Hingot War : गौतमपुरा का हिंगोट युद्ध: एक ऐतिहासिक परंपरा, कल होगा यह रोमांचक आयोजन!

सूखे हिंगोट फल में बारूद भरकर दो प्रतिद्वंद्वी सेनाएं इससे युद्ध का खेल खेलती हैं!

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Hingot War

Hingot War : गौतमपुरा का हिंगोट युद्ध: एक ऐतिहासिक परंपरा, कल होगा यह रोमांचक आयोजन!

Gautampura (Indore) : हर साल की तरह इस साल भी इंदौर जिले के गौतमपुरा और रूणजी गांव के बीच होने वाला अनोखा और खतरनाक हिंगोट युद्ध 1 नवंबर को होगा। दीपावली के अगले दिन होने वाले इस अद्वितीय आयोजन का उत्साह चरम पर है। वर्षों से चली आ रही यह परंपरा न केवल स्थानीय लोगों के लिए विशेष महत्व रखती है, बल्कि यह देशभर के पर्यटकों को भी आकर्षित करती है। साहस, धैर्य और युद्ध कौशल का प्रतीक यह युद्ध अपने आप में अद्वितीय है,जो एक जीवंत सांस्कृतिक धरोहर के रूप में स्थापित हो चुका है।

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सदियों पुरानी इस परंपरा में हिंगोट नामक एक विशेष फल का उपयोग हथियार के रूप में किया जाता है। इस फल को सुखाकर, अंदर से खोखला किया जाता है और फिर बत्ती लगाकर इसे अग्निबाण जैसा रूप दिया जाता है। योद्धा इसे जलाकर अपने प्रतिद्वंद्वी दल पर फेंकते हैं। दो दलों में बंटे योद्धा ‘तुर्रा’ और ‘कलंगी’ इस युद्ध में शामिल होते हैं। युद्ध के दौरान हिंगोटों की वर्षा होती है, जिससे रोमांच और खतरे का माहौल बन जाता है। इसके लिए तैयारी नवरात्रि के समय से ही शुरू हो जाती है, जिसमें हिंगोट के फलों को जंगलों से इकट्ठा करके हथियारों में तब्दील किया जाता है।

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दीपावली के बाद का विशेष आयोजन

गौतमपुरा में दीपावली का उत्सव देश के अन्य हिस्सों से थोड़ा भिन्न होता है। यहां धोक पड़वा पर इस युद्ध का आयोजन किया जाता है। यह युद्ध शाम को लगभग 5 बजे शुरू होता है और रात 7 बजे तक चलता है। इस आयोजन को देखने के लिए हजारों लोग जुटते हैं, जिनमें स्थानीय लोग, पर्यटक, और मीडिया के लोग शामिल होते हैं।

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सुरक्षा के लिए विशेष इंतजाम

हिंगोट युद्ध की खतरनाक प्रकृति को देखते हुए प्रशासन द्वारा हर साल विशेष सुरक्षा व्यवस्था की जाती है। चिकित्सा सुविधा और एंबुलेंस भी तैनात रहते हैं। प्रशासनिक अधिकारियों की पूरी टीम आयोजन को सुचारू और सुरक्षित ढंग से सम्पन्न करने के लिए मौजूद रहती है।

सांस्कृतिक धरोहर और पर्यटकों का आकर्षण

हिंगोट युद्ध न केवल स्थानीय संस्कृति को संजोए हुए है, बल्कि यह आयोजन हर साल देशभर से पर्यटकों को आकर्षित करता है। यह परंपरा स्थानीय पर्यटन को बढ़ावा देती है और गांवों की सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने में सहायक होती है।

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