ने नौकरी छोड़ी!

पुलिस मुख्यालय की भर्ती एवं चयन शाखा के एआईजी (राज्य पुलिस सेवा के वरिष्ठ अफसर) अमित सिंह ने आखिर नौकरी से इस्तीफा दे दिया है। मप्र में शानदार अफसर रहे अमित सिंह के इस्तीफे को लेकर दो खबरें तैर रही हैं। पहली – वे समय पर प्रमोशन न मिलने से दुखी थे। दूसरी – उनका पीएचक्यु में ही पदस्थ एक एडीजी से पंगा हो गया था। इन एडीजी की कथित प्रताड़ना से तंग आकर अमित सिंह पहले तो लंबी छुट्टी चले गये। लेकिन सरकार ने उन्हें एडीजी के चुंगल से मुक्त नहीं किया तो इस सप्ताह उन्होंने इस्तीफा पटक दिया है। अमित सिंह इस कदर दुखी बताये जा रहे हैं कि उन्होंने इस्तीफे के साथ तीन माह के वेतन का चेक भी भेजा है, ताकि उनका इस्तीफा तत्काल मंजूर हो जाए। अमित सिंह का इस तरह नौकरी छोड़ना राज्य पुलिस सेवा के अफसरों में तीखी चर्चा का विषय बन गया है।

 

*पेसा कॉर्डिनेटर भर्ती घोटाला बना बड़ा मुद्दा*

मप्र के 89 आदिवासी बहुल ब्लाॅक में पेसा कानून को लागू कराने, उसके प्रचार प्रसार के लिए राज्य सरकार ने सेडमेप के माध्यम से 89 पेसा कॉर्डिनेटर की भर्ती की है। आदिवासी इलाकों में इस भर्ती को लेकर भारी बबाल मचा हुआ है। दरअसल इस भर्ती के लिए विधिवत आवेदन बुलाये गये। लाखों आवेदकों में 890 आवेदक छांटकर उन्हें साक्षात्कार के लिये बुलाया गया। लेकिन एनवक्त पर साक्षात्कार रद्द करके गूपचुप तरीके से 89 लोगों की भर्ती कर दी गई। जय आदिवासी युवा संगठन का आरोप है कि संघ व भाजपा के लोगों को नियुक्ति पत्र थमा दिये हैं। यह लोग पेसा कानून का प्रचार करने के बजाय 89 ब्लाॅक में भाजपा के चुनावी बूथ मैनेजमेंट का काम करेंगे। जयस ने इस भर्ती घोटाले को आदिवासी युवाओं के बीच बड़ा मुद्दा बना दिया है। सोशल मीडिया पर यह भर्ती घोटाला सबसे अधिक चर्चा में है।

*ईडी के डर से रिटायर अफसरों की नींद उड़ी!*

मप्र में जल संसाधन विभाग को धन संसाधन विभाग बनाकर रख देने वाले कुछ रिटायर अफसरों की सांसें फूली हुई हैं। प्रवर्तन निर्देशालय (ईडी) की कार्रवाई का डर इस कदर सता रहा है कि इनकी नींद उड़ी हुई है। कुछ तो तनाव में बीमार हो गये हैं। दरअसल ईडी को मप्र में पिछले 12 वर्ष में हुए घपले घोटाले का पूरा सच पता चल गया है। इस बड़े भ्रष्टाचार में ईडी ने फिलहाल मप्र के पूर्व मुख्यसचिव एम गोपाल रेड्डी को हिरासत में लेकर पूछताछ करने का आदेश सुप्रीम कोर्ट से ले लिया है। ईडी अब किसी भी क्षण गोपाल रेड्डी को गिरफ्तार कर सकती है। जल संसाधन विभाग में सबसे लंबे समय तक रहकर मलाई सूतने वाले एक रिटायर आईएएस अफसर ने ईडी के डर से अपनी बीमारी का सर्टिफिकेट बनवाकर रख लिया है। विभाग में लगातार पांच वर्ष एक्सटेंशन लेने वाले पूर्व ईएनसी को भी आशंका है कि ईडी कभी भी हथकड़ी लेकर उनके दरवाजे पर पहुंच सकती है। इन पूर्व ईएनसी के खिलाफ ईओडब्ल्यु ने भी भ्रष्टाचार की एफआईआर दर्ज कर ली है।

*शिवराज पूरी तरह चुनावी मोड पर!*

मप्र में विधानसभा चुनाव में अभी 9 महीने बाकी हैं। लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पूरी तरह चुनावी मोड पर आ चुके हैं। इस सप्ताह विधानसभा में लोक लुभावना बजट, भाजपा कोर कमेटी की बैठक और राज्य सरकार की लाडली बहना योजना देखकर लगता है शिवराज सिंह चौहान का फोकस मप्र में पांचवीं बार भाजपा की सरकार बनाना है। हेलीकॉप्टर में गैंथी लेकर आदिवासियों के बीच पहुंच कर हलमा प्रथा में श्रमदान करना, भगोरिया मेले में आदिवासी वेशभूषा में काला चश्मा लगाकर नृत्य करना। भोपाल में लाडली बहनों के सामने घुटने टेक देना। अपने निवास पर भाजपा कोर ग्रुप की बैठक में सभी वरिष्ठ नेताओं को इस बात के लिए सहमत कर लेना कि अब मंत्रियों पर सख्ती की जाएगी। मंत्रियों के विभाग और प्रभार बदले जा सकते हैं। कुछ मंत्री हट भी सकते हैं। कुछ नये बन सकते हैं यानि शिवराज सिंह चौहान पूरी तरह चुनावी मोड पर आ चुके हैं।

 

*प्रदेशाध्यक्ष की दौड़ में जीतू पटवारी*

मप्र में विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में बड़ा परिवर्तन देखने मिल सकता है! कमलनाथ पर दबाव है कि प्रदेशाध्यक्ष की कुर्सी जीतू पटवारी को सौंपी जाए। बदले में कमलनाथ को मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित किया जाए। लेकिन कमलनाथ की कोटरी के लोग जीतू पटवारी को रोकने में पूरी ताकत लगाए हुए हैं। वैसे मप्र कांग्रेस में जीतू पटवारी सबसे अधिक सक्रिय चेहरा है। उनकी छवि बेदाग है और वह पूरी ताकत से सरकार से दो दो हाथ कर रहे हैं। जीतू पटवारी ने राहुल गांधी को कन्वेंस कर दिया है कि यदि उन्हें प्रदेशाध्यक्ष बनाया जाता है तो वे परिश्रम की पराकाष्ठा कर मप्र में कांग्रेस सरकार बनवा सकते हैं। जीतू पटवारी को यदि संगठन की बागडोर मिलती है तो मप्र कांग्रेस बुढापे के श्राप से भी मुक्त हो सकती है।

*गोपाल भार्गव आजकल परेशान हैं!*

मप्र के सबसे वरिष्ठ मंत्री गोपाल भार्गव आजकल परेशान बताये जा रहे हैं। उनके सामने दो परेशानी है। पहली – अपनी राजनीतिक विरासत को बचाने की। दूसरी – अपने विभाग में प्रमुख सचिव से टकराव की। चर्चा है कि इस बार भाजपा 70 पार के बहाने गोपाल भार्गव की टिकट काट सकती है। लेकिन गोपाल भार्गव इसी शर्त पर रिटायर होंगे कि उनके बेटे को टिकट दी जाए। पिछले दिनों भाजपा के सह संगठन मंत्री अजय जामवाल अचानक उनके घर भी पहुंचे थे। यह भी खबर आ रही है कि गोपाल भार्गव की अपने विभाग के प्रमुख सचिव से पटरी नहीं बैठ रही है। लोक निर्माण विभाग के प्रमुख सचिव ने मंत्रीजी के गृह जिले सागर का दौरा किया और लगभग 5 अफसरों को सस्पेंड कर दिया है। इनमें एक गोपाल भार्गव का बेहद करीबी जूनियर इंजीनियर भी शामिल है। प्रमुख सचिव ने पूरे मप्र में दौरे तक स्वयं निर्माण कार्यों की समीक्षा करने और विभाग के भ्रष्ट व लापरवाह अफसरों को घर बिठाने की मुहिम शुरु कर दी है। इस मुहिम में गोपाल भार्गव को पूरी तरह अलग थलग रखा गया है।

*और अंत में….!*

मप्र के जिस आयुष्मान घोटाले की जांच को लेकर लोकायुक्त संगठन में लोकायुक्त और तत्कालीन महानिदेशक कैलाश मकवाना के बीच टकराव हुआ था। इस टकराव के चलते मकवाना को लोकायुक्त से हटना पड़ा था। उसी आयुष्मान घोटाले को इस सप्ताह भोपाल क्राइम ब्रांच ने पकड़ा। हालांकि क्राइम ब्रांच ने इस घोटाले की छोटी छोटी मछलियों को पकड़ा। जबकि मकवाना के पास इस घोटाले के बड़े बड़े मगरमच्छों के खिलाफ पर्याप्त सबूत थे। क्राइम ब्रांच की कार्रवाई के बाद एक बार फिर आयुष्मान घोटाले की चर्चा तेज हो गई है। यह भी सवाल पूछा जा रहा है कि मप्र के ईमानदार लोकायुक्त महोदय ने आखिर आयुष्मान घोटाले की जांच की अनुमति क्यों नहीं दी।