हिंदी दिवस विशेष:हिंदी जाहिलों की भाषा नहीं, इसमें भी रोजगार की संभावना अपार!

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हिंदी दिवस विशेष:हिंदी जाहिलों की भाषा नहीं, इसमें भी रोजगार की संभावना अपार!

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– डॉ वत्सला

 

संस्कृत के बाद हिंदी भाषा में ही हमारी आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक, ऐतिहासिक, राजनीतिक, विरासत सुरक्षित हैं। इसके साथ ही लोक कथाएं, लोककला, लोकाचार और लोक परंपरा सब सुरक्षित व संरक्षित है। हिंदी भाषा के प्रति बड़े-बड़े महापुरुषों, वैज्ञानिकों राजनीतिज्ञों, फिल्मकारों तथा अशिक्षित व्यक्तियों की भी प्रगाढ़ अभिरुचि देखने को मिलती है। फिर भी हिंदी भाषा को लोग सदा कमतर आते हैं। हिंदी भाषा में दक्षता प्राप्त करने के लिए आपको किसी डिग्री की आवश्यकता नहीं होती है अशिक्षित तथा कम पढ़े लिखे लोग भी हिंदी में बहुत ही उत्तम लेखन कार्य किए हैं और वर्तमान में भी कर रहे हैं। यदि भूतकाल और वर्तमान पर दृष्टि डालें तो ऐसी कई नामावलियों देखने को मिल जाएगी जैसे कबीर, रवीन्द्रनाथ टैगोर कालिदास, रविदास, रहीम, रसखान, दादू दयाल तुलसी आदि।

हिंदी के साथ यह बहुत बड़ी विडम्बना रही कि जब अंग्रेज भारत आए तो उन्होंने योजनाबद्ध तरीके से भारतीय शिक्षा व संस्कृति को पिछड़ी व अनुपयोगी बताकर एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था को भारतीयों के ऊपर थोपा, जो थी तो भारतीय पर मन मस्तिष्क से अंग्रेजी की पूजा करने वाली थीं। अंग्रेजों की शिक्षा नीति का उद्देश्य संस्कृत , पाली एवं फारसी भाषा के वर्चस्व को तोड़कर अंग्रेजी की संप्रभुता स्थापित करना था। इसलिए 1835 ईस्वी में मैकाले ने संस्कृत के स्थान पर अंग्रेजी को राजभाषा के पद पर आसीन कर दिया। इसका हमारी भाषा व संस्कृति पर दूरगामी प्रभाव पड़ा। हिंदी भाषा के अध्ययन के प्रति लोग उदासीन हो गए। लेकिन, हिंदी भाषा की लौ को अंग्रेज बुझा ना सकें। समाज के लोग अवश्य अंग्रेजी भाषा के भक्त बन गए लेकिन हिंदी साहित्य के साहित्यकारों, समाज सुधारकों, बड़े-बड़े महापुरुषों, विद्वानों ने हिंदी का अलख जगाए रखा और हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का पुरजोर प्रयास किया। किंतु राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण वह संभव नहीं हो सका।

किंतु स्वतंत्रता के समय भारतेंदु हरिश्चंद्र ने खड़ी बोली के माध्यम से नवजागरण का शंखनाद किया। भारतेंदु हरिश्चंद्र जी के साथ बाबू श्याम सुंदर दास, प्रताप नारायण मिश्र आदि कितने ही हिंदी प्रेमियों ने हिंदी की मशाल को आगे बढ़ाया। भारतेंदु जी का मत था कि समस्त उन्नति अपनी भाषा पर ही आश्रित है। ‘निज भाषा उन्नति अहै,सब उन्नति को मूल। बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटे न हिय को शूल।’ प्रताप नारायण मिश्र ने कहा ‘सब मिलि बोलो एक समान हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान।’ आज हिंदी आसेतु कैलाश पर्वत व्याप्त है। हिंदी आरंभिक काल से ही बड़ी सशक्त और समर्थ भाषा रही है। भारत का स्वतंत्रता आंदोलन हिंदी भाषा के बलबूते पर लड़ा गया। स्वतंत्रता आंदोलन के समय देशभक्ति की भावना को जगाने के लिए हिंदी सबसे बड़ा संबल थी। अनेक कवियों व कवित्रियों ने अपनी लेखनी से देश को गुलामी से मुक्त कराने के लिए उत्प्रेरक रचनाएं लिखी जैसे मैथिलीशरण गुप्त,श्याम नारायण पांडे, रामधारी सिंह दिनकर, सोहनलाल द्विवेदी, सुभद्रा कुमारी चौहान आदि न जाने कितने कवियों ने अपनी रचनाओं से देश भक्ति की भावना जन-जन तक पहुंचाई तथा युवा शक्ति की चेतना को जोश से भर दिया। भारत की स्वतंत्रता के पश्चात निरंतर यह प्रयास किया गया कि हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, किंतु इस दिशा में सफलता अभी तक नहीं मिली।

हिंदी हमारी राजभाषा है ऐसा केंद्रीय राजभाषा विभाग द्वारा कहा गया है। 14 सितंबर, 1949 को इसे राजभाषा घोषित किया गया, किंतु वर्तमान में हिंदी राष्ट्रभाषा का स्थान ग्रहण कर रही है। भारत में 28 राज्य हैं किंतु 10 राज्यों में हिंदी बोली जाती है। लेकिन, अन्य राज्यों में भी हिंदी वैश्वीकरण और उदारीकरण के कारण प्रसृत हो गई। आज हिंदी वैश्विक स्तर पर भी व्याप्त हो गई है। हिंदी अमेरिका, यूरोप अफ्रीका, एशिया ऑस्ट्रेलिया सहित 193 देशों में फैल गई हैं। आज 50 करोड़ लोग हिंदी बोलते हैं और 90 करोड़ लोग हिंदी समझते हैं। हिंदी भाषा में उच्च शिक्षा प्राप्त कर विद्यार्थी प्राथमिक, माध्यमिक, विद्यालयों, केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के विद्यालयों में नवोदय विद्यालयों में शिक्षक बन सकते हैं। यदि किसी ने पीएचडी .की उपाधि हिंदी भाषा में प्राप्त कर ली है तो वह सरकारी, अर्ध सरकारी, महाविद्यालयों विश्वविद्यालयों में सहायक अध्यापक बन सकते हैं। आप लेखक, कवि ,साहित्यकार बन सकते हैं।

सरकारी, गैर सरकारी, अर्ध सरकारी, राजभाषा विभाग, संस्कृति मंत्रालय से निकलने वाली पत्रिकाओं के संपादक, उपसंपादक बन सकते हैं। पत्रिकाओं के ईक्ष्य शोधक (प्रूफरीडर) बन सकते हैं। टीवी, रेडियो पर जो काम करना चाहते हैं वे पत्रकारिता, जनसंचार में डिप्लोमा-डिग्री के साथ हिंदी में अकादमिक योग्यता हो तो वे इस क्षेत्र में प्रवेश कर सकते हैं। आपकी आवाज और आपका उच्चारण सही व सुमधुर हो तो आप समाचार वाचक आकाशवाणी, दूरदर्शन तथा अन्य निजी चैनलों के बन सकते हैं। समाचार पत्रों में पत्रकार, सोशल मीडिया के चैनलों पर पत्रकार, संवाददाता, रिपोर्टर बन सकते हैं। रेडियो, टीवी सिनेमा में आपको पटकथा लेखक, संवाद लेखक, गीतकार, गजलकार के रूप में अवसर उपलब्ध हो सकते हैं। इसके लिए सृजनात्मक लेखन में डिग्री/ डिप्लोमा आपके जीवन में चार चांद लगा सकते हैं। द्वि भाषायी दक्षता होने पर अंतरराष्ट्रीय लेखकों के ग्रंथों का हिंदी में अनुवाद तथा हिंदी लेखकों की कृतियों का अंग्रेजी तथा अन्य विदेशी भाषाओं में अनुवाद कर रोजगार तथा यश दोनों को प्राप्त कर सकते हैं।

विज्ञापनों का हिंदी और अंग्रेजी में अनुवाद कर सकते हैं। स्वतंत्र अनुवादक के रूप में कार्य कर सकते हैं। विदेशी एजेंसियों से भी अनुवाद परियोजनाओं के अवसर प्राप्त होते हैं। यह कार्य आसानी से इंटरनेट के माध्यम से किया जा सकता हैं। विश्व में अनेक भाषा कंपनियां है जो बहुभाषी सेवाएं उपलब्ध कराती हैं। ये कंपनियां अनुबंध के आधार पर सेवाएं प्रदान करती हैं। इन फर्मों में रोजगार के अवसर स्थाई या स्वतंत्र अनुवादक तथा भाषांतर कारों के रूप में उपलब्ध होते हैं। अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशन संस्थानों में अनुवादक, संपादक और कंपोजर के रूप में रोजगार के व्यापक अवसर मौजूद है। अंतरराष्ट्रीय प्रकाशन संस्थानों ने बड़े पैमाने पर पुस्तकों को अनूदित एवं रूपांतरण करके हिंदी में प्रकाशित करना प्रारंभ कर दिया है।आप इसमें भी आजीविका प्राप्त कर सकते हैं।

केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार के राजभाषा विभाग में हिंदी अनुवादक, हिंदी सहायक के पद होते हैं जिन्हें हिंदी के ज्ञाता प्राप्त कर सकते हैं। केंद्रीय हिंदी संस्थान तथा राज्य में स्थापित हिंदी संस्थान व अकादमियों में ऐसे अनेक पद होते हैं,जिनमें विद्यार्थी रोजगार पा सकते हैं। बैंकों में हिंदी अधिकारी के पद होते हैं, जिसे युवा प्राप्त कर सकते हैं। सैन्य अकादमी में भी हिन्दी द्वारा रोजगार के अवसर उपलब्ध हैं। हिंदी में नए-नए पाठ्यक्रम खुल गए हैं जिनमें प्रवेश लेकर युवा शक्ति आजीविका प्राप्त कर सकती हैं यथा अनुवाद हिंदी स्नातकोत्तर व डिप्लोमा, सृजनात्मक लेखन में स्नातकोत्तर व डिप्लोमा, कार्यात्मक हिंदी में डिप्लोमा, पत्रकारिता व जनसंचार में स्नातकोत्तर व डिप्लोमा।

तकनीकी भाषा के रूप में हिंदी की शुरुआत 1991 में हुई। भारतीय भाषा प्रौद्योगिकी विकास मिशन की स्थापना के साथ हुई। राजभाषा विभाग के सूचना व प्रौद्योगिकी विभाग ने वेब आधारित सूचना प्रबंधन प्रणाली को विकसित किया है ताकि कंप्यूटर के सभी उपकरणों में हिंदी में काम करने की सुविधा हों। माइक्रोसॉफ्ट, आईवीएम से लेकर अडोव तक अनेक सॉफ्टवेयर कंपनियां भारतीय ग्राहकों के लिए हिंदी में प्रयोग किये जा सकने वाले सॉफ्टवेयर पैकेज लेकर भारत में आ रही है। अतः तकनीकी के क्षेत्र में कंप्यूटर द्वारा हिन्दी के प्रयोग व रोजगार के अवसर बढ़े हैं। सी-डैक पुणे ने बहुभाषी कम्प्यूटिंग की अवधारणा को विकसित किया है जिससे सूचना प्रौद्योगिकी में भारतीय भाषाओं का प्रयोग सुविधाजनक हुआ है। आज हमारी भाषा की अत्यधिक लोकप्रियता और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ते महत्व के साथ-साथ हिंदी भाषा के क्षेत्र में रोजगार के नए-नए अवसर उपलब्ध हो रहे हैं। भारत में भी अधुना हिंदी भाषा में रोजगार के अनेक सुअवसर उपलब्ध हो रहे हैं। अतः हिंदी पढ़कर हीन भावना लाने, उदासीन होने या निराश होने की आवश्यकता नहीं है। हिंदी उत्तरोत्तर विश्व में अब विकास के सोपान पर अग्रसर हो रही हैं।