हर दिसंबर में जिंदा हो जाता है (Gets Alive)”उस जज” का देश को “हिंदू राष्ट्र” ( “Hindu Nation”) बनाने वाला फैसला

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(Hindu Nation)

हर दिसंबर में जिंदा हो जाता है “उस जज” का देश को “हिंदू राष्ट्र” ( “Hindu Nation”) बनाने वाला फैसला …

हर दिसंबर की तरह इस साल भी जज के हिंदू राष्ट्र  (Hindu Nation) बनाने के फैसले का वह वीडियो वायरल हो रहा है। हालांकि उस फैसले को उसी हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश की डबल बैंच में बदल दिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने भी फैसला देने वाले जज को नोटिस जारी किया था। और जज ने भी फैसले पर अपनी राय बदलते हुए यह भी सफाई दी थी कि उनका किसी राजनैतिक दल से कोई लेना-देना नहीं है।
और उनसे सुप्रीम कोर्ट में जिस तत्कालीन जज ने सफाई मांगी थी, वह रिटायरमेंट के बाद राज्यसभा पहुंचकर चर्चा में रह चुके हैं। यह सब तो ठीक-ठाक है, लेकिन पलटे जा चुके उस फैसले की पीठ पर सवार होकर “देश को हिंदू राष्ट्र” बनाने का वाकया हर साल दिसंबर में जिंदा हो जाता है।
फिर वह कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ नजरें टिकाए नजर आता है, तो कभी गृह मंत्री अमित शाह के सामने खड़ा होकर नजरें मिलाता है…तो कभी संघ प्रमुख मोहन भागवत के सामने से गुजरकर अपने जिंदा होने का सबूत देता है।
( "Hindu Nation")
शायद यही मुख्य चेहरे हैं, जिनसे “हिंदू राष्ट्र” (Hindu Nation) बनाने का फैसला देने वाले जज को फैसला देते वक्त कुछ उम्मीद नजर आई होगी। फैसला तीन साल पूरे कर चुका है।
फैसले को पलटे जाने के भी ढाई साल पूरे हो चुके हैं। वह जज भी रिटायर हो चुके हैैं। और भारत का संविधान इस तरह की किसी व्यवस्था का पक्षधर भी नहीं है। पर उस विचार के पीछे के तर्क और भावों की मंशा अभी भी सवालों से परे खड़ी टुकुर टुकुर आसमान को एकटक गंभीरता से निहार रही है।
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और “हिंदू राष्ट्र” बनाने के मुखर विरोधी भी एकांत में रहते होंगे तो कभी न कभी बेचैन होते होंगे कि पोखरण की तरह कभी भी विस्फोट होने के बाद ही राज खुले सकेगा कि राष्ट्र अब क्या स्वरूप ले चुका है। और फिर नोटबंदी, तीन तलाक, जीएसटी और अनुच्छेद 370 की तरह लकीर पीटने के अलावा कोई चारा नहीं बचेगा।
और अब जब वसीम रिजवी, अली अकबर सहित सैकड़ों नाम हिंदू धर्म के होकर नया जीवन शुरू कर रहे हैं, तब फिर कहीं यह देश के “हिंदू राष्ट्र” होने की आहट तो नहीं है! ऐसे ख्यालों के लिए संविधान में कोई जगह नहीं है लेकिन संविधान भी तो संसद में ही संशोधित होता है।
यह सब किसी को डराने या किसी को खुश करने के लिए नहीं लिखा जा रहा है। प्रेम और भाईचारा ही हमारे देश की विरासत है। लेकिन हर दिसंबर में वह “हिंदू राष्ट्र” जिंदा होता रहेगा, जब तक कि देश के हर नागरिक की राष्ट्रभक्ति भरोसे की कसौटी पर खरी साबित नहीं होगी। जब तक कि देश के चीफ ऑफ डिफेंस स्टॉफ की शहादत की खिल्ली उड़ाने वालों को देश से बाहर का रास्ता नहीं दिखाया जाएगा।
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जब तक कि भारत-पाक मैच में पाकिस्तान की जीत का जश्न और पाक की हार का गम मनाने वाले भारत की मिट्टी में मौजूद रहेंगे। तब तक ही “राष्ट्रद्रोही” शब्द जिंदा रहेगा और तब तक ही “हिंदू राष्ट्र” शब्द सार्थक होने के लिए अलग-अलग चेहरों को निहारता रहेगा।
यह शब्द किसी भी राष्ट्र भक्त को ठेस पहुंचाने के लिए नहीं लिखे जा रहे हैं तो हर राष्ट्रद्रोही को आइना दिखाने के लिए भी हैं, चाहे वह किसी भी धर्म-विचारधारा से ताल्लुकात रखते हों। ऐसे हिंदू चेहरों की भी कमी नहीं हैं जो विदेशी शत्रुओं की चाल में फंसकर राष्ट्रद्रोही कृत्य कर बेनकाब होकर कानून के हत्थे चढ़ चुके हैं।
यह इस देश की सामाजिक समरसता का ही उदाहरण है कि सेन के फैसले को मीर बदलते हैं और देश खुशी-खुशी स्वीकार करता है। क़ानूनी रूप से त्रुटिपूर्ण और संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप न होने पर देश किसी भी फैसले को स्वीकार करने को तैयार नहीं होता। और जब सवाल देश का होता है तो अकबर भी इस्लाम छोड़कर हिंदू बनने का फैसला लेने में रत्ती भर वक्त जाया नहीं करता।
यहां मूल भाव राष्ट्रभक्ति और राष्ट्रदोह जैसे शब्दों के बीच संघर्ष का ही है। राष्ट्रद्रोही बनने वाले हिंदू धर्म के लोग भी स्वीकार नहीं हैं तो अन्य किसी धर्म से ताल्लुक रखने वाले राष्ट्रद्रोही भी उसी तरह अस्वीकार्य हैं।
“अनेकता में एकता” और “सामाजिक सौहार्द” की मिसाल यहां देखी जा सकती है, जब सीएए, एनआरसी और एनपीआर के विरोध में बिना जाति-धर्म के भेदभाव के सब कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष करते हैं। और ऐसा कोई राष्ट्रभक्त नहीं होगा, जिसका सिर पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अबुल कलाम या फिर शहादत देने वाले लाखों राष्ट्रभक्त चेहरों के सामने बिना जाति धर्म के भेदभाव के न झुक जाता हो।
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इस फ़ैसले में कहा गया था कि भारत को विभाजन के समय ही हिंदू राष्ट्र (Hindu Nation) घोषित कर दिया जाना चाहिए था। पाकिस्तान ने ख़ुद को इस्लामिक देश घोषित किया था। चूंकि भारत धर्म के आधार पर विभाजित हुआ था, उसे हिंदू देश घोषित किया जाना चाहिए था मगर यह एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र रहा।
“वसुधैव कुटुंबकम” के भाव को सनातन काल से अपने विचारों में समेटे यह देश हमेशा-हमेशा धर्मनिरपेक्ष बनकर ही पल्लवित-पुष्पित होता रहा है और रहेगा…भले ही चाहे यहां “संविधान” लागू होने के बाद के 75 वर्ष की बात हो या संविधान से पहले के हजारों वर्ष पहले से फल-फूल रही सनातन संस्कृति की आत्मा हो.
हर दिसंबर में “हिंदू राष्ट्र” बनाए जाने वाला जज का दिया हुआ वह फैसला भी जिंदा होकर यह याद दिलाता रहेगा कि कहीं न कहीं हमें मिलकर एक साथ खड़े होकर देश में रहने वाले राष्ट्रद्रोहियों को सबक सिखाने की जरूरत है।