Homage To Vimukta Sharma: पत्थर दिल इंसानों की दुनिया से मुक्त हो गई विमुक्ता मैडम!
डॉ स्वाति तिवारी की खास रिपोर्ट
पांच दिन तक संघर्ष के बाद इंदौर के एक निजी कॉलेज की प्राचार्य विमुक्ता शर्मा ने दुनिया से विदा ले ली। पूरा इंदौर स्तब्ध है, हमले में 80% से ज्यादा जलने पर डॉक्टरों को भी उनके बचने पर संशय था। वे चली तो गई, पर अपने पीछे अव्यवस्था और असंवेदनशीलता का इतना बड़ा बवंडर छोड़ गई है, जिससे उठे सवालों के जवाब आसानी से नहीं मिलेंगे।
कॉलेज के पूर्व छात्र को मार्कशीट नहीं मिलने पर उसने प्राचार्य विमुक्ता शर्मा को सरेआम पेट्रोल डालकर जला दिया और कोई कुछ नहीं कर सका! घटना के समय वहां कौन लोग मौजूद थे! उन्हें बचाया क्यों नहीं जा सका! यह फिलहाल जांच का विषय है! लेकिन, इसमें सबसे बड़ी लापरवाही पुलिस की सामने आई। इसी छात्र के खिलाफ सालभर पहले विमुक्ता शर्मा ने शिकायत दर्ज कराई थी। इसमें स्पष्ट लिखा था कि कॉलेज का एक छात्र आशुतोष श्रीवास्तव मुझे धमकी दे रहा है और कॉलेज में आकर गुंडागर्दी करता है। लेकिन, उनका यह पत्र साल भर तक पुलिस की फाइलों में बंद रहा। न तो कोई कार्यवाही हुई और न आशुतोष से पुलिस ने पूछताछ की। इसका नतीजा यह हुआ कि उसकी हिम्मत खुलती गई और अंततः उसने इतने वीभत्स कांड को जन्म दिया।
अब पुलिस कह रही है कि वह साइको है, सनकी है, गुस्सैल है! वो जो भी है, लेकिन उसने फार्मेसी पास की है और वह इस कॉलेज का स्टूडेंट रह चुका है। पुलिस उसे बार-बार साइको बोलकर यह क्यों साबित करना चाहती है, कि उसने यह सब होशो हवास में नहीं किया! क्योंकि, पुलिस का उसे बार-बार साइको कहना अदालत में केस को प्रभावित कर सकता है। सबसे बड़ा मामला तो उस सब इंस्पेक्टर को सिर्फ सस्पेंड किया जाना है। जबकि, इस घोर लापरवाही की सजा उसे भी दी जाना थी। उसके खिलाफ भी मुकदमा कायम होना था, पर ये सब नहीं हुआ।
घटना से जुड़ा सबसे बड़ा नजारा तो इस दर्दनाक घटना से जुड़ी असंवेदनशीलता का दिखाई दिया। घटना के दूसरे दिन निजी कॉलेजों के प्राचार्यों के संगठन ने इंदौर कमिश्नर को एक ज्ञापन देकर आरोपी पर कार्रवाई की मांग की। ये बहुत औपचारिक मांग थी। इसके अलावा भी जो मांग की गई उसका घटना से सीधा कोई वास्ता दिखाई नहीं दिया। असंवेदनशीलता की पराकाष्ठा तो उस समय दिखाई दी, जब कमिश्नर को ज्ञापन देते हुए सभी कॉलेज के प्राचार्य खिलखिलाकर हंस रहे थे। उनका यही खिलखिलाने वाला फोटो सोशल मीडिया पर भी प्रकट हुआ। किसी प्राचार्य के चेहरे पर अपनी साथी विमुक्ता शर्मा का दर्द दिखाई नहीं दिया। वो घटना जो एक दिन पहले बी घटी थी। आज भी यह सवाल पूछा जा रहा है कि ज्ञापन देते समय प्राचार्य किस खुशी के कारण बेशर्मी से हंस रहे थे।
किसी महिला प्राचार्य को कॉलेज कैंपस में जिंदा जला दिया जाना असामान्य बात नहीं कही जा सकती। लेकिन, असंवेदनशीलता का एक नजारा यह भी दिखा कि इंदौर के किसी भी नेता ने न तो कोई बयान जारी किया और न परिवार के प्रति संवेदनशीलता दिखाई और न घटना का विरोध किया। शायद इसलिए कि यह घटना किसी राजनीतिक दल के कार्यकर्ता से जुडी नहीं थी । यदि ऐसा होता तो निश्चित ही ये नेता आसमान सिर पर उठा लेते। यहां तक कि अस्पताल पहुंचकर परिवार के प्रति दुख प्रकट करने वालों में भी गिनती के नेता दिखाई दिए। महापौर भी औपचारिकता दिखाने तीसरे दिन पहुंचे। उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव तो उज्जैन के विक्रम उत्सव में बिजी हैं। उन्होंने भी अपना दुख व्यक्त नहीं किया।
यह पूरा घटनाक्रम एक महिला के साथ हुआ, पर आश्चर्य है कि न तो महिला आयोग ने इस पर कोई टिप्पणी की और न महिलाओं के किसी संगठन की तरफ से कोई आवाज सुनाई दी। इसका सीधा सा मतलब है कि यह संगठन सिर्फ राजनीतिक मामलों में ही दखलंदाजी करते हैं। यह मामला कहीं से भी राजनीतिक नहीं था। इसलिए सबकी जुबान बंद है। इसलिए कहा जा सकता है कि विमुक्ता शर्मा मामले में जो खामियां नजर आई वह पुलिस के नजरिए से हो, सामाजिक संगठनों के नजरिए से हो या राजनीति करने वालों के नजरिए से हो! जो भी हो इसकी घोर निंदा की जाना चाहिए।
हर मामले में आगे बढ़ चढ़कर बोलने वाले गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा भी अभी तक चुप है। जबकि, इस घटना के परिप्रेक्ष्य में सबसे ज्यादा उंगलियां पुलिस की लापरवाही पर ही उठ रही है। ये सब देखकर निश्चित ही विमुक्ता शर्मा की आत्मा को दुख हो रहा होगा!
इंदौर एक सांस्कृतिक शहर ,महिलाओं के लिए सुरक्षित माना जाता रहा है .लेकिन सरकार की अति आत्मविश्वास से भरी लचर व्यवस्थाओं ने शहर की सुसंस्कृत छबि पर कई प्रश्नचिंह लगा दिए है। वैसे भी सरकार के पास अभी धर्मगुरुओं, संत महात्माओं के प्रवचन व्यवस्थाएं , जैसे तमाम काम है। ऐसे में महिला की सुरक्षा कोई महत्वपूर्ण काम तो था नहीं .
सांस्कृतिक दिखावों, शहरों की धार्मिक पौराणिक खोजो के बीच एक विमुक्ता पुलिस की नजर में क्या मौल रखती है? यह सवाल हमें खुद अपने आप से करना चाहिए? उसकी मौत आदर्श व संस्कारित समाज की अवधारणा की भी हत्या है जिसकी कल्पना कर हम हमारी आदर्श परंपराओं की प्रायः दुहाई देते हैं… यह गुरु शिष्य परम्परा की हत्या है..उन मूल्यों की हत्या है जो प्रत्येक भारतीय परिवारों के बच्चों में अपेक्षित होती है,
मुखाग्नि देनेवाली एकबेटी की माँ की हत्या क्या शहर की तमामबेटियों और कामकाजी महिलाओं में भय और तनाव नहीं दे रही होगी। क्या वह बेटी स्वयम को सुरक्षित महसूस कर सकेगी उम्र भर ?प्रिंसिपल विमुक्ता की बेटी देवांशी लेखिका हैं। वे अब तक 6 किताबें लिख चुकी हैं। देवांशी घटना वाले दिन 20 फरवरी को ही दिल्ली से इंदौर आईं।उन्होंने कहा कि वो मेरी प्रेरणा रही हैं।
इंदौर महिलाओं की सक्रियता के लिए भी पहचाना जाता है। यह माँ अहिल्या की नगरी है।अफसोस है यह तमाम महिला संगठनो का शहर है। उस शहर में एक महिला प्राचार्य की यह घटना इस तथाकथित सामाजिक संगठनों को भी जाग्रत नहीं कर सकी। क्यों नहीं शहर की प्रबुद्ध महिलाओं ने धरने ,ज्ञापन और रैलियां निकाली इस असुरक्षा के लिए ?
अफ़सोस तो इस बात का भी है कि शहर अब नाम का छोटा मुंबई नहीं कर्म से भी क्राइम का शहर बनता जा रहा है। यहाँ एक लडकी की स्कूटी में आग लगा कर एक भवन जलाने की घटना अभी ज्यादा पुरानी नहीं हुई थी वहीँ अब भरे केम्पस में उसी संस्थान की प्राचार्य जलती हुई भाग रही थी। संस्थान की सुरक्षा व्यवस्था कहाँ थी ? शिक्षा जगत का हब बनता शहर अपनी एक प्राचार्य को नहीं बचा पाया तो उन छात्रों को जो पढ़ने बाहर से आती है ,अकेले रहती है उन्हें कैसे बचाएगा ? यह हम सब के लिए सोचने व चिन्ता करने वाला दुःखद प्रसंग है। आखिर इस संस्कारहीन पीढ़ी के हाथों ओर कितनी विमुक्ताओं को जिन्दा जलाया जाता रहेगा।
स्कूल-कॉलेज में पढ़ रहे बच्चों के अभिभावकों को भी अपने बच्चों, अपने युवाओं में घटते जीवन मूल्यों पर विचार करना होगा ?
प्राचार्या विमुक्ता की इस ह्रदय विदारक मौत के दोषी को तो कोर्ट सजा देगी ही लेकिन इस मौत के लिए व्यवस्थाएं भी उतनी हो दोषी है। विमुक्ता को सादर अश्रुपूरित श्रद्धांजलि के साथ हम सब शर्मिंदा हैं इस वीभत्स घटना के लिए।