यहां हर सोमवार को छोड़ बाकी दिनों हर शाम होता है प्रलय …

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यहां हर शाम साढ़े सात बजे के बाद यमराज उत्पात मचाते हैं। धरती, जल, अग्नि, आकाश और पवन के जरिए जितना प्रलय मचाया जा सकता है, वह सब यमराज दिखाते हैं। धरती से निकलने वाले ज्वालामुखी, भूकंप यहां दहला देते हैं। इंसानों को कांपने पर मजबूर कर देते हैं। जल प्रलय के सामने तो जन-जीव-जंतु की जान का कोई मोल ही नहीं है। अग्नि का प्रलय तो मानो साक्षात यमराज के रूप में भय व्याप्त कर देता है। पवन का प्रलय आंधी-तूफान बन हर मन को व्याकुल करने में क्षण भर भी नहीं गंवाता।

और गगन का प्रलय आकाश से बिजली बनकर बरसने वाली मौत के रूप में जिसने अनुभव किया होगा, वह मौत का सही रूप जानता ही होगा। यह तो प्रलय के रूप में यमराज का घिनौना रूप या यह माना जाए कि कुरूप यमराज के यह दीदार किसी को भी थर-थर कांपने पर मजबूर कर सकते हैं। नजारा भले ही प्रलय का हो, लेकिन जिस तरह इसे दुनिया के बेहतरीन वाटर-लेजर शो के जरिए दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया जाता है…उससे मानो हर व्यक्ति सत्य से ओतप्रोत नजर आता है। और ठीक इसके बाद ही दर्शकों को यमराज अपना सुंदर रूप दिखाते हैं।

और उसके ठीक बाद यमराज अपना आध्यात्मिक रूप दिखाकर जीवन-मृत्यु, आत्मा,शरीर और मन से जुड़ी हर मानवीय जिज्ञासा का समाधान करते हैं। मानो इंसान यथार्थ के करीब पहुंचकर माया संसार, नश्वर जीवन की हकीकत से रूबरू हो जाता है। दृश्य-श्रव्य, स्क्रिप्ट और संवाद अदायगी की इतनी प्रभावी प्रस्तुति, मानो सच्चाई रूह के जरिए नश्वर देह को भेदते हुए सीधे आत्मा से एकाकार हो जाती है। और इंसान अक्षर के धाम में स्वामी नारायण की कृपा का भागी बन जाता है।

गांधीनगर के अक्षरधाम मंदिर का यह वाटर-लेजर शो और लाइट-साउंड का बेहतरीन संयोजन आध्यात्म की गंगा बहाकर हर दर्शक को मंत्रमुग्ध कर देता है। बूढ़ा हो या जवान, बच्चा हो या महिला-पुरूष कोई भी, सभी का दिमाग सच से सामना करने को मजबूर होता है। हर दिन हजारों लोग इस सच के साक्षी बनते हैं। केवल सोमवार को यह शो बंद रहता है और बाकी छह दिन यमराज अपने प्रिय नचिकेता को पहले तो बहुत सारे प्रलोभन देते हैं कि वह जीवन-मौत संबंधी सवाल का जवाब न मांगे।

पर जब प्रलोभनों में न आकर नचिकेता यमराज से सीधा सवाल करता है कि क्या जिस वैभव और संपदा का वह प्रलोभन दे रहे हैं, वह हमेशा उसके साथ रहेगी और क्या उसकी मौत कभी नहीं होगी, तो यमराज का सीधा जवाब मिलता है कि नहीं। और नचिकेता तब यमराज पर सीधा शाब्दिक वार करता है कि तब उसे किसी तरह का प्रलोभन स्वीकार नहीं है। तब यमराज फिर अपना आध्यात्मिक रूप दिखाकर बालक नचिकेता की सभी जिज्ञासाओं का समाधान कर उसे असीम वैभव का पात्र बना देते हैं। यह लेजर शो सोमवार को बंद रहता है, बाकी छह दिन में लोग भारी संख्या में इस शो का आनंद उछाते हैं।

नचिकेता और यमराज के बीच हुए संवाद का उल्लेख हमें कठोपनिषद में मिलता है। नचिकेता के पिता जब विश्वजीत यज्ञ के बाद बूढ़ी एवं बीमार गायों को ब्राह्मणों को दान में देने लगे तो नचिकेता ने अपने पिता से पूछा कि आप मुझे दान में किसे देंगे? तब नचिकेता के पिता क्रोध से भरकर बोले कि मैं तुम्हें यमराज को दान में दूंगा। चूंकि ये शब्द यज्ञ के समय कहे गए थे, अतः नचिकेता को यमराज के पास जाना ही पड़ा। यमराज अपने महल से बाहर थे, इस कारण नचिकेता ने तीन दिन एवं तीन रातों तक यमराज के महल के बाहर प्रतीक्षा की।

तीन दिन बाद जब यमराज आए तो उन्होंने इस धीरज भरी प्रतीक्षा से प्रसन्न होकर नचिकेता से तीन वरदान मांगने को कहा। नचिकेता ने पहले वरदान में कहा कि जब वह घर वापस पहुंचे तो उसके पिता उसे स्वीकार करें एवं उसके पिता का क्रोध शांत हो। दूसरे वरदान में नचिकेता ने जानना चाहा कि क्या देवी-देवता स्वर्ग में अजर एवं अमर रहते हैं और निर्भय होकर विचरण करते हैं! तब यमराज ने नचिकेता को अग्नि ज्ञान दिया, जिसे नचिकेताग्नि भी कहते हैं। तीसरे वरदान में नचिकेता ने पूछा कि ‘हे यमराज, सुना है कि आत्मा अजर-अमर है।

मृत्यु एवं जीवन का चक्र चलता रहता है। लेकिन आत्मा न कभी जन्म लेती है और न ही कभी मरती है।’ नचिकेता ने पूछा कि इस मृत्यु एवं जन्म का रहस्य क्या है? क्या इस चक्र से बाहर आने का कोई उपाय है? तब यमराज ने कहा कि यह प्रश्न मत पूछो, मैं तुम्हें अपार धन, संपदा, राज्य इत्यादि इस प्रश्न के बदले दे दूंगा। लेकिन नचिकेता अडिग रहे और तब यमराज ने नचिकेता को आत्मज्ञान दिया। नचिकेता द्वारा प्राप्त किया गया आत्मज्ञान आज भी प्रासंगिक और विश्‍व प्रसिद्ध है। क्योंकि सत्य हमेशा प्रासंगिक ही होता है। इस सत्य की प्रासंगिकता को अक्षरधाम स्वामी नारायण मंदिर वाटर शो मानो जन-जन तक पहुंचाने का सशक्त जरिया बन चुका है। गांधीनगर आकर अक्षरधाम मंदिर जरूर जाना चाहिए हर पर्यटक को जीवन-मौत का सच जानने के लिए।