हिंदी भारत और विश्व के मध्य संपर्क का स्वर्ण सूत्र है।

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हिंदी भारत और विश्व के मध्य संपर्क का स्वर्ण सूत्र है।

डॉ विशाला शर्मा

हिंदी भारतवर्ष की अस्मिता है उसके माध्यम से ही विश्व में भारतीयता अभिव्यक्ति पाती रही है भारतीय संस्कृति आध्यात्मिकता नैतिकता सार्वभौम दर्शन और ज्ञान विज्ञान विश्व में हिंदी के माध्यम से प्रकाशित प्रसारित हो रहे हैं  हिंदी भारत और विश्व के मध्य संपर्क का स्वर्ण सूत्र है मानवीय संवेदना सद्भावना और प्रेम की बेजोड़ भाषा विश्व मैत्री की भाषा दुनिया में सबसे अधिक बोली जाने वाली  भारत को एक सूत्र में पिरोने वाली  स्वतंत्रता संग्राम में जनमानस को आंदोलन करने वाली  भारतीय साहित्य  गीत संगीत विभिन्न लोक कलाओं को विश्व भर में पहुंचने वाली हिंदी भाषा नहीं अभिव्यक्ति है   हिंदी विश्व का विस्तार अपार है हिंदी शताब्दियों से भारत की जनभाषा रही है और सदा से अन्य देशों में उसका स्थान रहा है ऐतिहासिक स्तर पर और भौगोलिक स्तर पर इस विस्तार को रेखांकित किया गया इसके लिखित साहित्य का प्रथम साक्ष सरहपा की रचनाओं के रूप में सन 760 ईसवी में मिलता है .

  भारतवर्ष अकल्पनीय विविधताओं से सुसज्जित देश है हमारी भारतीय भाषाओं और बोलियां में विद्यमान लोक साहित्य, लोक नृत्य, लोक कला ,लोक संगीत ,लोक कथा हमें और अधिक समृद्ध करती है इसीलिए प्राचीन काल में जो भी आक्रमणकारी या विजेता आए वे केवल धन संपदा ही यहां से नहीं ले गए अपितु हमारी संस्कृति से प्रभावित होकर हमारी भाषा के शब्द भी लेकर गए अनेक शब्द मध्यकाल में ही यूरोप में पहुंच चुके थे और आज भी यह सिलसिला जा रही है अंग्रेजी भाषा हर साल कम से कम 500 शब्द हिंदी के लेती है समृद्ध होती है और उसकी सूची जारी करती है मध्यकाल में यूरोप में हिंदी के संदर्भ में अनेक महत्वपूर्ण कार्य संपन्न हुए सर्वप्रथम जर्मनी में हस्त प्रिंटिंग प्रेस प्रारंभ हुई पुर्तगालियों ने इसे  गोवा में प्रारंभ किया नागरी लिपि में टाइप डालने का कार्य सर्वप्रथम यूरोप में प्रारंभ हुआ विश्व मंच पर हिंदी सहित भारतीय भाषाओं के समाचार पत्रों ने सन 1865 ईस्वी में अपनी दस्तखत दी .

रॉयल एशियाटिक सोसाइटी लंदन ने  ब्रिटिश सरकार को पत्र लिखकर भारत में प्रकाशित पत्र पत्रिकाओं की जानकारी मंगाई भारतीय भाषाओं जिसमें हिंदी उर्दू बांग्ला संस्कृत अरबी फारसी आदि भाषाओं की पुस्तक सन 1867 ई में पेरिस में आयोजित  पुस्तक प्रदर्शनी हेतु भेजी गई इन महत्वपूर्ण पुस्तकों की सूची  रूस के पादरी जेम्स लोग ने स्वयं तैयार की जो भारत सरकार द्वारा आयोजकों को प्रेषित की गई थी .डॉ जॉर्ज ग्रियर्सन  डॉ रूनाल्ड प्रोफेसर स्टफेंसर ,मिस्टर गिल्बर्ट जैसे  विद्वानों ने उस युग में हिंदी को वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित किया फ्रांस में हिंदी की व्यवस्थित पढ़ाई शुरू करने का श्रेय गार्सा द तासी को जाता है जो भारतीय भाषा के प्रथम अध्यापक सन 1828 में नियुक्त हुए.

उन्होंने ब्रजभाषा में खूब काम किया था डेनमार्क में सर्वप्रथम गोदान का अनुवाद किया गया था जबकि फ्रांस में सूर तुलसीदास कबीर मीरा आदि हिंदी कवियों की कविताओं का अनुवाद बहुत पहले किया जा चुका है जापान में हिंदी का अध्यापन द्वितीय महायुद्ध की समाप्ति के बाद शुरू हुआ हिंदी पर शोध कार्य हिंदी रचनाओं के जापानी में अनुवाद और विभिन्न पत्र पत्रिकाओं का प्रकाशन समय-समय पर होता रहा इसी समय पर ऑस्ट्रेलिया में ऑस्ट्रेलिया राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रथम अध्यापक की नियुक्ति हुई आज ऑस्ट्रेलिया और यूरोप के सभी देशों में हिंदी अध्ययन की व्यवस्था अधिकांश विश्वविद्यालय में है जैसे इंग्लैंड के चार विश्वविद्यालय ऑक्सफोर्ड लंदन  और कैंब्रिज में तो 1940 के आसपास से ही हिंदी का अध्यापन हो रहा है जहां हिंदी पढ़ने वाले विद्यार्थियों की संख्या सबसे अधिक है इटली को यूरोप में हिंदी का सबसे बड़ा केंद्र कहा जा सकता है संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के हॉवर्ड  विश्वविद्यालय में हिंदी का शिक्षण होता रहा है इन दिनों अमेरिका के 30 से अधिक विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग है.

  ए .पी .वारान्निकोवट के  प्रयास से  सोवियत विश्वविद्यालय में हिंदी का दीप जला और आज तक प्रज्वलित है सोफिया विश्वविद्यालय बलगारिया में हिंदी शिक्षण का मुख्य केंद्र है यहां स्वतंत्र  हिंदी विभाग 1966 में खुला था स्वीडन ,नॉर्वे और डेनमार्क के विश्वविद्यालय भी लगभग इसी समय हिंदी अध्ययन अध्यापन का सिलसिला शुरू कर चुके थे इस प्रकार संसार के अधिकांश विश्वविद्यालय में हिंदी शिक्षण का रथ चक्र सतत गतिमान है रामचरितमानस और श्रीमद् भागवत गीता के संस्कारों के साथ बहुत से भारतीय श्रम के धनी और अपनी पेट की पीड़ा से व्याकुल भारत माता की गोद को छोड़कर गुलामो की भांति जब मॉरीशस अफ्रीका त्रिनिदाद  गयाना ले जाये गए तब इन्हीं श्रमजीवी भारतीयों ने अपनी सांस्कृतिक चेतना को सुरक्षित रखने के लिए हिंदी भाषा का प्रयोग किया यही धर्म ग्रंथ उनके सखा थे आजादी के बाद भारत के सांस्कृतिक संबंधों को अन्य देशों के साथ प्रदान करने की दिशा में प्रवासियों का योगदान महत्वपूर्ण है भारत सरकार की ओर से समय-समय पर कई सांस्कृतिक कार्यक्रम किए गए और किये जा रहे हैं इसमें भाषा की भूमिका का निर्वाह हिंदी ही करती है और उसकी यह भूमिका अंतरराष्ट्रीय स्तर की है भारत सरकार की पुस्तक आदान-प्रदान कार्यक्रम के अंतर्गत विदेश स्थित अनेक विश्वविद्यालय को भारतीय साहित्य की उत्कृष्ट पुस्तक भेजी जाती है नतीजा हमारे सामने है विदेश में करीब 245 उच्च शिक्षण संस्थाओं  में हिंदी का अध्ययन अध्यापन होता है और कई हिंदी पत्रिकाओं का प्रकाशन विदेश से हो रहा है विदेश से सुरुचि पूर्ण रचनात्मक कार्य लगातार किए जा रहे हैं बाजार एवं व्यवसाय की दृष्टि से हिंदी की उपयोगिता को वैश्विक धरातल पर स्थान प्राप्त हुआ है.

वैश्विक राजनीति सामाजिक और आर्थिक संबंधो को मजबूत करने के लिए हिंदी एक महत्वपूर्ण कड़ी है क्योंकि भारत न केवल विपुल जनसंख्या वाला एक बड़ा देश है बल्कि एक बड़ा शक्तिशाली देश है भारत के साथ संबंध बनाने के लिए अनेक देशों ने हिंदी को सीखा है और विश्व में सद्भाव और मैत्री की भावना को दृढ़ करने के लिए विश्व हिंदी सम्मेलनों की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही है हाल ही में फिजी में 12 वें विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन किया गया आज दुनिया की आबादी का 18 प्रतिशत वर्ग इसे समझता और बोलता है आध्यात्मिकता एवं भौतिकता का समन्वय भारतीय संस्कृति का मूल आधार है सांस्कृतिक अखंडता का परचम हमने विदेश में भी खूब लहराया है सितंबर 1971 में इंडोनेशिया ने प्रथम अंतर्राष्ट्रीय रामायण महोत्सव और संगोष्ठी का आयोजन किया 16वीं सादी में चीनी उपन्यास परंपरा में वानर नाम से सुविख्यात उपन्यास लिखा गया जिसमें हनुमान जी द्वारा सीता जी की खोज का स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित होता है छठी शताब्दी में जानकी हरण काव्य की रचना की गई.

इंडोनेशिया के अतिरिक्त दक्षिण पूर्व एशिया के कई देशों में राम कथा पर आधारित हिंदी साहित्य देखने को मिलता है नवी शताब्दी के अंत में मध्य एशिया से भी पूर्वी ईरानी भाषा खोतानी में रामायण का  सार मिलता है बेल्जियम में जन्मे फादर कामिल बुल्के के नाम को विस्तृत नहीं किया जा सकता जिन्होंने राम कथा की उत्पत्ति और विकास पर वैज्ञानिक शोध पूर्ण आकलन प्रस्तुत किया सादियां भले ही बीत जाए पर हमारे सांस्कृतिक आस्था बरकरार रहती है.

विदेश में गए हमारे प्रवासी जब विदेश के  प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के पदों पर विराजमान होते हैं और गर्व के साथ हिंदी में बात करते हैं तब भारतीयों को हर्ष और गर्व का अनुभव होता है ऋषि सुनक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कमला हैरिस अमेरिका की उपराष्ट्रपति और विश्व के प्रमुख नामो में महेंद्र पाल चौधरी, शिवसागर रामगुलाम, अनिरुद्ध जगन्नाथ ,हर्ष धालीवाल, देवेन नायर, वासुदेव पांडे, प्रविंद जगन्नाथ सभी भारतीय मूल के व्यक्ति हैं और भारत और हिंदीआज भी उनके रोम रोम में बसी  है स्वामी विवेकानंद से लेकर हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक अपनी विदेश यात्राओं के दौरान हिंदी का प्रयोग करना हमारे आत्म सम्मान को द्विगुणित करता है विदेशों में हिंदी का प्रयोग हिंदी भाषा के प्रति स्वाभाविक अभिरुचि एवं जिज्ञासा के कारण तेजी से बढ़ रहा है यह एक सुखद स्थिति है और विश्व हिंदी सम्मेलनों के कारण हमें हिंदी की विकास यात्रा को एक बार फिर आंकने का मौका मिल जाता है कि अपने उद्देश्यों में हम किस हद तक सफल हैं हिंदी से जुड़ी देश-विदेश की यह आत्मीयता बनी रहनी चाहिए ताकि हिंदी के विकास का कारवां निरंतर बढ़ता रहे चला रहे.

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डॉ विशाला शर्मा

प्रोफेसर एवं हिंदी विभागाध्यक्ष
छत्रपति संभाजी नगर,महाराष्ट्र