सर्वत्र पवित्र मां नर्मदा…

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सर्वत्र पवित्र मां नर्मदा…

 

मां नर्मदा जयंती पर मध्यप्रदेश में नर्मदा किनारे उत्सव जैसा माहौल देखने को मिलता है। मां नर्मदा की महिमा का बखान सहस्त्र मुखों से भी नहीं किया जा सकता। स्कंद पुराण का रेवा खण्ड पूरी तरह से नर्मदा की उत्पत्ति और महिमा के वर्णन को ही समर्पित है। नर्मदा पुराण तो नर्मदा को लेकर अलग से रचा गया ग्रन्थ है। वाल्मीकि रामायण और कालिदास के मेघदूत में भी नर्मदा का वर्णन आता है।यूनानी विद्वान टॉलमी ने इसे नोम्माडोस या नम्माडियस कहा है। नर्मदा को उत्तर भारत और दक्षिण भारत के बीच की सीमा भी माना जाता है। मत्स्य पुराण,पद्म पुराण,कूर्म पुराण ने नर्मदा की महत्ता एवं उसके तीर्थों का वर्णन किया है। मत्स्य पुराण एवं पद्म पुराण में अमरकंटक से समुद्र तक नर्मदा में 10 करोड़ तीर्थ बताए गए हैं। पुराणों में नर्मदा का उल्लेख गोदावरी एवं दक्षिण की अन्य नदियों के साथ किया गया है। मत्स्य पुराण एवं पद्म पुराण के अनुसार गंगा कनखल में एवं सरस्वती कुरुक्षेत्र में पवित्र है,किन्तु नर्मदा सभी स्थानों में पवित्र है, चाहे वह गांव हो या शहर, जंगल हो या बस्ती।

अमरकंटक वह स्थान है जहाँ से नर्मदा नदी का उद्गम होता है । यह समुद्र तल से 1057 मीटर की ऊंचाई पर मैकाल पर्वतमाला से शुरू होती है। अमरकंटक भारत में मध्य प्रदेश के शहडोल क्षेत्र में स्थित है। नर्मदा नदी मुख्यतः मध्य भारत में बहती है। मान्यता है कि नर्मदा जी की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में हमेशा सुख और शांति बनी रहती है। भारत में 7 धार्मिक नदियां हैं, उनमें से ही एक हैं नर्मदा। शास्त्रों में इनका अलौकिक शब्दों द्वारा उल्लेख देखने को मिलता है। नर्मदा नदी में स्नान करने से व्यक्ति के सारे पाप धुल जाते हैं।

नर्मदा नदी को रेवा के नाम से भी जाना जाता है। यह मध्य भारत की एक नदी और भारतीय उपमहाद्वीप की पांचवीं सबसे लंबी नदी है। यह गोदावरी नदी और कृष्णा नदी के बाद भारत के अंदर बहने वाली तीसरी सबसे लंबी नदी है। मध्य प्रदेश राज्य में इसके विशाल योगदान के कारण इसे “मध्य प्रदेश की जीवन रेखा” भी कहा जाता है। कहा जाता है कि नर्मदा की उत्पत्ति भगवान शिव के पसीने की बूंद से हुई थी। नर्मदा परिक्रमा तीन साल, तीन माह, तेरह दिन में पूरी होती है। नर्मदा नदी का कुल प्रवाह 1312 किलो मीटर है। नर्मदा के किनारे आज भी कई अदृश्य शक्तियां और देवता नर्मदा की परिक्रमा करते रहते हैं। नर्मदा परिक्रमा या यात्रा एक धार्मिक यात्रा है। जिसने भी नर्मदा या गंगा में से किसी एक की परिक्रमा पूरी कर ली उसने अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा काम कर लिया। उसने मरने से पहले वह सब कुछ जान लिया, जो वह यात्रा नहीं करके जिंदगी में कभी नहीं जान पाता। वैसे नर्मदा की परिक्रमा का ही ज्यादा महत्व रहा है। पुराणों में बताया गया है कि इस नदी के पत्थरों में शिवलिंग स्वयं प्राण प्रतिष्ठित रहते हैं यानि उनमें भगवान शिव का अंश माना जाता है। कहते हैं कि इसे नियमित रूप से स्नान कराने और पूजन से घर के सभी दोष दूर हो जाते हैं। इतना ही नहीं, इससे ग्रह बाधाएं भी दूर होती हैं।

 

मुख्यमंत्री बनने के बाद पहली बार नर्मदा जयंती पर नर्मदापुरम में सेठानी घाट पर डॉ. मोहन यादव ने मां नर्मदा को नमन कर नर्मदापुरम को पवित्र नगरी बनाने की घोषणा की। इसके लिए खुले में मांस की बिक्री पर रोक लगाई जाएगी और नगर से डेढ़ किलोमीटर दूर शराब की दुकानें रहेंगी। लाउड स्पीकर के प्रयोग पर भी नियंत्रण किया जाएगा। डॉ. यादव ने कहा कि माँ नर्मदा की बात निराली है, माँ नर्मदा के किनारे आकर बैठने से ही पूरा जीवन धन्य हो जाता है। माँ नर्मदा की पहचान सब नदियों से अलग है। माँ नर्मदा में नालों से मिलने वाले गंदे पानी को रोकने के लिए हमारी सरकार संकल्पबद्ध है।

हालांकि नर्मदा किनारे शराब की बिक्री को प्रतिबंधित करने के प्रयास पहले भी हुए हैं, पर बात पूरी तरह से बन नहीं पाई। इस बार भी यदि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय नहीं दिया, तब स्थिति में आमूलचूल परिवर्तन होकर नर्मदापुरम के पवित्र नगरी बनने पर संदेह के बादल मंडराते रहेंगे। सर्वत्र पवित्र नर्मदा की महिमा अपरंपार है और उम्मीद यही कि वह नर्मदापुरम को पवित्र नगरी बनाने के मोहन के संकल्प को पूरा करेंगी…।