
ज्वलंत विषय ~ चिकित्सा उपचार का
मेडिकल चिकित्सा में सुपरबग्स की बढ़ती गम्भीर समस्या
विजय प्रकाश पारीक , स्तंभकार
प्रस्तुति डॉ घनश्याम बटवाल मंदसौर
इन दिनों मेडिकल क्षेत्रों में जागरूकता के तहत प्रदर्शन रैली ओर गोष्ठी आयोजित कर प्रयास किया जा रहा है कि एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति में एंटीबायोटिक्स उपयोग कम करें अत्यधिक उपयोग करने से मानव प्रतिरोध क्षमता प्रभावित हो रही है और अन्य रोगों का प्रकोप बढ़ जाता है, हजारों लाखों मरीज़ जान गंवा रहे हैं । यह चिंतनीय है , इस पर विभिन्न संस्थाओं संगठनों को ओर हर स्तर पर संज्ञान लिया जाना चाहिए ।
सुपर बग्स को सामान्य जन नहीं जानते और न ही अधिक समझते हैं ऐसे में जागरूकता के साथ जानकारों को अतिरिक्त सावधानी बरतनी होगी
भारत में एंटीबायोटिक्स के अधिक उपयोग का खतरा, कारण और निदान
भारत में एंटीबायोटिक प्रतिरोध (Antimicrobial Resistance – AMR) एक गंभीर स्वास्थ्य संकट बन चुका है, जिसे “सुपरबग्स” कहा जाता है। यह समस्या एंटीबायोटिक्स के अत्यधिक और गलत उपयोग से उत्पन्न हुई है, जिसके कारण बैक्टीरिया एंटीबायोटिक्स के प्रति प्रतिरोधी हो जाते हैं। एक हालिया लैंसेट अध्ययन के अनुसार, भारत सुपरबग्स का वैश्विक केंद्र है, जहां 83% मरीजों में मल्टीड्रग-रेजिस्टेंट ऑर्गेनिज्म (MDRO) पाए जाते हैं। यह समस्या न केवल स्वास्थ्य प्रणाली को प्रभावित कर रही है, बल्कि हर साल लाखों मौतों का कारण बन रही है।
सुपरबग्स क्या हैं?
सुपरबग्स वे बैक्टीरिया हैं जो एक या अधिक प्रकार के एंटीबायोटिक्स के प्रति प्रतिरोधी हो जाते हैं, जो पहले प्रभावी थे। ये बैक्टीरिया एंजाइम उत्पादन (जैसे कार्बापेनेमेज), दवा के लक्ष्य को बदलना, एफ्लक्स पंप्स या सेल पारगम्यता में परिवर्तन जैसे तंत्रों से प्रतिरोध विकसित करते हैं। भारत में प्रमुख सुपरबग्स में शामिल हैं:
एंटरोबैक्टीरियल्स: जैसे क्लेब्सिएला न्यूमोनिया और ई. कोलाई (70.2% में ESBL-प्रोड्यूसिंग बैक्टीरिया)।
कार्बापेनेम-रेजिस्टेंट ग्राम-नेगेटिव बैक्टीरिया (CRGNs): 23.5% प्रतिरोध दर।
असिनेटोबैक्टर बाउमैनाई, स्यूडोमोनास एरुगिनोसा, और मेथिसिलिन-रेजिस्टेंट स्टेफिलोकोकस ऑरियस (MRSA)।
ये ESKAPE समूह के बैक्टीरिया हैं, जो मूत्र मार्ग संक्रमण, रक्त संक्रमण और अस्पताल-प्राप्त संक्रमणों का कारण बनते हैं। 2021 में वैश्विक स्तर पर AMR ने 1.14 मिलियन मौतें सीधे कीं, जबकि भारत में 2019 में ही 3 लाख मौतें हुईं। नवजात शिशुओं में प्रतिरोधी संक्रमण से प्रतिवर्ष लगभग 60,000 मौतें हो रही हैं।
भारत में स्थिति खतरे की गहराई
भारत एंटीबायोटिक्स का सबसे बड़ा उपभोक्ता और उत्पादक देश है, लेकिन यह सुपरबग्स का गढ़ भी बन गया है। लैंसेट अध्ययन (चार देशों के 1,200 मरीजों पर) से पता चला कि भारत में ERCP (एंडोस्कोपिक रेट्रोग्रेड कोलैंजियोपैंक्रियाटोग्राफी) प्रक्रिया कराने वाले 83% मरीजों में MDRO पाए गए, जो इटली (31.5%), अमेरिका (20.1%) और नीदरलैंड्स (10.8%) से कहीं अधिक है। ICMR की 2023 रिपोर्ट के अनुसार, 21 अस्पतालों से 1 लाख बैक्टीरियल कल्चर में ई. कोलाई के खिलाफ एंटीबायोटिक्स की प्रभावशीलता तेजी से घट रही है, जबकि क्लेब्सिएला के लिए प्रतिरोध बढ़ रहा है। अस्पतालों में भीड़भाड़ और ICU में संक्रमण आम हैं। यदि अनियंत्रित रहा, तो यह “पोस्ट-एंटीबायोटिक युग” ला सकता है, जहां सामान्य संक्रमण घातक हो जाएंगे।
खतरे और प्रभाव (रिस्क्स)
एंटीबायोटिक्स के अधिक उपयोग से सुपरबग्स का प्रसार तेज होता है, जिसके प्रमुख खतरे निम्न हैं:
मृत्यु दर में वृद्धि: भारत में AMR से प्रतिवर्ष 3 लाख मौतें, जिसमें 58,000 नवजात शामिल हैं। वैश्विक रूप से 7.7 मिलियन बैक्टीरियल संक्रमण मौतें, जिनमें से 4.95 मिलियन सुपरबग्स से जुड़ी हैं।
उपचार जटिलता
MDRO संक्रमण से अस्पताल में रहना 3 दिनों से बढ़कर 15+ दिन हो जाता है, ICU की जरूरत पड़ती है, और लागत 70,000 रुपये से 4-5 लाख रुपये तक पहुंच जाती है। मजबूत दवाओं से विषाक्तता और साइड इफेक्ट्स बढ़ते हैं।
सामाजिक-आर्थिक प्रभाव: गरीब और ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक प्रभाव, जैसे दलित समुदायों में मैनुअल स्कैवेंजिंग से संक्रमण का खतरा। महिलाओं और बच्चों पर बोझ बढ़ता है।
पर्यावरणीय प्रसार:
जलवायु परिवर्तन (तापमान वृद्धि, अनियमित वर्षा) से प्रतिरोधी बैक्टीरिया फैलते हैं, खासकर दूषित पानी और मिट्टी से।
वैश्विक खतरा: भारत से प्रतिरोध जीन अन्य देशों में फैल सकते हैं।
कारण (Causes) भारत में सुपरबग्स के प्रमुख कारण बहुआयामी हैं, जो जैविक, सामाजिक और प्रणालीगत हैं:
एंटीबायोटिक्स का गलत उपयोग:
बिना प्रिस्क्रिप्शन के ओवर-द-काउंटर बिक्री (80% फार्मेसी में), वायरल बीमारियों (जैसे सर्दी-जुकाम) के लिए उपयोग, अधूरी कोर्स, और स्व-दवा। अस्पतालों में 50% से अधिक मरीजों को ‘वॉच’ कैटेगरी के एंटीबायोटिक्स दिए जाते हैं।
निदान और बुनियादी ढांचे की कमी:
कमजोर डायग्नोस्टिक सुविधाएं, जिससे ब्रॉड-स्पेक्ट्रम दवाओं का अनावश्यक उपयोग होता है। एंटीबायोग्राम (माइक्रोबायोलॉजी-आधारित गाइडलाइंस) की कमी।
संक्रमण नियंत्रण की कमी:
अस्पतालों में भीड़, खराब स्वच्छता, हाथ धोने की आदतें, और जल/सीवेज प्रबंधन की कमी। पर्यावरण में एंटीबायोटिक-युक्त अपशिष्ट (फार्मा फैक्ट्रियां, कृषि) से प्रतिरोध फैलता है। अब तो शोध में यह तथ्य उभर कर आया है कि हॉस्पिटल के आईसीयू में भी संक्रमण होता है ।
एक स्वास्थ्य (One Health) दृष्टिकोण की अनदेखी: पशुपालन और कृषि में एंटीबायोटिक्स का उपयोग (ग्रोथ प्रमोटर के रूप में), जो प्रतिरोध जीन को मनुष्यों तक पहुंचाते हैं। दूषित पानी और मिट्टी (स्लज का कृषि उपयोग) रिजर्वॉयर बन जाते हैं।
सामाजिक कारक: जागरूकता की कमी, सामाजिक असमानताएं (ग्रामीण/गरीब क्षेत्रों में पहुंच की कमी), और कोविड-19 जैसी महामारियों से बढ़ा उपयोग।
निदान और समाधान (Diagnosis and Solutions)
सुपरबग्स का निदान कल्चर टेस्ट, एंटीबायोग्राम, और रैपिड डायग्नोस्टिक टूल्स (जैसे PCR) से होता है, जो बैक्टीरिया की पहचान और संवेदनशीलता बताते हैं। उपचार में संकुचित-स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक्स का उपयोग, डी-एस्केलेशन (मजबूत दवा से कमजोर पर शिफ्ट), और अंतिम विकल्प वाली दवाओं (जैसे कार्बापेनेम्स) का संरक्षण शामिल है। लेकिन समस्या का समग्र निदान “वन हेल्थ” दृष्टिकोण से संभव है।
समाधान के उपाय:
नीतिगत स्तर पर: एंटीबायोटिक्स को केवल प्रिस्क्रिप्शन पर बिक्री अनिवार्य करें, फार्मेसी नियम सख्त करें, और डिजिटल ट्रैकिंग सिस्टम लागू करें। ICMR AMRSN और NCDC जैसे निगरानी कार्यक्रमों का विस्तार।
पशुपालन/कृषि में उपयोग 30% कम करें (UNGA लक्ष्य)। फार्मा अपशिष्ट नियंत्रण और स्वच्छता सुधार।
चिकित्सा स्तर पर: एंटीमाइक्रोबियल स्टीवर्डशिप प्रोग्राम (कल्चर-आधारित प्रिस्क्रिप्शन, अलर्ट सिस्टम), MDRO स्क्रीनिंग, संक्रमण नियंत्रण (हाथ धोना, आइसोलेशन)। ’10-20-30′ लक्ष्य: 2030 तक संक्रमण मौतें 10% कम, मानव उपयोग 20% कम, पशु उपयोग 30% कम।

नई दवाओं का विकास:
भारत में कई ब्रेकथ्रू हो रहे हैं:
एनमेटाजोबैक्टम (ऑर्किड फार्मा): US FDA-अनुमोदित, UTI, निमोनिया के लिए; बीटा-लैक्टमेज को बेअसर करता है।
जेनिच (वॉकहार्ट): फेज-3 में, सुपरबग्स के खिलाफ; 30 क्रिटिकल मरीजों में सफल।
नाफिनिथ्रोमाइसिन (वॉकहार्ट): निमोनिया के लिए, 97% सफलता।
बगवर्क्स का नया क्लास: फेज-1 में, GARDP के साथ।
सार्वजनिक स्तर पर: जागरूकता अभियान चलाएं। एंटीबायोटिक्स बिना सलाह न लें, पूर्ण कोर्स पूरा करें, वायरल बीमारियों के लिए न मांगें। स्वच्छता बनाए रखें (हाथ धोना, साफ पानी, टीकाकरण), पालतू जानवरों/पशुओं में सावधानी। अस्पतालों में प्रोटोकॉल पूछें।
पर्यावरणीय: जलवायु अनुकूलन, अपशिष्ट उपचार, और कृषि में स्लज उपयोग प्रतिबंध।
यह समस्या एक प्रकार से राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल है। तत्काल कार्रवाई से इस को नियंत्रित किया जा सकता है, लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति और सार्वजनिक भागीदारी के साथ मेडिकल फ्रेटरनिटी सहयोग जरूरी है।





