हिंदी राग और शाह,शिव,सारंग की तिगलबंदी…

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मंच राजनैतिक था और मर्ज के मुताबिक पूरा सजा हुआ था। मैदान भी बहुत बड़ा था और श्रोता-दर्शक भी उम्मीद से बहुत ज्यादा थे। मैदान में भी खचाखच भरे थे और मैदान से बाहर भी खड़े थे मंच की तरफ ध्यान दिए। व्यवस्थाएं चाक-चौबंद थीं। दरअसल जुगलबंदी, तिगलबंदी जैसे शब्द शास्त्रीय संगीतज्ञों की प्रस्तुतियों में प्रयोग होते हैं। जहां अलग-अलग वाद्य यंत्रों, गायन की एक कार्यक्रम में प्रस्तुति कभी मन मोह लेती है, तो कभी रोमांचित कर देती है। पर रविवार 16 अक्टूबर 2022 के दिन लाल परेड ग्राउंड पर प्रस्तुति राजनैतिक थी। आयोजन चिकित्सा शिक्षा विभाग का था और तीन राजनेता केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग की प्रस्तुति को मंच पर बैठे राजनेता-अफसर और मंच के नीचे बैठे राजनेता-अफसर सहित अन्य श्रोताओं ने पूरे ध्यान से सुना, समझा और आनंद उठाया। राग एक ही था हिंदी राग।
लब्बोलुआब यही था कि चिकित्सा शिक्षा की पढ़ाई हिंदी में करने के लिए चिकित्सा शास्त्र के पहले साल की किताबें हिंदी में तैयार करने वाला पहला राज्य मध्यप्रदेश बन गया है। और इन किताबों का विमोचन करने का समारोह का साक्षी लाल परेड मैदान बना। विमोचन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के कर कमलों से हुआ। विषय का विस्तार यही था कि अब न केवल हिंदी में पढ़ाई शुरू हो जाएगी, बल्कि अगले सालों की पढ़ाई की किताबें भी हिंदी में समय पर तैयार हो जाएंगीं ताकि हिंदी में पढ़ने वाले विद्यार्थियों की पढ़ाई में कोई बाधा न पहुंचे। और आगे स्नातकोत्तर की पढ़ाई भी हिंदी में हो और शोध-विकास कार्य भी हिंदी में हो, यह भी सुनिश्चित किया जाएगा। नई शिक्षा नीति और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मातृभाषा में शिक्षा हो… की इच्छा को पूरा करने की शुरुआत करने का श्रेय मध्यप्रदेश के खाते में दर्ज हुआ है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को यश मिला है, जिसके इकलौते हिस्सेदार चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग हैं। यह बात खुलकर शाह ने भी स्वीकार कर दिल खोलकर तारीफ की और शिवराज-सारंग के मुख से भी इस सफल प्रयास की ध्वनि मुखरित हुई।
वैसे तो मंच पर अपने-अपने फन के माहिर कलाकार विराजमान थे। मंच के सामने बाएं से दाएं नजर डालने पर संगठन के महारथी विष्णु दत्त शर्मा, गृह विभाग के मुखिया नरोत्तम मिश्रा, फिर खुद शिवराज, फिर शाह, फिर सारंग और उनके बाद नगरीय विकास एवं आवास मंत्री भूपेंद्र सिंह, उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव, स्कूल शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार और सत्यनारायण जटिया। जिसको भी बोलने का अवसर मिलता वही मंच लूट लेता। पर 16 सितंबर का दिन तो सारंग, शिवराज और शाह का था। तीनों की प्रस्तुति भी एक से बढ़कर एक थी। प्रस्तुति का क्रम कलाकारों की सिद्धहस्तता का निर्धारण करने के लिए काफी था। पहले सारंग, फिर शिवराज और फिर शाह। और प्रस्तुतियों से संतुष्ट श्रोताओं ने अंतिम प्रस्तुति के बाद आभार का इंतजार करना भी उचित नहीं समझा। शायद इसीलिए कि कौन बेवजह समय जाया कर अच्छे मन को खट्टा करे, क्योंकि जो पाना था वह तो हासिल कर ही लिया था। और थोड़ी सी देर में मैदान से दर्शक-श्रोता बिखर गए थे तो मंचासीन भी मंच के पीछे उतर गए थे। यह प्रस्तुति ऐतिहासिक थी, हिंदी में चिकित्सा की पढ़ाई का कीर्तिमान मध्यप्रदेश के खाते में आजादी के अमृत वर्ष में दर्ज हो गया था और सारंग की मेहनत रंग लाई थी, शिवराज की मोदी की मंशा पूरा करने की जिजीविषा को एक अवसर और मिल चुका था और शाह ने शाही अंदाज में मोदी सरकार की उपलब्धियों को शिव-सारंग की पीठ थपथपाते हुए बड़े रोचक अंदाज में श्रोताओं को परोस दिया था। हिंदी राग और शाह,शिव,सारंग की तिगलबंदी अब मध्यप्रदेश और देश के इतिहास में दर्ज हो चुकी है …।
मंच से नीचे बैठे स्वास्थ्य मंत्री डॉ. प्रभुराम चौधरी से हमने जिज्ञासावश पूछ ही लिया विपक्ष की आवाज बनकर, कि क्या इससे कुछ फायदा होगा डॉक्टर साहब…? तो कृष्ण वर्ण डॉक्टर साहब ने अपने सदाबहार मुस्कराहट भरे अंदाज में मुस्कराकर वही शब्द बोले कि वह सभी बच्चे इससे लाभान्वित होंगे जिनकी अंग्रेजी अच्छी न होने का खामियाजा उन्हें और उनके परिवार को भुगतना पड़ता था। एक ही वाक्य में पूरा जवाब मिल गया था। तो सारंग-शिवराज-शाह की तिगलबंदी इसी बात को मातृभाषा में सोचने, समझने और बेहतर परिणाम की सुनिश्चितता के रूप में दिलों में उतार रही थी। बहरहाल यह सोच भी अच्छी है, यह प्रयास भी उत्तम है और इसका परिणाम भी राष्ट्रहित में है। मातृभाषा में शिक्षित होकर ज्यादा बेहतर सोच का धनी हुआ जा सकता है। ज्यादा संवेदनशीलता महसूस की जा सकती है। ज्यादा अपनों के करीब रहा जा सकता है। अंग्रेजी बोलने वालों में आपस में तो दूरी समेटे समीपता का दिखावा नजर आ सकता है, लेकिन ज्यादातर अंग्रेजी बोलने वाले देशवासी अंग्रेजी न बोल पाने वाले अपनों से कब बहुत दूर चले जाते हैं…इसका अहसास उन्हें नहीं हो पाता।