Hingot War : गौतमपुरा में कल होगा ‘हिंगोट युद्ध’ सेनाओं की तैयारी पूरी! 

'कलंगी' और 'रुनजी (तुर्रा) के सैनिक खेल भावना से यह युद्ध लड़ेंगे! 

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Hingot War : गौतमपुरा में कल होगा ‘हिंगोट युद्ध’ सेनाओं की तैयारी पूरी! 

Indore : दिवाली के दूसरे दिन गौतमपुरा नगर में होने वाला हिंगोट युद्ध इस बार सूर्य ग्रहण के कारण दीपावली के तीसरे दिन 26 अक्टूबर को होगा। इस दिन भाई दूज पड़ रहा है। इसे लेकर प्रशासन ने भी अनुमति दी है। प्रशासन द्वारा सुरक्षा के इंतेजाम किए जा रहे हैं। युद्ध मैदान के निरीक्षण के लिए अपर कलेक्टर, एसपी, एसडीएम और अन्य अधिकारी हर दिन गौतमपुरा पहुंचेंगे। हिंगोट युद्ध इस बार दीपावली के तीसरे दिन यानी 26 अक्टूबर को खेला जाएगा।

मान्यता के अनुसार सूर्य ग्रहण के कारण सूतक लगने से सभी मंदिरों के पट (द्वार) बंद रहेंगे। कोई भी पूजा अर्चना इस दौरान नहीं होंगे और हिंगोट युद्ध की परंपरा रही है कि मैदान के पास ही देवनारायण भगवान के मंदिर पर जाकर सभी योद्धा उनके दर्शन करते हैं। उसके बाद ही हिंगोट मैदान में उतरते हैं। ऐसे में हिंगोट युद्ध भी 25 अक्टूबर को होना सम्भव नहीं है, इसलिए 26 अक्टूबर को यह आयोजन होगा।

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इस युद्ध के मैदान में ‘कलंगी’ और ‘तुर्रा’ नाम की दो सेनाएं होती है! योद्धाओं के सिर पर साफा, एक हाथ में ढाल और दूसरे में सुलगता हुआ जानलेवा हिंगोट। दोनों ओर से हिंगोट के हमले में घायल होते कई योद्धा। यह कहानी राजा-महाराजा युग के किसी ऐतिहासिक युद्ध की नहीं, परंपरा की है।

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हिंगोट युद्ध का खेल खतरनाक तो है, लेकिन खिलाड़ियों और योद्धाओं के लिए आस्था का प्रतीक भी। इंदौर से 55 किमी दूर गौतमपुरा के हिंगोट मैदान में दीपावली के बाद पड़वा के दिन यह युद्ध होता है। गौतमपुरा (कलंगी) और रुनजी (तुर्रा) के जांबाज इस युद्ध में बिना अपनी जान की परवाह किए शामिल होते हैं। इस साल यह युद्ध 26 अक्टूबर को खेला जाएगा, जिसकी तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं।

ऐसे शुरू हुई ये परंपरा 

हिंगोट युद्ध कैसे शुरू हुआ और यह परंपरा में कैसे तब्दील हुआ, इसका प्रमाण किसी के पास नहीं है। लेकिन, कहा जाता है कि हिंगोट स्वाभिमान का प्रतीक है। ये परंपरा मुगलों और मराठों से जमाने से चली आ रही है। उस समय लूटपाट के अलावा मुगल सेनाएं हाथियारों के साथ क्षेत्र में आती थी। मराठा हिंगोट के गोले दागकर मुगल सेना से लड़ा करते थे। यह एक तरीके का गुरिल्ला वार हुआ करता था। तब से दोनों गांवों के बीच में प्रतीकात्मक युद्ध होता है ताकि लड़ाके अपने हुनर को न भूले।

ऐसे बनता है ‘हिंगोट’

हिंगोट एक स्थानीय फल है, जो गौतमपुरा के आसपास के जगंल की झाड़ियों में पाया जाता है। इस फल को खोखला करके सुखाया जाता और उसमें बारूद भरा जाता है। फिर अरण्या नामक लकड़ी के पतले हिस्सों को हिंगोट पर बांधा जाता है। उसे अगरबत्ती की तरह जलाकर उससे हिंगोट को सुलगाया जाता है, फिर यही सुलगता हुआ हिंगोट विपक्ष पर फेंका जाता है।

खेल भावना की प्रमुखता

कहने को तो यह युद्ध है, पर वास्तव में यह एक ऐसी परंपरा है जो सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है। इसमें भाग लेने वालों ने इस परंपरा को हमेशा खेल भावना से ही लिया है और आपसी मतभेदों को इससे दूर रखा। युद्ध के दिन सुबह गोवर्धन पूजा होती है फिर पशुधन पूजे जाते हैं। इसके बाद गांव में पाड़ों की लड़ाई होती है। फिर दोनों समूह के योद्धा देवनारायण भगवान के मंदिर में जाकर पूजा करते हैं। इसके बाद सभी एक साथ मैदान पहुंचते हैं और वहां शाम को युद्ध शुरू हो जाता है। दोनों दल के नेतृत्वकर्ता के पास एक थैला होता है, जिसमें हिंगोट रखे रहते हैं।