History of Hanuman Chalisa: तुलसीदासजी ने अकबर की जेल में रची थी हनुमान चालीसा

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History of Hanuman Chalisa: तुलसीदासजी ने अकबर की जेल में रची थी हनुमान चालीसा

रमण रावल की रिपोर्ट

हिंदुस्तान में कितने लोगों को यह पता होगा कि बाबा तुलसीदास ने कालजयी,अप्रतिम आराधना हनुमान चालीसा की रचना अकबर की जेल में 40 दिन गुजारने के दौरान की थी। इसमें 40 दोहे हैं, जो प्रतिदिन एक लिखा गया था। उसी अकबर ने बाबा की राम भक्ति,हनुमान प्रेम के आगे नत मस्तक होकर उन्हें ससम्मान रिहा कर अपने को एक बड़ी विपदा से बचाया था। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि यह तथ्य किसी भारतीय ने नहीं,बल्कि एक अंग्रेज लेखक फिलिप लुटगेनडॉर्फ ने अपनी पुस्तक में बताया है, जिसका प्रकाशन ऑक्सफोर्ड युनिवर्सिटी ने किया है। यह पुस्तक अमेजान पर उपलब्ध है।

अब तो यह कोई रहस्य नहीं रहा कि किस तरह से स्वतंत्र भारत में हमारे इतिहास को हमारे ही लोगों ने जान बूझकर गलत ढंग से परिभाषित किया,विकृत किया,छुपाया। हमारी सनातन पंरपरा,हमारे आराध्य,हमारे वीर-महापुरुषों,हमारे प्रतीक,हमारी आस्था के केंद्रों के बारे में या तो ठीक से जानकारी ही नहीं दी या पूरी तरह से छुपा लिया गया। ये षड्यंत्र लाल झंडा मानसिकता के लोगों ने कांग्रेस सरकार के कर्ता-धर्ताओं के संरक्षण में अनवरत 60 बरस तक किया, जो नासूर बनकर हमारे सामने आया। इसका इलाज कितना दुष्कर हो चुका है, यह हम देख ही रहे हैं, फिर भी प्रयास जारी हैं। बहरहाल।

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हनुमान चालीसा की रचना प्रक्रिया के बारे में फिलिप ने जो शोधपरक लेखन किया है, वह सनातन विरोधियों की आंखें खोल देने के लिये तो पर्याप्त है ही, वह विश्व समुदाय के समक्ष भी इस अवधारणा को पुख्ता करता है कि भारत में किस तरह के चमत्कारी महापुरुष हुए हैं,जो सनातन संस्कृति की वृहद और समृद्ध परंपरा का प्रकाश दुनिया में फैलाते रहे हैं,जिससे यह ब्रह्मांड आज तक जगमग है। यह भी कि भारत तपस्वियों की पावन भूमि रही है, जहां समय-समय पर अनेक अवतार तो हुए ही,महापुरुष-वीर,प्रकांड ज्ञानी,तीनों लोकों के रहस्य के जानकार भी हुए हैं। चाहे बात अंतरिक्ष विज्ञान की हो या ग्रह-नक्षत्रों के मानव जीवन और समूची धरती पर अनुकूल-प्रतिकूल प्रभाव की,भारतीय विद्वानों ने सदियों पहले इस बारे में स्पष्ट व्याख्या कर दी है।

जहां तक हनुमान चालीसा की बात है तो फिलिप ने अपनी पुस्तक-हनुमान्स टेल द मैसेज ऑफ डिवाइन मंकी- में विस्तार से बताया है कि इस महान ग्रंथ की रचना किस तरह से बाबा तुलसीदास ने की थी। हुआ कुछ यूं था कि एक बार बाबा काशी में गंगा के घाट पर बैठे हुए थे,तब एक नव विवाहिता के पति की अकाल मृत्यु के बाद शव दाह के लिये घाट पर लाया गया। बाबा की कीर्ति तो थी ही तो महिला ने शव को बाबा के सामने रखकर प्रार्थना की कि वे उसके पति को फिर से जीवित कर दे। बाबा ने सहजता से जवाब दिया कि प्रभु श्री राम की इच्छा के आगे कोई कुछ नहीं कर सकता, किंतु महिला ने हठ पकड़ लिया। तब बाबा ने कहा कि मैं तो राम नाम जपता हूं तो वही कर लेता हूं।

इस तरह जब बाबा ने राम नाम का जाप प्रारंभ किया और बताते हैं कि कुछ ही समय पश्चात वह व्यक्ति जीवित हो उठा। यह कोई चमत्कार था,राम की कृपा या मूर्छित व्यक्ति का होश में आना,बाबा की कीर्ति अधिक वेग से चारों तरफ फैलते हुए दिल्ली में अकबर के दरबार तक पहुंच गई।अकबर ने अपने सेवकों को काशी रवाना कर दिया। पहले तो बाबा ने साथ जाने से मना कर दिया कि उन्हें तो अकबर से कोई काम नहीं,अलबत्ता जब दिल्ली तरफ आना होगा तो दरबार में हाजिर हो जायेंगे। बात जब अकबर तक पहुंची तो उसका अहंकार जागा और बाबा को गिरफ्तार करने का हुक्म दे दिया। सो बाबा बंदी बनाकर ले जाये गये।

दरबार में जब अकबर-बाबा के बीच सवाल-जवाब हुए तो बाबा ने कोई चमत्कार दिखाने से मना करते हुए कहा कि मैं तो राम का नाम जपता हूं,मुझे कोई चमत्कार नहीं आता, क्योंकि वैसा कुछ था भी नहीं तो अकबर ने नाराज होकर उन्हें काल कोठरी में डालने का हुक्म यह कहकर दे दिया कि देखते हैं तुम्हारे राम क्या करते हैं। इस सजा के लिये बाबा को फतेहपुर सिकरी की जेल में भेजा गया।

यहां पर पहले ही दिन बाबा के कंठ से निकल पड़ा-

श्री गुरु चरण सरोज रज,निज मन मुकुरु सुधारि

बरनऊ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि

बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन कुमार

बल बुद्धि बिध्या देहु माहि हरहु कलेस बिकार…..

इस तरह प्रतिदिन एक दोहा वे रचते गये और चालीसवें दिन फतेहपुर सिकरी में जो हुआ,वह विस्मित कर देने वाला था। उधर,अकबर सदलबल सिकरी में डेरा डाले हुए था कि इधर,ऐन चालीसवें दिन अचानक हजारों वानरों ने सिकरी पर धावा बोल दिया।उन्होंने ऐसा हुड़दंग मचाया कि जनता त्राहिमाम कर उठी। सैनिकों ने अकबर को जैसे-तैसे कमरे में बंद किया। तब वहां एक हाफिज(कुरान की व्याख्या करने वाले विद्वान) को लगा कि कुछ तो अनहोनी हुई है। तब वे अकबर के पास गये और पूछा कि हाल ही में उनसे कुछ खता हुई है क्या? काफी जोर देने के बाद अकबर को याद आया कि उसने एक संत को छोटी-सी बात पर जेल में डाल दिया है और वे यहीं सिकरी में बंद हैं। तब हाफिज ने अकबर को सलाह दी कि वे उन संत से माफी मांगे और रिहा करें तो शायद यह बला टले।

जब अकबर ने बाबा तुलसीदास के पास जाकर क्षमा याचना की और वृतांत सुनाकर इस मुसीबत से छुटकारा दिलाने का आग्रह किया। बताते हैं कि बाबा ने तब आसमान की ओर देखकर प्रार्थना में हाथ उठाकर प्रभु श्री राम का स्मरण किया और देखते ही देखते जिस आकस्मिक तरीके से वानरों का झुंड आया था, उसी तरीके से वे सिकरी से नदारद हो गये। तब बाबा ने अकबर को तत्काल सिकरी छोड़ दिल्ली जाने का कहा और अकबर ने वैसा किया भी। बताते हैं कि दिल्ली जाकर अकबर ने हुक्म दिया कि आयंदा से कहीं भी श्री राम व हनुमान की किसी भी पूजा में कोई विघ्न न डाला जाये । हालांकि उनके पुरखे बाबर इन्हीं भगवान श्री राम का मंदिर अयोध्या में तबाह कर चुके थे और उनके वंशज औरंगजेब ने जो किया वो तो पूरी दुनिया जानती ही है।

गनीमत है कि ये वृतांत फिलिप ने स्वयं भारत का भ्रमण कर अपने स्तर पर ऐतिहासिक संदर्भों का अध्ययन कर निकाले,जो अकबर से जु़डे साहित्य में भी दर्ज हैं। इतने बड़े घटनाक्रम को भारतीय इतिहासकारों ने पूरी तरह से अनदेखा किया,यह शर्मनाक है। पता नहीं यदि फिलिप इस प्रसंग को सामने नहीं लाते तो जब भी यह मालूम चलता,उस पर कितना विश्वास किया जाता या न जाने क्या-क्या बातें बनाई जाती। अब इतिहास में दर्ज अनगिनत विकृत व्याख्याओं को सामने लाने और वास्तविक चित्रण के भगीरथी प्रयासों की आवश्यकता प्रबल होती जा रही है। हमें अपने अतीत के गौरवमयी पहलुओं को इसी प्रमाणिक और वैज्ञानिक तरीकों से सामने लाना होगा, ताकि आने वाले कल का भारत अपने वैभवशाली अतीत को जान-समझ सके।

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रमण रावल

 

संपादक - वीकेंड पोस्ट

स्थानीय संपादक - पीपुल्स समाचार,इंदौर                               

संपादक - चौथासंसार, इंदौर

प्रधान संपादक - भास्कर टीवी(बीटीवी), इंदौर

शहर संपादक - नईदुनिया, इंदौर

समाचार संपादक - दैनिक भास्कर, इंदौर

कार्यकारी संपादक  - चौथा संसार, इंदौर

उप संपादक - नवभारत, इंदौर

साहित्य संपादक - चौथासंसार, इंदौर                                                             

समाचार संपादक - प्रभातकिरण, इंदौर      

                                                 

1979 से 1981 तक साप्ताहिक अखबार युग प्रभात,स्पूतनिक और दैनिक अखबार इंदौर समाचार में उप संपादक और नगर प्रतिनिधि के दायित्व का निर्वाह किया ।

शिक्षा - वाणिज्य स्नातक (1976), विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन

उल्लेखनीय-

० 1990 में  दैनिक नवभारत के लिये इंदौर के 50 से अधिक उद्योगपतियों , कारोबारियों से साक्षात्कार लेकर उनके उत्थान की दास्तान का प्रकाशन । इंदौर के इतिहास में पहली बार कॉर्पोरेट प्रोफाइल दिया गया।

० अनेक विख्यात हस्तियों का साक्षात्कार-बाबा आमटे,अटल बिहारी वाजपेयी,चंद्रशेखर,चौधरी चरणसिंह,संत लोंगोवाल,हरिवंश राय बच्चन,गुलाम अली,श्रीराम लागू,सदाशिवराव अमरापुरकर,सुनील दत्त,जगदगुरु शंकाराचार्य,दिग्विजयसिंह,कैलाश जोशी,वीरेंद्र कुमार सखलेचा,सुब्रमण्यम स्वामी, लोकमान्य टिळक के प्रपोत्र दीपक टिळक।

० 1984 के आम चुनाव का कवरेज करने उ.प्र. का दौरा,जहां अमेठी,रायबरेली,इलाहाबाद के राजनीतिक समीकरण का जायजा लिया।

० अमिताभ बच्चन से साक्षात्कार, 1985।

० 2011 से नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने की संभावना वाले अनेक लेखों का विभिन्न अखबारों में प्रकाशन, जिसके संकलन की किताब मोदी युग का विमोचन जुलाई 2014 में किया गया। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को भी किताब भेंट की गयी। 2019 में केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के एक माह के भीतर किताब युग-युग मोदी का प्रकाशन 23 जून 2019 को।

सम्मान- मध्यप्रदेश शासन के जनसंपर्क विभाग द्वारा स्थापित राहुल बारपुते आंचलिक पत्रकारिता सम्मान-2016 से सम्मानित।

विशेष-  भारत सरकार के विदेश मंत्रालय द्वारा 18 से 20 अगस्त तक मॉरीशस में आयोजित 11वें विश्व हिंदी सम्मेलन में सरकारी प्रतिनिधिमंडल में बतौर सदस्य शरीक।

मनोनयन- म.प्र. शासन के जनसंपर्क विभाग की राज्य स्तरीय पत्रकार अधिमान्यता समिति के दो बार सदस्य मनोनीत।

किताबें-इंदौर के सितारे(2014),इंदौर के सितारे भाग-2(2015),इंदौर के सितारे भाग 3(2018), मोदी युग(2014), अंगदान(2016) , युग-युग मोदी(2019) सहित 8 किताबें प्रकाशित ।

भाषा-हिंदी,मराठी,गुजराती,सामान्य अंग्रेजी।

रुचि-मानवीय,सामाजिक,राजनीतिक मुद्दों पर लेखन,साक्षात्कार ।

संप्रति- 2014 से बतौर स्वतंत्र पत्रकार भास्कर, नईदुनिया,प्रभातकिरण,अग्निबाण, चौथा संसार,दबंग दुनिया,पीपुल्स समाचार,आचरण , लोकमत समाचार , राज एक्सप्रेस, वेबदुनिया , मीडियावाला डॉट इन  आदि में लेखन।