Hearing on Waqf Properties : सुप्रीम कोर्ट का वक्फ कानून पर रोक से इंकार, पूछा कि वक्‍फ बाई यूजर को कैसे रजिस्टर करेंगे!

केंद्र सरकार ने अदालत से आग्रह किया कि कोई आदेश देने से पहले उसे सुना जाए, अगली सुनवाई 17 अप्रैल को!

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Hearing on Waqf Properties : सुप्रीम कोर्ट का वक्फ कानून पर रोक से इंकार, पूछा कि वक्‍फ बाई यूजर को कैसे रजिस्टर करेंगे!

 

New Delhi : सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि जब 100 या 200 साल पहले किसी सार्वजनिक ट्रस्ट को वक्फ घोषित किया जाता था, तो उसे अचानक वक्फ बोर्ड की ओर से अपने अधीन नहीं लिया जा सकता और अन्यथा घोषित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने इस मामले में बुधवार को कोई आदेश या निर्देश नहीं दिया। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने मौखिक रूप से कहा कि जो भी संपत्ति उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ या न्यायालय द्वारा घोषित की गई है, उसे अधिसूचित नहीं किया जाएगा।

हालांकि केंद्र सरकार ने इस पर आपत्ति जताई और अदालत से आग्रह किया कि इस पर कोई आदेश देने से पहले उसे सुना जाए।

कोर्ट ने आज की सुनवाई में यह भी स्पष्ट किया कि कानून पर रोक की मांग पर कोई सुनवाई नहीं होगी।

वहीं सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 17 अप्रैल दोपहर 2 बजे अगली सुनवाई तय की है।

आज बुधवार (16 अप्रैल) को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और केवी विश्वनाथन की पीठ ने वक्फ कानून पर सुनवाई की। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि क्या मुसलमानों को हिंदू धार्मिक ट्रस्टों का हिस्सा बनने की अनुमति दी जाएगी? केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल और अधिनियम के समर्थकों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट को भरोसा दिलाया कि वक्फ अधिनियम में किए गए संशोधन पूरी तरह संविधान सम्मत हैं और इनमें मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की कोई बात नहीं है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से यह भी कहा कि वक्‍फ बाई यूजर को खत्म करने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि इसका दुरुपयोग भी हुआ है

 

वक्‍फ बाई यूजर को कैसे रजिस्टर करेंगे, सुप्रीम कोर्ट ने पूछा

वक्‍फ बाई यूजर के प्रावधान को हटाने पर सवाल उठाते हुए चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने पूछा कि ब्रिटिश हुकुमत से पहले वक्फ रेजिस्ट्रेशन की व्यवस्था नहीं थी। कोर्ट ने कहा कि बहुत सारी मस्जिदें 13वीं, 14वीं, 15वीं शताब्दी की बनी हैं। आप चाहते हैं कि आपको सेड डीड दिखाएं, लेकिन वे कहां से दिखाएंगे? आप वक्‍फ बाई यूजर को कैसे रजिस्टर करेंगे? यह पहले से स्थापित किसी चीज को खत्म करना होगा। आप यह नहीं कह सकते कि कोई वास्तविक नहीं होगा।

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल सहित कई वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने पक्ष रखा। सिब्बल ने कहा कि यह संशोधन संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन करता है, जो धार्मिक समुदायों को अपने धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता देता है। उन्होंने सवाल उठाया कि कानून के मुताबिक, मुझे अपने धर्म की आवश्यक प्रथाओं का पालन करने का अधिकार है। सरकार कैसे तय कर सकती है कि वक्फ केवल वही लोग बना सकते हैं, जो पिछले पांच साल से इस्लाम का पालन कर रहे हैं?

सिब्बल ने यह भी तर्क दिया कि इस्लाम में उत्तराधिकार मृत्यु के बाद मिलता है, लेकिन यह कानून उससे पहले ही हस्तक्षेप करता है। उन्होंने अधिनियम की धारा 3(सी) का हवाला देते हुए कहा कि इसके तहत सरकारी संपत्ति को वक्फ के रूप में मान्यता नहीं दी जाएगी, जो पहले से वक्फ घोषित थी।

याचिकाकर्ता की तरफ से सिब्बल ने राम जन्मभूमि के फैसले का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि धारा 36, आप उपयोगकर्ता द्वारा बना सकते हैं, संपत्ति की कोई आवश्यकता नहीं है। मान लीजिए कि यह मेरी अपनी संपत्ति है और मैं इसका उपयोग करना चाहता हूं, मैं पंजीकरण नहीं करना चाहता।

सुप्रीम कोर्ट ने सिब्बल से पूछा कि पंजीकरण में क्या समस्या है? सिब्बल ने कहा कि मैं कह रहा हूं कि उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ को समाप्त कर दिया गया है, यह मेरे धर्म का अभिन्न अंग है, इसे राम जन्मभूमि फैसले में मान्यता दी गई है। सिब्बल ने कहा कि समस्या यह है कि वे कहेंगे कि यदि वक्फ 3000 साल पहले बनाया गया है तो वे डीड मांगेंगे?

वरिष्ठ वकील सीयू सिंह ने कहा कि अनुच्छेद 26 देखें, मैं आवश्यक धार्मिक तर्क से भटक रहा हूं, यह यहां महत्वपूर्ण नहीं है। कृपया धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के बीच अंतर देखें, इसमें धार्मिक आवश्यक अभ्यास के प्रश्न का उत्तर देने की आवश्यकता नहीं है। तुषार मेहता ने कहा कि मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग वक्फ अधिनियम के तहत शासित नहीं होना चाहता। पीठ ने इसके बाद मेहता से पूछा कि क्या आप यह कह रहे हैं कि अब से आप मुसलमानों को हिंदू बंदोबस्ती बोर्ड का हिस्सा बनने की अनुमति देंगे, इसे खुलकर कहें।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब 100 या 200 साल पहले किसी सार्वजनिक ट्रस्ट को वक्फ घोषित किया जाता था, तो उसे अचानक वक्फ बोर्ड की ओर से अपने अधीन नहीं लिया जा सकता और अन्यथा घोषित नहीं किया जा सकता था। पीठ ने कहा कि आप अतीत को दोबारा नहीं लिख सकते।